सूर्यवंशी फिल्म (Sooryavanshi movie) में एक-एक सीन ऐसे हैं जो आपके मन में एक टीश पैदा करने के लिए काफी हैं कि आखिर ऐसा क्यों है? एक बेचैनी जैसे मानो सालों पुराना दर्द एक बार फिर उठ गया हो. इस फिल्म को देखकर लगता है कि बॉलीवुड के डायरेक्टर रोमांस, एक्शन, मसाला से हटकर कुछ नया करने की सोच रह हैं, रोहित शेट्टी (Rohit Shetty) ने वाकई छोटे-छोटे दृश्य की बारीकियों से जान डाल दी है.
1- फिल्म की शुरुआत में ही सूर्या (अक्षय कुमार) के बूढ़े माता-पिता को दिखाया गया है कि कैसे वे मार्केट से घर आने की तैयारी कर रहे होते हैं, क्योंकि उनका बेटा कई महीनों बाद घर आने वाला होता है...आस-पास भीड़ है. लोग बेफिक्र होकर अपने काम कर रहे हैं, बच्चे अपने माता-पिता का हाथ पकड़कर जा रहे हैं. तभी ब्लास्ट होता है और सब राख बन जाता है. यह सीन हमें अंदर से झकझोर देता है. तभी एक डायलॉग आता है कि "आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा कर देती है" इसके बाद जो 1993, 26/11 आदि बम ब्लास्ट के असली फोटो सीन में दिखते हैं जो ज़ख़्म पर नमक छिड़कने का काम करते हैं.
2- कट्टरपंथी खलनायक उमर यानी जैकी श्रॉफ को यह खबर मिलती है कि इंडियन आर्मी ने उसके बेटे को मार दिया है तब वह बदला लेने की बात करता है. उसकी बूह रोती है और उसका छोटा बेटा अपने चाचा से लिपट जात है. इस पर...
सूर्यवंशी फिल्म (Sooryavanshi movie) में एक-एक सीन ऐसे हैं जो आपके मन में एक टीश पैदा करने के लिए काफी हैं कि आखिर ऐसा क्यों है? एक बेचैनी जैसे मानो सालों पुराना दर्द एक बार फिर उठ गया हो. इस फिल्म को देखकर लगता है कि बॉलीवुड के डायरेक्टर रोमांस, एक्शन, मसाला से हटकर कुछ नया करने की सोच रह हैं, रोहित शेट्टी (Rohit Shetty) ने वाकई छोटे-छोटे दृश्य की बारीकियों से जान डाल दी है.
1- फिल्म की शुरुआत में ही सूर्या (अक्षय कुमार) के बूढ़े माता-पिता को दिखाया गया है कि कैसे वे मार्केट से घर आने की तैयारी कर रहे होते हैं, क्योंकि उनका बेटा कई महीनों बाद घर आने वाला होता है...आस-पास भीड़ है. लोग बेफिक्र होकर अपने काम कर रहे हैं, बच्चे अपने माता-पिता का हाथ पकड़कर जा रहे हैं. तभी ब्लास्ट होता है और सब राख बन जाता है. यह सीन हमें अंदर से झकझोर देता है. तभी एक डायलॉग आता है कि "आंख के बदले आंख पूरी दुनिया को अंधा कर देती है" इसके बाद जो 1993, 26/11 आदि बम ब्लास्ट के असली फोटो सीन में दिखते हैं जो ज़ख़्म पर नमक छिड़कने का काम करते हैं.
2- कट्टरपंथी खलनायक उमर यानी जैकी श्रॉफ को यह खबर मिलती है कि इंडियन आर्मी ने उसके बेटे को मार दिया है तब वह बदला लेने की बात करता है. उसकी बूह रोती है और उसका छोटा बेटा अपने चाचा से लिपट जात है. इस पर उमर की पत्नी कहती है कि "यह सब करके तुम क्या हासिल करोगे?" इसी तरह का सीन बाद में दिखाया गया है जब एक-एक उमर अपने बेटों को भारत में बदला लेने के लिए भेजता है. उमर की पत्नी उससे दोबोरा कहती है कि कसम खाओ की मेरे बेटों को कुछ नहीं होगा, उस वक्त तो वह चला जाता है लेकिन अगले सीन में ही अपनी तीनों बहुओं और पत्नी से कहता है कि मैं आपसब को झूठी तसल्ली नहीं देने वाला, शाम तक उनके मौत की खबर आ जाएगी. इसके बाद तीनों महिलाएं चीखने लगती हैं. यह दृश्य संदेश देत है कि बुराई का क्या अंत होता है.
