जोया अख्तर और रीमा कागती द्वारा रची गई आठ एपिसोडों की टीवी सीरीज दहाड़ का वर्ल्ड प्रीमियर बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में तक़रीबन 1200 लोगों की क्षमता वाले ज़ू प्लास्ट ऑडिटोरियम में हुआ. कह सकते हैं ऑडिटोरियम अच्छा ख़ासा भरा हुआ था. हालांकि अधिकतर व्यूअर्स इंडियंस ही थे, काफी उत्साहित नजर आ रहे थे.
इस क्राइम मिस्ट्री थ्रिलर सीरीज में सोनाक्षी सिन्हा और विजय वर्मा लीड रोल में हैं, साथ ही गुलशन देवैया भी एक महत्वपूर्ण रोल में हैं. इस सीरीज का निर्देशन रुचिका ओबेरॉय और रीमा कागती ने मिलकर किया है, क्रिएशन, जैसा शुरू में भी बताया, जोया अख्तर और रीमा कागती का है. सो सीरीज हुई ना नारी सशक्तिकरण की मिसाल ; प्रोड्यूसर महिला, डायरेक्टर महिला और लीड एक्टर भी महिला ! जैसा कहा जा रहा है सीरीज अमेज़न प्राइम वीडियो पर जल्द ही स्ट्रीम होगी, लेकिन वो क्या कहते हैं आधिकारिक पुष्टि कहीं फिलहाल तो नजर नहीं आ रही है.
राजस्थान की पृष्ठभूमि पर आधारित इस सीरीज के सिर्फ दो एपिसोड प्रीमियर में दिखाए गए. इसमें एक दलित पुलिस इंस्पेक्टर अंजलि भाटी के किरदार में सोनाक्षी सिन्हा है, अंजलि के सहयोगी पुलिस कर्मी देवीलाल सिंह के एक महत्वपूर्ण रोल में गुलशन देवैया है और शिक्षक आनंद स्वर्णकार के किरदार में विजय वर्मा ही मुख्य विलेन है.
राजस्थान के ग्रामीण इलाके में गरीब परिवारों की स्कूली लड़कियां अचानक गायब हो जा रही हैं, धारणा यही है कि लड़कियां प्रेम के चक्कर में पड़कर अपने साथी के साथ भाग जा रही हैं और उसके बाद उनका कोई अतापता भी नहीं चलता. अंजलि भाटी दबंग पुलिस इंस्पेक्टर है चूंकि बुलेट से जो चलती है. वह इन लड़कियों के गायब होने की घटनाओं की तह में जाने की ठान लेती है. धीरे धीरे तार जुड़ने भी लगते है कि...
जोया अख्तर और रीमा कागती द्वारा रची गई आठ एपिसोडों की टीवी सीरीज दहाड़ का वर्ल्ड प्रीमियर बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में तक़रीबन 1200 लोगों की क्षमता वाले ज़ू प्लास्ट ऑडिटोरियम में हुआ. कह सकते हैं ऑडिटोरियम अच्छा ख़ासा भरा हुआ था. हालांकि अधिकतर व्यूअर्स इंडियंस ही थे, काफी उत्साहित नजर आ रहे थे.
इस क्राइम मिस्ट्री थ्रिलर सीरीज में सोनाक्षी सिन्हा और विजय वर्मा लीड रोल में हैं, साथ ही गुलशन देवैया भी एक महत्वपूर्ण रोल में हैं. इस सीरीज का निर्देशन रुचिका ओबेरॉय और रीमा कागती ने मिलकर किया है, क्रिएशन, जैसा शुरू में भी बताया, जोया अख्तर और रीमा कागती का है. सो सीरीज हुई ना नारी सशक्तिकरण की मिसाल ; प्रोड्यूसर महिला, डायरेक्टर महिला और लीड एक्टर भी महिला ! जैसा कहा जा रहा है सीरीज अमेज़न प्राइम वीडियो पर जल्द ही स्ट्रीम होगी, लेकिन वो क्या कहते हैं आधिकारिक पुष्टि कहीं फिलहाल तो नजर नहीं आ रही है.
राजस्थान की पृष्ठभूमि पर आधारित इस सीरीज के सिर्फ दो एपिसोड प्रीमियर में दिखाए गए. इसमें एक दलित पुलिस इंस्पेक्टर अंजलि भाटी के किरदार में सोनाक्षी सिन्हा है, अंजलि के सहयोगी पुलिस कर्मी देवीलाल सिंह के एक महत्वपूर्ण रोल में गुलशन देवैया है और शिक्षक आनंद स्वर्णकार के किरदार में विजय वर्मा ही मुख्य विलेन है.
