इस दुनिया में न जाने कितने लोग हैं जो हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं. कितने चेहरे हैं जो हमारे ही भीतर कहीं हैं और हमें पता ही नहीं चलता! कितनी मधुर आवाज़ें हैं जो कई महत्वपूर्ण पड़ावों पर उंगली थामे साथ चलती हैं और हम पलटकर उन्हें शुक्रिया कहना भूल जाते हैं. आज एक ऐसा ही उदास दिन फिर आया है. अचानक ही ख़बर मिलती है कि एसपी बालासुब्रह्मण्यम (SP Balasubrahmanyam) नहीं रहे!. दिल कहता है अरे, ऐसा कैसे हो सकता है? ख़बर को कन्फर्म किया जाता है और स्मृतियों की रेलगाड़ी धीमे-धीमे हर स्टेशन से गुज़रने लगती है. बॉलीवुड में हर तरह की फ़िल्म बनती है. सबके अपने दर्शक होते हैं. लीक से हटकर बनी हुई फ़िल्मों के साथ-साथ रोमांटिक, लव स्टोरीज़ भी मुझे बेहद पसंद हैं.
दुखांत वाली फ़िल्में देखने से बचती रही हूं. आप थिएटर से उदास, निराश और आंखों में पानी भरे निकलो, यह बात मैं उस छोटी उम्र में स्वीकार ही नहीं कर पाती थी. अभी भी मुझे लगता है कि लोग प्यार से नफ़रत कर कैसे लेते हैं? जबकि नफ़रतों को खाद- पानी बेहिचक देते रहते हैं. 'एक दूजे के लिए' मैंने देखी भले ही न, लेकिन इसके गीतों ने बहुत असर किया था. रफ़ी, किशोर की दीवानी, किसी बेहद छोटी लड़की के मन में एक नई आवाज़ घुलती जा रही थी. आख़िर ये कौन है जो सबसे अलग है? लगा जैसे कमल हासन ख़ुद ही गा रहे हों. एक अपनापन महसूस हुआ इस आवाज़ में. अभी बात यहीं तक ही थी कि 'मैंने प्यार किया' पर्दे पर आई. किशोरवय में इस फ़िल्म को देख लेना किसी अल्हड़ मन में हज़ार सपनों के बीज रोप देने जैसा था.
फ़िल्म का डायलॉग 'दोस्ती में नो सॉरी, नो थैंक्स' जहां तमाम अरमानों को पंख देने की तैयारी में जुट चुका था, तो वहीं इसके सारे ही गीत दिल...
इस दुनिया में न जाने कितने लोग हैं जो हमारे जीवन पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं. कितने चेहरे हैं जो हमारे ही भीतर कहीं हैं और हमें पता ही नहीं चलता! कितनी मधुर आवाज़ें हैं जो कई महत्वपूर्ण पड़ावों पर उंगली थामे साथ चलती हैं और हम पलटकर उन्हें शुक्रिया कहना भूल जाते हैं. आज एक ऐसा ही उदास दिन फिर आया है. अचानक ही ख़बर मिलती है कि एसपी बालासुब्रह्मण्यम (SP Balasubrahmanyam) नहीं रहे!. दिल कहता है अरे, ऐसा कैसे हो सकता है? ख़बर को कन्फर्म किया जाता है और स्मृतियों की रेलगाड़ी धीमे-धीमे हर स्टेशन से गुज़रने लगती है. बॉलीवुड में हर तरह की फ़िल्म बनती है. सबके अपने दर्शक होते हैं. लीक से हटकर बनी हुई फ़िल्मों के साथ-साथ रोमांटिक, लव स्टोरीज़ भी मुझे बेहद पसंद हैं.
दुखांत वाली फ़िल्में देखने से बचती रही हूं. आप थिएटर से उदास, निराश और आंखों में पानी भरे निकलो, यह बात मैं उस छोटी उम्र में स्वीकार ही नहीं कर पाती थी. अभी भी मुझे लगता है कि लोग प्यार से नफ़रत कर कैसे लेते हैं? जबकि नफ़रतों को खाद- पानी बेहिचक देते रहते हैं. 'एक दूजे के लिए' मैंने देखी भले ही न, लेकिन इसके गीतों ने बहुत असर किया था. रफ़ी, किशोर की दीवानी, किसी बेहद छोटी लड़की के मन में एक नई आवाज़ घुलती जा रही थी. आख़िर ये कौन है जो सबसे अलग है? लगा जैसे कमल हासन ख़ुद ही गा रहे हों. एक अपनापन महसूस हुआ इस आवाज़ में. अभी बात यहीं तक ही थी कि 'मैंने प्यार किया' पर्दे पर आई. किशोरवय में इस फ़िल्म को देख लेना किसी अल्हड़ मन में हज़ार सपनों के बीज रोप देने जैसा था.
