मां की सूरत कैसी होती है? मां की ममता कैसी होती है? मां कैसे हंसती है? मां कैसे गुस्सा होती है? मां कैसे परेशान होती है? मां कैसे डांटती है और मां कैसे स्नेह करती है? इन सारे सवालों का बस एक ही जवाब है रीमा लागू (Reema Lagoo)...जिसका चेहरा ही एकदम मां की मूरत जैसा लगता है.
चेहरे पर शांत भाव के साथ प्यारी सी मुस्कान जो दुनिया की हर तकलीफ को दूर कर सकती है. उनकी आंखे बिना बोले ही सब बोल देती थीं, एकदम वैसी ही जैसा हर मां की होती है. वे असल जीवन में एक ऐसी मां थीं जिसने अपनी बच्ची को अकेले ही पाला.
वह अदाकारा जो पर्दे पर मां का किरदार निभा कर मशहूर हो गई. जब 90-2000 के दशक में खूबसूरत अभिनेत्रियों को मां का रोल करने में शर्म आती थी तब रीमा लागू ने मां का किरदार ऐसे जिया कि जब मां की बात होगी उनका जिक्र जरूर होगा. वे फिल्मों में सलमान खान, शाहरूख खान, काजोल, जूही चावला और माधुरी दीक्षित की मां बनकर दुनिया पर छा गईं.
रीमा लागू दिखने में जितनी खूबसूरत थीं उतनी ही खूबसूरत उनका दिल था. ऐसा लगता था कि दुनिया की हर मां का आशीर्वाद उनके साथ था. वे मां बनकर जब हसंती थीं तो दर्शक हंस देते, जब गुस्सा होती जो फिल्म देखने वाला भी सहम जाता...जब वे परेशान होतीं तो दर्शक उदास हो जाते. उन्हें देखकर लगता ही नहीं है कि वे मां का किरदार के लिए अभिनय कर रही हैं. ऐसा लगता कि वे...
मां की सूरत कैसी होती है? मां की ममता कैसी होती है? मां कैसे हंसती है? मां कैसे गुस्सा होती है? मां कैसे परेशान होती है? मां कैसे डांटती है और मां कैसे स्नेह करती है? इन सारे सवालों का बस एक ही जवाब है रीमा लागू (Reema Lagoo)...जिसका चेहरा ही एकदम मां की मूरत जैसा लगता है.
चेहरे पर शांत भाव के साथ प्यारी सी मुस्कान जो दुनिया की हर तकलीफ को दूर कर सकती है. उनकी आंखे बिना बोले ही सब बोल देती थीं, एकदम वैसी ही जैसा हर मां की होती है. वे असल जीवन में एक ऐसी मां थीं जिसने अपनी बच्ची को अकेले ही पाला.
वह अदाकारा जो पर्दे पर मां का किरदार निभा कर मशहूर हो गई. जब 90-2000 के दशक में खूबसूरत अभिनेत्रियों को मां का रोल करने में शर्म आती थी तब रीमा लागू ने मां का किरदार ऐसे जिया कि जब मां की बात होगी उनका जिक्र जरूर होगा. वे फिल्मों में सलमान खान, शाहरूख खान, काजोल, जूही चावला और माधुरी दीक्षित की मां बनकर दुनिया पर छा गईं.
रीमा लागू दिखने में जितनी खूबसूरत थीं उतनी ही खूबसूरत उनका दिल था. ऐसा लगता था कि दुनिया की हर मां का आशीर्वाद उनके साथ था. वे मां बनकर जब हसंती थीं तो दर्शक हंस देते, जब गुस्सा होती जो फिल्म देखने वाला भी सहम जाता...जब वे परेशान होतीं तो दर्शक उदास हो जाते. उन्हें देखकर लगता ही नहीं है कि वे मां का किरदार के लिए अभिनय कर रही हैं. ऐसा लगता कि वे सच में सलमान खान की मां है जो हर हाल में अपने बेटे का भला चाहती है. उस दौर में जब फिल्म में अहम किरदार हीरो और हीरोइन हुआ करते थे उस जमाने में रीमा लागू ने मां के साइड रोल में जान फूंक दी.
दर्शक रीमा लागू में अपनी मां की छवि को देखते शायद यही वजह है कि वे किसी और को मां के रोल में देखना नहीं चाहते थे और डायरेक्टर भी इस बात को अच्छी तरह समझते थे.
