तीस और चालीस दशक के महान अभिनेता एवम गायक सहगल (कुंदन लाल सहगल) ‘गम दिए मुस्तक़िल’ एवं 'जब दिल ही टूट गया' जैसे गीतों के प्रतिनिधि हैं. इस विशेषता के साथ सहगल की झोली में अनेक रंग देखने को मिले. एक स्रोत के अनुसार सहगल का जन्म 4 अप्रैल 1904 को जम्मू के नवां शहर में हुआ,जबकि एक अन्य स्रोत 11 अप्रैल को सहगल की जन्मतिथि कहता है. जबकि 18 जनवरी 1947 को अंतिम सांस ली. बचपन के दिनों से ही सहगल को संगीत ने काफी प्रभावित किया, स्कूल जाने की उम्र में रामलीला के कीर्तन सुनने जाते थे. फिर जम्मू के सुफी संत सलामत युसुफ से खूब लगाव रहा. जब बड़े हुए तो पढने-लिखने के बाद रोजगार की तालाश में शिमला (हिमाचल प्रदेश), मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश), कानपुर (उत्तर प्रदेश), दिल्ली और कलकत्ता जाने का मौका मिला. पहली नौकरी कलकत्ता में ‘सेल्समैन’ की मिली, लेकिन हम जानते हैं कि यह उनकी मंजिल नहीं थी, एक दिन किसी तरह न्यू थियेटर्स और बीएन सरकार के संपर्क मे आए .
कलकता के‘ न्यू थियेटर्स’ ने भारतीय सिनेमा को सहगल के साथ साथ देवकी बोस, नितिन बोस, पी सी बरुआ, पंकज मलिक, बिमल राय, फ़णी मजुमदार, आर सी बोराल, कानन देवी, जमुना, लीला देसाई और पहाडी सान्याल जैसे महत्त्वपूर्ण कलाकारों की परम्परा दी . देवकी बोस न्यू थियेटर्स के एक सफ़ल निर्देशक रहे,उनके निर्देशन मे सहगल ने कई महतवपूर्ण फिल्मों में काम किया. चंडीदास, पुरन भगत, विद्यापति जैसी फ़िल्मो ने खूब नाम कमाया. देवकी बोस की ‘सीता’ ‘वेनिस फ़िल्म सामारोह’ मे प्रदर्शित की जाने वाली पहली भारतीय फ़िल्म थी.
देवकी बोस की ही तरह नितिन बोस भी समकालीन सामाजिक- सांस्कृतिक आंदोलनों मे सक्रिय...
तीस और चालीस दशक के महान अभिनेता एवम गायक सहगल (कुंदन लाल सहगल) ‘गम दिए मुस्तक़िल’ एवं 'जब दिल ही टूट गया' जैसे गीतों के प्रतिनिधि हैं. इस विशेषता के साथ सहगल की झोली में अनेक रंग देखने को मिले. एक स्रोत के अनुसार सहगल का जन्म 4 अप्रैल 1904 को जम्मू के नवां शहर में हुआ,जबकि एक अन्य स्रोत 11 अप्रैल को सहगल की जन्मतिथि कहता है. जबकि 18 जनवरी 1947 को अंतिम सांस ली. बचपन के दिनों से ही सहगल को संगीत ने काफी प्रभावित किया, स्कूल जाने की उम्र में रामलीला के कीर्तन सुनने जाते थे. फिर जम्मू के सुफी संत सलामत युसुफ से खूब लगाव रहा. जब बड़े हुए तो पढने-लिखने के बाद रोजगार की तालाश में शिमला (हिमाचल प्रदेश), मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश), कानपुर (उत्तर प्रदेश), दिल्ली और कलकत्ता जाने का मौका मिला. पहली नौकरी कलकत्ता में ‘सेल्समैन’ की मिली, लेकिन हम जानते हैं कि यह उनकी मंजिल नहीं थी, एक दिन किसी तरह न्यू थियेटर्स और बीएन सरकार के संपर्क मे आए .
कलकता के‘ न्यू थियेटर्स’ ने भारतीय सिनेमा को सहगल के साथ साथ देवकी बोस, नितिन बोस, पी सी बरुआ, पंकज मलिक, बिमल राय, फ़णी मजुमदार, आर सी बोराल, कानन देवी, जमुना, लीला देसाई और पहाडी सान्याल जैसे महत्त्वपूर्ण कलाकारों की परम्परा दी . देवकी बोस न्यू थियेटर्स के एक सफ़ल निर्देशक रहे,उनके निर्देशन मे सहगल ने कई महतवपूर्ण फिल्मों में काम किया. चंडीदास, पुरन भगत, विद्यापति जैसी फ़िल्मो ने खूब नाम कमाया. देवकी बोस की ‘सीता’ ‘वेनिस फ़िल्म सामारोह’ मे प्रदर्शित की जाने वाली पहली भारतीय फ़िल्म थी.
