कल जब इतिहास लिखा जाएगा और उसमें कोविड की इस दूसरी वेव का जिक्र होगा तो जो चीज भविष्य में लोगों को अचरज में डालेगी वो ये कि एक दौर वो भी था, जब लोगों को ज़िंदा रहने के लिए मूलभूत चिकित्सीय सुविधाएं तो छोड़िए ऑक्सीजन भी नहीं मिली. वाक़ई कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक ऐसे समय में जब हम विकास और न्यू इंडिया की बातें कर रहे हों वो तमाममरीज जो कोविड की चपेट में आए उन्हें ऑक्सीजन तक नहीं मिल पाई. चाहे वो उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ हो या फिर देश की राजधानी दिल्ली, पटना, पुणे, बैंगलोर कानपुर प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र वाराणसी, प्रयागराज हर जगह हालात कमोबेश एक जैसे थे. अस्पतालों में मरीज मर रहे थे. क्या सरकारी क्या प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ बेबस और लाचार खड़ा था. सब बस इसी फ़िराक़ में थे कि कैसे भी करके उन्हें ऑक्सीजन मिल जाए ताकि वो सांसें जो बंद हो रही हैं उन्हें कुछ पल की मोहलत मिल जाए. कह सकते हैं कि ऑक्सीजन के सिलेंडरों ने भारतीय चिकित्सा व्यवस्था और तमाम बड़े बड़े सरकारी दावों की कलई खोल कर रख दी है. आज भले ही कुछ हद तक स्थिति संभल चुकी हो लेकिन जो डरावनी तस्वीर हम देख चुके वो आज भी दहलाती है.
देश के लोगों को ऑक्सीजन मिल पाए प्रयास जोरों पर है. सरकार इसी कोशिश में हैं कि ऐसा कुछ बंदोबस्त हो जाए कि अब कभी लोग मेडिकल ऑक्सीजन की कमी से न मरें. ऐसा नहीं है कि इस दिशा में सिर्फ सरकार ही प्रयास कर रही है सेलिब्रिटी भी इस मुहीम में सरकार के साथ हैं. जिक्र ऑक्सीजन के मद्देनजर मदद उपलब्ध कराने वाले सेलिब्रिटीज का हुआ है तो हम बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद और उर्वशी रौतेला जैसे लोगों का जिक्र जरूर करेंगे जिन्होंने अपने प्रयासों से उम्मीद का एक दिया...
कल जब इतिहास लिखा जाएगा और उसमें कोविड की इस दूसरी वेव का जिक्र होगा तो जो चीज भविष्य में लोगों को अचरज में डालेगी वो ये कि एक दौर वो भी था, जब लोगों को ज़िंदा रहने के लिए मूलभूत चिकित्सीय सुविधाएं तो छोड़िए ऑक्सीजन भी नहीं मिली. वाक़ई कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक ऐसे समय में जब हम विकास और न्यू इंडिया की बातें कर रहे हों वो तमाममरीज जो कोविड की चपेट में आए उन्हें ऑक्सीजन तक नहीं मिल पाई. चाहे वो उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ हो या फिर देश की राजधानी दिल्ली, पटना, पुणे, बैंगलोर कानपुर प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र वाराणसी, प्रयागराज हर जगह हालात कमोबेश एक जैसे थे. अस्पतालों में मरीज मर रहे थे. क्या सरकारी क्या प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ बेबस और लाचार खड़ा था. सब बस इसी फ़िराक़ में थे कि कैसे भी करके उन्हें ऑक्सीजन मिल जाए ताकि वो सांसें जो बंद हो रही हैं उन्हें कुछ पल की मोहलत मिल जाए. कह सकते हैं कि ऑक्सीजन के सिलेंडरों ने भारतीय चिकित्सा व्यवस्था और तमाम बड़े बड़े सरकारी दावों की कलई खोल कर रख दी है. आज भले ही कुछ हद तक स्थिति संभल चुकी हो लेकिन जो डरावनी तस्वीर हम देख चुके वो आज भी दहलाती है.
देश के लोगों को ऑक्सीजन मिल पाए प्रयास जोरों पर है. सरकार इसी कोशिश में हैं कि ऐसा कुछ बंदोबस्त हो जाए कि अब कभी लोग मेडिकल ऑक्सीजन की कमी से न मरें. ऐसा नहीं है कि इस दिशा में सिर्फ सरकार ही प्रयास कर रही है सेलिब्रिटी भी इस मुहीम में सरकार के साथ हैं. जिक्र ऑक्सीजन के मद्देनजर मदद उपलब्ध कराने वाले सेलिब्रिटीज का हुआ है तो हम बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद और उर्वशी रौतेला जैसे लोगों का जिक्र जरूर करेंगे जिन्होंने अपने प्रयासों से उम्मीद का एक दिया रौशन किया है और दुनिया को बताया है कि अच्छाई के साथ साथ अच्छे लोग अभी भी जिंदा हैं.
