यशराज फिल्म्स के निर्माण में बनी पठान चर्चा में है. फिल्म को इसी महीने 25 जनवरी के दिन रिलीज किया जाना है. मगर अभी तक ना तो ट्रेलर आया है और ना ही देश में एडवांस बुकिंग शुरू होने की खबरें हैं. बावजूद कि फिल्म का ट्रेलर और कुछ गाने जरूर रिलीज किए जा चुके हैं. लेकिन बेशरम रंग को छोड़ दिया जाए तो 57 साल की वृद्धावस्था में जोरदार कमबैक के लिए परेशान शाह रुख खान और उनकी फिल्म की चर्चा की एकमात्र वजह बेशरम रंग ही है. ध्यान से देखिए कि बेशरम रंग को पठाना से माइनस कर दिया जाए तो अब तक पठान का कोई हासिल नजर नहीं आता. बेशरम रंग में भी चर्चा की वजह गीत संगीत या उसके बोल नहीं हैं. बिकिनी भी नहीं है. बल्कि दीपिका पादुकोण का बिकिनी में अजीबोगरीब मादक डांस है. गाने के बोल और बिकिनी के रंग से एक कंट्रोवर्सी है.
सोशल मीडिया पर चर्चा भी है कि 'हंटिंग हेडलाइन पीआर' के लिए मशहूर बॉलीवुड ने असल में मौजूदा सियासी ध्रुवीकरण का फायदा पहुंचाने के लिए पठान के गाने में बेशरम रंग बोल का इस्तेमाल किया. और दीपिका को मेकर्स जानबूझकर भगवा रंग की बिकिनी पहनाई जो भारतीय धर्म परंपरा में ब्रह्मचर्य, वैराग्य और तपस्या के रंग के रूप में मशहूर है. तमाम अलग-अलग भारतीय धर्मों के साधु संत इसी रंग के वस्त्रों का इस्तेमाल करते हैं. सोशल मीडिया पर चर्चाओं को लेकर कुछ दावे से नहीं कहा जा सकता कि बेशरम रंग पठान के प्रमोशन के लिए हेडलाइन हंटिंग ही है या कुछ और. बावजूद एक बात तो साफ़ हो जाती है कि मेकर्स की नजर में इस गाने की ख़ास प्रमोशनल अहमियत थी. उसे टीजर से भी ज्यादा तामझाम के साथ रिलीज किया गया था. कहा तो यह भी जा रहा है कि असल में गाने का मकसद ही विवाद फैलाना था ताकि फिल्म का जरूरी प्रमोशन हो सके.
पठान...
यशराज फिल्म्स के निर्माण में बनी पठान चर्चा में है. फिल्म को इसी महीने 25 जनवरी के दिन रिलीज किया जाना है. मगर अभी तक ना तो ट्रेलर आया है और ना ही देश में एडवांस बुकिंग शुरू होने की खबरें हैं. बावजूद कि फिल्म का ट्रेलर और कुछ गाने जरूर रिलीज किए जा चुके हैं. लेकिन बेशरम रंग को छोड़ दिया जाए तो 57 साल की वृद्धावस्था में जोरदार कमबैक के लिए परेशान शाह रुख खान और उनकी फिल्म की चर्चा की एकमात्र वजह बेशरम रंग ही है. ध्यान से देखिए कि बेशरम रंग को पठाना से माइनस कर दिया जाए तो अब तक पठान का कोई हासिल नजर नहीं आता. बेशरम रंग में भी चर्चा की वजह गीत संगीत या उसके बोल नहीं हैं. बिकिनी भी नहीं है. बल्कि दीपिका पादुकोण का बिकिनी में अजीबोगरीब मादक डांस है. गाने के बोल और बिकिनी के रंग से एक कंट्रोवर्सी है.
सोशल मीडिया पर चर्चा भी है कि 'हंटिंग हेडलाइन पीआर' के लिए मशहूर बॉलीवुड ने असल में मौजूदा सियासी ध्रुवीकरण का फायदा पहुंचाने के लिए पठान के गाने में बेशरम रंग बोल का इस्तेमाल किया. और दीपिका को मेकर्स जानबूझकर भगवा रंग की बिकिनी पहनाई जो भारतीय धर्म परंपरा में ब्रह्मचर्य, वैराग्य और तपस्या के रंग के रूप में मशहूर है. तमाम अलग-अलग भारतीय धर्मों के साधु संत इसी रंग के वस्त्रों का इस्तेमाल करते हैं. सोशल मीडिया पर चर्चाओं को लेकर कुछ दावे से नहीं कहा जा सकता कि बेशरम रंग पठान के प्रमोशन के लिए हेडलाइन हंटिंग ही है या कुछ और. बावजूद एक बात तो साफ़ हो जाती है कि मेकर्स की नजर में इस गाने की ख़ास प्रमोशनल अहमियत थी. उसे टीजर से भी ज्यादा तामझाम के साथ रिलीज किया गया था. कहा तो यह भी जा रहा है कि असल में गाने का मकसद ही विवाद फैलाना था ताकि फिल्म का जरूरी प्रमोशन हो सके.
