एक गायक जो सिर्फ गाना चाहता था, जो कभी अभिनय नहीं करना चाहता था. लेकिन कुछ खास परिस्थितियां थीं कि उनको अभिनय करना पड़ा. अपने इंटरव्यू में उस नामी-गिरामी गायक ने कहा था कि वह एक्टिंग से नफरत करते हैं और उससे बचने का हरमुमकिन तरीका उन्होंने आजामाया. जी हां, मैं किशोर कुमार की बात कर रहा हूं.
आज एफएम रेडियो पर बजते किसी शो की बात कीजिए, रेडियो जॉकी आपको ज़रा सा अतीत की ओर धकेले, तो किशोर कुमार का ही कोई गाना बजता है. सिनेमा के परदे पर भले ही राजेश खन्ना हों या अमिताभ या फिर उत्तम कुमार... वह मर्दानी आवाज किशोर कुमार की होती थी, जिसमें वह कभी कहते कि 'मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू', 'कभी दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा'... या 'पल पल दिल के पास तुम रहती हो'.. या फिर 'छूकर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा'.
किशोर कुमार को फिल्म इंडस्ट्री में दीवाने और मसखरे की तरह याद किया जाता है और इसकी शुरुआत होती है एक इंटरव्यू से, जब अनजान सी पत्रकार ने उनके बारे में उल्टा लिख दिया. उन दिनों किशोर अकेले रहते थे. तो पत्रकार ने उनसे पूछा था- 'आप जरूर बहुत अकेले होंगे?' किशोर ने जवाब दिया- 'नहीं, आओ मैं तुम्हें अपने कुछ दोस्तों से मिलवाता हूं.' और किशोर उसे अपने बगीचे में ले गए और अपने कुछ मित्र पेड़ों जनार्दन, रघुनंदन, गंगाधर, जगन्नाथ, बुधुराम, झटपट-झटपट से मिलवाया. किशोर ने कहा, - 'इस निर्दयी संसार में यही मेरे सबसे करीबी दोस्त हैं.' उस पत्रकार ने वापस जाकर एक रिपोर्ट लिखी कि किशोर कुमार पेड़ों को अपनी बांहों में घेरकर शाम गुजारते हैं. किशोर कुमार ने प्रीतीश नंदी को दिए इंटरव्यू में इस घटना और रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा था- 'आप ही बताइए इसमें गलत क्या है? पेड़ों से दोस्ती करने में गलत क्या है?'
इसके बाद से किशोर कुमार ने अपनी...
एक गायक जो सिर्फ गाना चाहता था, जो कभी अभिनय नहीं करना चाहता था. लेकिन कुछ खास परिस्थितियां थीं कि उनको अभिनय करना पड़ा. अपने इंटरव्यू में उस नामी-गिरामी गायक ने कहा था कि वह एक्टिंग से नफरत करते हैं और उससे बचने का हरमुमकिन तरीका उन्होंने आजामाया. जी हां, मैं किशोर कुमार की बात कर रहा हूं.
आज एफएम रेडियो पर बजते किसी शो की बात कीजिए, रेडियो जॉकी आपको ज़रा सा अतीत की ओर धकेले, तो किशोर कुमार का ही कोई गाना बजता है. सिनेमा के परदे पर भले ही राजेश खन्ना हों या अमिताभ या फिर उत्तम कुमार... वह मर्दानी आवाज किशोर कुमार की होती थी, जिसमें वह कभी कहते कि 'मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू', 'कभी दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा'... या 'पल पल दिल के पास तुम रहती हो'.. या फिर 'छूकर मेरे मन को किया तूने क्या इशारा'.
किशोर कुमार को फिल्म इंडस्ट्री में दीवाने और मसखरे की तरह याद किया जाता है और इसकी शुरुआत होती है एक इंटरव्यू से, जब अनजान सी पत्रकार ने उनके बारे में उल्टा लिख दिया. उन दिनों किशोर अकेले रहते थे. तो पत्रकार ने उनसे पूछा था- 'आप जरूर बहुत अकेले होंगे?' किशोर ने जवाब दिया- 'नहीं, आओ मैं तुम्हें अपने कुछ दोस्तों से मिलवाता हूं.' और किशोर उसे अपने बगीचे में ले गए और अपने कुछ मित्र पेड़ों जनार्दन, रघुनंदन, गंगाधर, जगन्नाथ, बुधुराम, झटपट-झटपट से मिलवाया. किशोर ने कहा, - 'इस निर्दयी संसार में यही मेरे सबसे करीबी दोस्त हैं.' उस पत्रकार ने वापस जाकर एक रिपोर्ट लिखी कि किशोर कुमार पेड़ों को अपनी बांहों में घेरकर शाम गुजारते हैं. किशोर कुमार ने प्रीतीश नंदी को दिए इंटरव्यू में इस घटना और रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा था- 'आप ही बताइए इसमें गलत क्या है? पेड़ों से दोस्ती करने में गलत क्या है?'
इसके बाद से किशोर कुमार ने अपनी सारी समस्याओं के हल के लिए सिरफिरा दिखना शुरू कर दिया. वह सिरफिरा दिखने के लिए अपनी लाइनें गड़बड़ कर देते, कभी अपना सिर मुंड़वा देते, निर्देशकों के लिए मुसीबतें पैदा की, दुखद दृश्यों के बीच बलबलाने लगते. एक फिल्म में जो डायलॉग उनको बीना राय को कहना था वो उन्होंने एक दूसरी फिल्म में मीना कुमारी को कह दिया– लेकिन फिर भी निर्माता-निर्देशकों ने उनको जाने नहीं दिया. गोकि किशोर बिकाऊ थे. उनकी फिल्में चलती थीं. किशोर चीखे, चिल्लाए, बौड़म बन गए. लेकिन किसे परवाह थी?
