चाहे वो किताबें हों या फिल्में. कई पैरामीटर्स हैं, जो यदि अमल में लाए जाएं तो इन दोनों पर कई कई घंटे बातें हो सकती हैं. व्यक्ति यदि किताबों का शौकीन हुआ तो किताबों पर दलीलें देगा इसी तरह जो फिल्मों का शौकीन होगा उसके पास ऐसे-ऐसे तर्क होंगे जिनकी बदौलत वो अपनी बात हिट कराकर ही दम लेगा. फ़िल्म और किताब दोनों ही माध्यमों के शौकीन यूं तो तमाम मुद्दों पर भिन्न मत रखेंगे मगर एक पॉइंट है जहां वो एकमत होते नजर आएंगे. किताब री-प्रिंट में निखरती है. वहीं फ़िल्म का सीक्वल वो भी तब जब वो 'बॉलीवुड' में बन रहा हो फ़िल्म का चौपटानास कर देता है. जी हां जिक्र क्यों कि सिनेमा का हुआ है और बात क्योंकि बॉलीवुड की आई है इसलिए हमारे लिए हॉलीवुड का जिक्र करना भी बहुत जरूरी है. हॉलीवुड में फिल्में बनती हैं, उनके सीक्वल आते हैं कहानी को आगे बढ़ाया जाता है या फिर उस पॉइंट पर छोड़ा जाता है जहां प्रश्नचिन्ह रहे और आगे के लिए दर्शक की क्यूरिऑसिटी बनी रहे वहीं हालिया दौर में बॉलीवुड ने जिन फिल्मों को बनाया, उनका सीक्वल यदि बन भी गया तो न तो उसमें कहानी ही होती है न कोई काम की बात. सीधे शब्दों में कहें तो निर्माता निर्देशकों द्वारा सीक्वल के नाम पर सिर्फ और सिर्फ जनता को ठगा जा रहा है.
जैसा कि हम बता चुके हैं सीक्वल बेहतर है तो ये बात यूं ही हवा में नहीं है. इस कथन के पीछे मजबूत तथ्य हैं. आप एवेंजर मार्वल समेत हॉलीवुड की थकी से थकी और बुरी से बुरी फ़िल्म को उठाकर देख लीजिए. जॉनर चाहे वो साइंस फिक्शन हो या फिर ड्रामा, रोमांस, कॉमेडी, हॉरर और एक्शन थ्रिलर यदि हॉलीवुड कोई सीक्वल फ़िल्म बनाता है तो दर्शक के लिए उसके पहले पार्ट को समझना या ये कहें कि देखना बहुत जरूरी होता...
चाहे वो किताबें हों या फिल्में. कई पैरामीटर्स हैं, जो यदि अमल में लाए जाएं तो इन दोनों पर कई कई घंटे बातें हो सकती हैं. व्यक्ति यदि किताबों का शौकीन हुआ तो किताबों पर दलीलें देगा इसी तरह जो फिल्मों का शौकीन होगा उसके पास ऐसे-ऐसे तर्क होंगे जिनकी बदौलत वो अपनी बात हिट कराकर ही दम लेगा. फ़िल्म और किताब दोनों ही माध्यमों के शौकीन यूं तो तमाम मुद्दों पर भिन्न मत रखेंगे मगर एक पॉइंट है जहां वो एकमत होते नजर आएंगे. किताब री-प्रिंट में निखरती है. वहीं फ़िल्म का सीक्वल वो भी तब जब वो 'बॉलीवुड' में बन रहा हो फ़िल्म का चौपटानास कर देता है. जी हां जिक्र क्यों कि सिनेमा का हुआ है और बात क्योंकि बॉलीवुड की आई है इसलिए हमारे लिए हॉलीवुड का जिक्र करना भी बहुत जरूरी है. हॉलीवुड में फिल्में बनती हैं, उनके सीक्वल आते हैं कहानी को आगे बढ़ाया जाता है या फिर उस पॉइंट पर छोड़ा जाता है जहां प्रश्नचिन्ह रहे और आगे के लिए दर्शक की क्यूरिऑसिटी बनी रहे वहीं हालिया दौर में बॉलीवुड ने जिन फिल्मों को बनाया, उनका सीक्वल यदि बन भी गया तो न तो उसमें कहानी ही होती है न कोई काम की बात. सीधे शब्दों में कहें तो निर्माता निर्देशकों द्वारा सीक्वल के नाम पर सिर्फ और सिर्फ जनता को ठगा जा रहा है.
