वर्ष 2017 अपने आखिरी क्षणों में है. ऐसे में इस साल को हर नजरिए से जांचा-परखा जा रहा है. जैसे वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्में, गीत-संगीत, कहानी, किताब, आदि-आदि. साल के आखिरी दिनों में रिलीज हुई टाइगर जिंदा है को इस वर्ष की आखिरी हिन्दी फिल्म माना जा सकता है. फिल्म की सफलता का आलम यह है कि इसने बाहुबली साम्राज्य को कड़ी टक्कर दे डाली है. भारत में हुई कमाई के मामलों में फिल्म इस वर्ष की टॉप टेन फिल्मों में दूसरे पायदान पर पहुंच चुकी है. पूरे वर्ष की दस सर्वश्रेष्ठ कमाई वाली फिल्मों की सूची अगर बनाई जाए तो पूरे वर्ष के सिनेमाई परिदृश्य को समझने में आसानी होगी.
Baahubali 2: CBFC: /A (Drama/Fantasy) - 511.30
Tiger Zinda Hai CBFC: /A (Thriller film/Action)-206.04*
Golmaal Again CBFC: /A (Fantasy/comedy-horror )-205.72
Judwaa 2 CBFC: /A Action/Romance-138.00
Raees CBFC: /A (Crime film/Thriller)- 137.51
Toilet: Ek Prem Katha CBFC: /A (Drama/Comedy-drama)-134.25
Kaabil CBFC: /A (Drama/Thriller)-126.85
Tubelight(Drama/History)-121.25
Jolly LLB 2 Drama/Comedy-117.00
Badrinath Ki Dulhania CBFC: /A Drama/Romance-116.60
सभी आंकड़े koimoi.com से
थ्रिलर,एक्शन और कॉमेडी जोनर ही इस वर्ष टॉप टेन में जगह बना पाएं हैं. अगर बाहुबली और टाइगर जिंदा है को उनके विषय और टेक्निक के आधार पर अलग हटा दिया जाए तो इस साल की सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्मों में गोलमाल अगेन का नाम आता है. रोहित शेट्टी के निर्देशन में बनी...
वर्ष 2017 अपने आखिरी क्षणों में है. ऐसे में इस साल को हर नजरिए से जांचा-परखा जा रहा है. जैसे वर्ष की सर्वश्रेष्ठ फिल्में, गीत-संगीत, कहानी, किताब, आदि-आदि. साल के आखिरी दिनों में रिलीज हुई टाइगर जिंदा है को इस वर्ष की आखिरी हिन्दी फिल्म माना जा सकता है. फिल्म की सफलता का आलम यह है कि इसने बाहुबली साम्राज्य को कड़ी टक्कर दे डाली है. भारत में हुई कमाई के मामलों में फिल्म इस वर्ष की टॉप टेन फिल्मों में दूसरे पायदान पर पहुंच चुकी है. पूरे वर्ष की दस सर्वश्रेष्ठ कमाई वाली फिल्मों की सूची अगर बनाई जाए तो पूरे वर्ष के सिनेमाई परिदृश्य को समझने में आसानी होगी.
