वो औरत जिसे कभी मोटी और काली कहा जाता था, उसकी खूबसूरती के राज आज गूगल पर खोजे जाते हैं. लोगों ने जिसे घृणा और हिकारत से देखा आज अपने जीवन में उस जैसी महिला के होने का ख्वाब देखते हैं. कैसे, और किस तरह दर्द के घूंट पीकर एक महिला खूबसूरती का पैमाना बन जाती है, ये समझने के लिए रेखा को समझना होगा.
जिस तरह रेखा एक बिंदू से शुरू होती है उसी तरह रेखा को समझने के लिए उसी बिंदू पर लौटना होगा. और जैसे-जैसे आप उस रेखा से गुजरेंगे, आपको उसमें थोड़ी सी तनुश्री दिखेंगी, थोड़ी सी कंगना भी, थोड़ी सी विंता नंदा और थोड़ी फ्लोरा भी. उनके जीवन में कई बार ऐसा हुआ होगा जब वो चीखीं होंगी, चिल्लाई होंगी. क्योंकि उनके पास शोषण की एक नहीं कई कहानियां थीं, जिन्हें वो हर रोज जीती आईं थीं. आज मीटू का एक किस्सा कितनी ही जिंदगियों में उथल पुथल मचा देता है. रेखा का तो पूरा जीवन ही एक मीटू था. सवाल ये नहीं कि वो क्यों नहीं बोलीं, सवाल ये है कि वो क्या क्या बोलतीं. पत्रकार यासीर उस्मान द्वारा लिखी गई रेखा की बायोग्राफी 'रेखा, द अनटोल्ड स्टोरी' में कुछ ऐसी ही बातें लिखी गई हैं जिन्हें जानना जरूरी है.
बचपन जिसकी उम्र बहुत छोटी थी
रेखा के माता और पिता दोनों फिल्मों में कलाकार थे. जब रेखा छोटी सी थीं तभी मां पुष्पवल्ली और पिता सुपरस्टार जैमिनी गणेशन दोनों अलग हो गए थे. रेखा ने कभी अपने पिता के प्यार को महसूस नहीं किया, उन्हें उनके संग बिताया हुआ समय याद नहीं. रेखा का बचपन बहुत छोटा था, क्योंकि उन्हें उनके बचपने में ही बहुत बड़ा कर दिया गया था. पिता के जाने के बाद मां को घर चलाना था. मां पर कर्ज भी था, तो कर्ज पाटने और घर चलाने के लिए रेखा को कामाने लगा दिया गया. जब वो 9वीं क्लास में पढ़ती थीं जब उनका...
वो औरत जिसे कभी मोटी और काली कहा जाता था, उसकी खूबसूरती के राज आज गूगल पर खोजे जाते हैं. लोगों ने जिसे घृणा और हिकारत से देखा आज अपने जीवन में उस जैसी महिला के होने का ख्वाब देखते हैं. कैसे, और किस तरह दर्द के घूंट पीकर एक महिला खूबसूरती का पैमाना बन जाती है, ये समझने के लिए रेखा को समझना होगा.
जिस तरह रेखा एक बिंदू से शुरू होती है उसी तरह रेखा को समझने के लिए उसी बिंदू पर लौटना होगा. और जैसे-जैसे आप उस रेखा से गुजरेंगे, आपको उसमें थोड़ी सी तनुश्री दिखेंगी, थोड़ी सी कंगना भी, थोड़ी सी विंता नंदा और थोड़ी फ्लोरा भी. उनके जीवन में कई बार ऐसा हुआ होगा जब वो चीखीं होंगी, चिल्लाई होंगी. क्योंकि उनके पास शोषण की एक नहीं कई कहानियां थीं, जिन्हें वो हर रोज जीती आईं थीं. आज मीटू का एक किस्सा कितनी ही जिंदगियों में उथल पुथल मचा देता है. रेखा का तो पूरा जीवन ही एक मीटू था. सवाल ये नहीं कि वो क्यों नहीं बोलीं, सवाल ये है कि वो क्या क्या बोलतीं. पत्रकार यासीर उस्मान द्वारा लिखी गई रेखा की बायोग्राफी 'रेखा, द अनटोल्ड स्टोरी' में कुछ ऐसी ही बातें लिखी गई हैं जिन्हें जानना जरूरी है.
