'जब बात फैमिली पर आए तो डिस्कशन नहीं करते, एक्शन करते हैं.'
फ्रेडी के बाद कार्तिक आर्यन की शहजादा रिलीज के लिए तैयार है. आज ही फिल्म का ट्रेलर आया है. फरवरी में फिल्म आएगी. हालांकि शहजादा सिनेमाघरों में आएगी. ऊपर की पहली लाइन ट्रेलर का ओपनिग संवाद है. एक तरह से इस एक संवाद और उस पर जो दृश्य दिखे है- फिल्म के पक्ष में माहौल बनाने वाले हैं. कार्तिक आर्यन या बॉलीवुड में कुछ फिल्ममेकर बॉलीवुड विरोध के बावजूद क्यों सफलता हासिल करते जा रहे हैं- यह समझना हो तो, शहजादा भी पर्याप्त है. शहजादा में सबकुछ है. एक्शन, इमोशन, कॉमेडी, एक्सपोजर और ड्रामा. हीरोइन छोटे कपड़े में भी दिखती है और हीरो भी शर्ट का बटन खोले नजर आता है. मगर शहजादा के ट्रेलर में जो एलिमेंट दर्शकों से कनेक्ट करने वाले हैं- वह आजकल बॉलीवुड फिल्मों में दिखाई नहीं पड़ते. कार्तिक या बॉलीवुड में जो लोग कामयाब दिख रहे हैं, वह बस इसी फर्क को पकड़ने की वजह से हैं.
शहजादा के ट्रेलर को ध्यान से देखिए. ऐसा लगता है कि मेकर्स ने बायकॉट बॉलीवुड ट्रेंड से निकले सवालों पर जमकर रिसर्च किया है और दर्शकों से जुड़ने वाले दृश्य रचने को वरीयता दी है. बायकॉट बॉलीवुड ट्रेंड सिर्फ हिंदू ,मुसलमान भर का नहीं है. बल्कि बॉलीवुड की खिलाफत में क्लास सेंटिमेंट, लोकल के साथ डिस कनेक्ट, अमीर गरीब के संघर्ष की जगह चीजें फील गुड दिखाने पर घोर आपत्ति नजर आती है. इलिटिज्म से भी आपत्ति दिखती है. पश्चिम के अंधानुकरण और भारतीय पारिवारिक मूल्यों की कमी भी नजर आती है. लेकिन शहजादा तमाम सवालों को एड्रेस करता दख रहा है. फिलहाल यानी ट्रेलर में. इसके साथ-साथ एक्शन, रोमांस और कॉमेडी का तड़का है ही जो बॉलीवुड के फिल्मों की कभी जान हुआ करता था. शहजादा कई बार 90s में आई गोविंदा की फीलगुड फिल्मों की याद दिला देगा. शहजादा पर आगे की बात से पहले ट्रेलर देख लें.
#1. क्लास सेंटिमेंट को भुनाने की कोशिश
शहजादा के ट्रेलर से पता चलता है कि इसमें अमीर और गरीब शहरी की दो दुनिया को फोकस में रखकर एक...
'जब बात फैमिली पर आए तो डिस्कशन नहीं करते, एक्शन करते हैं.'
फ्रेडी के बाद कार्तिक आर्यन की शहजादा रिलीज के लिए तैयार है. आज ही फिल्म का ट्रेलर आया है. फरवरी में फिल्म आएगी. हालांकि शहजादा सिनेमाघरों में आएगी. ऊपर की पहली लाइन ट्रेलर का ओपनिग संवाद है. एक तरह से इस एक संवाद और उस पर जो दृश्य दिखे है- फिल्म के पक्ष में माहौल बनाने वाले हैं. कार्तिक आर्यन या बॉलीवुड में कुछ फिल्ममेकर बॉलीवुड विरोध के बावजूद क्यों सफलता हासिल करते जा रहे हैं- यह समझना हो तो, शहजादा भी पर्याप्त है. शहजादा में सबकुछ है. एक्शन, इमोशन, कॉमेडी, एक्सपोजर और ड्रामा. हीरोइन छोटे कपड़े में भी दिखती है और हीरो भी शर्ट का बटन खोले नजर आता है. मगर शहजादा के ट्रेलर में जो एलिमेंट दर्शकों से कनेक्ट करने वाले हैं- वह आजकल बॉलीवुड फिल्मों में दिखाई नहीं पड़ते. कार्तिक या बॉलीवुड में जो लोग कामयाब दिख रहे हैं, वह बस इसी फर्क को पकड़ने की वजह से हैं.
शहजादा के ट्रेलर को ध्यान से देखिए. ऐसा लगता है कि मेकर्स ने बायकॉट बॉलीवुड ट्रेंड से निकले सवालों पर जमकर रिसर्च किया है और दर्शकों से जुड़ने वाले दृश्य रचने को वरीयता दी है. बायकॉट बॉलीवुड ट्रेंड सिर्फ हिंदू ,मुसलमान भर का नहीं है. बल्कि बॉलीवुड की खिलाफत में क्लास सेंटिमेंट, लोकल के साथ डिस कनेक्ट, अमीर गरीब के संघर्ष की जगह चीजें फील गुड दिखाने पर घोर आपत्ति नजर आती है. इलिटिज्म से भी आपत्ति दिखती है. पश्चिम के अंधानुकरण और भारतीय पारिवारिक मूल्यों की कमी भी नजर आती है. लेकिन शहजादा तमाम सवालों को एड्रेस करता दख रहा है. फिलहाल यानी ट्रेलर में. इसके साथ-साथ एक्शन, रोमांस और कॉमेडी का तड़का है ही जो बॉलीवुड के फिल्मों की कभी जान हुआ करता था. शहजादा कई बार 90s में आई गोविंदा की फीलगुड फिल्मों की याद दिला देगा. शहजादा पर आगे की बात से पहले ट्रेलर देख लें.
