बॉलीवुड आलोचकों के निशाने पर है. कारण है कहानियों का चयन. तमाम सिने प्रेमी ऐसे हैं, जिन्हें शिकायत है कि बॉलीवुड अच्छी कहानियों का चयन नहीं कर रहा है. अगर गलती से हिंदी पट्टी के प्रोड्यूसर डायरेक्टर्स द्वारा सही कहानी चुन भी ली गई. तो उनके लिए उसे निभाया, आज के समय में जब साउथ का सिनेमा दर्शकों के दिमाग पर अपना जादू कर गया हो. एक टेढ़ी खीर है. ख़राब कहानियां कैसे एक इंडस्ट्री के रूप में बॉलीवुड की हालत ख़राब कर रही हैं? इसके यूं तो ढेरों उदाहरण भरे हैं लेकिन पुष्टि तब होती है जब हम हालिया रिलीज फिल्म थैंक गॉड को देखें जिसे निर्देशित किया है इंद्र कुमार ने और जिसमें सिद्धार्थ मल्होत्रा,अजय देवगन और रकुल प्रीत ने लीड रोल किया है. कहने को तो फिल्म को फैमली एंटरटेनर बताया जा रहा है. लेकिन जब हम फिल्म को देखते हैं तो फिल्म को पाप पुण्य की कसौटी पर रखा गया है और क्योंकि फिल्म में आफ्टर लाइफ को भी तरजीह दी गई है एक ठीक ठाक फिल्म कई मौकों पर कोरी गप से ज्यादा कुछ और नहीं नजर आती है.
फिल्म क्योंकि इंद्र कुमार की है और इंद्र क्योंकि पहले ही धमाल, टोटल धमाल, मस्ती, ग्रैंड मस्ती जैसी कॉमेडी फ़िल्में बना चुके हैं इसलिए दर्शक थैंक गॉड में भी उनसे कुछ मिलती जुलती ही उम्मीद कर रहे थे लेकिन क्योंकि इस बार इंद्र ने बिल्कुल अलग टॉपिक चुना और ऐसे कलाकारों का चयन किया जो इस तरह की फिल्मों के लिए नहीं बने हैं एक अच्छी फिल्म बनते बनते रह गयी.
जैसा कि हम ऊपर इस बात को जाहिर कर चुके हैं कि कॉमेडी बतौर निर्देशक इंद्र कुमार की यूएसपी है थैंक गॉड में भी तमाम सीन ऐसे हैं जिनमें हास्य का पुट दिया गया लेकिन एक एक्टर के रूप में सिद्धार्थ मल्होत्रा ने जिस तरह की...
बॉलीवुड आलोचकों के निशाने पर है. कारण है कहानियों का चयन. तमाम सिने प्रेमी ऐसे हैं, जिन्हें शिकायत है कि बॉलीवुड अच्छी कहानियों का चयन नहीं कर रहा है. अगर गलती से हिंदी पट्टी के प्रोड्यूसर डायरेक्टर्स द्वारा सही कहानी चुन भी ली गई. तो उनके लिए उसे निभाया, आज के समय में जब साउथ का सिनेमा दर्शकों के दिमाग पर अपना जादू कर गया हो. एक टेढ़ी खीर है. ख़राब कहानियां कैसे एक इंडस्ट्री के रूप में बॉलीवुड की हालत ख़राब कर रही हैं? इसके यूं तो ढेरों उदाहरण भरे हैं लेकिन पुष्टि तब होती है जब हम हालिया रिलीज फिल्म थैंक गॉड को देखें जिसे निर्देशित किया है इंद्र कुमार ने और जिसमें सिद्धार्थ मल्होत्रा,अजय देवगन और रकुल प्रीत ने लीड रोल किया है. कहने को तो फिल्म को फैमली एंटरटेनर बताया जा रहा है. लेकिन जब हम फिल्म को देखते हैं तो फिल्म को पाप पुण्य की कसौटी पर रखा गया है और क्योंकि फिल्म में आफ्टर लाइफ को भी तरजीह दी गई है एक ठीक ठाक फिल्म कई मौकों पर कोरी गप से ज्यादा कुछ और नहीं नजर आती है.
फिल्म क्योंकि इंद्र कुमार की है और इंद्र क्योंकि पहले ही धमाल, टोटल धमाल, मस्ती, ग्रैंड मस्ती जैसी कॉमेडी फ़िल्में बना चुके हैं इसलिए दर्शक थैंक गॉड में भी उनसे कुछ मिलती जुलती ही उम्मीद कर रहे थे लेकिन क्योंकि इस बार इंद्र ने बिल्कुल अलग टॉपिक चुना और ऐसे कलाकारों का चयन किया जो इस तरह की फिल्मों के लिए नहीं बने हैं एक अच्छी फिल्म बनते बनते रह गयी.