बहरहाल, किशोर दा की आवाज़ से हमारा उतना ही तारतम्य है जितना अमिताभ और देव आनंद का या फिर राजेश खन्ना का. उन्होंने शात्रीय संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन गानों में कहीं सुर-ताल की कमी थी कभी? उनकी यूडलिंग का जवाब है आज के किसी गायक के पास? किशोर दा की नकल से कितने गायकों के पेट पल रहे हैं, इसकी कोई गिनती नहीं.
दरअसल, किशोर एक हरफनमौला शख्सियत थे. उनकी अदाकारी पर क्या कहूं. पैसा ही पैसा, बाप रे बाप, पड़ोसन को कौन भूल सकता है. उनकी फिल्म हाफ टिकट देखते हुए लोग आज भी हंसते-हंसते कुर्सी से गिर जाते हैं. गंगा की लहरें, चलती का नाम गाड़ी, बढ़ती का नाम दाढ़ी... ये ऐसी फिल्में हैं कि आप कितनी भी दफा देखें, मन नहीं भरेगा. याद कीजिए फिल्म पड़ोसन में किशोर का सुनील दत्त को 'भोले' कहने का अंदाज़.. और सच कहूं तो उस फिल्म में दत्त साहब को किशोर खा गए थे.
किशोर के दर्द भरे गीतों ने कभी न कभी कहीं न कहीं हर युवा के दिलों की धड़कन को छुआ होगा. किशोर ने अपनी आवाज़ से हमारे सपनों को नई ऊंचाई दी. आज भी युवा मन प्यार से पहले गुनगुनाता है, 'मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू'... प्यार हो जाए तो गाता है 'ड्रीम गर्ल' और 'प्यार हुआ है जब से'... प्यार रुठ जाए तो कहता है 'पल भर के लिए कोई हमें प्यार कर ले', दिल टूटे तो कहता है, 'दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा'..
किशोर अभिनेता के हिसाब से अपनी आवाज़ में मॉडयूलेशन करते थे. याद कीजिए फिल्म बुड्ढा मिल गया का गाना 'रात कली इक ख्वाब में आई', और यूडलिंग में उनका महारथ दिखाता फिल्म मेरे जीवनसाथी का गाना, 'चला जाता हूं किसी की धुन में'... या फिर दर्द में डूबी आवाज़ का वह गाना तो जरूर याद होगा आपको, जो फिल्म मिली में उन्होंने गाया था- 'बड़ी सूनी-सूनी है'...या 'आए तुम याद मुझे, गाने लगी हर धड़कन'... किशोर कुमार की आवाज़ में हर रस है, हर रंग है, हर शेड है.
हर मूड के गाने.. हर फलसफे के. रोमांस की हद को रूप तेरा मस्ताना से ज्यादा कौन बयां कर सकता है. और दर्द की हद में 'मैं शायर बदनाम' से गहरा गाना कौन है? या फिर ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा? और खुशी में 'मैं हूं झुमझुम झुमझुम झुमरू', 'इना-मीना-डीका', 'हम थे वो थे और समां रंगीन समझ गए ना'...
एक्टर रहे किशोर कुमार इस बात से त्रस्त थे कि हर निर्देशक उनसे वही-वही चीजें करवाना चाहता था जो कई दफा पहले भी कर चुके थे. ऐसे ही एक निर्देशक जब कहानी सुनाने उनके फ्लैट पर आए तो वह बालकनी से कूदकर भाग निकले. पैसों के मामले में भी किशोर कुमार को बला का जिद्दी माना जाता था और वह उधार के पैसे कभी छोड़ते नहीं थे. मिसाल के तौर पर फिल्म 'प्यार किए जा' में मसखरी के उस्ताद महमूद ने किशोर कुमार, शशि कपूर और ओमप्रकाश से ज्यादा पैसे वसूले थे. किशोर को यह बात अखर गई. इसका बदला उन्होंने महमूद से फिल्म 'पड़ोसन' में लिया- दोगुना पैसा लेकर. इसी तरह एक निर्माता ने उनके कुछ पैसे देने में बहुत देरी कर दी, तो वह जुहू में उसके घर के सामने से रोज आते-जाते अपनी कार रोक देते और वहीं चिल्लातेः ऐ पैसा कब देगा? हारकर उस निर्माता ने पैसे चुका दिए.
किस्से बहुत सारे हैं. कुछ ऐसे भी कि जब किशोर को गाना गाने का मन नहीं होता तो वह रिकॉर्डिंग से पहले अचार या दही खा लेते थे. कौन जाने इनमें कितना सच है और बंबई का मायानगरी कि कपोल-कल्पित बातें. लेकिन यह बात तब भी उतनी ही सच थी जितनी आज है कि किशोर कुमार ने गायिकी, अदाकारी, संगीत-निर्देशन और फिल्म निर्देशन हर जगह अपनी प्रतिभा दिखाई. आज भी कहीं टीवी पर, यू-ट्यूब पर, एफएम रेडियो पर किशोर सुनाई देते हैं, तो इस बात का यकीन होता है, अगर अमरत्व कुछ होता है, तो यही होता है.
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