थियेटर्स के बाद अमेजन प्राइम पर स्ट्रीम हो रही अल्लू अर्जुन, रश्मिका मंदाना स्टारर Pushpa : The Rise को जिस तरह हिंदी पट्टी ने हाथों हाथ लिया साफ है कि इंडियन सिनेमा के नाम पर बॉलीवुड की मोनोपोली खत्म होने की कगार पर है. खत्म हो भी क्यों न? साउथ से फिल्में ही ऐसी आ रही हैं. बॉलीवुड जहां आज भी बिना सिर पैर की कहानी या रीमेक पर दिमाग खपा रहा है. वहीं साउथ में सिनेमा के नाम पर क्रिएटिविटी बढ़ी है और राहुल सांकृतायन निर्देशित फिल्म Shyam Singha Roy इसी क्रिएटिविटी की एक नजीर है.
नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हुई श्याम सिंघा रॉय भले ही पुष्पा : द राइज की सुनामी में कहीं गुम हो गयी हो मगर इस फ़िल्म में ऐसा बहुत कुछ है जिसे हिंदी पट्टी के दर्शकों के अलावा बॉलीवुड के उन नए डायरेक्टर्स को जरूर देखना चाहिए जो OTT के इस दौर में एंटरटेनमेंट के नाम पर या तो कोरी बकवास परोस रहे हैं या फिर अश्लीलता और फूहड़ता.
तो क्यों खास है श्याम सिंघा रॉय!
फ़िल्म एक तेलुगु फ़िल्म है और जैसा फ़िल्म का टेम्परामेंट है ये एक पीरियड ड्रामा है. अपनी मेकिंग के साथ ही फ़िल्म ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं और बात इसकी वजह की हो तो जब फ़िल्म में साउथ सुपर स्टार नानी और साईं पल्लवी जैसी स्टारकास्ट हो तो फ़िल्म अपने आप ही हिट हो जाती है. बात आगे बढ़ाने से पहले बताया जरूरी हो जाता है कि इस कोरोना काल में ये नानी की पहली फ़िल्म है.
फ़िल्म टिपिकल साउथ इंडियन फ़िल्म नहीं है इसके लिए निर्देशक और स्क्रिप्ट राइटर ने भी बड़े परिवर्तन किए हैं. फ़िल्म जहां आपको हैदराबाद के दर्शन कराएगी तो वहीं इस फ़िल्म के जरिये आप बंगाल और वहां के कल्चर और रीति रिवाजों से भी...
थियेटर्स के बाद अमेजन प्राइम पर स्ट्रीम हो रही अल्लू अर्जुन, रश्मिका मंदाना स्टारर Pushpa : The Rise को जिस तरह हिंदी पट्टी ने हाथों हाथ लिया साफ है कि इंडियन सिनेमा के नाम पर बॉलीवुड की मोनोपोली खत्म होने की कगार पर है. खत्म हो भी क्यों न? साउथ से फिल्में ही ऐसी आ रही हैं. बॉलीवुड जहां आज भी बिना सिर पैर की कहानी या रीमेक पर दिमाग खपा रहा है. वहीं साउथ में सिनेमा के नाम पर क्रिएटिविटी बढ़ी है और राहुल सांकृतायन निर्देशित फिल्म Shyam Singha Roy इसी क्रिएटिविटी की एक नजीर है.
नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हुई श्याम सिंघा रॉय भले ही पुष्पा : द राइज की सुनामी में कहीं गुम हो गयी हो मगर इस फ़िल्म में ऐसा बहुत कुछ है जिसे हिंदी पट्टी के दर्शकों के अलावा बॉलीवुड के उन नए डायरेक्टर्स को जरूर देखना चाहिए जो OTT के इस दौर में एंटरटेनमेंट के नाम पर या तो कोरी बकवास परोस रहे हैं या फिर अश्लीलता और फूहड़ता.
तो क्यों खास है श्याम सिंघा रॉय!
फ़िल्म एक तेलुगु फ़िल्म है और जैसा फ़िल्म का टेम्परामेंट है ये एक पीरियड ड्रामा है. अपनी मेकिंग के साथ ही फ़िल्म ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं और बात इसकी वजह की हो तो जब फ़िल्म में साउथ सुपर स्टार नानी और साईं पल्लवी जैसी स्टारकास्ट हो तो फ़िल्म अपने आप ही हिट हो जाती है. बात आगे बढ़ाने से पहले बताया जरूरी हो जाता है कि इस कोरोना काल में ये नानी की पहली फ़िल्म है.
फ़िल्म टिपिकल साउथ इंडियन फ़िल्म नहीं है इसके लिए निर्देशक और स्क्रिप्ट राइटर ने भी बड़े परिवर्तन किए हैं. फ़िल्म जहां आपको हैदराबाद के दर्शन कराएगी तो वहीं इस फ़िल्म के जरिये आप बंगाल और वहां के कल्चर और रीति रिवाजों से भी रू ब रू होंगे. फ़िल्म की खास बात ये है कि ये आपको बांधे रखती है और आप ये जानने को आतुर रहते हैं कि आगे क्या होगा.
जैसा कि हम बता चुके हैं फ़िल्म नानी की फ़िल्म है साथ ही इसमें साईं पल्लवी भी दमदार भूमिका में हैं इसलिए निर्देशक ने भी अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ी और दो कहानियों और पुनर्जन्म की घटना को कुछ इस अंदाज में जोड़ा कि दर्शक भी फ़िल्म देखते हुए खुद को वाह-वाह करने से नहीं रोक पाएगा. फ़िल्म के एक हिस्से में नानी अपकमिंग फिल्म मेकर वासु हैं जबकि दूसरे हिस्से में उन्होंमे बंगाल में पिछड़ों और मजलूमों की आवाज और क्रांतिकारी श्याम सिंघा रॉय का रोल किया है.
