'लकीर पीटना' एक ऐसे देश में जहां बड़े बुजुर्गों से लेकर युवाओं तक सभी अपनी बातों में मुहावरों और लोकोक्तियों का भरसक प्रयोग करते हों, एक चर्चित मुहावरा है. बात इसके अर्थ की हो तो इस मुहावरे का इस्तेमाल घटना के बाद लिए गए व्यर्थ के एक्शन के मद्देनजर किया जाता है. अब सवाल ये है कि आखिर हम क्यों अपनी बात की शुरुआत में ही इस मुहावरे का इस्तेमाल कर रहे हैं? जवाब है OTT प्लेटफॉर्म्स और उन प्लेटफॉर्म्स के अंतर्गत परोसा जाने वाला कंटेंट. जो चर्चा में है. ध्यान रहे कि मौजूदा वक्त में एंटरटेनमेंट के नाम पर जो कंटेंट दिखाया जा रहा है उसकी जमकर आलोचना हो रही है. एक तरफ इस कंटेंट में गाली गलौज की भरमार है. तो वहीं सीन की डिमांड के नाम पर आपत्तिजनक चीजें भी जमकर परोसी जा रही हैं. और नौबत कुछ ऐसी आ गई है कि सिने क्रिटिक्स का एक बड़ा वर्ग इसे सॉफ्ट पोर्न की संज्ञा दे रहा है. अब तक ट्विटर और फेसबुक पर चर्चा का विषय बना OTT का ये कंटेंट तांडव और मिर्ज़ापुर कॉन्ट्रोवर्सी के प्रकाश में आने के बाद संसद पहुंच गया है. संसद में मांग की गई है कि OTT प्लेटफॉर्म्स को नियमों के दायरे में लाया जाए.
OTT का जिक्र संसद में कैसे हुआ? वजह बने हैं भारतीय जनता पार्टी के 2 सांसद जिन्होंने कारण दिया है मि कई OTT प्लेटफॉर्म हिंसा, ड्रग्स को बढ़ावा तो दे ही रहे हैं साथ ही इनमें हिंदू देवी देवताओं को जमकर अपमानित भी किया जा रहा है. ज्ञात हो कि तांडव विवाद के अंतर्गत वो दृश्य खूब चर्चा में आया था जिसमें सीरीज में एक्टर जीशान अय्यूब को एक प्ले में भगवान शिव बनते और तमाम तरह की आपत्तिजनक बातें करते हुए दिखाया गया था.
मामला चूंकि हमारी आस्था से जुड़ा था. इसलिए...
'लकीर पीटना' एक ऐसे देश में जहां बड़े बुजुर्गों से लेकर युवाओं तक सभी अपनी बातों में मुहावरों और लोकोक्तियों का भरसक प्रयोग करते हों, एक चर्चित मुहावरा है. बात इसके अर्थ की हो तो इस मुहावरे का इस्तेमाल घटना के बाद लिए गए व्यर्थ के एक्शन के मद्देनजर किया जाता है. अब सवाल ये है कि आखिर हम क्यों अपनी बात की शुरुआत में ही इस मुहावरे का इस्तेमाल कर रहे हैं? जवाब है OTT प्लेटफॉर्म्स और उन प्लेटफॉर्म्स के अंतर्गत परोसा जाने वाला कंटेंट. जो चर्चा में है. ध्यान रहे कि मौजूदा वक्त में एंटरटेनमेंट के नाम पर जो कंटेंट दिखाया जा रहा है उसकी जमकर आलोचना हो रही है. एक तरफ इस कंटेंट में गाली गलौज की भरमार है. तो वहीं सीन की डिमांड के नाम पर आपत्तिजनक चीजें भी जमकर परोसी जा रही हैं. और नौबत कुछ ऐसी आ गई है कि सिने क्रिटिक्स का एक बड़ा वर्ग इसे सॉफ्ट पोर्न की संज्ञा दे रहा है. अब तक ट्विटर और फेसबुक पर चर्चा का विषय बना OTT का ये कंटेंट तांडव और मिर्ज़ापुर कॉन्ट्रोवर्सी के प्रकाश में आने के बाद संसद पहुंच गया है. संसद में मांग की गई है कि OTT प्लेटफॉर्म्स को नियमों के दायरे में लाया जाए.
OTT का जिक्र संसद में कैसे हुआ? वजह बने हैं भारतीय जनता पार्टी के 2 सांसद जिन्होंने कारण दिया है मि कई OTT प्लेटफॉर्म हिंसा, ड्रग्स को बढ़ावा तो दे ही रहे हैं साथ ही इनमें हिंदू देवी देवताओं को जमकर अपमानित भी किया जा रहा है. ज्ञात हो कि तांडव विवाद के अंतर्गत वो दृश्य खूब चर्चा में आया था जिसमें सीरीज में एक्टर जीशान अय्यूब को एक प्ले में भगवान शिव बनते और तमाम तरह की आपत्तिजनक बातें करते हुए दिखाया गया था.