जैसा कि हम ऊपर इस बात को जाहिर कर चुके हैं कि कॉमेडी बतौर निर्देशक इंद्र कुमार की यूएसपी है थैंक गॉड में भी तमाम सीन ऐसे हैं जिनमें हास्य का पुट दिया गया लेकिन एक एक्टर के रूप में सिद्धार्थ मल्होत्रा ने जिस तरह की रूखी एक्टिंग की दर्शकों को हंसी तो नहीं आई हां अलबत्ता ये जरूर हुआ कि उनके दिमाग में कई सवाल जरूर आए जिनमें सबसे पहला सवाल ये था कि क्या इंडस्ट्री के बाकी लोग कुछ ज्यादा ही व्यस्त थे जो डायरेक्टर इंद्र कुमार ने आलोचना सहने और तमाम तरह की अनर्गल बातें सुनने का मौका अजय देवगन और सिद्धार्थ मल्होत्रा को दिया.
थैंक गॉड जिस तरह की फिल्म है कहना गलत नहीं है कि सिद्धार्थ मल्होत्रा इस फिल्म की कमजोर कड़ी हैं. बाकी बात अगर अजय देवगन की हो तो वो जरूर अपना मकसद पूरा करते हुए नजर आ रहे हैं. ये तो बात हो गयी फिल्म में हीरो बिरादरी की. अब जब हम फिल्म की एक्ट्रेस पर चर्चा करें तो कई दिलचस्प पक्ष हमें फिल्म में नजर आते दिखाई दे रहे हैं.
फिल्म के लिए इंद्र कुमार ने बतौर एक्ट्रेस रकुल प्रीत को मौका दिया. फिल्म में भले ही रकुल का रोल छोटा रहा हो लेकिन जिस गंभीरता या ये कहें कि तन्मयता से रकुल ने अपने छोटे से रोल को निभाया ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि रकुल का भविष्य उज्जवल है. यदि कल की तारिख में रकुल को सही स्क्रिप्ट, समझदार डायरेक्टर और अहम रोल मिलते हैं तो यक़ीनन उन्हें अपने रोल के लिए अवार्ड मिल सकता है.
फिल्म में रोल नोरा फतेही ने भी किया है और उनको निर्देशक इंद्र कुमार ने फिल्म में सिर्फ इसलिए फिट किया ताकि दस या पांच मिनट और दर्शक सिनेमाहाल की कुर्सियों पर अपनी पीठ टिका सकें. फिल्म में जो आइटम नंबर नोरा के हिस्से में आए उनके साथ उन्होंने इंसाफ किया है.
फिल्म को लेकर जैसा कि हम ऊपर ही इस बात को जाहिर कर चुके हैं कि फिल्म आफ्टर लाइफ या ये कहें कि भविष्य की बातों और पाप पुण्य को लेकर है. तो फिल्म में ऐसे तमाम मौके आते हैं जो बतौर दर्शक हमें सिर्फ इसलिए बोर कर देते हैं कि कहानी भागती हुई और बिना किसी कनेक्शन के मालूम देती है. काश के फिल्म को लिखते वक़्त फिल्म के स्क्रिप्ट राइटर को अपनी जिम्मेदारी का एहसास हुआ होता.
बहरहाल, ऐसा बिलकुल नहीं है कि फिल्म बुरी है. हां अलबत्ता इतना जरूर है कि फिल्म एक औसत दर्जे की फिल्म है जो इंटरवल से पहले तक आपको हंसाती है मगर जैसे ही इंटरवल ख़त्म होता है उसी लीग पर आ जाती है जिसके लिए एक इंडस्ट्री के रूप में हमारा बॉलीवुड मशहूर था. बाद बाकी ये भी है कि दो या ढाई घंटे में बहुत कुछ नहीं दिखाया जा सकता. निर्देशक समझदार हैं इस बात को बखूबी समझते हैं और शायद इसी लिए एक ऐसा ब्लंडर हुआ जिसका खामियाजा हम दर्शकों को भुगतना पड़ा.
बाकी फिल्म अच्छी है या बुरी ये उसे देखने के बाद के बाद ही पोता चलेगा. इसलिए फिल्म देखिये उसे अपने विवेक की कसौटी पर तौलिये हो सकता है फिल्म आपको अच्छी बल्कि बहुत अच्छी लगे या फिर ये भी हो सकता है फिल्म आपको बुरी लगे और आप ये कह बैठें कि जब तक ऐसी फिल्म बनेगी यूं ही क्रिटिक्स के अलावा दर्शक भी बॉलीवुड की आलोचना करते रहेंगे.
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