देवकी बोस की ही तरह नितिन बोस भी समकालीन सामाजिक- सांस्कृतिक आंदोलनों मे सक्रिय रहने वाले कलाकार थे. उनकी फिल्म ‘चंडीदास’ और बाद की सहगल अभिनीत फ़िल्म ‘प्रेसीडेंट’ और ‘धरती माता’मे देखा गया. प्रेसीडेंट की कहानी कारखानों मे काम करने वाले मजदूरों के जीवन पर आधारित थी जबकि ‘धरती माता’ ने खेत-खलिहान-किसान को विषय बनाया. न्यू थिएटर्स के अभिनेताओं मे सहगल सबसे सफ़ल साबित हुए.
सहगल की यादगार फ़िल्में इसी कम्पनी के बैनर तली बनी. सहगल ने सिनेमा में लोकप्रियता हासिल कर पहले स्टार गायक-अभिनेता का दर्ज़ा पाया. न्यू थियेटर्स की फ़िल्म ‘मोहब्बत के आंसू’ से अपना फ़िल्मी कैरियर शुरु करने से लेकर अंतिम ‘ज़िंदगी ‘तक कंपनी लिए अनेक फिल्में की. न्यू थिएटर्स के फाउंडर बी एन सरकार सहगल की प्रतिभा के कायल रहे, उनको पहला ब्रेक ‘मोहब्बत के आंसू’(1932) आप ही ने दिया .
इस तरह कहा जा सकता है कि ‘सहगल’ न्यू थियेटर्स की खोज थे . सहगल की पहली तीन फिल्में ‘मोहब्बत के आंसू , सुबह का सितारा और ज़िंदा लाश’ हालाकि खास कमाल नहीं दिखा पाई, लेकिन बी एन सरकार ने हिम्मत कायम रखी और चंडीदास(1934) में सहगल को फिर कास्ट किया. चंडीदास की बड़ी कामयाबी ने उन्हें रातों-रात बड़ा सितारा बना दिया ,जिसकी गूंज निकट भविष्य मे रिलीज फिल्म ‘यहूदी की लडकी’ और बाद की फिल्मो मे सुनी गई .
पूर्वोत्तर से आए पीसी बरुआ भी न्यू थिएटर्स से जुड़े थे. बरुआ ने ‘देवदास’ बांग्ला हिन्दी एवम असमिया में बनाई. बांग्ला संस्करण में शीर्षक किरदार स्वयं बरुआ ने अदा किया, जबकि हिन्दी में सहगल देवदास बने थे . बरुआ के निर्देशन में देवदास( 1935) कंपनी की सबसे यादगार फिल्म है. बरुआ ने ‘देवदास’ को तीन भाषाओ में बना कर इतिहास रच दिया. देवदास के अतिरिक्त मुक्ति, अधिकार, ज़िंदगी और शरत चन्द्र की रचना पर बनी ‘मंजिल’ बरुआ की न्यू थियेटर्स के लिए उल्लेखनीय फ़िल्मे रहीं .
देवदास के दो संस्करण से पी.सी बरुआ एवं सहगल शोहरत को बुलन्दियों पर पहुंच गए थे . सहगल की ‘देवदास’ से बिमल राय को भी प्रेरणा मिली. शरत चंद्र का पात्र ‘देवदास’ बरुआ एवं सहगल की अभिनय क्षमता की मिसाल बन गया, इसकी गूंज बाद की कामयाब फिल्मो प्रेसीडेंट (1937),स्ट्रीट सिंगर(1938) जिंदगी (1940) में नज़र आई . बड़े स्टार हो चुके सहगल अब कलकत्ता के साथ फिल्म निर्माण के अन्य बडे केंद्रों मे जाने का मन बनाया, चंदुलाल शाह (रंजीत स्टुडियो) के आमंत्रण पर बंबई चले आए .
रंजीत स्टूडियो के बैनर तले ‘भक्त सूरदास’ और ‘तानसेन’ में शीर्षक अभिनय किया . पूरे जीवन में सहगल ने कुल 180 गाने गाए. प्रतिभा के धनी की आवाज में सात सुरों के ‘सरगम’ की गहरी खनक मिलती है. इंद्रधनुष के सात रंगो की ब्यार को भावनाओं में व्यक्त किया. क्लासिक गायक के सभी गुण सहगल में मौजूद थे यही कारण है कि फ़ैय्याज खान,अबदुल करीम खान,बाल गंधर्व ,पंडित ओंकार नाथ जैसे संगीत सम्राट ‘सहगल’ से अभिभूत रहे .
