रोमांस, ड्रामा, एक्शन और ह्यूमर आदि मनोरंजक फिल्मों का अनिवार्य हिस्सा रहे हैं. लगभग सभी फिल्म उद्योगों में ज्यादातर फ़िल्में इन्हीं विषयों पर बनाई जाती हैं. हाल ही में तीन फ़िल्में आईं जो तीन अलग-अलग भाषा और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं. इनमें नवम्बर महीने में आई बंटी और बबली 2 है जो बॉलीवुड से थी. इसके बाद दिसंबर में सबसे पहले स्पाइडर मैन: नो वे होम और उसके ठीक बाद मूलत: तेलुगु में बनी पुष्पा: द राइज जिसे हिंदी समेत अन्य भारतीय भाषाओं में भी डब करके रिलीज किया गया. बंटी और बबली 2 महा फ्लॉप थी.
असल में बंटी और बबली 2 कॉमेडी ड्रामा है जिसमें ठगी के किस्से को दिखाया गया है. इससे पहले आई फिल्म में भी दो युवा जोड़े दिखे थे. ये शहर से बड़े सपने लेकर निकले थे. उन्होंने ठगी के जरिए हैरान करने वाले कारनामे किए और लोगों को उल्लू बनाकर गलत तरीके से पैसे बनाए. दूसरे पार्ट में दिखाया गया है कि पुराने ठग गलत रास्ते को छोड़कर आम जिंदगी गुजर बसर कर रहे हैं. उनका एक बेटा भी है. हालांकि उन्हीं के नाम का इस्तेमाल कर दो नए युवा जोड़े ठगी में बदनाम हो रहे हैं मगर पुलिस की पकड़ से बाहर हैं. पुलिस उन तक पहुंचने के लिए पुराने जोड़े की मदद लेती है. पुलिस पुरानी जोड़ी के जरिए नए बंटी और बबली तक कैसे पहुंचती है, नया जोड़ा ठगी का गोरखधंधा कैसे करता है इसी को दिखाया गया है.
सैफ अली खान, रानी मुखर्जी, सिद्धांत चतुर्वेदी, सरवरी वाघ और पंकज त्रिपाठी अहम भूमिकाओं में हैं. हालांकि पहला पार्ट जितनी बड़ी हिट थी दूसरा उतनी ही बड़ी फ्लॉप साबित हुई है. लेकिन यह माना जा रहा है कि फिल्म के फ्लॉप होने में उसके कंटेट से कहीं ज्यादा दूसरी चीजें अहम रहीं. तमाम इंटरनेट प्लेटफॉर्म्स पर दर्शकों की समीक्षाओं में फिल्म बहुत खराब नजर नहीं आती. कई को पहले पार्ट की तुलना में फिल्म भले खराब लगी हो लेकिन तमाम ऐसे भी हैं जिन्हें खूब मनोरंजक लगी. पंकज, रानी समेत तमाम कलाकारों के काम की भी तारीफ़ हुई.
बंटी और बबली 2
बंटी और बबली 2 के फ्लॉप होने की वजह क्या है?
दरअसल फिल्म जिस तरह से फ्लॉप हुई उसकी बड़ी वजह फिल्म का प्रमोशन, सिनेमाघरों में ठीक से प्रीमियर हो पाना भी नहीं रहा. फिल्म को पहले हफ्ते में 13 करोड़ कमाने में हाफ गई. लगता है जैसे फिल्म को बिना किसी तैयारी के आनन फानन में रिलीज कर दिया गया. बंटी और बबली से पहले आई अक्षय कुमार की सूर्यवंशी सिनेमाघरों में हाउसफुल चल रही थी. सूर्यवंशी का वर्ड ऑफ़ माउथ बहुत बढ़िया बन गया था और हर कोई उसे देखने के लिए निकल रहा था. यशराज के बैनर की फिल्म होने के बावजूद बंटी और बबली 2 को सिनेमाघरों में महज 1600 स्क्रीन मिले थे. कैम्पेन बहुत सुस्त था. यह बड़ी वजह है कि पहला पार्ट हिट होने के बावजूद दूसरे पार्ट का बज नहीं बन पाया. उधर, बंटी और बबली 2 के साथ ही कार्तिक आर्यन की धमाका भी नेटफ्लिक्स पर आ गई थी. फिल्म को मिली सफलता से साफ़ है कि धमाका ने भी सूर्यवंशी से अलग फिल्म देखने वालों के लिए एक बढ़िया विकल्प दे दिया.