बचपन जिसकी उम्र बहुत छोटी थी
रेखा के माता और पिता दोनों फिल्मों में कलाकार थे. जब रेखा छोटी सी थीं तभी मां पुष्पवल्ली और पिता सुपरस्टार जैमिनी गणेशन दोनों अलग हो गए थे. रेखा ने कभी अपने पिता के प्यार को महसूस नहीं किया, उन्हें उनके संग बिताया हुआ समय याद नहीं. रेखा का बचपन बहुत छोटा था, क्योंकि उन्हें उनके बचपने में ही बहुत बड़ा कर दिया गया था. पिता के जाने के बाद मां को घर चलाना था. मां पर कर्ज भी था, तो कर्ज पाटने और घर चलाने के लिए रेखा को कामाने लगा दिया गया. जब वो 9वीं क्लास में पढ़ती थीं जब उनका स्कूल छुड़वा दिया गया था. फिल्मों में उनका डेब्यू नहीं हुआ था बल्कि उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में धकेला गया था.
फिल्मों को भानुरेखा मिली...वो भानुरेखा जो कभी फिल्मों में काम करना नहीं चाहती थीं. भानुरेखा का सिर्फ एक सपना था कि वो उन्हें कोई प्यार करने वाला हो जिससे वो शादी करें, घर बसाएं और उनके ढेर सारे बच्चे हों. फिर मां ने उन्हें बॉलीवुड भेज दिया. और फिल्म 'सावन भादो' से उन्होंने हिंदी फिल्मों की शुरुआत की. वो अकेली यहां आईं और कोल्हू के बैल की तरह लगी रहीं सुबह 9 बजे से रात के 10 बजे तक सिर्फ काम करती थीं. मां से ये भी नहीं कह सकती थीं कि वो ये सब करना नहीं चाहती थीं, क्योंकि ये सब करना उनकी जिम्मेदारी बन गया था. फिर इस जिम्मेदारी को निभाते-निभाते रास्ते में जो कुछ भी उनके साथ घटता गया, वो उसे झेलती गईं.
यौन शोषण का वो किस्सा जिसपर सीटियां बजीं
1969 में रेखा केवल 14 साल की थीं. फिल्म 'अन्जाना सफर' की शूटिंग हो रही थी. निर्देशक राजा नवाथे और हीरो विश्वजीत ने प्लान बनाया और निशाना थीं रेखा. उस दिन रेखा और विश्वजीत पर एक किसिंग सीन फिल्माया जाना था. शूट से पहले ही इस प्लान की सारी तैयारियां कर ली गई थीं, कैमरा हर एक पल को रिकॉर्ड करने के लिए तैयार था. जैसे ही डायरेक्टर ने कहा 'एक्शन', विश्वजीत ने रेखा को अपनी बाहों में लिया और अपने होंठ उनके होठों पर गड़ा दिए. रेखा स्तब्ध थीं. इस किस के बारे में उन्हें कुछ भी नहीं बताया गया था. कैमरा चलता रहा, न तो डायरेक्टर ने 'कट' कहा और न ही विश्वजीत ने उन्हें छोड़ा.
बॉडी शेमिंग की शिकार भी हुईं
रेखा जब फिल्मों में आईं तो वो सांवली थीं, छरहरी हिरोइनों की तरह उनकी काया नहीं थी, वजन काफी था. अपने रूप और रंग को लेकर उन्होंने कितना ही सुना था. शशि कपूर ने तो उन्हें काली, मोटी और भद्दी तक कहा. लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने खुद को बदला, जिससे लोग उन्हें बदसूरत न कहें. और आज उनकी खूबसूरती की मिसालें दी जाती हैं, वो खूबसूरती जो उनकी उम्र के साथ और बढ़ रही है.
