''मुझे यकीन है कि सिर्फ शहर छोटे होते हैं वहा के लोग और ख़्वाब नहीं. मुझे यक़ीन है कि आदमी का कद उसके इरादों से नापा जाता है. मुझे यकीन है कि नसीब की बात सिर्फ वो करते हैं जो कभी मैदान में उतरे ही नहीं. मुझे यकीन है कि थकान और प्रेशर सिर्फ एक भ्रम है. मुझे यक़ीन है कि हार और जीत के बीच का फासला बड़ा है पर नामुमकिन नहीं''...फिल्म 'एम एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी' का ये डायलॉग दिवंगत बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की जिंदगी की फलसफा बयां करता है. आज वो जिंदा होते, तो अपने फैंस के बीच अपना 37वां जन्मदिन मना रहे होते. लेकिन अफसोस क्रूर नियति ने एक छोटे से शहर के बड़े होते सपने को पहले ही खत्म कर दिया, वरना बॉलीवुड की आकाशगंगा में ध्रुवतारा बनकर चमकने का मादा रखने वाला कलाकार इस तरह साजिश का शिकार नहीं होता.
1. सपने बुनने पर फोकस:
सच कहा गया है शहर छोटे हैं, वहां रहने वाले लोग नहीं और न ही उनके सपने. वरना पटना जैसे शहर का रहने वाले सुशांत को इस दुनिया की ही नहीं उसे एलियंस की दुनिया को भी समझना था. जहां मिल्की वे गैलेक्सी तक के बारे में सीमित ज्ञान रखने वाले लोग रहते हों, वहां उसे अपने टेलिस्कोप से एंड्रोमेडा गैलेक्सी और न जाने क्या क्या देखना था. उसे विमान उड़ाना सीखना था. उसे दुनिया की अजीबो-ग़रीब जगहों पर तैरना था. बहुत दूर तक जाना था उसे. ज़िंदगी के हर रंग को करीब से महसूस करना था. फिल्म 'काई पो चे के' ईशान की तरह, जो खुली हवा में सांस ले सकने को पैसों की खनक से ज़्यादा अहमियत देता था. यदि आपने ये फिल्म देखी होगी, तो आपको शायद होगा, ईशान ने अपने दोस्त से बोला था, "तेरे पैसों की छन छन से मेरी हवाओं की क़ीमत कम हो रही है''. सुशांत अपने सपने बुनते गए. उसके लिए जरूरी मेहनत पूरी ईमानदारी से करते गए. उनका अलहदा अंदाज, दमदार अभिनय और बेहतरीन संवाद लोगों को अपना दीवाना बना लिया.
''मुझे यकीन है कि सिर्फ शहर छोटे होते हैं वहा के लोग और ख़्वाब नहीं. मुझे यक़ीन है कि आदमी का कद उसके इरादों से नापा जाता है. मुझे यकीन है कि नसीब की बात सिर्फ वो करते हैं जो कभी मैदान में उतरे ही नहीं. मुझे यकीन है कि थकान और प्रेशर सिर्फ एक भ्रम है. मुझे यक़ीन है कि हार और जीत के बीच का फासला बड़ा है पर नामुमकिन नहीं''...फिल्म 'एम एस धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी' का ये डायलॉग दिवंगत बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की जिंदगी की फलसफा बयां करता है. आज वो जिंदा होते, तो अपने फैंस के बीच अपना 37वां जन्मदिन मना रहे होते. लेकिन अफसोस क्रूर नियति ने एक छोटे से शहर के बड़े होते सपने को पहले ही खत्म कर दिया, वरना बॉलीवुड की आकाशगंगा में ध्रुवतारा बनकर चमकने का मादा रखने वाला कलाकार इस तरह साजिश का शिकार नहीं होता.
1. सपने बुनने पर फोकस:
सच कहा गया है शहर छोटे हैं, वहां रहने वाले लोग नहीं और न ही उनके सपने. वरना पटना जैसे शहर का रहने वाले सुशांत को इस दुनिया की ही नहीं उसे एलियंस की दुनिया को भी समझना था. जहां मिल्की वे गैलेक्सी तक के बारे में सीमित ज्ञान रखने वाले लोग रहते हों, वहां उसे अपने टेलिस्कोप से एंड्रोमेडा गैलेक्सी और न जाने क्या क्या देखना था. उसे विमान उड़ाना सीखना था. उसे दुनिया की अजीबो-ग़रीब जगहों पर तैरना था. बहुत दूर तक जाना था उसे. ज़िंदगी के हर रंग को करीब से महसूस करना था. फिल्म 'काई पो चे के' ईशान की तरह, जो खुली हवा में सांस ले सकने को पैसों की खनक से ज़्यादा अहमियत देता था. यदि आपने ये फिल्म देखी होगी, तो आपको शायद होगा, ईशान ने अपने दोस्त से बोला था, "तेरे पैसों की छन छन से मेरी हवाओं की क़ीमत कम हो रही है''. सुशांत अपने सपने बुनते गए. उसके लिए जरूरी मेहनत पूरी ईमानदारी से करते गए. उनका अलहदा अंदाज, दमदार अभिनय और बेहतरीन संवाद लोगों को अपना दीवाना बना लिया.