#1. क्लास सेंटिमेंट को भुनाने की कोशिश
शहजादा के ट्रेलर से पता चलता है कि इसमें अमीर और गरीब शहरी की दो दुनिया को फोकस में रखकर एक कहानी बुनी गई है. दोनों दुनिया में अच्छे और बुरे लोग हैं. असल में कार्तिक जो किरदार कर रहे हैं वह, एक अमीर माता-पिता की संतान हैं. बावजूद हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि उन्हें परिवार से बिछड़ना पड़ता है और शायद एक निम्न मध्यवर्ग परिवार में पहुंच जाते हैं. यानी परेश रावल के घर में. बाबा के रूप में वे परेश रावल को ही जानते हैं. हो सकता है कि फिल्म में इसका कोई डिटेल बैकग्राउंड हो.
#2. फैमिली ऑडियंस का कनेक्शन
जाहिर सी बात है कि शहजादा की कहानी में फैमिली एलिमेंट को फोकस किया गया है. यानी जब कार्तिक को असलियत का पता चलता है और यह भी कि कुछ लोग उनके माता-पिता की संपत्ति को कब्जाना चाहते हैं. उनके पिता का नकली वारिस तक तैयार कर दिया जाता है. कार्तिक सच्चाई जानने के बाद अपना परिवार बचाने के लिए जंग में कूद पड़ते हैं. चूंकि बात फैमिली पर है तो डिस्कशन की बजाए एक्शन करते नजर आते हैं. कार्तिक का किरदार रफटफ है. वह लायर बनना चाहते हैं और उन्हें फाइट का भी शौक है. कार्तिक अभी तक फिल्मों में लगभग ना के बराबर फाइट करते दिखे हैं. शहजादा में वह जमकर फाइट करने वाले नहीं. बावजूद कि कॉन्टेंट से समझा जा सकता है कि यह सब गोविंदा की फिल्मों जैसा ही रहने वाला है.
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#3. इलिटिज्म और नेपोटिज्म पर चोट
फिल्म में इलिटिज्म और भाई भतीजावाद का विरोध किया गया है. वैसे भी कार्तिक बॉलीवुड में आउटसाइडर हैं तो उन्हें एंटी नेपोटिज्म सपोर्ट मिल जाता है. वे अपनी इसी छवि के सहारे अपना बेस और मजबूत करते नजर आ रहे हैं. यह खामखा नहीं है. इसे बायकॉट बॉलीवुड कैम्पेन का असर भी कह सकते हैं. कार्तिक का एक संवाद सुने जिसमें वे इलिटिज्म और नेपोटिज्म पर तंज कसते नजर आ रहे हैं. उनका संवाद है- "अमीर बच्चों की यही प्रोब्लम है. तूने खिलौने मांगे- तुझे खिलौने की दुकान मिली. तूने छुट्टे मांगे- तुझे क्रेडिट कार्ड मिला. दूध मांगा- तुझे खीर मिली, वह भी ऑलमंड मिल्क वाली. भाई इसे कहते हैं नेपोटिज्म." फिल्म में कार्तिक अपने लुक से अभिजात्य भी नहीं दिखते. एक तरह से वह आम आदमी की तरह दिखाए गए हैं. समझा जा सकता है कि शहजादा का फोकस कौन सा टारगेट ऑडियंस है.
शहजादा के ट्रेलर का सबसे खराब दृश्य, इसे हटाना ही चाहिए
बाकी शहजादा में एक्शन साउथ स्टाइल में ही है. और देखकर अच्छा लग रहा है. एक मनोरंजक पैकेज तो नजर आ रहा ट्रेलर में. शहजादा के जरिए कार्तिक आर्यन बतौर प्रोड्यूसर भी कदम रखने जा रहे है. फिल्म में उन्होंने निवेश किया है. हालांकि शहजादा जिस तरह का कॉन्टेंट है उसमें एक चीज बहुत ही खराब है. मेकर्स को चाहिए कि उसे दुरुस्त करें. असल में कार्तिक आर्यन को परेश रावल पालते हैं. वह उन्हें बाबा ही कहते हैं. बाद में उन्हें पता चलता है कि उनके मातापिता कोई और हैं. एक सीक्वेंस दिखता है जिसमें कार्तिक, अपने बाबा यानी परेश रावल को जोरदार तमाचा मारते हैं. जिसे जीवनभर पिता समझा, भला कोई उसपर कैसे हाथ उठा सकता है? वह पिता नहीं भी होता- बावजूद एक सज्जन दिख रहे उम्रदराज पर कोई युवक कैसे हाथ उठा सकता है?
यह सीक्वेंस समझ से परे है. कॉमेडी के नाम पर भारत जैसे देश में ऐसे सीक्वेंस को आम नहीं बनाया जा सकता. विजुअल्स के असर होते हैं और फिल्म मेकर्स को संवेदनशीलता से जिम्मेदारी को समझना होगा. बॉलीवुड की कुछ फिल्मों में पहले भी ऐसे दृश्य दिखे हैं. शहजादा के मेकर्स को चाहिए कि ऐसे दृश्य से बाज आए. अछा होगा कि शहजादा से इस दृश्य को हटाकर कोई और सीन क्रिएट किया जाए.
चलते चलते यह भी जान लीजिए कि शहजादा साल 2020 में आई अल्लू अर्जुन की तेलुगु फिल्म अला बैकुंठपुररमुलू (Ala Vaikunthapurramuloo) की आधिकारिक रीमेक है और इसमें हिंदी के मुताबिक़ चीजों में फेरबदल भी किया गया है.
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