उस्ताद फैय्याज खान ने एक बार सहगल से ‘ख्याल’ को ‘राग दरबारी’ में गाने को कहा, जवाब में सहगल ने जब गा कर सुनाया तो फैय्याज खान ने यही कहा ‘शिष्य ऐसा कुछ भी नहीं जो तुम्हें सीखना चाहिए’
के एल सहगल : फिल्में एवम गीत
बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए
फिल्म : स्ट्रीट सिंगर (1938)
गीत: वाजिद अली शाह
संगीत: आर सी बोराल
निर्देशक: फाणी मजूमदार
सहगल का यह गाना बेहद मकबूल हुआ. वाजिद अली शाह के लिखे इस गीत को आवाज़ देने का अंदाज़ दिलों में बस गया.बेटियों की विदाई के संदर्भ में यह गीत आज भी भुलाए नहीं भूलता.
बालम आए बसो मोरे मन में
फिल्म : देवदास (1935)
संगीत : तिमिर बारन
गीतकार : केदार शर्मा
निर्देशक : पीसी बरुआ
शरतचंद्र की रचना पर फिल्म बनाने का पहला आइडिया कलकता के न्यू थिएटर्स एवम पीसी बरुआ के मन में आया. देवदास की कहानी कालजयी है. उसके चरित्र आज भी जिंदा हैं. सहगल को देवदास के रोल में देखना अच्छा अनुभव था. अभिनेत्री जमुना ने पारो का किरदार निभाया था. चंद्रमुखी का रोल राजकुमारी को मिला था. यहां प्रस्तुत मशहूर गीत को सहगल एवम जमुना को फिल्माया गया था.
करूं क्या आस निराश भयी
फिल्म: दुश्मन (1939)
गीत: आरज़ू लखनवी
संगीत: पंकज मलिक
निर्देशक : नितिन बोस
आरज़ू लखनवी ने दुश्मन के सभी गीत लिखे. दुश्मन एक प्रेम त्रिकोण थी. फिल्म में जानलेवा बीमारी टीबी का भी एंगल था. यहां प्रस्तुत गीत को सहगल पर फिल्माया गया था. फिल्म में लीला देसाई नजमुल हसन एवम पृथ्वीराज कपूर ने मुख्य भूमिकाएं अदा की.
सो जा राजकुमारी सो जा
फिल्म : जिंदगी (1940)
गीत: केदार शर्मा
संगीत: पंकज मलिक
निर्देशक: पी सी बरुआ
पीसी बरुआ की इस फिल्म में सहगल के साथ सितारा देवी, जमुना एवम पहाड़ी सान्याल जैसे नाम थे. केदार शर्मा के लिखे गीत में काफ़ी विख्यात हुआ.
जब दिल ही टूट गया
फिल्म : शाहजहां (1946)
गीत: मजरूह सुल्तानपुरी
संगीत: नौशाद
निर्देशक: अब्दुल रशीद कारदार
मुग़ल बादशाह शाहजहां के जीवन पर आधारित फिल्म को ए आर कारदार ने निर्देशित किया था. मजरूह सुल्तानपुरी की कलम से निकला यह दर्द भरा गीत दिल टूटने के हालात से जन्मा था. नौशाद के संगीत सजे इस गीत में सहगल ने बेहतरीन अभिनय किया था.
गम दिए मुस्तकिल
फिल्म : शाहजहां (1946)
गीत: मजरूह सुल्तानपुरी
संगीत: नौशाद
निर्देशक : अब्दुल रशीद कारदार
शाहजहां फिल्म से यह दूसरा गाना जब दिल ही टूट गया की अगली कड़ी सा है. दुःख से नया दुःख जन्म लेता है. उसकी निरंतरता होती है. ऐसे हालत में खुद को व्यक्त करना जरूरी हो जाता है. मजरूह सुल्तानपुरी ने इस गाने को भी कमाल लिखा. यह आज भी लोकप्रिय है. गाने को सहगल पर फिल्माया गया.
इक बंगला बने न्यारा
फिल्म : प्रेसिडेंट (1936)
गीत: केदार शर्मा
संगीत: आर सी बोराल
निर्देशक: नितिन बोस
इक बंगला बने न्यारा से भला कौन नहीं परिचित होगा. केदार शर्मा के कलम में इंसानी महत्वकांक्षा बरबस ही प्रतीत हो जाती है. रोटी कपड़ा और मकान की मूलभूत जरूरत से आम इंसान बंधा है. आर सी बोराल के संगीत सजे इस गाने को सुनो तो मानो आज का ही लगता है. ऐसा था उस दौर के संगीत का जादू.
सहगल के निधन के बाद न्यू थियेटर्स ने ‘अमर सहगल’(1955) के माध्यम से उन्हें एक भावपूर्ण श्रधांजलि दी थी . नितिन बोस ने निर्देशन था . आर सी बोराल पंकज मलिक एवं तीमीर बोरन (संगीतकार) जैसी शीर्ष प्रतिभाओं की सेवाएं ली गई .फिल्म में सहगल की फिल्मों से लगभग 19 गीतों को रखा गया था. सहगल युग की भव्य झांकी.
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