जाओ अब सोए रहो सितारों दर्द की रात ढल चुकी है... नहीं, मुझे अब एक और शब्द न सुनना है, और न लिखना है सुशांत (Sushant ) पर. जब तक CBI अपना फ़ैसला नहीं बताती या कोर्ट से कोई क्लियर बात नहीं आ जाती. इतनी फजीहत मुझे घिन्न आने लग गयी है अब इंसानों से. सच में क्या हम इंसान हैं भी? एक ग्रुप है जो रिया चक्रवर्ती (Rhea Chakraborty ) को बेगुनाह साबित करने पर तुला है, दूसरा गुनहगार. एक ग्रुप है जिसको रिया में एक अबला स्त्री, मासूम लड़की दिखायी दे रही हैं जिसे भारत का पित्तंत्रात्मक समाज बलि का बकरा बना रहा है, दूसरा ग्रुप है जिसे वो एक ऐसी औरत लग रही है जिसने सुशांत की हत्या करवा दी या कर दी. एक ग्रुप फ़ेमिनिज़म (Feminism ) का झंडा उठाए रिया को रेस्क्यू करने के लिए निकल पड़ा है. रिया के ऊपर लग रहें इल्ज़ाम को बचाने के लिए भारतीय समाज के ढांचे पर सवाल कर रहा है, वही दूसरे ग्रुप को रिया, सुशांत को उनके अपनों से दूर करने वाली डायन लग रहीं हैं.
एक ग्रुप को लग रहा है कि सुशांत का बचपन से ले कर जवानी सब कुछ ट्रमैटिक था, वो अपने घर वालों से ख़ुद ही दूर हुआ और उसने ख़ुद ही ड्रग लेना शुरू कर दिया. वो बायपोलर और डिप्रेसेड था जबकि रिया उसकी सेवियर थी, उसकी एंजल. वहीं दूसरे ग्रुप को लगता है कि रिया ने ही ये सारा जाल बिछाया है. सुशांत न तो डिप्रेसड थे और न ही बायपोलर.
मुझे क्या लगता है इससे आपका कोई लेना देना नहीं है. मुझे जो लगता है वो मैंने पहले भी अपने लेख में लिख दिया है. मैं जहां से जितना देख या समझ पा रही हूं वहां से मुझे सिवाय दुःख के कुछ नहीं महसूस हो रहा, कुछ भी नहीं.
मैं सच में नंब हूं....
जाओ अब सोए रहो सितारों दर्द की रात ढल चुकी है... नहीं, मुझे अब एक और शब्द न सुनना है, और न लिखना है सुशांत (Sushant ) पर. जब तक CBI अपना फ़ैसला नहीं बताती या कोर्ट से कोई क्लियर बात नहीं आ जाती. इतनी फजीहत मुझे घिन्न आने लग गयी है अब इंसानों से. सच में क्या हम इंसान हैं भी? एक ग्रुप है जो रिया चक्रवर्ती (Rhea Chakraborty ) को बेगुनाह साबित करने पर तुला है, दूसरा गुनहगार. एक ग्रुप है जिसको रिया में एक अबला स्त्री, मासूम लड़की दिखायी दे रही हैं जिसे भारत का पित्तंत्रात्मक समाज बलि का बकरा बना रहा है, दूसरा ग्रुप है जिसे वो एक ऐसी औरत लग रही है जिसने सुशांत की हत्या करवा दी या कर दी. एक ग्रुप फ़ेमिनिज़म (Feminism ) का झंडा उठाए रिया को रेस्क्यू करने के लिए निकल पड़ा है. रिया के ऊपर लग रहें इल्ज़ाम को बचाने के लिए भारतीय समाज के ढांचे पर सवाल कर रहा है, वही दूसरे ग्रुप को रिया, सुशांत को उनके अपनों से दूर करने वाली डायन लग रहीं हैं.
एक ग्रुप को लग रहा है कि सुशांत का बचपन से ले कर जवानी सब कुछ ट्रमैटिक था, वो अपने घर वालों से ख़ुद ही दूर हुआ और उसने ख़ुद ही ड्रग लेना शुरू कर दिया. वो बायपोलर और डिप्रेसेड था जबकि रिया उसकी सेवियर थी, उसकी एंजल. वहीं दूसरे ग्रुप को लगता है कि रिया ने ही ये सारा जाल बिछाया है. सुशांत न तो डिप्रेसड थे और न ही बायपोलर.
मुझे क्या लगता है इससे आपका कोई लेना देना नहीं है. मुझे जो लगता है वो मैंने पहले भी अपने लेख में लिख दिया है. मैं जहां से जितना देख या समझ पा रही हूं वहां से मुझे सिवाय दुःख के कुछ नहीं महसूस हो रहा, कुछ भी नहीं.
मैं सच में नंब हूं. वो जो एक प्यारा लड़का था वो जा चुका है. उसके जाना का क्या ग़म है और कितना ग़म किसे है मैं कोई नहीं होती हूं उस पर कुछ भी कहने वाली. हां, मीडिया जैसे दो वर्गों में बंट कर सुशांत की मौत को गिद्धों वाली पार्टी बना कर टीआरपी के लिए जो तमाशा कर रही है, उसे देख कर मुझे ग्लानि हो रही है. मन कर रहा है कि मैं चिल्ला कर कहूं कि तमाशा बंद कर दीजिए प्लीज़. इंसाफ़ CBI या भारत की कोर्ट करेगी आप नहीं. रिया गुनहगार है तो उसे सज़ा ज़रूर मिलेगी. यूं मीडिया-ट्रायल नहीं चाहिए देश को. मुझे तो कम से कम नहीं ही चाहिए.
मैं सच में थका हुआ महसूस करने लगी हूं. वो जो मेरा कोई नहीं था उसके जाने के बाद जो ये नौटंकी हो रही है, वो शायद मुझे एक इंसान के तौर तोड़ रही है. मनुष्य का ये विकृत रूप अब से पहले फ़िल्मों में ही देखा था अब हक़ीक़त में दिखने लगा है.छी!
मैंने तुम्हें अलविदा नहीं कहा और जब तक न्याय न मिले नहीं कहूंगी लेकिन इस कीचड़ में मैं तुम्हें कम से कम उतारूंगी. तुम जहां हो वहीं ख़ुश रहो. कभी लौटना मत यहां . अब इंसान कम ही रहते हैं इस इंसानों की बस्ती में! मुहब्बत तुम्हारे लिए प्यारे लड़के
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