2. बैकग्राउंड डांसर से मेगास्टार तक संघर्ष ही संघर्ष:
सुशांत सिंह राजपूत को अपना करियर बनाने के लिए बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ा था. शाहरुख खान को अपना आइकन मानने वाले सुशांत को फिल्मों में आना था. लेकिन परिवार चाहता था कि पढ़ाई लिखाई करके नौकरी करें. इसलिए दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में उनका दाखिला करा दिया गया. लेकिन पढ़ाई करते हुए उन्होंने श्यामक दावर का डांस ग्रुप ज्वॉइन कर लिया. इसी के साथ उन्होंने थिएटर डायरेक्टर बैरी जॉन से एक्टिंग सीखनी भी शुरू कर दी. साल 2006 में सुशांत ने कॉमनवेल्थ गेम्स की ओपनिंग सेरेमनी में ऐश्वर्या राय के पीछे बतौर बैकग्राउंड डांसर भी काम किया. इसके बाद एकता कपूर के बालाजी टेलीफिल्म के एक टीवी सीरियल में रोल मिला, लेकिन बाद में वहां से भी हटा दिया गया. लेकिन कहते हैं ना कि मेहनत कभी जाया नहीं होती. उनके एक्टिंग परफॉर्मेंस को लोगों ने इतना सराहा कि मेकर्स उनको दोबारा सीरियल में लेना पड़ा. इसके बाद तो एकता कपूर की नजरों में आ गए. फिर क्या था 'पवित्र रिश्ता' के मानव बनकर ऐसा छाए कि सीधे बॉलीवुड चले आए. पीके, एमएस धोनी, केदारनाथ और छिछोरे जैसी फिल्मों ने मेगास्टार बना दिया. लेकिन संघर्ष जारी रहा.
3. रेस से बाहर होने का खतरा डिप्रेशन की हद तक सहना:
सुशांत सिंह राजपूत लोकप्रियता के शिखर पर जाकर जब स्थिर होने की कोशिश कर रहे थे, तो उनको नहीं पता था कि उनके पीछे एक बड़ी साजिश रची जा रही थी. पहले उनकी जिंदगी से गर्लफ्रेंड अंकिता लोखंडे का अलग होना और उसके बाद रिया चक्रवर्ती का आना, लोगों को हैरान कर ही रहा था, इसी बीच करण कैंप से उनकी तनातनी शुरू हो गई. सुशांत ने जब अपनी शर्तों पर काम करना चाहा तो फिल्म मेकर करण जौहर की धर्मा प्रोडक्शन के कई प्रोजेक्ट्स से उनको बाहर कर दिया गया. यहां तक कि उनका यह भी आरोप था कि उनकी आखिरी फिल्म 'दिल बेचारा' को जानबूझकर ओटीटी पर रिलीज किया गया, ताकि उनकी लोकप्रियता को कम करके मार्केट वैल्यू गिराई जा सके. इसके साथ ही एक गैंग बनाकर लगातार उनको फिल्मों से बाहर का रास्ता दिखाता रहा. नेपोटिज्म के शिकार एक्टर को जब अपना करियर खत्म होता दिखा, तब वो डिप्रेशन के शिकार हो गए. धीरे-धीरे नशा करते हुए ड्रग्स एडिक्ट बन गए.
4. भोलापन जो अच्छे और बुरे में फर्क न करने दे:
सुशांत राजपूत नशा करते थे, या उन्हें नशा कराया जाता था, इसका सस्पेंस हमेशा बना रहेगा. लेकिन, इतना तय है कि छोटे शहर से आने वाला ये नायक जिंदगी में कुछ बड़ा करना चाहता था. लेकिन, जिंदगी की जद्दोजहद में वो नशे की गिरफ्त में भी आया. उसके इर्द-गिर्द लोगों पर आरोप लगा कि उन्होंने सुशांत को ठगा. उसे नशे की ओर धकेला. लेकिन, ये भी स्वीकार करना पड़ेगा कि एक वक्त ऐसा आया जो धीर-गंभीर, अपना अच्छा-बुरा अच्छी तरह समझने वाला सुशांत जिंदगी के महत्वपूर्ण फैसले करने में नाकाम रहा. यही वजह है कि उन्होंने अपनी जिंदगी से इतनी जल्दी हार मान ली. हालांकि, कई रहस्य छोड़ गए. इन रहस्यों से आज तक पर्दा नहीं उठ सका है. जबकि सुशांत की मौत के इस साल जून में दो साल पूरे हो जाएंगे. फैंस आज भी न्याय की गुहार लगा रहे हैं.
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