शायद लोगों ने मन ही मन निर्णय कर लिया था, अनुराग और तापसी की विश जो पूरी करनी थी. सो पब्लिक ने भी विश किया दोनों को, 'May your wishes come true. घमंड देखिये इस महानुभाव का, कहते हैं, 'किसी के बॉयकॉट करने से मेरी ज़िंदगी खत्म नहीं होगी... मुझे इतने काम आते हैं कि मैं कभी ज़िंदगी में बेरोज़गार नहीं रहूंगा... किसी भी देश में जाकर कुछ भी पढ़ा सकता हूं.' वन्स अगेन विश हिम गुड लक एंड आल द बेस्ट! अनुराग बाबू ने कहा, 'कृपया सभी लोग हमारी फिल्म दोबारा का बहिष्कार करें. मैं आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा और अक्षय कुमार की रक्षाबंधन जैसी ही लीग में रहना चाहता हूं. मैं खुद को बचा हुआ महसूस कर रहा हूं...'हां प्लीज़ , मैं चाहता हूं कि हमारी फिल्म बॉयकॉट हैशटैग पर भी ट्रेंड करे !” तो अनुराग बाबू, ये पब्लिक है. अंदर क्या है, बाहर क्या है? ये सब कुछ पहचानती है कि आपने भी आमिर खान के मानिंद विक्टिम कार्ड चल दिया है. फ़्लॉप हुई तो अजेंडा प्रूव हो गया और बदक़िस्मती से फ़िल्म चल गई तो भई अनुराग बाबू की फ़िल्म है, पब्लिक ‘ना देखना ’ कैसे अफ़ॉर्ड कर सकती थी. ख़ुशक़िस्मती से फ़िल्म फ़्लॉप हो गई है ! नो चिंता नो फ़िकर. दर असल उनके काम की कद्र इंडिया कर ही नहीं सकता ! हाँ, दुनिया का हर देश पलके बिछाए बैठा है महान हस्ती के लिए. आएं और 'कुछ' भी पढ़ा दें!
वहां अनुराग ही अनुराग जो भरे पड़ें हैं. 'अनुराग' को समझने के लिए. अनुराग बैरागी हो गए हैं, हठी तो थे ही. अब लगता है चाहते कुछ और थे, कुछ और करने जा रहे हैं और धीरे-धीरे खुद-ब-खुद अस्तित्व खोते जा रहे हैं. जटिल पर्सनालिटी के स्वामी हैं वे. जटिल हैं उनकी बातें, जटिल है उनकी...
शायद लोगों ने मन ही मन निर्णय कर लिया था, अनुराग और तापसी की विश जो पूरी करनी थी. सो पब्लिक ने भी विश किया दोनों को, 'May your wishes come true. घमंड देखिये इस महानुभाव का, कहते हैं, 'किसी के बॉयकॉट करने से मेरी ज़िंदगी खत्म नहीं होगी... मुझे इतने काम आते हैं कि मैं कभी ज़िंदगी में बेरोज़गार नहीं रहूंगा... किसी भी देश में जाकर कुछ भी पढ़ा सकता हूं.' वन्स अगेन विश हिम गुड लक एंड आल द बेस्ट! अनुराग बाबू ने कहा, 'कृपया सभी लोग हमारी फिल्म दोबारा का बहिष्कार करें. मैं आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा और अक्षय कुमार की रक्षाबंधन जैसी ही लीग में रहना चाहता हूं. मैं खुद को बचा हुआ महसूस कर रहा हूं...'हां प्लीज़ , मैं चाहता हूं कि हमारी फिल्म बॉयकॉट हैशटैग पर भी ट्रेंड करे !” तो अनुराग बाबू, ये पब्लिक है. अंदर क्या है, बाहर क्या है? ये सब कुछ पहचानती है कि आपने भी आमिर खान के मानिंद विक्टिम कार्ड चल दिया है. फ़्लॉप हुई तो अजेंडा प्रूव हो गया और बदक़िस्मती से फ़िल्म चल गई तो भई अनुराग बाबू की फ़िल्म है, पब्लिक ‘ना देखना ’ कैसे अफ़ॉर्ड कर सकती थी. ख़ुशक़िस्मती से फ़िल्म फ़्लॉप हो गई है ! नो चिंता नो फ़िकर. दर असल उनके काम की कद्र इंडिया कर ही नहीं सकता ! हाँ, दुनिया का हर देश पलके बिछाए बैठा है महान हस्ती के लिए. आएं और 'कुछ' भी पढ़ा दें!