3- फिल्म में दिखाया गया है कि एक पुलिस वाले अब्बास (अमृत सिंह) का हाल ही में सूर्या की टीम में ट्रांसफर किया गया है. जिसके पिता नईम खान (राजेंद्र गुप्ता) ने तीन दशक तक एटीएस में ईमानदारी से सेवा दी थी. सूर्या धार्मिक नेता उस्मानी यानी गुलशन ग्रोवर से पूछताछ करता है क्योंकि उस पर उत्तेजक भाषण देने और किशोरों का ब्रेनवॉश करने का आरोप है. उस्मानी सूर्या को धमकी देता है कि तुम मुझे आसानी से गिरफ्तार नहीं कर सकोगे. इस देश में मुसलमानों का क्या हाल है मैं जानता हूं. उस वक्त ईमानदार पिता और वर्तमान पुत्र की जोड़ी कमरे में मौजूद है. तभी सूर्या उनकी तरफ इशारा करते हुए कहता है कि ये हैं देश के असली मुसलमान हैं. उस्मानी फिर जहर उगलता है तो रिटायर हो चुके पुलिस इंस्पेक्टर उसकी हेकड़ी उतारते हुए कहते हैं कि उस्मानी तू तो चोरी करता था, भूल गया मैंने ही तुझे गिरफ्तार किया था. तू कबसे धर्म का ठिकेदार बन गया है. यह दृश्य बताता है कि अपराधी का जाति-धर्म से कोई मतलब नहीं होता.
4- फिल्म के एक सीन में दिखाया गया है कि सूर्या एक तरफ उस्मानी को गिरफ्तार करने के लिए जाता है दूसरी तरफ बाहर भीड़ जमा हो जाती है. वहां के आम लोग उस्मानी का असली चेहरा नहीं जानते और उसका बहुत ज्यादा सम्मान करते हैं. वे नहीं चाहते कि उस्मानी को पुलिस ले जाए. कुछ लोग पुलिस के बारे में उल्टी बातें भी करते हैं कि ये तो पुलिस वालों का तो रोज का है. उस्मानी भी सूर्या से कहता है कि तुमने बाहर 500 लोगों को नहीं देखा क्या? इसके बाद सूर्या बाहर आकर मौलवी को उस्मानी की सच्चाई बताता है कि कैसे इसने बच्चों का गुमराह किया और बम ब्लास्ट करके मासूम लोगों की जान ली. मुस्लिम धर्म गुरु सूर्या की बात सुनते हैं और कहते हैं इसे ले जाओ. सूर्या भीड़ से गुजरते हुए अपराधी उस्मानी को ले जाता है. जहां सभी मुस्लि लोग सूर्या का सहयोग करते हैं, क्योंकि वह एक अपराधी है और अपराध का कोई मजहब नहीं होता.
5- बिलाल (कुमुद मिश्रा) जिसके घर में मुंबई दंगों के दौरान आग लगा दी गई थी. वह ब्लास्ट करके अपने साथ हुए अत्याचार का बदला लेता है और फिर उमर के पास जाकर छिप जाता है. वह जब दोबोरा मुंबई आता पुलिस जब उसे पकड़ लेती है तो वह उनसे यह विनती करता है कि उसे उसकी मां की कब्र के पास दफनाया जाए. सूर्या कहता है कि उसकी मां की मौत पर भीड़ इसलिए थी क्योंकि उन्होंने बिलाल का साथ नहीं दिया. उसके साथ नहीं गई. उन्होंने अपने देश से प्रेम किया. खैर, बिलाल खुद को गोली मार लेता है लेकिन फिर भी पुलिस वाले उसके अनुरोध का सम्मान करते हैं.