फ़िल्म का डायलॉग 'दोस्ती में नो सॉरी, नो थैंक्स' जहां तमाम अरमानों को पंख देने की तैयारी में जुट चुका था, तो वहीं इसके सारे ही गीत दिल की वादियों में इतने गहरे उतरने लगे थे कि आज पूरे 30 बरस बाद भी ये अब तक वहीं जमे बैठे हैं. जैसे सूरज से उसकी रौशनी जुदा नहीं होती. जैसे चांद को उसकी चांदनी से बेपनाह मोहब्बत है.
जैसे ओस के पत्ते पर सुबह-सुबह कोई बूंद इठलाती फिरती है. वैसे ही मैं भी इन्हें सुनती और मुस्कुराती घूमती. एसपी जब गाते, 'मेरे रंग में रंगने वाली परी हो या हो परियों की रानी', मुझे लगता कि एक दिन कोई मेरे लिए भी ये गीत गाएगा. मैं उस वक़्त इतराते हुए अपने आप से ही 'यही सच है, शायद मैंने प्यार किया' कह हंस जाती.
'आजा शाम होने आई' में वो 'कम सून, यार! कहते, तो जी करता कि क़ाश कभी जब मेरा महबूब हो तो मुझे इसी अंदाज़ से पुकारे और मैं दौड़कर उसकी बाहों में सिमट जाऊं. मैं इस आवाज़ के सारे रंगों से मन का कैनवास इंद्रधनुष कर लेती. मुझ सी सपनों वाली लड़की, इसी सब में तो जी लिया करती है.
एस पी बालासुब्रह्मण्यम ने भले ही हर अंदाज़ के नगमे गाये हों लेकिन मैंने उनसे मोहब्बत सीखी है. फिर चाहे वो सलमान और भाग्यश्री के रूप में ही क्यों न उतरी हो. हां, मुझे यह भी लगने लगा था कि वे कमल हासन की ही नहीं, सलमान की आवाज़ भी हैं, यूं भी 'प्रेम' का हर सुर, सीधा दिल में ही उतरता है. तभी तो 'हम आपके हैं कौन' का 'पहला-पहला प्यार है' युवाओं के मुलायम हृदय पर ताजा मक्खन की तरह जा लिपटा.
उस पर 'दीदी तेरा देवर दीवाना' में थोड़ी शैतानियां भी सिखाई उन्होंने.'साथिया ये तूने क्या किया?', 'तुमसे मिलने की तमन्ना है', 'साजन' में 'बहुत प्यार करते हैं तुमको सनम', 'जिएं तो जिएं कैसे बिन आपके', 'देखा है पहली बार', रोज़ा का 'ये हसीं वादियां', मैंने प्यार किया, हम आपके हैं कौन, एक दूजे के लिए के सारे गीत और दसियों हज़ारों याद आते ही चले जाएंगे.
हम बार-बार कहेंगे, 'हां, ये भी मुझे बहुत पसंद है'. पहले जहां इस बात को बोलने में एक ख़ुशी थी, अब कहते हुए गहरी उदासी भर जाती है. सितम्बर के सितम भी बीते माह से कम न रहे.यह कहना दुखद है कि मृत्यु में ही वो शक्ति है जो भीतर दबी हुई यादों को भी एक झटके में बाहर खींच लाती है. इस बार भी उसने यही किया. हां, ये गलत है पर न जाने क्यों ऐसा बार-बार होता है कि किसी के गुज़र जाने के बाद ही हम उसे बहुत याद करते हैं.
जीवित व्यक्ति के लिए हम यह मानकर चलते हैं कि उसे कभी कुछ होगा ही नहीं! हमारे अपने हमेशा हमारे साथ रहने वाले हैं.हम भूल रहे हैं दोस्तों कि अब हमारे बीच 'कोरोना' नाम का विकराल दैत्य भी है. हमारे कितने अपने हम खोते जा रहे हैं. लाखों को निगलने के बाद भी इसकी भूख मिटती ही नहीं.
निवेदन करूंगी कि कृपया मास्क पहनकर स्वयं को बचाइए और उन अपनों को भी, जिनके बिना आप जी नहीं सकते और न वे आपके बिना. आवाज़ के जादूगर, क्या कहूं! जो रंग आपने भरे हैं वो रहेंगे सदा. बेहिसाब नगमों के लिए आपका दिली शुक्रिया. आप जहां भी हों, हम सबकी बेशुमार मोहब्बत आप तक पहुंचे.
हां, एसपी के लिए इतना जरूर कहूंगी कि 'साथिया ये तूने क्या किया!'
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