क्या कहती है कहानी और क्यों इसे बॉलीवुड को देखना चाहिए!
फ़िल्म का ओपनिंग शॉट देखने पर ही फ़िल्म की क्वालिटी पता चल जाती है. जैसा कि हम बता चुके हैं वासु को फ़िल्ममेकर बनना है. फिल्मों के लिए उसका टेस्ट बेहतरीन है और वो परफेक्शन पर यकीन रखता है. फ़िल्म की शुरुआत में ही वासु का कमरा दिखाया गया है जहां सैम मेंडेज़ की ‘रोड टू परडिशन, अकाली राज्यम, बॉम्बे, रोजा और गुरुदत्त की प्यासा के पोस्टर लगे हैं.
वासु को एक शॉर्ट फिल्म बनानी है जिसे दिखाकर उसे प्रोड्यूडर से बड़ी फिल्म लेनी है. अब चूंकि शॉर्ट फिल्म के लिए वासु के पास पैसा नहीं है इसलिए वो जुआड़ सेट करता है और लोकेशन अपने दोस्त की कॉफी शॉप को बनाता है. वहीं उसे कीर्ति (कीर्ति शेट्टी) दिखती है. कीर्ति को एक्टिंग में कोई दिलचस्पी नहीं है लेकिन वासु उसके हाव भाव से इम्प्रेस हो जाता है और चाहता है कि उसकी शॉर्ट फिल्म की लीड कीर्ति ही हो.
कीर्ति को मनाने के लिए वासु तमाम तरह के पापड़ बेलता है और कामयाब होता है. वासु की फ़िल्म बनती है वो उसे प्रोड्यूसर को दिखाता है और एक बड़ा प्रोजेक्ट उसके हाथ लगता है. वासु की वो फ़िल्म सुपर डुपर हिट होती है फिर वासु के पास मुंबई से बॉलीवुड के लिए फोन आता है और यही फ़िल्म का टर्निंग पॉइंट है.
इसके बाद फ़िल्म में कई परिवर्तन होते हैं और सस्पेंस हमें बंगाल की भूमि पर ले जाता है. जहां एंट्री होती है श्याम सिंघा रॉय की . टाइम दिखाया है 1969 का. नानी का दूसरा कैरेक्टरयानी श्याम सिंघा रॉय इसकी भी एंट्री कमाल है. बात अगर इस कैरेक्टर की हो तो श्याम सिंघा रॉय एक प्रोग्रेसिव और क्रांतिकारी मिज़ाज का आदमी है जो कलम को क्रांति का माध्यम बनाना चाहता है.
फ़िल्म में श्याम जाति व्यवस्था, छुआछूत, महिलाओं की दुर्दशा पर लिखता है और ऐसा बहुत कुछ कर देता है जिसके बाद बड़े बड़े मठाधीशों के तख्त हिल जाते हैं. फ़िल्म में श्याम एक देवदासी मैत्रयी से मिलता है और पहली ही नजर में उसे, उससे प्यार हो जाता है.
श्याम को और कहानी को समझने के लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी. ओटीटी के इस दौर में जहां सब जल्दबाजी में हैं इस फ़िल्म में एक ठहराव है, सहजता है, मासूमियत है तो वहीं फ़िल्म में सिस्टम और समाज के प्रति गुस्सा भी है. फ़िल्म एक पीरियड लव स्टोरी है इसलिए हमारा दावा यही है इसे देखते हुए आपको बोरियत नहीं होगी.
एक्टिंग, डायरेक्शन और कैमरा वर्क
फिल्म बेहतरीन तरीके से शूट हुई है और बतौर दर्शक आपको बांधे रखती है. कैमरा वर्क और एडिटिंग काफी कमाल का है बेजोड़ हैं. बात डायरेक्शन की हो तो निर्देशक ने अहम सामाजिक कुरीतियों पर अपने निर्देशन से करारा प्रहार किया. बात एक्टिंग की हो तो नानी ने अपने दोनों रोल कुछ ऐसे किये हैं जिनसे आप शायद ही नजरें हटा पाएं. जैसा कि फिल्म में दिखाया गया है दुर्गा पूजा के सीन से साईं पल्लवी की फिल्म में एंट्री होती है, जिसमें वो माता दुर्गा के अवतार में नजर आती हैं. जैसी एक्टिंग साईं की है बहुत सीधी और साफ़ बात है कि मैत्रयी का रोल शायद उन्हीं के लिए बना था.
इसके अलावा फिल्म में कीर्ति शेट्टी भी हैं. फिल्म के जो भी हिस्से कीर्ति को मिले उन्होंने रोल के साथ इंसाफ किया.
जैसा कि हम ऊपर ही बता चुके हैं श्याम सिंघा रॉय जैसी फ़िल्में बॉलीवुड को कड़ी चुनौती दे रही हैं. अभी भी वक़्त है बॉलीवुड को संभल जाना चाहिए. वरना दर्शक उसी खेमे में जाएगा जहां उसे क्वालिटी कंटेंट और क्रिएटिविटी लिया हुआ एंटरटेनमेंट मिलेगा.
ये भी पढ़ें -
Looop Lapeta Review: तापसी-ताहिर, डायरेक्टर-राइटर फिल्म बर्बाद हुई, जिम्मेदार सब हैं!
Valentine Week: 5 रोमांटिक वेब सीरीज, जो सच्चे प्यार की परिभाषा बताती हैं
Rocket Boys Web series Review: देश के दो दिग्गज वैज्ञानिकों को सच्ची श्रद्धांजलि है वेब सीरीज
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.