फिल्मों के मामले में बीच के रास्ते जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं है. फिल्म या तो अच्छी होती है या फिर घटिया।बॉक्स ऑफिस कलेक्शन से लेकर ट्विटर - फेसबुक पर ऑडियंस रिएक्शन तक ने साबित किया कि डायरेक्टर कमल पांडे की स्वरा भास्कर स्टारर फिल्म जहां चार यार किसी डिजास्टर से कम नहीं है. फिल्म पूरे बज के साथ 16 सितम्बर को सिनेमाघरों में रिलीज हुई और हफ्ते भर बाद जैसा फिल्म का कलेक्शन रहा उसने किसी और को नहीं बल्कि फिल्म की लीड एक्टर स्वरा भास्कर को सवालों के घेरे में डाल दिया है.फिल्म की हफ्ते भर की कमाई महज 50 लाख रुपए है जिसने स्वरा से कह दिया है कि छत्तीस खाने का रिंच बनकर (यानी एक्टर के बनिस्बत और सब कुछ ...) आप क्षणिक तौर पर पॉपुलर तो हो सकते हैं लेकिन कामयाब आप तब ही होंगे जब आप वो करें जो आपका काम है. स्वरा एक्टर हैं, बेहतर होता कि वो एक्टिंग ही करतीं। '
विषय बहुत सीधा है. यहां रिव्यू जैसी या फिल्म की IMDb RATING बताने जैसी कोई बता नहीं है. वो स्वरा भास्कर जो ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल मुखर होकर अपनी बातें कहने के लिए करती हैं. जिनका हर दूसरा ट्वीट प्रोड्यूसर डायरेक्टर को बॉयकाट बॉलीवुड के इस दौर में कामयाबी का मंत्र देने के लिए होता है. आज खुद उस मुकाम पर है जहां एक्टिंग के लिहाज से उन्हें तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. मतलब जैसा हाल है स्वरा की एक्टिंग की बुराई वो लोग भी कर रहे हैं जिन्होंने इस दुनिया में जन्म ही लिया है अपनी जगहंसाई कराने के लिए.
कहने को तो फिल्म महिला सशक्तिकरण की...
फिल्मों के मामले में बीच के रास्ते जैसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं है. फिल्म या तो अच्छी होती है या फिर घटिया।बॉक्स ऑफिस कलेक्शन से लेकर ट्विटर - फेसबुक पर ऑडियंस रिएक्शन तक ने साबित किया कि डायरेक्टर कमल पांडे की स्वरा भास्कर स्टारर फिल्म जहां चार यार किसी डिजास्टर से कम नहीं है. फिल्म पूरे बज के साथ 16 सितम्बर को सिनेमाघरों में रिलीज हुई और हफ्ते भर बाद जैसा फिल्म का कलेक्शन रहा उसने किसी और को नहीं बल्कि फिल्म की लीड एक्टर स्वरा भास्कर को सवालों के घेरे में डाल दिया है.फिल्म की हफ्ते भर की कमाई महज 50 लाख रुपए है जिसने स्वरा से कह दिया है कि छत्तीस खाने का रिंच बनकर (यानी एक्टर के बनिस्बत और सब कुछ ...) आप क्षणिक तौर पर पॉपुलर तो हो सकते हैं लेकिन कामयाब आप तब ही होंगे जब आप वो करें जो आपका काम है. स्वरा एक्टर हैं, बेहतर होता कि वो एक्टिंग ही करतीं। '
विषय बहुत सीधा है. यहां रिव्यू जैसी या फिल्म की IMDb RATING बताने जैसी कोई बता नहीं है. वो स्वरा भास्कर जो ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल मुखर होकर अपनी बातें कहने के लिए करती हैं. जिनका हर दूसरा ट्वीट प्रोड्यूसर डायरेक्टर को बॉयकाट बॉलीवुड के इस दौर में कामयाबी का मंत्र देने के लिए होता है. आज खुद उस मुकाम पर है जहां एक्टिंग के लिहाज से उन्हें तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. मतलब जैसा हाल है स्वरा की एक्टिंग की बुराई वो लोग भी कर रहे हैं जिन्होंने इस दुनिया में जन्म ही लिया है अपनी जगहंसाई कराने के लिए.
