हिन्दी सहित तमिल, तेलगु, कन्नड़ और मलयालय फिल्मों के जरिए दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली मशहूर अदाकारा श्रीदेवी आज हमारे बीच नहीं हैं. पूरा देश श्रीदेवी की अदाकारी, नृत्य और भावभंगिमाओं का कायल रहा है. 5 दशक लंबे अपने फिल्मी कैरियर में उन्होंने दर्शकों को कभी रुलाया, कभी हंसाया, तो कभी शिक्षित करती हुई भी दिखी हैं. उनका यूं ही अचानक चले जाना भारतीय सिनेमा के लिए बड़ी क्षति है. श्रीदेवी जैसी शख्सियत एक दिन में ही किसी के भी दिलों पर यूं ही नहीं उतरती है. सालों साल की मेहनत, लगन और फिल्मों को दिल से चुनने की प्रवृत्ति ने उन्हें हिन्दी सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार बना दिया था.
श्रीदेवी में जन्मी श्रीदेवी ने भले ही तमिल तेलगु मलयालम और कन्नड़ सिनेमा में भरपूर काम किया हो, पर उन्हें जो शोहरत हिन्दी पट्टी के दर्शकों से मिली उसकी शुक्रगुजार वो खुद भी थीं. बॉलीवुड के फ़िल्मकारों ने उनके नाम से न जाने कितनी फिल्मों से शोहरत और पैसा खुद के लिए बटोरा होगा. उनके दीवाने दर्शक बिना किसी सिनेमाई सिद्धान्त को समझे उन्हें बड़े बड़े होर्डिंग्स और पोस्टर्स पर देख थियेटर हाउसफफुल कर दिया करते थे. किसी अभिनेत्री के लिए संभवत: यह पहला मौका था जब पुरुष अभिनेता के वर्चस्व को धराशायी कर खुद की नायकीय छवि बनाई हो.
श्रीदेवी के बाद ऐसा संयोग किसी दूसरी अभिनेत्री के साथ नहीं हुआ. यह संयोग दोबारा इसलिए भी नहीं हुआ होगा क्योंकि जहां एक ओर सिंगल स्क्रीन थियेटर भी टूट रहे थे, अभिनेत्रियों में ही वर्चस्व की लड़ाई बढ़ने लगी थी और फिल्म प्रमोशन के रूप में पोस्टर कल्चर कहीं खोता हुआ सा दिखने लगा था. श्रीदेवी निर्देशकों की पहली पसंद क्यों थी इसके भी कई किस्से खुद ब खुद मिलते चले जाएंगे....
हिन्दी सहित तमिल, तेलगु, कन्नड़ और मलयालय फिल्मों के जरिए दर्शकों के दिलों पर राज करने वाली मशहूर अदाकारा श्रीदेवी आज हमारे बीच नहीं हैं. पूरा देश श्रीदेवी की अदाकारी, नृत्य और भावभंगिमाओं का कायल रहा है. 5 दशक लंबे अपने फिल्मी कैरियर में उन्होंने दर्शकों को कभी रुलाया, कभी हंसाया, तो कभी शिक्षित करती हुई भी दिखी हैं. उनका यूं ही अचानक चले जाना भारतीय सिनेमा के लिए बड़ी क्षति है. श्रीदेवी जैसी शख्सियत एक दिन में ही किसी के भी दिलों पर यूं ही नहीं उतरती है. सालों साल की मेहनत, लगन और फिल्मों को दिल से चुनने की प्रवृत्ति ने उन्हें हिन्दी सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार बना दिया था.
श्रीदेवी में जन्मी श्रीदेवी ने भले ही तमिल तेलगु मलयालम और कन्नड़ सिनेमा में भरपूर काम किया हो, पर उन्हें जो शोहरत हिन्दी पट्टी के दर्शकों से मिली उसकी शुक्रगुजार वो खुद भी थीं. बॉलीवुड के फ़िल्मकारों ने उनके नाम से न जाने कितनी फिल्मों से शोहरत और पैसा खुद के लिए बटोरा होगा. उनके दीवाने दर्शक बिना किसी सिनेमाई सिद्धान्त को समझे उन्हें बड़े बड़े होर्डिंग्स और पोस्टर्स पर देख थियेटर हाउसफफुल कर दिया करते थे. किसी अभिनेत्री के लिए संभवत: यह पहला मौका था जब पुरुष अभिनेता के वर्चस्व को धराशायी कर खुद की नायकीय छवि बनाई हो.
