हरिहर जेठालाल जरीवाला उर्फ हरिभाई. वो नाम जिसे वैसे तो कम ही लोग जानते हैं, लेकिन अगर इनके चर्चित नाम से इनका परिचय करवाया जाए तो वो शख्सियत सामने आएगी जिसने हंसाया भी और रुलाया भी और जिंदादिली भी सिखा गया. हम बात कर रहे हैं संजीव कुमार की. संजीव कुमार यानी हरीभाई जो एक गुजराती थिएटर आर्टिस्ट से उठकर अपने टैलेंट के बल पर हिंदी सिनेमा के चहीते कलाकार बन गए. गुजराती प्ले में उन्होंने वो किरदार निभाए जो कोई न निभा सका.
पैसे की तंगी के कारण गुजराती थिएटर से ऊपर उठकर कुछ नया करने की सोच के कारण ही संजीव कुमार हिंदी फिल्मों की तरफ बढ़ें. संजीव कुमार की खासियत ये थी कि उन्हें कुछ भी छोटा या बड़ा नहीं लगता था. गुरू होते हुए भी वो फिल्मालय स्कूल ऑफ एक्टिंग में एक स्टूडेंट की तरह गए. वो एक ऐसे एक्टर के रूप में उभर कर आए जिसे ट्रेनिंग की जरूरत नहीं थी.
फिल्माया इंस्टिट्यूट शशिधर मुखर्जी का था. जब फिल्म हम हिंदुस्तानी की शूटिंग शुरू होनी थी तो उन्होंने अपने बेटे जॉय मुखर्जी को हीरो बनाया और हरीभाई को एक पुलिस कॉन्सटेबल का रोल दिया, जिसका कोई डायलॉग भी नहीं था. हरीभाई ने इसके लिए कुछ नहीं कहा और अपने टैलेंट पर भरोसा किया.
हरीभाई एक बेहतरीन स्टूडेंट की तरह काम करते रहे और उसके बात अस्पी ईरानी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना. उन दिनों ईरानी स्टंट फिल्में बनाया करते थे और उस दौर में ही हरीभाई को संजीव कुमार नाम मिला. अस्पी ईरानी की फिल्म में संजीव कुमार को बतौर हीरो लाया गया.
पहली कुछ फिल्में मिलीं और संजीव कुमार की एक्टिंग की तारीफ शुरू हुई. राजा और रंक, बचपन, शिखर जैसी फिल्मों ने उन्हें हीरो की तरह स्थापित किया और ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म सत्यकाम ने उन्हें पैरलल सिनेमा का उस्ताद साबित किया. हालांकि, इस फिल्म में धर्मेंद्र की प्रमुख भूमिका थी, लेकिन बिना अहम रोल के भी संजीव कुमार अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे.
1. एक हिरोइन, जिसने सिर घुमा देने वाला थप्पड़ जड़ा...
1969 में...
हरिहर जेठालाल जरीवाला उर्फ हरिभाई. वो नाम जिसे वैसे तो कम ही लोग जानते हैं, लेकिन अगर इनके चर्चित नाम से इनका परिचय करवाया जाए तो वो शख्सियत सामने आएगी जिसने हंसाया भी और रुलाया भी और जिंदादिली भी सिखा गया. हम बात कर रहे हैं संजीव कुमार की. संजीव कुमार यानी हरीभाई जो एक गुजराती थिएटर आर्टिस्ट से उठकर अपने टैलेंट के बल पर हिंदी सिनेमा के चहीते कलाकार बन गए. गुजराती प्ले में उन्होंने वो किरदार निभाए जो कोई न निभा सका.
पैसे की तंगी के कारण गुजराती थिएटर से ऊपर उठकर कुछ नया करने की सोच के कारण ही संजीव कुमार हिंदी फिल्मों की तरफ बढ़ें. संजीव कुमार की खासियत ये थी कि उन्हें कुछ भी छोटा या बड़ा नहीं लगता था. गुरू होते हुए भी वो फिल्मालय स्कूल ऑफ एक्टिंग में एक स्टूडेंट की तरह गए. वो एक ऐसे एक्टर के रूप में उभर कर आए जिसे ट्रेनिंग की जरूरत नहीं थी.
फिल्माया इंस्टिट्यूट शशिधर मुखर्जी का था. जब फिल्म हम हिंदुस्तानी की शूटिंग शुरू होनी थी तो उन्होंने अपने बेटे जॉय मुखर्जी को हीरो बनाया और हरीभाई को एक पुलिस कॉन्सटेबल का रोल दिया, जिसका कोई डायलॉग भी नहीं था. हरीभाई ने इसके लिए कुछ नहीं कहा और अपने टैलेंट पर भरोसा किया.
हरीभाई एक बेहतरीन स्टूडेंट की तरह काम करते रहे और उसके बात अस्पी ईरानी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना. उन दिनों ईरानी स्टंट फिल्में बनाया करते थे और उस दौर में ही हरीभाई को संजीव कुमार नाम मिला. अस्पी ईरानी की फिल्म में संजीव कुमार को बतौर हीरो लाया गया.
पहली कुछ फिल्में मिलीं और संजीव कुमार की एक्टिंग की तारीफ शुरू हुई. राजा और रंक, बचपन, शिखर जैसी फिल्मों ने उन्हें हीरो की तरह स्थापित किया और ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म सत्यकाम ने उन्हें पैरलल सिनेमा का उस्ताद साबित किया. हालांकि, इस फिल्म में धर्मेंद्र की प्रमुख भूमिका थी, लेकिन बिना अहम रोल के भी संजीव कुमार अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे.