बंटी और बबली 2 के नाकामी के पीछे दो और चीजें भी दिखती है. एक- बंटी और बबली 2 में ड्रामा खूब था. जबकि उसके सामने सूर्यवंशी और धमाका के रूप में मास एंटरटेनर और थ्रिलर फ़िल्में थीं. अब हिंदी सिनेमा जिस फेज में हैं वहां औसत ड्रामा के लिए स्पेस ही नहीं बचा है. ऐसी फ़िल्में दस साल पहले क्लिक हो सकती थीं पर अब ज्यादा मजबूत ड्रामा की गुंजाइश बन चुकी है. दूसरा- बंटी और बबली 2 का कुछ हो भी पाता ठीक से कि अगले ही हफ्ते सत्यमेव जयते 2 और अंतिम: द फाइनल ट्रुथ के रूप में दो और नई फ़िल्में सिनेमाघरों में आई गई.
स्पाइडरमैन
जहां तक बात स्पाइडर मैन नो वे होम की है- इस फिल्म के लिए अगर कहें की नाम ही काफी है तो गलत नहीं होगा. यह सुपरहीरोज की कहानी है जिसे मार्वल स्टूडियोज ने बनाया है. कायदे से देखें तो भारत में हॉलीवुड फिल्मों की लोकप्रियता साई फाई और सुपरहीरोज फिल्मों की वजह से है. देश का व्यापक महानगरीय दर्शक खासकर युवा, मार्वल की फिल्मों का इंतज़ार करता है. अब तक के इतिहास में मार्वल की इससे पाहले आई फिल्मों का कारोबार भी इसे पुष्ट करता है. स्पाइडरमैन ने भारत में 200 करोड़ से ज्यादा कमाए.
भारत में स्पाइडरमैन जैसी फ़िल्में सफल क्यों होती हैं?
स्पाइडरमैन की भारत में सफलता के पीछे ना सिर्फ ब्रांड बल्कि कई और चीजें असरदार रहीं. फिल्म की कहानी बहुत चुस्त है जिसमें एक हीरो दुनिया को बचाने के लिए संघर्ष करते दिखता है. फिल्म की मेकिंग भी यूनिक है. फिल्म में कई हैरान करने वाले स्टंट और एक्शन सीक्वेंस दिखाई देते हैं जो हॉलीवुड की खूबी है. स्पाइडरमैन में परदे पर असंभव सी दिख रही चीजों को यकीन कर लिया जाता है. गौर करें तो अच्छे और बुरे के बीच संघर्ष को दिखाने वाली स्पाइडरमैन की कहानी साधारण है लेकिन स्टार्स की परफोर्मेंस, फिल्म का तकनीकी पक्ष, निर्देशन और दूसरी चीजें उसे भव्य बनाती हैं. स्पाइडरमैन ही क्यों हॉलीवुड में दूसरी सुपरहीरोज कहानियां, साई फाई और स्पाई, थ्रिल सीरीज को बनाने में भारी भरकम बजट इस्तेमाल किया जाता है. यह बजट सिर्फ स्टारकास्ट की फीस भर पर नहीं खर्च होता बल्कि फिल्म मेकिंग के सभी अलग अलग पक्षों की बेहतरी पर खर्च किया जाता है. इसका असर उनकी फिल्मों में नजर भी आता है जबकि भारत जैसे देशों में बड़े बजट की फ़िल्में बहुत कम बनती है.
यहां कभी-कभार बाहुबली और साहो जैसी फ़िल्में बनाई जाती हैं. उसमें भी सुपरहीरोज या साई फाई कहानियां नहीं के बराबर हैं. हमारे यहां फिल्मों के बजट का सबसे बड़ा हिस्सा बड़े स्टारकास्ट की फीस पर खर्च किया जाता है. हॉलीवुड और बॉलीवुड में यह बड़ा फर्क भी स्पष्ट है. उनके यहां स्टार तो ब्रांड होते ही हैं मगर उनके प्रोडक्ट और बैनर भी ब्रांड की ही तरह खड़े हैं. जबकि हमारे यहां स्टार्स ही ब्रांड के तौर पर दिखते हैं. यशराज और धर्मा प्रोडक्शन के अलावा बॉलीवुड के कितने बैनर्स को लोग जानते हैं? हमारे यहां के जो बड़े बैनर्स हैं भी वो एक साथ 30 करोड़ की फिल्म बना रहे होते हैं और 300 करोड़ की भी. कोई ऐसा बैनर नहीं दिखता जिसकी आ रही फिल्मों को मां लिया जाए कि वो मनोरंजक होंगी और बढ़िया कारोबार करेंगी. हॉलीवुड सबकुछ तय होता है और इसके लिए उनका अप्रोच भी दिखता है. भारत में स्पाइडरमैन की सफलता की एक वजह उनकी पैन इंडिया अपील और उसे उसी स्केल पर रिलीज करना है. ब्रांड और क्वालिटी कंटेंट तो है है. क्या बंटी और बबली 2 की पैन इंडिया रिलीज की कल्पना भी की जा सकती है? फर्क इस बात से पड़ता है कि कोई चेन्नई या बेंगलुरु नेटिव किन वजहों से बॉलीवुड में बनी किसी बनारस और कानपुर की की कहानी को देखना चाहेगा.