श्रीदेवी के बाद ऐसा संयोग किसी दूसरी अभिनेत्री के साथ नहीं हुआ. यह संयोग दोबारा इसलिए भी नहीं हुआ होगा क्योंकि जहां एक ओर सिंगल स्क्रीन थियेटर भी टूट रहे थे, अभिनेत्रियों में ही वर्चस्व की लड़ाई बढ़ने लगी थी और फिल्म प्रमोशन के रूप में पोस्टर कल्चर कहीं खोता हुआ सा दिखने लगा था. श्रीदेवी निर्देशकों की पहली पसंद क्यों थी इसके भी कई किस्से खुद ब खुद मिलते चले जाएंगे. श्रीदेवी के साथ यादगार फिल्म मिस्टर इंडिया बनाने वाले निर्देशक शेखर कपूर तो उनके चेहरे के भाव और आंखों में इतना खो गए थे की शूटिंग के दौरान पूरे पूरे दिन इसी उधेड़बुन में बिता देते कि उन्हें श्रीदेवी का क्लोज अप लेना है या वाइड शॉट. दरअसल वे चाहते थे कि श्रीदेवी की वह हर अदा को कैमरे में कैद कर सकें.
निर्देशक बालू महेंद्र की फिल्म सदमा में 20 साल की रेशमी ने अपनी भावभंगिमाओं से सात साल की बच्ची का जो मार्मिक किरदार पर्दे पर निभाया है उसे देखते हुए आज भी किसी भी अभिनेत्री के लिए दोहरा पाना मुश्किल है. वहीं फिल्म 'लम्हे' में उम्र दराज व्यक्ति से प्रेम करने का साहस करने वाली पूजा, फिल्म चालबाज की नरम और गरम मिजाज वाली अंजु और मंजु, फिल्म नगीना की इच्छाधारी नागिन, जैसे यादगार किरदार उन्हे दर्शकों के दिलों में और भी गहरे पैठ बनाते हुए दिखते हैं. उनके शुरुआती दौर में फिल्मों के प्रति जुनून इसी से आंका जा सकता है जब चालबाज़ के एक सीन से परेशान होकर रजनीकान्त ने उन्हें काफी भला बुरा कहा और उन्हें नाच गाने से दूर रहने को बोल दिया था.
अगर उन दिनों श्रीदेवी को खुद में भरोसा नहीं होता तो शायद ही रजनीकान्त को जवाब में वो कह पातीं कि मैं ‘तुझे तो मैं ऑल इंडिया स्टार बनकर दिखाउंगी. आज वो एक बेहतरीन अदाकारा होने के साथ कॉमेडी, नृत्य, एक्शन के लिए भी सराही जाती हैं. कभी एक समय ऐसा भी आया जब बड़े से बड़ा स्टार उनसे मिलने के लिए स्पॉट बॉय से खबरें भेजा करता था अमिताभ बच्चन भी उन्हीं में से एक थे.
श्रीदेवी खुद द्वारा की जाने वाली फिल्मों के चयन के लिए भी जानी जाती थीं. महज चार साल की उम्र में ही बतौर बाल कलाकार फिल्म थुनाइवान से बड़े पर्दे पर कदम रखने वाली श्रीदेवी ने अपने फिल्मी कैरियर में यूं ही किसी भी फिल्म का चयन नहीं किया. उसके पीछे उनकी कोशिश रहती थी कि उनका किरदार सशक्त हो और संप्रेषणीय भी. ऐसी फिल्मों को चुनने के संबंध में उन्होने यह भी माना कि वह हमेशा से ऐसे ही विषय चुनती हैं जो उनके दिल को छूता है. दिमाग से काम लेने में वह हमेशा बचती दिखी थीं.
फिल्म लम्हें, चालबाज, लाडला, रूप की रानी चोरों का राजा, जुदाई, खुदा गवाह, नगीना, मिस्टर इंडिया, मैं तेरा दुश्मन, शेरनी जैसी तमाम फिल्मों के किरदार देखने पर खुद जान पाएंगे कि वहां श्रीदेवी के साथ काम करने वाले पुरुष अभिनेता या तो कमतर हैं या फिर उनके ही बराबर. श्रीदेवी अभिनीत लगभग फिल्मों में उनके किरदार ने पुरुष अभिनेता को डोमिनेंट ही किया. ऐसे मौके हिन्दी सिनेमा की अभिनेत्रियों के लिए कम ही आए हैं. वे चाहतीं तो बिना ठुकराए ऐसी कई फिल्में भी कर सकती थीं जिनमें नायक ही सबकुछ थे. लेकिन उन्होंने अभिनेत्री द्वारा रंगरेलिया मनाने वाले कई किरदारों वाली बड़े निर्देशकों की फिल्मों को ठुकरा दिया था. इन्हीं फिल्मों को बाद में उस दौर की अभिनेत्रियों ने राजी खुशी अपनाते हुए कैरियर शुरू किया. राजीव राय की फिल्म मोहरा के लिए पहले श्रीदेवी को चुना गया, लेकिन उनके अनुसार यह किरदार फिट नहीं बैठा तो उन्होंने उसे ठुकरा दिया और बाद में यह रोल दिव्या भारती फिर उसके बाद रवीना टंडन को मिला था.
