एक कहावत है कि किसी भी व्यक्ति के स्वभाव और उसके असली चरित्र की पहचान संकट के समय ही होती है. अच्छे समय में तो आदमी बेहतर व्यक्ति का मुखौटा लगाकर रह लेता है लेकिन जैसे ही कोई मुश्किल घडी सामने आती है, उसका मुखौटा उतर जाता है. इस कोरोना (Coronavirus) के संकट काल में हमारे सामने तमाम कहानियां आयी हैं, कुछ दर्द की, कुछ तकलीफ की और कुछ मदद तथा इंसानियत की. आश्चर्यजनक रूप से जिन लोगों के ऊपर जनता के दुःख दर्द को दूर करने की जिम्मेदारी थी, वह तो इस परिदृश्य से गायब ही हो गए. लेकिन फिल्मों के तथाकथित महानायक या अभिनेत्रियां, खेल की दुनियां के सुपरस्टार जिन्हें हम लगभग हर दूसरे तीसरे प्रचार में देखते रहे हैं, वह या तो लोगों को हाथ धोने का तरीका बताते नजर आये या लॉकडाउन (Lockdown) में घर पर रहते हुए भिन्न भिन्न प्रकार के व्यंजन बनाते हुए. इस कड़ी में कुछ अपवाद भी हैं जिनमे से अगर आज कोई सबसे ज्यादा सोशल मीडिया में छाया हुआ है तो वह निर्विवाद रूप से 'सोनू सूद' (Sonu Sood) ही हैं.
कुछ अन्य सिनेमा कलाकारों ने भी समाज के लिए योगदान किया है और उनको भी सराहना मिली है लेकिन जिस तरह से सोनू सूद गरीबों और मजलूमों के बीच मसीहा बनकर उभरे हैं, उससे औरों को सीख लेने की जरुरत है. मुझे नहीं लगता कि इस समय के पहले लोग सोनू सूद के बारे में बहुत जानते थे या उनके बारे में कोई सकारात्मक मत रखते थे, आखिर फिल्मों में विलेन बनने वाला इंसान लोगों की निगाह में भला मानस कैसे हो सकता है.
जनता तो जो परदे पर देखती है, उसी को सच मान लेती है. लेकिन सोनू सूद ने सिद्ध कर दिया है कि रील लाइफ और रियल लाइफ में फ़र्क़ होता है और असली हीरो वह होता है जो रियल लाइफ में लोगों के...
एक कहावत है कि किसी भी व्यक्ति के स्वभाव और उसके असली चरित्र की पहचान संकट के समय ही होती है. अच्छे समय में तो आदमी बेहतर व्यक्ति का मुखौटा लगाकर रह लेता है लेकिन जैसे ही कोई मुश्किल घडी सामने आती है, उसका मुखौटा उतर जाता है. इस कोरोना (Coronavirus) के संकट काल में हमारे सामने तमाम कहानियां आयी हैं, कुछ दर्द की, कुछ तकलीफ की और कुछ मदद तथा इंसानियत की. आश्चर्यजनक रूप से जिन लोगों के ऊपर जनता के दुःख दर्द को दूर करने की जिम्मेदारी थी, वह तो इस परिदृश्य से गायब ही हो गए. लेकिन फिल्मों के तथाकथित महानायक या अभिनेत्रियां, खेल की दुनियां के सुपरस्टार जिन्हें हम लगभग हर दूसरे तीसरे प्रचार में देखते रहे हैं, वह या तो लोगों को हाथ धोने का तरीका बताते नजर आये या लॉकडाउन (Lockdown) में घर पर रहते हुए भिन्न भिन्न प्रकार के व्यंजन बनाते हुए. इस कड़ी में कुछ अपवाद भी हैं जिनमे से अगर आज कोई सबसे ज्यादा सोशल मीडिया में छाया हुआ है तो वह निर्विवाद रूप से 'सोनू सूद' (Sonu Sood) ही हैं.
कुछ अन्य सिनेमा कलाकारों ने भी समाज के लिए योगदान किया है और उनको भी सराहना मिली है लेकिन जिस तरह से सोनू सूद गरीबों और मजलूमों के बीच मसीहा बनकर उभरे हैं, उससे औरों को सीख लेने की जरुरत है. मुझे नहीं लगता कि इस समय के पहले लोग सोनू सूद के बारे में बहुत जानते थे या उनके बारे में कोई सकारात्मक मत रखते थे, आखिर फिल्मों में विलेन बनने वाला इंसान लोगों की निगाह में भला मानस कैसे हो सकता है.
जनता तो जो परदे पर देखती है, उसी को सच मान लेती है. लेकिन सोनू सूद ने सिद्ध कर दिया है कि रील लाइफ और रियल लाइफ में फ़र्क़ होता है और असली हीरो वह होता है जो रियल लाइफ में लोगों के काम आये. पिछले कुछ महीने से मजदूरों का सडकों पर परिवार सहित यात्रा करना देखकर लगभग हर संवेदनशील भारतीय का मन द्रवित हुआ.
उनकी मदद के लिए भी तमाम आम आदमी और कुछ बड़े लोग भी सामने आये, लोगों को भोजन, पानी इत्यादि दिया, कपडे लत्ते, जूते चप्पल इत्यादि भी दिया लेकिन लोगों की पैदल यात्रा को सुगम बनाने के लिए कुछ ख़ास नहीं कर पाए. ऐसे में मसीहा बनकर सामने आये सोनू सूद और उन्होंने अपनी पूरी टीम को लगाकर लगातार लोगों के लिए बसें उपलब्ध कराई और यथासंभव लोगों को उनके घर पहुंचाया.
न किसी की जाती पूछी, न धर्म पूछा, बस यह पूछा कि कहां जाना है और जाने की व्यवस्था कर दी. इसी वजह से सोनू को लेकर तमाम मीम्स भी बने, किसी में उनको सुपर हीरो तो किसी में अन्य हीरो बताया गया. सबसे अच्छी बात यह थी कि उन्होंने जाते हुए मजदूरों से यह भी पूछा कि तुम वापस तो आओगे ना और लोगों ने आस्वस्त भी किया.
अभी भी समय है कि बॉलीवुड, खेल और राजनीति से जुड़े अन्य लोगों को कुछ समझ आये और जिन्होंने आजतक कुछ नहीं किया है, वह इन गरीबों और मजलूमों के लिए कुछ करे. छोटी से छोटी मदद भी इस वक़्त पर बहुत बड़ी लगती है और यह इन भुक्तभोगियों से बेहतर कौन समझता है.
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