जैसा कि हम बता चुके हैं सीक्वल बेहतर है तो ये बात यूं ही हवा में नहीं है. इस कथन के पीछे मजबूत तथ्य हैं. आप एवेंजर मार्वल समेत हॉलीवुड की थकी से थकी और बुरी से बुरी फ़िल्म को उठाकर देख लीजिए. जॉनर चाहे वो साइंस फिक्शन हो या फिर ड्रामा, रोमांस, कॉमेडी, हॉरर और एक्शन थ्रिलर यदि हॉलीवुड कोई सीक्वल फ़िल्म बनाता है तो दर्शक के लिए उसके पहले पार्ट को समझना या ये कहें कि देखना बहुत जरूरी होता है. व्यक्ति को कांसेप्ट मिलता है. थीम समझ में आती है.
इन बातों के बाद यदि हम बॉलीवुड का रुख करते हैं और गहनता से उसका अवलोकन करते हैं तो सेकंड पार्ट तो छोड़िए यदि हम थर्ड या फोर्थ पार्ट भी देखते हैं तो हमें फ़िल्म समझने के लिए उसके बाकी देखने की कोई विशेष ज़रूरत नहीं महसूस होती. तमाम फ़िल्म क्रिटिक्स हैं जो बॉलीवुड की इस हरकत की आलोचना करते हैं वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं जो सीक्वल के नाम पर बॉलीवुड के इस रवैये को एक इंडस्ट्री के रूप में बॉलीवुड की बड़ी खासियत मानते हैं.
बात सीधी और साफ है जब बात बॉलीवुड में किसी फ़िल्म का सीक्वल बनाने की आती है तो हमें भी बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि बॉलीवुड को सीक्वल बनाने की तमीज नहीं है. यदि बॉलीवुड को वाक़ई सीक्वल बनाना है तो सबसे पहले उसे हॉलीवुड से प्रेरणा लेने की ज़रूरत है.
ऐसा बिल्कुल नहीं है कि हिंदी पट्टी के दर्शक ये जानने के लिए कि आगे क्या हुआ? किसी फ़िल्म का सीक्वल नहीं देखना चाहते. यकीनन हिट फिल्म के सीक्वल की तलब दर्शकों को रहती है. एक दो नहीं तमाम फिल्में ऐसी हैं जिनका पहला पार्ट तो हिट हुआ लेकिन जब उसका सीक्वल आया तो दर्शकों ने उसे एक सिरे से खारिज किया.
आइये इस बात को कुछ उदाहरणों से समझें और जानें कि कैसे सीक्वल के नाम पर दर्शकों के हाथ निराशा लगी. बरसों पहले निर्देशक महेश भट्ट की फ़िल्म आई थी नाम था सड़क. चाहे फ़िल्म की कहानी हो या गाने हों एक्टर्स की एक्टिंग से लेकर लोकेशन तक दर्शकों ने खूब एन्जॉय की. चूंकि फ़िल्म हिट थी अभी हाल में ही निर्माता निर्देशकों को फ़िल्म का सीक्वल बनाने का आईडिया आया.
फ़िल्म में आलिया भट्ट लीड रोल में थीं. वहीं फ़िल्म में संजय दत्त और आदित्य रॉय कपूर थे. कहना गलत नहीं है कि जिस जिस ने फ़िल्म देखी अपना माथा पीटते हुए बाहर निकला. एक अच्छी फिल्म की जिस तरह लंका लगी वो नाकाबिल ए बर्दाश्त है. सड़क 2 जैसा ही मिलता जुलता हाल हंगामा 2 का हुआ.
प्रियदर्शन निर्देशित हंगामा का शुमार बॉलीवुड की कल्ट क्लासिक फिल्मों में है. बतौर दर्शक हमने इस फिल्म में अक्षय खन्ना, रिमी सेन, आफताब शिवदसानी और परेश रावल को मुख्य भूमिका निभाते देखा. फ़िल्म हिट थी तो अभी हाल में ही हमने फ़िल्म का सीक्वल हंगामा 2 देखा और नतीजा वही ढाक के तीन पात. फ़िल्म में शिल्पा शेट्टी का होना भी फ़िल्म को कामयाबी नहीं दिला सका.
सड़क 2 और हंगामा 2 जैसा ही हाल स्टूडेंट ऑफ द ईयर 2, हाउस फुल 3, वेलकम बैक जैसी फिल्मों का भी हुआ जो इस बात की तस्दीख कर देता है कि निर्माता निर्देशक सीक्वल दर्शकों के मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि पैसा कमाने के लिए बनाते है.
अब जबकि ये तमाम बातें हम जान चुके हैं साफ़ हो गया है सीक्वल के नाम पर अब तक दर्शकों को केवल और केवल धोखा ही मिला है. इसलिए अब वो वक़्त आ गया है जब अगर क्वालिटी एंटरटेनमेंट चाहिए तो ख़ुद दर्शकों को निर्माता निर्देशकों के सामने न केवल अपनी बात रखनी होगी बल्कि उसे मनवाना भी होगा.
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