यश चोपड़ा की फिल्म मुहब्बतें में एक किरदार सिर्फ श्रीदेवी के लिए लिखा गया था, जिसे खुद श्रीदेवी ने ठुकरा दिया और बाद में मजबूर यश चोपड़ा ने उस किरदार को स्क्रिप्ट से ही हटा दिया. राकेश रोशन की फिल्म कारोबार में स्विम सूट पहनने वाले किरदार को ठुकरा श्रीदेवी ने अपने चूजी स्वभाव से सभी को अचंभित किया. एक ऐसे दौर जहां अभिनेत्रियां किसी भी तरह के रोल करने को तैयार हुआ करती थी, उन दिनों श्रीदेवी बड़े फ़िल्मकारों के ऑफर ठुकरा रही थीं. इनमें यश चोपड़ा की अन्य फिल्म दिल तो पागल है, आइना, डर, राहुल रवैल की अंजाम, इंद्र कुमार की बेटा, गुलजार की फिल्म लेकिन शामिल है.
श्रीदेवी हमेशा चाहती थीं कि वे ऐसे किरदार करें जिनमें उनका वर्चस्व पुरुषों के बराबर रहे. और किसी भी तरह से उनके सीन रिवीलिंग न रहें. सोचिए अगर उन दिनों श्रीदेवी ने इन फिल्मों को अगर नहीं ठुकराया होता तो रवीना टंडन से लेकर जूही चावला, माधुरी दीक्षित, डिम्पल कपाड़िया, और काजोल तक को फिल्मों में काम करने के लिए और भी संघर्ष करना पड़ सकता था.
हिन्दी और दक्षिण भारतीय भाषाओं के सिनेमा की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री के जीवन को और पास से देखते हुए यह जरूर जाना जा सकता है कि दक्षिण भारतीय सिनेमा में फिल्म प्रमोशनल का जो फार्मूला प्रयोग में आता था उसकी हिन्दी सिनेमा में अभिनेत्रियों के लिए पहली बार शुरुआत श्रीदेवी से ही हुई थी. 80 के दशक में जब सिंगल स्क्रीन थियेटर का चलन ज़ोरों पर था, फिल्म की स्क्रिप्ट और उसकी भाषा पर कोई ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था उन दिनों निर्देशक निर्माता श्रीदेवी के पोस्टर्स के सहारे ही फिल्में बेच लिया करते थे.
उनकी कामयाबी का अंदाजा यहीं से लगाया जा सकता है कि बाद के दिनों में समीक्षकों उन्हें लेडी अमिताभ की संज्ञा भी देने से खुद को नहीं रोक पाए थे. लेकिन क्या कारण हैं कि इनके बाद किसी दूसरी महिला सुपरस्टार का बन पाना मुश्किलों भरा रहा है. किसी भी निर्देशक और निर्माता के लिए श्रीदेवी इसलिए भी फिट थी क्योकि वें निजी जीवन में भी एकदम परफेक्शनिस्ट की तरह काम किया करती थीं. फिर वो चाहे फिल्मों के विषय चयन हो या फिर उनके किए गए अभिनय की गंभीरता. उनके अभिनय वाले गीतों का चित्रांकन एक अलग ही शोध का विषय माना जा सकता हैं. जिसमें उन्होने कई बड़ी अभिनेत्रियों को कड़ी टक्कर दी है.
जितेंद्र से लेकर अनिल कपूर, धर्मेंद्र, और सुपरस्टार राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन के साथ यादगार जोड़ी निभाने वाली अभिनेत्री का यूं अचानक से छोड़ कर चले जाना स्तब्ध कर देने जैसा है. क्योंकि हाल ही के वर्षों में उन्होंने एक नए तरह के सिनेमा को लेकर काम करना शुरू किया था. अंग्रेजी के बढ़ते स्तर पर हिन्दी के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को उकेरती फिल्म इंगलिश विंगलिश और चाइल्ड रेप की शिकार बेटी के लिए जूझती एक माँ के रूप में उन्होने फिल्म मॉम से कम बैक किया था.
उनकी की हुई आखिरी फिल्म मॉम में एक जागरूक माँ के रूप में दिखने वाली श्रीदेवी निजी ज़िंदगी में भी अपनी दोनों बेटियों जान्हवी और खुशी कपूर के लिए सुपर मम्मा थीं. उनका ट्वीटर एकाउंट बताता है कि उन्हें अपनी बेटी जान्हवी की डेब्यू फिल्म धड़क का बेसब्री से इंतजार था. खुद उनकी मां ने भी उन्हें फिल्मों के प्रति समर्पित किया था. लेकिन एक मां के तौर पर खुद अपनी बेटी को फिल्मों में देखने से वो रह गयीं...
आप हमेशा हमें याद आएंगी, अपने हर किरदारों में, गीतों में, हास्य में, एक्शन में...
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