कारगिल में देश ने अपने इतिहास की सबसे मुश्किल जंग जीती थी. इस घटना के 22 साल हो गए. पाकिस्तानी सैनिकों ने आतंकियों की ड्रेस में कारगिल की ऊंची चोटियों पर घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था. कारगिल की ये चोटियां सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण थीं. भारतीय सेना को काफी देर बाद घुसपैठ की भनक लगी थी. सेना ने ऑपरेशन शुरू किया. पर उन्हें अंदाजा नहीं था कि पाकिस्तानी घुसपैठिए पूरी तैयारी से आए थे. बहुत उंचाई पर होने की वजह से उन्हें एडवांटेज मिल रहा था. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान घुसपैठ में अपनी भूमिका को खारिज कर रहा था. भौगिलिक स्थिति और नियंत्रण रेखा को लेकर उस वक्त कूटनीति कुछ ऐसी थी कि देश को वायुसेना के इस्तेमाल में परेशानियां आ रही थीं. इन्हीं वजहों से सेना को शुरू में बहुत नुकसान उठाना पड़ा. हमारे सैकड़ों जवान मातृभूमि के लिए शहीद हो गए.
आज ही के दिन यानी 26 जुलाई को सेना के बहादुर जवानों ने एक-एक कर पाकिस्तान के कब्जे से कारगिल के पॉइंट्स को खाली कराया और घुसपैठियों को पीछे धकेल दिया. बड़े पैमाने पर पाकिस्तानी सेना के जवान मारे गए. मगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी से बचने के लिए पाकिस्तान अपने ही जवानों की जिम्मेदारी लेने से मुकर गया. कारगिल को दोबारा फतह करने वाले बहादुर जवानों में एक नाम कैप्टन विक्रम बत्रा का भी था. कारगिल की जंग के दौरान उन्होंने अदम्य साहस का परिचय दिया. जंग में उनकी बहादुरी के किस्सों ने उन्हें देशभर में हीरो बना दिया.
करण जौहर का धर्मा प्रोडक्शन उन्हीं विक्रम बत्रा की कहानी पर 'शेरशाह' लेकर आ आ रहा है. फिल्म का ट्रेलर विजय दिवस से पहले जारी किया जा चुका है. शेरशाह दरअसल, जंग के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया...
कारगिल में देश ने अपने इतिहास की सबसे मुश्किल जंग जीती थी. इस घटना के 22 साल हो गए. पाकिस्तानी सैनिकों ने आतंकियों की ड्रेस में कारगिल की ऊंची चोटियों पर घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था. कारगिल की ये चोटियां सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण थीं. भारतीय सेना को काफी देर बाद घुसपैठ की भनक लगी थी. सेना ने ऑपरेशन शुरू किया. पर उन्हें अंदाजा नहीं था कि पाकिस्तानी घुसपैठिए पूरी तैयारी से आए थे. बहुत उंचाई पर होने की वजह से उन्हें एडवांटेज मिल रहा था. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान घुसपैठ में अपनी भूमिका को खारिज कर रहा था. भौगिलिक स्थिति और नियंत्रण रेखा को लेकर उस वक्त कूटनीति कुछ ऐसी थी कि देश को वायुसेना के इस्तेमाल में परेशानियां आ रही थीं. इन्हीं वजहों से सेना को शुरू में बहुत नुकसान उठाना पड़ा. हमारे सैकड़ों जवान मातृभूमि के लिए शहीद हो गए.
आज ही के दिन यानी 26 जुलाई को सेना के बहादुर जवानों ने एक-एक कर पाकिस्तान के कब्जे से कारगिल के पॉइंट्स को खाली कराया और घुसपैठियों को पीछे धकेल दिया. बड़े पैमाने पर पाकिस्तानी सेना के जवान मारे गए. मगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी से बचने के लिए पाकिस्तान अपने ही जवानों की जिम्मेदारी लेने से मुकर गया. कारगिल को दोबारा फतह करने वाले बहादुर जवानों में एक नाम कैप्टन विक्रम बत्रा का भी था. कारगिल की जंग के दौरान उन्होंने अदम्य साहस का परिचय दिया. जंग में उनकी बहादुरी के किस्सों ने उन्हें देशभर में हीरो बना दिया.
करण जौहर का धर्मा प्रोडक्शन उन्हीं विक्रम बत्रा की कहानी पर 'शेरशाह' लेकर आ आ रहा है. फिल्म का ट्रेलर विजय दिवस से पहले जारी किया जा चुका है. शेरशाह दरअसल, जंग के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा को दिया गया कोड नेम था. इससे पहले कारगिल की जंग को लेकर बनी फिल्मों में विक्रम बत्रा की बहादुरी को दिखाया जा चुका है. जेपी दत्ता की एलओसी कारगिल में भी उनकी कहानी बेहद अहम है. हालांकि फिल्म में कारगिल की जंग को ही प्रमुखता दी गई है. ये पहला मौका है जब बॉलीवुड विक्रम बत्रा की बायोपिक बना रहा है. ट्रेलर से पता चलता है कि विक्रम के जीवन के कई अनछुए पहलू शेरशाह में नजर आने वाले हैं.
शेरशाह अमेजन प्राइम वीडियो पर स्वतंत्रता दिवस से पहले 12 अगस्त को स्ट्रीम की जाएगी. सिद्धार्थ मल्होत्रा विक्रम बत्रा की भूमिका में हैं. उनके अपोजिट कियारा आडवाणी हैं. शेरशाह की कहानी संदीप श्रीवास्तव ने लिखी है जबकि निर्देशन विष्णुवर्धन का है.
नीचे शेरशाह का ट्रेलर देख सकते हैं:-
विक्रम बत्रा 13 JAK राइफल्स में कैप्टन थे. उन्होंने 1997 में सेना जॉइन किया था. और दो साल के अंदर ही कैप्टन बन गए थे. कारगिल की जंग में उनके नेतृत्व में सेना ने कारगिल के पांच सबसे अहम पॉइंट फतह किए थे. इनमें कई पॉइंट तो 70 से 80 डिग्री की खड़ी चढ़ाई पर थे और ऊपर बैठे पाकिस्तानी हमारे जवानों की हर मूवमेंट देख रहे थे. गोलियां बरसा रहे थे. ऊपर पॉइंट तक पहुंचना तो छोडिए आगे बढ़ना ही सीधे मौत के मुंह में घुसना था. बावजूद कैप्टन और उनके साथियों ने मुश्किल जंग को फतह किया और सेना को स्ट्रेटजिक बढ़त दिला दी. कैप्टन की एक पर एक जीतों से पाकिस्तानियों का मनोबल भी ध्वस्त होता रहा और उनके अंदर भारतीय सेना की बहादुरी का खौफ बढ़ता चला गया.
विक्रम का जन्म 1974 में हुआ था और वो अपने साथियों को बचाते हुए 7 जुलाई 1999 में ही शहीद हो गए. उस वक्त उनकी उम्र कुछ भी नहीं थी. शहादत से पहले उन्होंने जो काम किया पूरा देश आज भी उसके आगे सिर झुकाता है. पाकिस्तानी सेना भी शेरशाह से मिले खौफ को आजतक नहीं भूल पाया है. कैप्टन विक्रम को मरणोपरांत परमवीर चक्र दिया गया था. ये शीर्ष सम्मान है. उनके बाद अभी तक किसी और को ये सम्मान नहीं मिला है.
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर शेरशाह में विक्रम बत्रा की कहानी को देखना प्रेरणादायक होगा.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.