Baahubali 2: CBFC: /A (Drama/Fantasy) - 511.30
Tiger Zinda Hai CBFC: /A (Thriller film/Action)-206.04*
Golmaal Again CBFC: /A (Fantasy/comedy-horror )-205.72
Judwaa 2 CBFC: /A Action/Romance-138.00
Raees CBFC: /A (Crime film/Thriller)- 137.51
Toilet: Ek Prem Katha CBFC: /A (Drama/Comedy-drama)-134.25
Kaabil CBFC: /A (Drama/Thriller)-126.85
Tubelight(Drama/History)-121.25
Jolly LLB 2 Drama/Comedy-117.00
Badrinath Ki Dulhania CBFC: /A Drama/Romance-116.60
सभी आंकड़े koimoi.com से
थ्रिलर,एक्शन और कॉमेडी जोनर ही इस वर्ष टॉप टेन में जगह बना पाएं हैं. अगर बाहुबली और टाइगर जिंदा है को उनके विषय और टेक्निक के आधार पर अलग हटा दिया जाए तो इस साल की सबसे ज्यादा कमाई वाली फिल्मों में गोलमाल अगेन का नाम आता है. रोहित शेट्टी के निर्देशन में बनी यह फिल्म 20 अक्टूबर 2017 को रिलीज हुई थी. यह गोलमाल सीरीज की चौथी फिल्म है. गोलमाल: फन अंलिमिटेड के नाम से 2006 में शुरू हुई यह सीरीज, 2008 में गोलमाल रिटर्न, 2010 में गोलमाल-3 और अक्तूबर 2017 में गोलमाल अगेन तक पहुंची है.
यहां गौरतलब है ये भी है कि गोलमाल सीरीज के निर्देशक रोहित शेट्टी, गोलमाल अगेन की सफलता के बाद गोलमाल-5 बनाने की ओर इशारा पहले ही कर चुके हैं. गोलमाल अगेन की कमाई के आंकड़े पर ध्यान दें तो रोहित के इरादे आसानी से भाँपे जा सकते हैं. आखिर गोलमाल जैसी फिल्मों को निर्माता निर्देशक किसके बल पर बना पाते है? कैसे एक ही तरह के जोनर की फिल्म को हल्के फुल्के हेर-फेर करते हुए निर्देशक बॉक्स ऑफिस पर अपनी पैठ बना लेते हैं? मेरी नज़र में इसका सीधा और सटीक जवाब है दर्शकों की पसंद. दर्शक ही किसी निर्देशक/निर्माता को फिल्म बनाने का संकेत देता है. निर्देशक/निर्माता फिल्म की आर्थिक सफलता को ही दर्शकों की पसंद के बरक्स मान एक नए प्रॉडक्ट लांच करने की कोशिश में जुट जाते हैं.
रोहित और गोलमाल के मामले में यह कथन पूरी तरह फिट बैठता है. हिन्दी फिल्मों के मशहूर स्टंटमैन एम बी शेट्टी के बेटे रोहित शेट्टी ने एक्शन, रोमांस और कॉमेडी का जो मिश्रण तैयार कर दर्शकों की आँखों तक पहुंचाया है उससे दर्शक खुद तीनों (एक्शन,रोमांस और कॉमेडी) का वास्तविक और सुनहरा दौर भूल गए हैं. रोहित ने इस सीरीज की शुरुआती कमाई का आंकड़ा 27 करोड़ (Golmaal: Fun nlimited) से 51.15 करोड़ (Golmaal Returns), 106 करोड़ (Golmaal 3) तथा आखिरी में 205 करोड़ (Golmaal Again) तक पहुंचाया है.
रोहित शेट्टी की गोलमाल अगेन की सफलता ने हिन्दी सिनेमा के कॉमेडी जोनर को इतिहास के पन्ने से खोज निकालने पर विवश किया है. गोलमाल को देखते हुए एक गंभीर सिने दर्शक कॉमेडी फिल्मों के इतिहास को जानने पर विवश हो जाएगा. उसके मन में यह विचार जरूर आएगा कि क्या कॉमेडी फिल्मों का मौजूदा स्तर हिन्दी सिनेमा में उद्भव काल से ही रहा होगा?