वहां अनुराग ही अनुराग जो भरे पड़ें हैं. 'अनुराग' को समझने के लिए. अनुराग बैरागी हो गए हैं, हठी तो थे ही. अब लगता है चाहते कुछ और थे, कुछ और करने जा रहे हैं और धीरे-धीरे खुद-ब-खुद अस्तित्व खोते जा रहे हैं. जटिल पर्सनालिटी के स्वामी हैं वे. जटिल हैं उनकी बातें, जटिल है उनकी सोच, जटिल है उनका आचरण, जटिल है उनके रिश्ते और रिश्तों की समझ , और जटिल ही है उनका अप्रत्याशित होना ! उनकी विचारधारा , सामाजिक या राजनीतिक, जटिल होने के साथ साथ विकट भी है.
'दोबारा' उन्होंने बनाई, अपने ख्याल से अच्छी ही बनाई होंगी लेकिन मिर्ज़ा ग़ालिब ने शायद अनुराग के लिए ही शेर फ़रमाया था, 'हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन दिल के ख़ुश रखने को 'अनुराग' ये ख्याल अच्छे हैं !' अपनी हर फिल्म से पहले अनुराग अपनी फिल्म का एक औरा रचते हैं और गौरवान्वित होते हैं कि जो उन्होंने बनाया वो व्यूअर्स के समझ में नहीं आया. उनका ख्याल है यही उनके फिल्म मेकिंग की जीत है.
अनुराग का दूसरा ख्याल है उनकी फिल्म 'दोबारा' स्पैनिश फिल्म 'मिराज' की रीमेक नहीं है. बस, उनके इसी ख्याल ने उनके क्लास और तगड़े प्रशंसकों को भी नाराज कर दिया. कोरोना काल में क्लास ने इतना कुछ देख डाला कि कोई ये ख्याल पाल ले कि 'मिराज' किसी ने नहीं देखी है, कैसे मंजूर हो ? भाई, कहानी कॉपी की तो कम से कम क्रेडिट तो दे दो. क्या खुद की रचने की हैसियत चूक गई है ? आम दर्शक फिल्म क्यों देखे ? समझ में आनी ही नहीं है !
कहानी या उपन्यास पढ़ रहे होते तो जो समझ नहीं आया उसे दुबारा पढ़ लेते लेकिन थिएटर में तो इच्छानुसार फिल्म को रिवाइंड नहीं कर सकते ना. और 'दोबारा' को 'दोबारा' देखने का ख्याल तो अनुराग फैन क्लब के सम्मानित सदस्य के मन में ही आ सकता है परंतु फैन क्लब भी तो बिदक गया है अनुराग कश्यप के 'धूर्त' ख्याल से ! फिर यदि अनुराग फैन क्लब सौ फीसदी लॉयल रहता तो दूसरे भी लालायित होते फिल्म देखने के लिए.
कम से कम कॉलर ऊंची कर पाते कि हम भी अब चीप क्लास नहीं रहे, टाइम ट्रेवल कर चुके हैं. अफ़सोस ! ऐसा कुछ नहीं हो रहा है ! हां, इंटरनेशनल पहुंच है अनुराग कश्यप की, किसी भी देश में कुछ भी पढ़ाने का दावा जो किया है उन्होंने, तो किसी न किसी फिल्म फेस्टिवल में अपनी फिल्म का प्रदर्शन करवा ही देंगे और लगे हाथों प्रचार पा लेंगे कि 'दोबारा' फलां इंटरनेशनल फेस्टिवल में दिखाई गयी.
एक और ख्याल है उनका ! मीडिया कहानी बना रहा है ! बड़ी फिल्मों को लेकर सिर्फ धारणायें बनाई जा रही है ! साउथ की फिल्मों का हौवा खड़ा किया जाता है ! उनकी बदहवासी स्पष्ट है ! एक ख्याल आता है तभी उसे दूसरा ख्याल आकर काट देता है ! तभी कहीं और किसी और को वे कहते हैं कि साउथ की फिल्में अपने कल्चर में रची-बसी हैं, हिंदी फिल्मों के साथ ऐसा नहीं हो पा रहा ! ख्यालों को आपस में लड़ायें तो नहीं !
वैसे अनुराग कश्यप खुद को ओवर द टॉप (OTT) कल्चर के मंझे हुए खिलाड़ी के रूप में सिद्ध कर चुके हैं. एक बार फिर कल्चर के नाम पर जमकर मनमर्जियां कर लेते और किसी ओटीटी प्लेटफार्म पर ले आते 'दोबारा' को. बॉक्स ऑफिस पर हिट, सुपरहिट या ब्लॉकबस्टर के मेनिया से तो बाहर रहते. अनुराग ब्रांड की वाट तो नहीं लगती. उल्टे वैल्यू में इजाफा ही होता!
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