6- पुलिस वाले परिवार को चुने या काम को... यह दृश्य तो पहले भी कई बार फिल्माया जा चुका है, लेकिन परिवार के महत्व को भी डायरेक्टर ने अच्छी तरह समझाया है. पुलिस सिपाही तांबे की मौत के बाद उसकी पत्नी रिया (कैटरीना कैफ) को समझाती है कि परिवार ही जीवन का आधार है, इसलिए वह अपने पति सूर्या को छोड़कर ना जाए और अपने परिवार के साथ रहे. उसकी दुनियां खुद उजड़ गई है लकिन वह रिया को समझा रही है. जबकि वह पहले की सूर्या से कह चुकी है कि मैं सिर्फ आपकी वजह से इनको पुलिस की नौकरी करने देती हूं क्योंकि मुझे पता है कि आप साथ हैं तो उन्हें कुछ नहीं होगा. संयोग से जब तांबे की मौत होती है तो रिया की वजह से सूर्या उसके साथ नहीं होता.
7- इस सीन सबसे ज्यादा भावुक और रूलाने वाला है. इस सीन पर सबसे अधिक सीटी और ताली भी बजी हैं. असल में आतंकवादियों ने मुंबई में ब्लास्ट करने के लिए कारों में लाइव बम लगा दिया है जो पांच मिनट में ब्लास्ट होने वाले हैं. सूर्या को यह महसूस होता है कि बम स्क्वायड शहर के इन सभी स्थानों तक नहीं पहुंच पाएंगे इसलिए वह राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) से तुरंत हेलीकॉप्टर तैनात करने को कहता है. राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड बम लगी गाड़ियों को हेलीकॉप्टर का सहायता से उठाते हैं और समुद्र में ले जाकर फेंकते हैं, लेकिन एक गाड़ी चौक पर भीड़ में खड़ी है जिसे ले जा पाना संभव नहीं हो पाता.
एटीएस इंस्पेक्टर अब्बास अपने पिता नईम खान की मदद से इलाके को खाली कर देता है. सूर्या खुद उस गाड़ी को दूर ले जाता है. इस सीन के साथ ही ‘छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी नए दौर में लिखेंगे हम मिलकर नई कहानी'...बैकग्राउंड में चलने लगाता है जो रोंगटे खड़े करने वाला है.
असल में इन सबके बीच एक दृश्य दिखता है कि इस चौक पर एक तरफ मस्जिद और एक मंदिर लगभग एक दूसरे के बगल में स्थित हैं. जब मंदिर के पुजारी को पता चलता है कि बम होने की आशंका है, तो वे भगवान गणेश जी की मूर्ति को उठाना शुरु कर देते हैं ताकि इसे सुरक्षित स्थान पर रखा जा सके. तभी मस्जिद से बाहर आते हुए लोगों को दिखता है कि पुजारी अकेले मूर्ति नहीं उठा पाएंगे तो वे उनकी मदद करने के लिए आगे आते हैं वे मंदिर के बाहर अपने चप्पल उतारते हैं और गणेश जी की मूर्ति को उठाने में मदद करते हैं.
थोड़ी देर में कुछ लोग ठेला लाते हैं और हिंदू-मुस्लिम मिलकर मूर्ति को सुरक्षित स्थान पर ले जाते हैं. यह गाना और यह दृश्य एक साथ इतनी खूबसूरती से फिल्माया गया है कि आप इसे देखने के बाद थोड़ी देर के लिए चुप हो जाएंगे. फिल्म में एक्शन है, तीन बड़े एक्टर्स की एंट्री है, कैटरीन कैफ भी हैं, रोमांस है लेकिन इस एक दृश्य पर बाकी सब फीका पड़ जाता है. आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब आप एक बच्चे की तरह रोने लगेंगे. देशप्रेम हमारी नसों में दौड़ रहा है, यह हमारे लिए सबसे बढ़कर है. इस दृश्य को देखकर आप सबकुछ भूलकर सिर्फ इस एहसास को ही जीते हैं.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.