ध्यान रहे सोनू सूद का शुमार उन लोगों में है जो इस पूरे कोरोना काल में देश के आम लोगों के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं. चाहे अपनी संपत्ति गिरवी रखकर परेशान हाल प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचाना रहा हो या फिर लॉक डाउन के शिकार गरीब लोगों को राशन बांटना. लोगों की नौकरी लगवाने से लेकर ब्लड, प्लाज्मा तक की व्यवस्था करने वाले बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद ने हमें स्पष्ट संदेश दिया है कि जहां चाह है वहीं राह है.
इसके बाद अगर हम बात बला की खूबसूरत उर्वशी रौतेला की करें तो उन्होंने अपनी तरफ से परेशान हालों और कोविड मरीजों की भरपूर मदद की है और बताया है कि उनके पास न केवल सुंदर चेहरा है बल्कि एक सुंदर दिल और मानवता भी उनके अंदर मौजूद है.
अपने अथक प्रयासों की बदौलत मानवता की लिस्ट में पहला नाम सोनू सूद का है तो बताना जरूरी है कि सोनू सूद ने एक वीडियो शेयर कर कहा है कि वह देशभर में 16 ऑक्सीजन प्लांट लगवाने जा रहे हैं. इसकी शुरुआत वो अगले कुछ दिनों में आंध्र प्रदेश के नेल्लोर कर्नाटक जैसे राज्यों से कर रहे हैं धीरे धीरे यह प्लांट तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व उत्तराखंड जैसे राज्यों में भी शुरू हो सकेगा.
कहा जा सकता है कि सोनू का ये प्रयास उन अस्पतालों के लिए प्रेरणा है जिन्होंने ऑक्सीजन की कमी जा रोना रोया और जो तमाम निर्दोष लोगों की मौत का कारण बने. सोनू की इस घोषणा के बाद हम अस्पतालों को ये ज़रूर बताना चाहेंगे कि ऑक्सीजन प्लांट लगवाना कोई हव्वा नहीं है. ये एक आसान प्रक्रिया है जिसमें कोई बहुत ज्यादा पैसा नहीं खर्च होता है.
वो तमाम अस्पताल जो आज भी ऑक्सीजन की कमी की आड़ लेकर अपने यहां आने वाले मरीजों को वापस लौटा दे रहे हैं उन्हें सोनू सूद से सीख लेते हुए अपने यहां ऑक्सीजन प्लांट लगाने की जद्दोजहद शुरू कर देनी चाहिए. अगर आज सोनू का वीडियो इन्हें नहीं प्रेरित कर पाया तो भविष्य में कोई दूसरी चीज इन्हें प्रेरणा दे कम है.
ये तो बात हो गयी सोनू सूद की अब अगर हम बात एक्टर उर्वशी रौतेला की करें तो एक ऐसे समय में जब कोविड की दूसरी वेव अभी खत्म नहीं हुई है जो उन्होंने कर दिया वो कोई छोटी मोटी चीज नहीं है. बॉलीवुड एक्टर उर्वशी रौतेला ने अपने फाउंडेशन के जरिये उत्तराखंड के कोविड मरीजों के लिए ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर डोनेट किया है.
ये कोई पहली बार नहीं है जब उर्वशी रौतेला ने इस तरह का कोई काम किया है इससे पहले भी उर्वशी ने दिहाड़ी मजदूरों को राशन बांटकर उनकी मदद की थी. ज्ञात हो कि उर्वशी ने अब तक कुल 47 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर दान किए हैं, जिनकी कीमत 2 करोड़ 35 लाख रुपए के आस पास है.
उर्वशी अपने स्तर पर किस तरह लोगों की मदद कर रही है इसे उस घटना से भी समझा जा सकता है जब अभी बीते दिनों मुंबई में तूफान आया था. उर्वशी ने ताउते तूफान की चपेट में आए गरीब लोगों को भोजन उपलब्ध करवाया था.
बहरहाल चाहे वो एक्टर सोनू सूद का देश के अलग अलग हिस्सों में ऑक्सीजन प्लांट लगवाने की पहल करना हो या फिर ऑक्सीजन न मिलने से तड़पते और मरते मरीजों को उर्वशी का ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर डोनेट करना हो.
हमारे नेता जो इस आपदा की घड़ी में हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं उन्हें इन सितारों से सबक लेना चाहिए. ये लोग वो काम कर रहे हैं कि आने वाले वक़्त में जब कभी इतिहास लिखा जाएगा उसमें इन सितारों का नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज होगा.
ये भी पढ़ें -
Loki Web Series Review: गॉड ऑफ मिसचीफ 'लोकी' के जरिए बसाई गई एक अनोखी दुनिया!
Vidya Balan: हीरोइन का ग्लैमर फायदेमंद है, तो पावरफुल एक्टिंंग करना नुकसानदायक तो नहीं?
Twitter को ब्लॉक कर नाइजीरिया सरकार आई Koo पर, क्या है इसके मायने
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.