पठान के प्रमोशन की लाइफ लाइन साबित हो रही है बेशरम रंग, क्या यह जानबूझकर बनाया गया था?
कुचर्चा ही सही, पर यह विवाद ही था कि पठान के सिर्फ बेशरम रंग गाने को हाथोंहाथ लिया गया. एक तरह से यही पठान की हंटिंग हेडलाइन पीआर की लाइफ लाइन के रूप में नजर आती है. यह महज संयोग नहं है कि अब तक पठान पर जो भी चर्चा हुई, जितनी भी चर्चा हुई उसके केंद्र में सिर्फ़ यही एक गाना है कुछ नहीं. फिल्म के गीत संगीत पर कॉपी करने के आरोप पहले भी लगे. लेकिन एक नया ताजा और दिलचस्प आरोप काबिलेगौर है. यह आरोप पाकिस्तान से आया है. बेशरम रंग की रिलीज के लगभग 20 दिन बाद वहां के एक सिंगर/म्यूजिशियन सज्जाद अली ने अब आरोप लगाया कि इंडिया की एक फिल्म का एक गाना इन दिनों बहुत चर्चा में है. जो असल में उनके 26 साल पुराने गाने- अब के हम बिछड़े से मिलता जुलता है.
सज्जाद अली ने इन्स्टाग्राम पर वीडियो साझा करते हुए इशारों में कॉपी के आरोप लगाए है. लेकिन गाने की धुन, उसके बोल और उस पर आ रहे कमेंट्स से समझना मुश्किल नहीं कि असल वे किस गाने के लिए बातें कह रहे हैं. वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है जब किसी पाकिस्तानी आर्टिस्ट ने बॉलीवुड पर कॉपी के आरोप लगाए हों. मगर इसे सोशल मीडिया पर बेशरम रंग की 'हेडलाइन हंटिंग' से जोड़कर देखा जा सकता है. वैसे यह कम ताज्जुब की बात नहीं कि सज्जाद अली म्यूजिक की पॉपुलर कैटेगरी का हिस्सा हैं. क्या इस बात पर भरोसा किया जा सकता है कि सोशल मीडिया पर 12 दिसंबर से ही बेशरम रंग गाने को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं हो रही हैं और उनका ध्यान ही नहीं गया हो?
क्या यह पाकिस्तानी तड़के में पठान के ठंडे हो चुके माहौल को गर्म करने की कोशिश है?
उन्होंने इशारों-इशारों में आरोप लगाने में इतनी देर क्यों की? वे सांकेतिक भाषा में पहले भी अपना पक्ष रख सकते थे. अगर देखें तो पठान और उसके गाने का हौवा पिछले एक डेढ़ हफ्ते से ना के बराबर है. जर्मनी में पठान की एडवांस बुकिंग जैसी हेडलाइन हंटिंग फिल्म का प्रमोशन करते दिखती है. बावजूद शाहरुख की फिल्म के पक्ष में विरोध इस कदर है कि माहौल ठंडा नजर आ रहा है. ऐसे वक्त में जब फिल्म पर कोई बात नहीं हो रही है पाकिस्तान से बेशरम रंग पर ही कॉपी जैसे आरोप से क्या निष्कर्ष निकाला जाए. क्या पाकिस्तानी सिंगर सज्जाद अली के सांकेतिक आरोपों को हेडलाइन हंटिंग पीआर का हिस्सा माना जाए. बावजूद कि अपने आरोप में वे साफ़ नहीं करते कि किस गाने के लिए बात कर रहे हैं. इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सज्जाद, बेशरम रंग के बहाने अपना पीआर कर रहे हों. मगर इतना वक्त लेना क्या है?
शाह रुख के पक्ष में दिख रही तमाम बड़ी और अंग्रेजी की फिल्म वेबसाइट्स ने सज्जाद अली के बयान को प्रमुखता से कवर किया और बेशरम रंग के बहाने एक बार फिर पठान को जिंदा कर दिया. सोशल मीडिया पर कुछ ट्रोल्स कहते भी नजर आ रहे कि पठान के ठंडे माहौल को गर्म करने के लिए अब पाकिस्तान से मदद आई है. अब यह पाकिस्तान से आई प्रमोशनल मदद है, हेडलाइन हंटिंग पीआर या फिर कुछ और- आईचौक को इस बारे में कुछ कह नहीं सकता. बावजूद अगर यह मदद भी है तो बहुत देर हो चुकी है. भारतीय समाज में बेशरम रंग को लेकर तीखी प्रतिक्रिया है. पठान का बहिष्कार किया जा रहा है. जिस तरह का विरोध है उसे देखते हुए तो कहा जा सकता है कि पठान में तमाम सुधार और तमाम मदद के बावजूद अब शाह रुख खान की फिल्म का कुछ भी नहीं हो सकता.
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