मामला चूंकि हमारी आस्था से जुड़ा था. इसलिए क्या आम क्या खास लोगों से इसे हाथों हाथ लिया. बात कुछ इस हद तक बड़ी की नौबत थाना पुलिस की आ गई और अमेजन प्राइम को लिखित में माफी मांगनी पड़ी. बताते चलें कि फिलहाल ott का कंटेंट सेंसर बोर्ड की जांच के दायरे से परे है.
गौरतलब है कि भाजपा के सांसद मनोज कोटक ने शून्य काल मे लोकसभा में OTT के कंटेंट को नियमों के दायरे में लाने की बात की है. कोटक ने कहा है कि 'कुछ वेब सीरीज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ढाल बनाकर हिंसा और ड्रग्स को बढ़ावा दे रही हैं. वहीं उन्होंने तांडव का जिक्र करते हुए ये भी कहा है कि इनमें हिंदू धर्म का भी जी भरकर मखौल उड़ाया जा रहा है.
OTT कंटेंट के मद्देनजर लोकसभा में दिए गए अपने भाषण में कोटक ने सरकार से मांग की है कि भारत के युवाओं पर ओटीटी प्लेटफॉर्म के माध्यम से दिखाए जाने वाले कंटेंट से पड़ने वाले बुरे प्रभाव को देखते हुए इसे रेगुलेटिंग अथॉरिटी के पास से जांच करवानी चाहिए. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम और हॉटस्टार डिजनी प्लस जैसे कम से कम 40 ओटीटी प्लेटफॉर्म ऐसे हैं जो नियमों को दरकिनार कर एक से एक वाहियात चीज परोस रहे हैं.
जैसा कि हम बता चुके हैं तांडव विवाद सुर्खियों में है इसलिए मनोज कोटक ने यह भी कहा कि हाल ही में कुछ वेब सीरीज में से सीन भी निकाले गए, जब उन पर एफआईआर दर्ज की गई. जिन पर हिंदू देवी-देवताओं को अपमानित करने का आरोप लगा है.
कोटक की बातों को भाजपा एक अन्य सांसद किरीट सोलंकी ने भी समर्थन दिया है और कहा है कि, 'भारत की संस्कृति और सभ्यता पर मनोरंजन के नाम पर हमला किया जा रहा है. ओटीटी प्लेटफॉर्म्स द्वारा बहुत सारा विवादित कंटेंट दिखा जा रहा है, जिसके चलते देश का युवा प्रभावी हो रहा है.
सूचना और प्रसारण मंत्री से मुखातिब होते हुए सोलंकी ने कहा है कि 'मैं सूचना और प्रसारण मंत्री से निवेदन करूंगा कि वह ओटीटी कंटेंट का तुरंत प्रभाव से नियमन करें. दो सत्ताधारी सांसदों की बातें लोकसभा को कितना प्रभावित कर पाएंगी? क्या सरकार इस दिशा में गंभीर होगी? क्या OTT का कंटेंट जांच या ये कहें कि सेंसरशिप के दायरे में आएगा?
हज़ारों सवाल हैं जिनके जवाब के लिए हम सिवाए प्रतीक्षा के ज्यादा कुछ नहीं कर सकते. मगर जो बात अपने में खासी दिलचस्प है वो ये कि अब व्यर्थ में लकीर पीटी जा रही है और ये सब उस वक़्त में हो रहा है, जब हाथी गुजर चुका है. बहुत सीधी सी बात है. बैन से लेकर बॉयकॉट और सेंसरशिप तक जो भी ताम झाम वर्तमान परिदृश्य में OTT के मद्देनजर किये जा रहे हैं वो पूर्ण रूप से व्यर्थ है और इन्हें देखकर सिवाए हंसी के और कुछ नहीं होता.
आज जो अश्लील कंटेंट हमें दिखाया जा रहा है या रचनात्मक होने के नाम पर धर्म का उपहास किया जा रहा है उसके लिए हमने स्वयं OTT के निर्माता और निर्देशकों को प्रोत्साहित किया है. रोक की जो बातें आज हो रही हैं. यदि ये तब लागू होतीं जब भारत में अलग अलग OTT प्लेटफॉर्म्स ने अपने कदम जमाए थे तब बात होती.
आज जब परिस्थितियां हमारे हाथ से निकल चुकी हैं, हम बस शरीफ बनने का ढोंग कर रहे हैं. कहना गलत नहीं है कि अब शराफत पूर्ण रूप से हमारी सुविधा और सुचिता पर निर्भर करती है. जब तक मजा आ रहा है OTT कंटेंट का लुत्फ लीजिये बाद में तो शराफत का चोला ओढ़ ही लिया जाएगा.
बहरहाल ये सारा बखेड़ा तांडव और मिर्ज़ापुर विवाद के चलते हुआ है तो जिस तरह अमेजन प्राइम ने अन्य OTT प्लेटफॉर्म्स को मुसीबत में डाला है तारीख इसे याद रखेगी और इसका हिसाब लिया जाएगा. भले ही उस क्षण भी हमें लकीर ही पीटनी पड़े.
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