ईद के एक दिन पहले सलमान खान की फिल्म उनके फैन्स के लिये त्योहार से कम नहीं होती. ईद और सलमान जबरदस्त कॉमबिनेशन हैं, लेकिन याद रहे "ट्यूबलाइट" भी ईद के मौके पर ही रिलीज हुई थी और इस बार भी ऐसा लगा रहा है कि भले ही शुरू के तीन दिन का कलेक्शन सलमान की स्टार पावर की वजह से गजब का हो, लेकिन उसके बाद उल्टी गिनती शुरू हो सकती है. 'टाइगर ज़िंदा है' और 'सुल्तान' के मुकाबले "रेस 3" बेहद खराब है.
माना कमर्शियल फिल्मों के अपने समीकरण होते हैं लेकिन उसमें भी कहानी होती है. रेस-3 में तो कुछ भी हो रहा है, निर्देशक अब्बास मस्तान ने रेस-1 और रेस-2 बनाई थी, जिसमें रेस-1 एक बेहतर थ्रिलर थी और रेस- 2 का ग्राफ रेस-1 की तुलना में भले ही कमजोर था लेकिन उसके बावजूद दीपिका पादुकोण और लीड हीरो सैफ की वजह से देखी जा सकती थीं, मगर रेस-3 के साथ ऐसा लगता है कि निर्माता रमेश तोरानी ने ये फिल्म इसलिये बनाई क्योंकि उन्हें सलमान खान की डेट्स मिल गईं थीं और सलमान के इर्दगिर्द कहानी बुन दी.
तो सबसे पहले बात शिराज़ एहमद की कहानी और स्क्रीनप्ले की
फिल्म की कहानी ना के बराबर है. अनिल कपूर हथियारों की कंपनी के मालिक हैं और उनके दो बच्चे हैं साकिब सलीम और डेज़ी शाह जो अपने रिश्तेदार सिकंदर से इसलिये जलते हैं क्योंकि उनके पिता सिकंदर यानी सलमान खान पर ज्यादा भरोसा करते हैं. साथ है सलमान का दोस्त और बॉडी गार्ड बॉबी देओल जो सलमान का खासमखास है. हथियारों के कारोबार और घरेलू पॉलिटिक्स के दौरान अनिल कूपर को एक चिप हथियानी है जिसमें तमाम नेताओं के राज़ हैं और उस चिप को हासिल करने के दौरान परिवार अपने आपसी बदले निपटाने में लग जाता है और आखिर में सलमान खान यानी सिकंदर जबरदस्ती के ढेर सारे ट्विस्ट के बाद सारी गुत्थी सुलझा...
ईद के एक दिन पहले सलमान खान की फिल्म उनके फैन्स के लिये त्योहार से कम नहीं होती. ईद और सलमान जबरदस्त कॉमबिनेशन हैं, लेकिन याद रहे "ट्यूबलाइट" भी ईद के मौके पर ही रिलीज हुई थी और इस बार भी ऐसा लगा रहा है कि भले ही शुरू के तीन दिन का कलेक्शन सलमान की स्टार पावर की वजह से गजब का हो, लेकिन उसके बाद उल्टी गिनती शुरू हो सकती है. 'टाइगर ज़िंदा है' और 'सुल्तान' के मुकाबले "रेस 3" बेहद खराब है.
माना कमर्शियल फिल्मों के अपने समीकरण होते हैं लेकिन उसमें भी कहानी होती है. रेस-3 में तो कुछ भी हो रहा है, निर्देशक अब्बास मस्तान ने रेस-1 और रेस-2 बनाई थी, जिसमें रेस-1 एक बेहतर थ्रिलर थी और रेस- 2 का ग्राफ रेस-1 की तुलना में भले ही कमजोर था लेकिन उसके बावजूद दीपिका पादुकोण और लीड हीरो सैफ की वजह से देखी जा सकती थीं, मगर रेस-3 के साथ ऐसा लगता है कि निर्माता रमेश तोरानी ने ये फिल्म इसलिये बनाई क्योंकि उन्हें सलमान खान की डेट्स मिल गईं थीं और सलमान के इर्दगिर्द कहानी बुन दी.
तो सबसे पहले बात शिराज़ एहमद की कहानी और स्क्रीनप्ले की
फिल्म की कहानी ना के बराबर है. अनिल कपूर हथियारों की कंपनी के मालिक हैं और उनके दो बच्चे हैं साकिब सलीम और डेज़ी शाह जो अपने रिश्तेदार सिकंदर से इसलिये जलते हैं क्योंकि उनके पिता सिकंदर यानी सलमान खान पर ज्यादा भरोसा करते हैं. साथ है सलमान का दोस्त और बॉडी गार्ड बॉबी देओल जो सलमान का खासमखास है. हथियारों के कारोबार और घरेलू पॉलिटिक्स के दौरान अनिल कूपर को एक चिप हथियानी है जिसमें तमाम नेताओं के राज़ हैं और उस चिप को हासिल करने के दौरान परिवार अपने आपसी बदले निपटाने में लग जाता है और आखिर में सलमान खान यानी सिकंदर जबरदस्ती के ढेर सारे ट्विस्ट के बाद सारी गुत्थी सुलझा देते हैं. रेस-3 का स्क्रीनप्ले कहानी से ज्यादा बोरिंग और बोझिल है. फिल्म में पांच से ज्यादा गाने हैं और ढेर सारा एक्शन और बीच-बीच में लगता है डायलॉग्स के साथ सीन्स भी शूट कर लिये हैं.
एक्टिंग के डिपार्टमेंट में बात सबसे पहले सलमान खान की
तो सलमान ने वैसा ही किया जो वो करते हैं. स्टाइलिश तरीके से डायलॉग बोलते हैं और डिज़ाइनर कपड़ों में डैशिंग लगते हैं और फिल्म के आखिर में टी शर्ट उतारकर एक फाइट सीन करते हैं. सलमान खुद तो शर्टलेस होते ही हैं, इस बार बॉबी देओल की भी शर्ट उतरवा दी. अब बॉबी देओल करें भी तो क्या, आखिर सलमान की बदौलत उन्हें फिल्म जो मिली है. जैकलिन, डेज़ी शाह और साकिब सलीम के लिये यहीं कहेंगे ये एक्टर्स नहीं, सलमान के दोस्त हैं इसलिये फिल्म का हिस्सा हैं. रेस-3 में एक ही आदमी है जो ईमानदारी से इस बुरी फिल्म का हिस्सा है और वो हैं अनिल कपूर.
अब बात फिल्म के एक्शन की
3D में एक्शन गजब का लगता है, लेकिन निर्देशक रेमो डिसूज़ा के एक्शन सीन्स इतने लंबे हैं कि सारा रोमांच खत्म हो जाता है और दिल कहता है "ये एक्शन कबतक चेलेगा".
फिल्म में दो गाने थिरकने लायक हैं लेकिन फिल्म के खत्म होते-होते कुछ याद नहीं रहता.
बात रेस 3 की सबसे मज़बूत कड़ी की
मजबूत कड़ी यानी अयाननका बोस की सिनेमेटोग्राफ़ी. अफसोस अच्छे कैमरा वर्क को अच्छी कहानी का साथ नहीं मिला. निर्देशक रेमो डिसूज़ा के ऊपर सुपर स्टार सलमान खान का स्टारडम हावी लगा, उनकी गलती ये है कि उन्होंने ये मान लिया कि फिल्म के हीरो सलमान खान हैं तो कुछ भी चलेगा. 'जय हो' और 'ट्यूबलाइट' के बाद सलमान की एक और बुरी फिल्म इस ईद पर.
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