1. एक हिरोइन, जिसने सिर घुमा देने वाला थप्पड़ जड़ा...
1969 में फिल्म देवी की शूटिंग चल रही थी. इसमें हीरो थे संजीव कुमार और हीराइन थीं नूतन. उन दिनों संजीव बॉलीवुड में पैर जमाने के लिए कड़ा संघर्ष कर रहे थे, जबकि नूतन उस जमाने में एक बड़ी अभिनेत्री के तौर पर स्थापित हो चुकी थीं. नूतन को एक पत्रिका में छपी खबर अखर गई. नूतन के बारे में लिखा था कि वो एक बच्चे की मां हैं, लेकिन अपनी शादी से खुश नहीं हैं और वो संजीव कुमार में अपनी खुशी ढूंढ रही हैं. नूतन उस समय तो चुप हो गईं, लेकिन देवी के आखिरी शूटिंग शेड्यूल के दौरान उन्होंने संजीव कुमार को एक कोने में बुलाया और उनसे इस बारे में पूछा. उस समय देखने वालों को हैरानी हुई जब संजीव कुमार को नूतन ने जोरदार थप्पड़ लगा दिया. संजीव कुमार हैरान थे और अपना दूसरा गाल भी उन्होंने आगे कर दिया था. नूतन गुस्से में वहां से चली गईं थीं.
नूतन ने बाद में एक इंटरव्यू में कहा था कि संजीव कुमार उनसे बहुत बद्तमीजी से बोले थे कि 'कहिए क्या कहना चाहती हैं..' और नूतन को पता चला था कि संजीव कुमार ने खुद ही इस रिश्ते की बात फैलाई है. नूतन ने कहा था कि उन्हें कोई पछतावा नहीं अपनी बात का.
सच क्या है ये तो कोई नहीं जानता, लेकिन इस घटना के बाद संजीव कुमार काफी उदास थे और फिल्म इंडस्ट्री के कई दिग्गज लोगों ने मिलकर संजीव कुमार के लिए एक पार्टी रखी थी. पार्टी में हर किसी ने उस गाल में किस किया था जिसपर नूतन ने चांटा मारा था. संजीव के सभी दोस्त जिनमें कई अभिनेत्री और अभिनेता शामिल थे वो संजीव को वापस हंसाने में सफल रहे.
2. एक हिरोइन, जो संजीव कुमार के प्यार में मानसिक संतुलन खो बैठी
जब संजीव कुमार अपने फिल्मी करियर में सफल हो गए थे तो उन्हें सुलक्षणा पंडित के साथ 1975 में एक फिल्म करने का मौका मिला. ये फिल्म थी उल्झन. इस फिल्म के बाद सुलक्षणा मन ही मन संजीव कुमार को प्यार करने लगीं और उनसे इजहार भी कर दिया. सुलक्षणा के प्यार को संजीव कुमार ने ठुकरा दिया क्योंकि वो हेमा मालिनी को चाहते थे. इसके बाद सुलक्षणा ने अपना मानसिक संतूलन खो दिया. उनकी बहन विजेता के अनुसार सुलक्षणा कभी संजीव कुमार को भूल ही नहीं पाईं थी. संजीव कुमार के साथ ये विवाद हमेशा जुड़ा रहा.
3. एक हिरोइन, जिसके प्यार में संजीव कुमार आजीवन कुंवारे रह गए
संजीव कुमार हेमा मालिनी को बेहद चाहते थे. शोले के सेट पर संजीव कुमार ने हेमा को प्रपोज भी किया था. पर हेमा ने धर्मेंद्र के लिए संजीव कुमार को ठुकरा दिया था. संजीव को इस बात का इतना बुरा लगा था कि उन्होंने डायरेक्टर रमेश सिप्पी को ये भी कहा था कि हेमा का और उनका कोई सीन एक साथ न रखा जाए. संजीव कुमार इसके बाद शराब का सहारा लेने लगे और लगातार उनकी सेहत गिरती चली गई. इसके बाद संजीव कुमार की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.
पहले ही पता था कब मौत होगी...
संजीव कुमार के बारे में एक और कहानी बहुत मशहूर है. संजीव कुमार ने अपने मरने से पहले ही ये बता दिया था कि उनकी मौत कब होगी. अपने एक दोस्त को बेंगलुरू के एक कमरे में संजीव कुमार ने बताया था कि जरीवाला परिवार(उनका परिवार) में ऐसा कोई भी पुरुष सदस्य नहीं रहा जो 50 के ऊपर जिया हो. उनके पिता तब चल बसे जब वो 50 साल के थे, उनका भाई 36 साल की उम्र में चल बसा इसी तरह संजीव कुमार भी 50 के ऊपर नहीं जिएंगे और उनकी भविष्यवाणी सच साबित हुई जब वो 46 साल की उम्र में चल बसे.
कई लोग संजीव कुमार की मौत को हेमा मालिनी से जोड़कर देखते हैं. क्योंकि उनके दिल तोड़ने के बाद ही संजीव कुमार ने अपनी लाइफस्टाइल ऐसी बना ली कि उनकी मौत हो गई.
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