जी नहीं. भले ही हिन्दी सिनेमा के मूल स्वर में कॉमेडी नहीं रही बावजूद इसके हिन्दी में कई बेहतरीन कॉमेडी फिल्में बनी हैं. जिनमें हिन्दी की संभवत: पहली हास्य फिल्म किशोर कुमार की चलती का नाम गाड़ी से लेकर, महमूद की पड़ोसन, ऋषिकेश मुखर्जी की गोलमाल और चुपके चुपके (1975), गुलजार की अंगूर, सई परांजपे की चश्मे बद्दूर और कथा (1983), कुन्दन शाह ही कल्ट कॉमेडी जाने भी दो यारों, बसु चटर्जी की चमेली की शादी और छोटी सी बात (1975), राजकुमार संतोषी की अंदाज अपना अपना, प्रियदर्शन की हेरा फेरी, दिबाकर बनर्जी की खोसला का घोंसला, राजकुमार हिरानी की मुन्नाभाई सीरीज, फिल्म बावर्ची (1972), मनोरंजन, पति पत्नी और वो, बॉम्बे टू गोवा, पुष्पक, और निर्देशक कमल हासन की चाची चार सौ बीस जैसी कुछ फिल्में कॉमेडी की परंपरा को जीवित और लोकप्रिय बनाने का काम करती हैं.
इनमें से कई फिल्मों के अभिनेता जैसे परेश रावल, संजय दत्त, अरशद वारसी, अक्षय कुमार, आदि हास्य अभिनेता के तौर पर भी ख्याति प्राप्त किए हुए हैं. उन्हे किसी भी तरह से फूहड़ और अश्लील हरकत करने वाली भाव भंगिमा के तौर पर शायद ही किसी दर्शक ने देखा हो. कमाल हसन की फिल्म चाची चार सौ बीस का ही उदाहरण लेकर समझें तो पाएंगे कि भले ही इस फिल्म में कमाल हसन औरत के किरदार में है लेकिन मेक अप और कपड़ो के इस्तेमाल भर से ही वह औरत का किरदार नहीं निभाते बल्कि कई दृश्यों में औरत की वास्तविक भाव भंगिमा में गहरे डूबे हुए दिखते हैं. कई दृश्यों में वह एक औरत की जरूरतों और अंदरूनी जज़्बातों को काफी नज़दीक से अपनी एक्टिंग से प्रदर्शित कर पाने में सफल होते हैं.
वहीं गोलमाल में निभाए गए पुरुषों द्वारा महिलाओं के किरदार पर अगर खास नज़र दौड़ाए तो अंतर खुद ब खुद देखा जा सकता है. इनमें उन पात्रों की अश्लील एक्टिविटीज़ आपको हंसा तो सकती है पर आपको मानसिक तसल्ली दे पाने में असमर्थ है. भागम भाग भरी ज़िंदगी में छोटे छोटे दृश्यों, संवादों से दशकों को हँसाने के उद्देश्य से शुरू हुई इस विधा का अंत कब का हो चुका यह हमने सोचना ही बंद कर दिया है. सच तो यह है कि यहाँ लाजिक नहीं मैजिक ज्यादा जरूरी हो जाता है. यही गोलमाल अगेन का मूल मंत्र यानि टैग लाइन भी थी.
हम दशकों पहले के सिनेमाई दौर को याद करें जब पुरुष ही महिला पात्रों के किरदार निभाते थे उन दिनों हंसी के बादशाह चार्ली चैपलिन अपनी भाव भंगिमाओं से ही आनंदित करते थे. चार्ली खुद मानते थे कि ज़िंदगी करीब से ट्रेजडी और दूर से कॉमेडी नज़र आती है. आज पुरुष पात्र महिलाओं के कपड़े पहन जिस तरह की भाव भंगिमाओं को प्रकट कर दर्शकों को लुभा रहे हैं वह निंदनीय और अफसोसजनक है. हालांकि इसकी छूट उन्हे दर्शकों ने ही दी है. दर्शकों की पसंद ही ऐसे निर्माता निर्देशकों को बल देने के लिए काफी होती है. यह वही दर्शक है जो मौजूदा समय में तेरे बिन लादेन,फंस गए रे ओबामा, दो दुनी चार जैसी फिल्मों से ज्यादा सुपर कूल, मस्तिजादे, गोलमाल और तीस मार खान की तरफ आकर्षित होता है. जहां फिल्म में किसी लॉजिक का न होना खुद निर्माता निर्देशक कुबूल कर रहे हैं.