राजस्थान के ग्रामीण इलाके में गरीब परिवारों की स्कूली लड़कियां अचानक गायब हो जा रही हैं, धारणा यही है कि लड़कियां प्रेम के चक्कर में पड़कर अपने साथी के साथ भाग जा रही हैं और उसके बाद उनका कोई अतापता भी नहीं चलता. अंजलि भाटी दबंग पुलिस इंस्पेक्टर है चूंकि बुलेट से जो चलती है. वह इन लड़कियों के गायब होने की घटनाओं की तह में जाने की ठान लेती है. धीरे धीरे तार जुड़ने भी लगते है कि दरअसल शिक्षक आनंद स्वर्णकार ही इन लड़कियों को प्रेम जाल में फंसा कर भगा रहा होता है. वह जिन लड़कियों को निशाना बनाता है, सभी गरीब परिवारों की लड़कियां होती हैं.
फिर जैसे जैसे कहानी बढ़ती है, जाति और धर्म के नाम पर बनते समाज की स्टोरीलाइन है, पितृसत्तात्मक सोच के हावी होने की वजह से लड़कियों की शादी को लेकर परिवारों के ऊपर दवाब की भी स्टोरीलाइन है, राजस्थान में सीमापार से होने वाली तस्करी दिखाती स्टोरीलाइन भी है. हालांकि इन सभी स्टोरी लाइनों को या कहें उप कहानियों को कंट्रीब्यूट करना है क्राइम मिस्ट्री थ्रिलर के बिल्ड-अप में.
टीवी सीरीज कैसी होगी ? व्यूअर्स कितना पसंद करेंगे? हिट होगी क्या? तमाम सवालों के जवाब फिलहाल मुश्किल है; भले ही इसका प्रीमियर बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में ही हुआ हो. क्योंकि बर्लिन में वर्ल्ड प्रीमियर में जुडी भारी भीड़ इस वजह से थी कि जर्मनी में रहने वाले ज्यादातर भारतीयों को लगा कि अगर कोई सीरीज भारत से बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शन के लिए आ रही है तो उसका समर्थन करना चाहिए. फिर चूंकि दो ही एपिसोड देखने को मिले, व्यूअर्स के रुख को भांपना या समझना मुश्किल है. हाँ, चूंकि मेकर्स और एक्टर्स नामचीन हैं, आशा की जा सकती है. फिर तक़रीबन इसी सब्जेक्ट पर पिछले दिनों ही "कठपुतली" देखी थी. सो देखना दिलचस्प होगा 'दहाड़' के संदर्भ में कि वही सब्जेक्ट होते हुए कितनी डिफरेंट है.
हालांकि जैसा रिएक्शन था बर्लिन के ऑडिटोरियम में, कहा जा सकता है कि सीरीज में 'मोमेंट्स' प्रचुर हैं. हाँ , एक बात जो किसी ईमानदार फ़िल्मी दर्शक को अखरी कि पिछड़ी जाति से आई पुलिस इंस्पेक्टर को इतना ग्लैमरस कैसे दिखाया गया है, उसे हर तरह की संपन्नता के बीच क्यों दिखाया गया है ? और वह भाटी जाति की कैसे बताई गई है ? महिला पुलिसकर्मी सिर्फ संवादों से अपनी पिछड़ी जाति से होने का भान कराती है, किसी घटना से नहीं.
भाटी से ही पिछले दिनों आईआईटी मुंबई में एक सोलंकी टाइटल के छात्र द्वारा आत्महत्या करने की घटना स्मरण हो आती है. 'सोलंकी' से हुए भ्रम के टूटने पर ही उस दलित छात्र की उपेक्षा होने लगी, भेदभाव होने लगा और परिणामस्वरूप उसने अवसादग्रस्त होकर आत्महत्या कर ली. दरअसल संस्कृतिकरण के वश कई दलित और पिछड़ी जातियों द्वारा ऊँची मानी जाने वाली जातियों का इस्तेमाल होने लगा. कहने का तात्पर्य है कि 'भाटी' होना इस बात का द्योतक नहीं है कि वह कोई राजपूत है या जाट है, वह दलित भी हो सकता है.
सो अभी तो इंतजार ही है "दहाड़" की दहाड़ सुनने का. हाँ , बर्लिनाले ने उत्सुकता तो बढ़ा ही दी है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.