रेखा अभिनय को काम की तरह से कर रही थीं लेकिन जब उन्हें पहली अवार्ड मिला तब उन्हें एक कलाकार की कीमत का अहसास हुआ और फिर एक्टिंग उनका पैशन बन गया.
वो ख्वाब जो कभी पूरे नहीं हुए
रेखा जिसका सपना था घर बसाने का और बच्चों का उस रेखा का ये ख्वाब कभी पूरा न हुआ. प्यार बहुतों से हुआ लेकिन प्यार किसी का न मिला. शादी भी बहुतों से हुई लेकिन पति कोई न रहा. उनके प्यार के किस्से आज हर जगह बिखरे पड़े हैं. रेखा को देखेंगे तो चेहरे पर हमेशा मुस्कान दिखाई देगी लेकिन आंखों की गहराई में सिर्फ खालीपन नजर आता है.
मानसिक प्रताड़ना क्या #MeToo नहीं?
उन्हें देखकर दर्शक ग्लैमर महसूस कर सकते हैं, लेकिन जीवन भर जो उन्होंने झेला उसके लिए हजार MeToo भी कम होंगे. उनके पति मुकेश अग्रवाल ने आत्महत्या की थी. उन्होंने अपने सुसाइड नोट में ये भी लिखा था कि इसके लिए कोई जिम्मेदार नहीं है. लेकिन उनकी मौत का जिम्मेदार रेखा को ही ठहराया गया. उनके चरित्र पर उगलियां उठाईं गईं.
इंडस्ट्री से जुड़े लोगों ने उन्हें 'the black widow' नाम दिया यानी 'पति खाने वाली' .सुभाष घई का कहना था- 'रेखा ने फिल्म इंडस्ट्री के चेहरे पर इतने दाग लगाए हैं कि इसे आसानी से धोया नहीं जा सकता. मुझे लगता है कि इसके बाद किसी भी इज्जतदार घराने को किसी भी अभिनेत्री को उनकी बहू के रूप में स्वीकार करने से पहले दो बार सोचना होगा. कोई भी ईमानदार डायरेक्टर उनके साथ कभी काम नहीं करेगा'
उनकी ग्लैमरस इमेज और बोल्ड अवतार पर अनुपम खेर का कहना था- 'वो नेशनल वैंप बन गई हैं'. बात जब चरित्र हनन की आई तो लोगों ने यहां तक कहा कि उनके उनकी सेक्रेटरी फरजाना के साथ संबंध हैं. रेखा बाइसेक्शुअल हैं. वो और फरजाना पति और पत्नी की तरह व्यवहार करते हैं.
रेखा के संघर्षों की उम्र बहुत लंबी है. लेकिन रेखा कहती हैं कि इसी लंबे वक्त की वजह से उनके घाव भरते चले गए. वो आज बहुत मजबूत हैं और अब पिछली बातों से उन्हें दर्द नहीं होता. वो अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट हैं. वो कहतीं भी तो किस-किस के लिए मीटू कहतीं. अपने माता और पिता के लिए जिनकी वजह से वो अपना बचपन सामान्य बच्चों की तरह नहीं जी पाईं, क्या ये मेंटल हैरेसमेंट नहीं था? इंडस्ट्री में काम करने वालों के खिलाफ जिन्होंने ये तक न देखा कि वो 14 साल की एक बच्ची है जिसे जबरदस्ती चूमा और सीटियां भी बजवाई गईं. या उन लोगों पर जो उनके पतियों की मौत का जिम्मेदार उन्हें मानते रहे. या उनपर जिन्होंने उनके चरित्र पर सवाल करने से पहले जरा भी नहीं सोचा. जरा सोचिए आज अगर रेखा के साथ ये सब हुआ होता, तो रेखा की कहानी कुछ और होती...उन्हें 'बदनाम एक्ट्रेस' न कहा जाता.
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पूरी हो हर दास्तां ज़रूरी तो नहीं..
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