यह सच है कि बदलते दौर में हिन्दी सिनेमा में मौत, गरीबी, हिंसा महिलाओं के साथ खराब व्यवहार जैसे मुद्दों को समेटते हुए हास्य के साथ ब्लैक कॉमेडी बनी हैं. जिसे फिल्म जाने भी दो यारों के महाभारत वाले क्लाइमैक्स से सिद्ध किया जा सकता है. ‘हंगामा’ अंगूर’ और ‘हेराफेरी’ जैसी फिल्मों में सिचुएशनल कॉमेडी का रूप प्रस्तुत किया गया जो हमें चार्ली चैपलिन के पिंजरे में बंद होने वाले दृश्य की याद दिलाने लगता है. राजू श्रीवास्तव और एहसान कुरैशी जैसे कोमेडियन की ऑब्जरवेश्नल कॉमेडी को बॉम्बे टू गोवा जैसी फिल्मों में देखा जा सकता है. जिनमें दर्शक कहीं न कहीं से एक सीख जरूर लेता हुआ दिख जाएगा. वहीं मौजूदा समय में ब्लू कॉमेडी लोकप्रिय है. नाम से ही इसका अंदाजा लगाया जा सकता है इसमें अश्लील चुटकुलों, द्विअर्थी फूहड़ हरकतों वाले संवाद और दृश्य होने की प्रचुरता होती है.
फिल्म ग्रैंड मस्ती सीरीज इसी का उदाहरण है. इसकी जड़े इतनी पुख्ता हो चुकी है कि 2004 में इंदर कुमार निर्देशित सेक्स कॉमेडी मस्ती के बाद दो अन्य ग्रेंड मस्ती और ग्रेट ग्रैंड मस्ती नाम से फिल्म बन चुकी है. इसी जोनर की हमराही क्या कूल है हम ने तो सारी हदें ही पार कर दी है. ग्रैंड मस्ती जहां सेक्स कॉमेडी जोनर कहलाती है वहीं क्या कूल है हम सीरीज को पॉर्न कॉमेडी कहा जाता है. गौरतलब है कि दर्शकों के बीच यह सीरीज भी काफी चर्चित है. चर्चित का यहां सीधा संबंध फिल्म की आर्थिक सफलता से लिया जा रहा है जिसके सहारे निर्देशक निर्माता अपना अगला प्रॉडक्ट बेचने के लिए तैयार होते हैं.
सीधे तौर पर कहें तो ऐसे फिल्म व्यवसायी नशा बेचने वाली कंपनियों की तरह ही काम कर रहे हैं. पहले नशे की आदत डलवाओ, फिर उसका व्यवसाय करो. फिल्म में अश्लीलता होने का हवाला देते हुए चेतावनी का इस्तेमाल भी नशे की कंपनियों की तर्ज पर ही किया जा रहा है. लेकिन दुखद है कि दर्शक चेतावनी को दरकिनार करते हुए नशे की आदत का ऐसा शिकार होते चले गए कि उनका अपना कॉमेडी फिल्में देखने का नज़रिया ही बदल गया है.
कॉमेडी का पर्याय आज गोलमाल सुपरकूल, ग्रैंड मस्ती जैसी फिल्में बन गयी हैं? इस साल की सर्वश्रेष्ठ कमाई वाली वाली फिल्मों में गोलमाल अगेन तीसरे स्थान पर और कॉमेडी जोनर में पहला स्थान प्राप्त कर निर्माता निर्देशक और दर्शकों को ठेंगा दिखा रही है. इतनी बातों के बाद ये कहना हमारे लिए गलत न होगा कि गोलमाल अगेन की कामयाबी दर्शकों की सिनेमाई समझ पर ही प्रश्न चिन्ह लगाती नजर आ रही है.
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