रीमा लागू की आज जयंती (Reema Lagoo Birth Anniversary) है. वे 21 जून 1958 में पैदा हुईं. फिल्मों में आने से पहले उन्होंने 10 साल तक बैंक में नोकरी की. रीमा लागू का अभिनय इसलिए इतना नैचुरल था क्योंकि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत थियेटर से की थी. फिल्मों में काम करने वाली इस अभिनेत्री ने कभी किसी काम को छोटा नहीं समझा तभी तो टीवी पर इनका शो सास-बहू, तूतू-मैं मैं इतना लोकप्रिय हुआ था.
रीमा लागू ने बताया कि हर मां को सजने-संवरने का हक है
मां बनने के बाद माना जाता है कि किसी महिला की जिंदगी पर अब सिर्फ उसके बच्चे का ही हक है. खासकर जब मां अधेड़ उम्र की हो जाती है, चाहकर भ वह नहीं कर सकती जो उसका मन करता है. उसके लिए एक दायरा सीमित कर दिया जाता है. जिसमें उसे सादे लिबास में सादगी में ही रहना है.
रीमा लागू ने उस दौर की मां को चुनौती दिया जो सिर्फ फिल्मों में रोती रहती थीं. रीमा ने सिनेमा की मां को एक नया रूप दिया. उन्होंने दुनिया को बताया कि मां होने का मतलब सिर्फ रोना और बच्चों के बारे में सोचना नहीं है. मां होने का मतलब है खुश रहना, सजना-संवरना, हंसना और अपने बारे में भी सोचना.
पहले सिनेमा में अक्सर देखा जाता था कि मां हमेशा परेशान ही रहती थी. वह सफेद सूती साड़ी पहने रहती थी. वह मेकअप भी नहीं करती थी. वह सजती भी नहीं थीं. जब रीमा लागू ने मां का रोल निभाया तो हर मां को एक नई परिभाषा दी. कई माओं ने उनके फैशन को कॉपी किया. रीमा लागू का नाम कहीं से भी किसी अभिनेत्री से कम नहीं रहा. रीमा लागू वो हैं जो मां बनकर रंग-बिरंगे कपड़े पहनें. वह मॉडर्न मां बनी जो हेयर स्टाइल बनाती है, जो हेयर कट कराती है, जो लिपिस्टिक लगाती है, जो मेकअप करती है, जो आइब्रो बनवाती है, जो अपने खास दिन को एंजॉय करती है, जो पति से प्रेम का इजहार करती है, जो अपने हक के लिए लड़ती है, जो मैंचिंग के गहने पहनती है, जो गाना गाती है, जो डांस करती है, जो लड़कियों की सहेली बनती है...
वह मां जो पिता की तरह कठोर हो सकती है-
माना जाता है कि मां अपने लाड़ में बच्चों को दुलार देकर बिगाड़ देती है. बच्चे सिर्फ पिता से डरते हैं. ऐसे लोगों को रीमा लागू ने अपने किरदारों में बताया कि मॉडर्न मां अपनी संस्कृति को साथ लेकर चलती है. वह बेटे की गलती पर "वास्तव फिल्म" में गोली भी मार सकती है, जो बेटे की खातिर महल को छोड़कर चॉल में ही रह सकती है...जो मरते हुए बेटे के आखिरी दिनों में उसका हाथ पकड़कर उसकी हिम्मत बनकर उसके सामने खड़ी रह सकती है. जो बेटी के खुशी और उसके अधिकार के लिए पति ले लड़ सकती है.
इस तरह रीमा लागू ने सिनेमा के साथ समाज को यह संदेश दिया कि मां होने का असली मतलब अपनी खुशियों को मारना नहीं है. पति मराठी एक्टर विवेक लागू से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी सारी जिंदगी बेटी को अकेले पालने में बिता दिया, जीवन के आखिरी समय में भी वे शूटिंग ही कर रही थीं.
मां के रूप में उनकी छवि लोगों के दिल में ऐसी बैठी, जिसकी जगह आज तक कोई नहीं ले पाया और शायद ही कोई ले पाएगा...कुछ ऐसी बात थी इस सिनेमाई पर्दे की मां में जो लोगों ने असली की मां ही मान लिया...वे कुछ लोग होते हैं ना जो अपने व्यक्तित्व से जादू करते हैं, कुछ ऐसा ही जादू रीमा लागू के अभिनय में था जो मां का चेहरा बनकर दिलों में हमेशा के लिए उतर गया...
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