पुष्पा: द राइज
पुष्पा की कामयाबी क्या कहती है?
अल्लू अर्जुन की कहानी पुष्पा: द राइज में क्या है. ऐसा नहीं है कि रोज बॉक्स ऑफिस पर कीर्तिमान रच रही फिल्म की स्टोरीलाइन बहुत कर्री और लाजवाब है. इसकी कहानी बेहद साधारण है जिसमें दिखाया गया है कि कैसे एक युवा अपनी डेयरिंग से अवैध कारोबार का बादशाह बन जाता है. हालांकि फिल्म लय वाकई लाजवाब है. वैसे भी स्पीड के मामले में साउथ की फ़िल्में बॉलीवुड से कहीं बहुत बेहतर नजर आती है भले ही उनकी कहानियां कितनी ही साधारण क्यों ना हो. स्पीड के साथ उनके सिनेमा में मास अपील की चीजों का बहुत ख्याल रखा जाता है. पुष्पा ही क्यों साउथ की कोई भी साधारण फिल्म उठा लीजिए दर्शकों को ये चीजें मिलेंगी. रफ एक्शन, चुटीले संवाद और फिल्म की स्पीड ने मायने बदल दिया. पुष्पा को भले नेशनल अवॉर्ड और ऑस्कर के काबिल ना हो मगर निर्देशन और सम्पादन की तारीफ़ करनी चाहिए कि फिल्म में मसालेदार मनोरंजन संतुलित है जो दर्शकों को बांधकर रखता है. पुष्पा में आइटम सॉंग भी लोगों को भा रहा.
पुष्पा में नायक जो डेयरिंग दिखाता है असल में दो-ढाई घंटे फिल्म देखने वाले दर्शकों को वही पागलपन कुछ और सोचने का मौका नहीं देता. याद करिए यश की केजीएफ में क्या था जिसने हिंदी बॉक्स ऑफिस को हिला दिया. नायक की डेयरिंग. नायक जो एक आम सा आदमी है. इस आम से आदमी में हर किसी ने अपना अक्स देखा. और पुष्पा के हिंदी वर्जन की 70 करोड़ कमाई इसका सबूत है. यह वो चीज है जिसे मास ऑडियंस पसंद करता है. 70 के दशक में अमिताभ बच्चन का महानायक के रूप में उभार आम से दिखने वाले किरदारों की वजह से ही हुआ. जो अपने आप में बहुत असाधारण बनकर सामने आए. पुष्पा ने हिंदी में कहां कामयाबी हासिल की. चेक करिए वह मास सर्किट ही है.
हिंदी में ऐसी कहानियां पिछले कुछ सालों में बनना शुरू हुई हैं. ये साउथ की देखा देखी ही है. सीधे वहां की कई रीमेक फ़िल्में बनाई गईं. सलमान खान की वॉन्टेड क्या है? उसमें नायक की डेयरिंग के अलावा ऐसा क्या है जो दर्शकों को भा गया और सलमान के डूबते करियर को नई राह मिल गई. रोहित शेट्टी फिल्मों में साउथ के उसी थीम कांसेप्ट को थोड़े फेरबदल के साथ अपनी फिल्मों में ट्रांसलेट करते दिखते हैं. सिंघम से सूर्यवंशी तक सबूत की भरमार है. हालांकि अब दक्षिण में एक और प्रस्थान बिंदु नजर आ रहा है. अब वहां का सिनेमा खासकर तमिल और मलयाली सिनेमा ज्यादा मुखर दिखने लगा है.
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