कहने को तो फिल्म महिला सशक्तिकरण की चाशनी में डुबाकर बनाई गयी है. लेकिन अब हमारा सवाल आप से है. पूरे समाज से है. क्या महिला सशक्तिकरण जैसा गंभीर मुद्दा वाक़ई वैसा ही है जैसा उसे इस फिल्म में दिखाया गया है? स्वरा फिल्म, अपने रोल और महिला सशक्तिकरण को लेकर कुछ कह ले लेकिन हम यही कहेंगे कि महिलाओं का मुद्दा अभी इतना भी हल्का नहीं है.
बतौर एक्टर स्वरा को इस बात को गांठ बांध लें चाहिए कि, अगर उनकी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर धराशायी हुई है तो वजह किसी की उनसे निजी दुश्मनी नहीं है बल्कि वो टॉपिक है जिसे ध्यान में रखकर इस फिल्म का निर्माण किया गया है. इस फिल्म के लिए स्वरा और उनके काम का समर्थन करने वाले लोग कुछ भी कहने के लिए आजाद हैं लेकिन एक बड़ी सच्चाई यही है कि जहां चार यार मास की नहीं बल्कि क्लास की फिल्म है.
जब बात इसपर हो कि एक घटिया फिल्म हमारे सामने है. तो हम निर्देशक कमल पांडे को क्यों छोड़ दें. एक डायरेक्टर के रूप में कमल को भी इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि स्वरा जैसे लोग एक्टिविज्म का नाम देकर इस तरह की गप को पचा लेंगे, लेकिन उनका क्या? बतौर निर्देषक उन्हें पहचान काम से मिलेगी न की विवादों से.
कमल को लेकर जो सबसे बड़ा सवाल हमारे सामने है. वो ये कि, एक डायरेक्स्टर के रूप में आखिर वो ये कैसे भूल गए कि उनकी फिल्म सवा सौ करोड़ लोगों के लिए है. ये अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि जैसा ट्रीटमेंट इस फिल्म को दिया गया है वो इसे सिनेमघरों की फिल्म न बनाकर मल्टिप्क्लेक्स की फिल्म बनाता है.
ध्यान रहे कि आज का दौर वो दौर है जब दर्शक पहले जैसा नहीं है. आज दर्शकों द्वारा फिल्म में दिखाई गयी बारीक से बारीक बातों का न केवल अवलोकन किया जा रहा है बल्कि तब आपत्ति भी दर्ज की जा रही है जब कोई चीज दर्शकों को समझ में नहीं आ रही है.
जैसा एक फिल्म के रूप में चार यार का फ्लेवर है पर्दे पर दिखाया यही गया है कि चार शादी शुदा दोस्त हैं. जो आजाद होकर रहना चाहती हैं. जिन्हें भरपूर सेक्स करना है. शराब पीनी है और अपने जैसे लोगों के साथ घूमने जाना है. इसे कोई कुछ भी कह दे लेकिन ये महिला सशक्तिकरण किसी भी हाल में नहीं है.
चूंकि इस फिल्म का प्रोमोशन स्वरा के नाम पर हुआ है. चाहे वो क्रिटिक्स रहे हों या फिर दर्शक हर किसी ने जहां चार यार को स्वरा की फिल्म बताया है तो अब जबकि ये फिल्म पिट चुकी है. सारी जवाबदेही स्वरा की ही बनती है. जहां चार यार ने जिस तरह पैसा और वक़्त दोनों बर्बाद किया है ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि स्वरा जब अच्छी एक्टर रही होंगी तब रही होंगी। आज उनका शुक्र एक ऐसी एक्टर में है जो जिस फिल्म में जाती है उसका फ्लॉप होना तय है.
साफ़ है कि अब वो वक़्त आ गया है जब स्वरा को खुद को सोशल मीडिया एक्टर घोषित कर देना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि जहां चार यार की असफलता ने साबित कर दिया है कि एक्टिविज्म तक तो ठीक है लेकिन एक्टिंगऔर एक्टिंग के दम पर फिल्म को हिट कराना स्वरा के बस की बात नहीं है.
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