आज न सिर्फ बॉलीवुड बल्कि राजनीति के लिए भी बड़ा दिन है. कारण ये है कि अनुपम खेर की फिल्म 'The Accidental Prime minister' रिलीज हो चुकी है. ये फिल्म तब से ही चर्चा का विषय बनी हुई है जबसे ये बनना शुरू हुई है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दौर में मीडिया एडवाइजर रहे संजय बारू की किताब पर आधारित ये फिल्म लोकसभा चुनाव 2019 के पहले नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के चुनावी अभियान में थोड़े बदलाव ला सकती है. कुल मिलाकर इस फिल्म को एक राजनीतिक एंगल से भी देखा जा रहा था. अब ये फिल्म रिलीज हो चुकी है.
जहां तक इस फिल्म के रिव्यू की बात है तो कई लोग इसकी तारीफ कर रहे हैं तो कई के लिए ये सिर्फ एक ऐसी फिल्म है जो राजनीतिक उल्लू सीधा कर रही है. एनडीटीवी ने इस फिल्म को 1.5 स्टार दिए हैं और लिखा है कि, 'एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर की टाइमिंग कोई एक्सिडेंट नहीं है.'
हफिंगटन पोस्ट के मुताबिक एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर ज्यादा संजय बारू के बारे में है न कि मनमोहन सिंह के बारे में. इंडियन एक्सप्रेस का कहना है कि ये फिल्म एक प्रोपागैंडा फिल्म है जिसका एकलौता मकसद है ये साबित करना कि डॉक्टर मनमोहन सिंह कितने कमजोर प्राइम मिनिस्टर थे.
अधिकतर वेबसाइट्स ने इस फिल्म को राजनीतिक ही बताया है. क्योंकि फिल्म में फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन का पूरा फायदा उठाया है और असल इंसानों की जिंदगी पर फिल्म बनाई है साथ ही नाम भी वैसे ही लिए हैं तो इस फिल्म की सत्यता पर सवाल उठाना मुश्किल हो जाता है, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं कि जो भी इसमें बताया गया है वो सही ही हो.
जहां तक जनता के रिव्यू का सवाल है तो Accidental Prime Minister का Review ट्विटर पर लोगों ने देना शुरू कर दिया...
आज न सिर्फ बॉलीवुड बल्कि राजनीति के लिए भी बड़ा दिन है. कारण ये है कि अनुपम खेर की फिल्म 'The Accidental Prime minister' रिलीज हो चुकी है. ये फिल्म तब से ही चर्चा का विषय बनी हुई है जबसे ये बनना शुरू हुई है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के दौर में मीडिया एडवाइजर रहे संजय बारू की किताब पर आधारित ये फिल्म लोकसभा चुनाव 2019 के पहले नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के चुनावी अभियान में थोड़े बदलाव ला सकती है. कुल मिलाकर इस फिल्म को एक राजनीतिक एंगल से भी देखा जा रहा था. अब ये फिल्म रिलीज हो चुकी है.
जहां तक इस फिल्म के रिव्यू की बात है तो कई लोग इसकी तारीफ कर रहे हैं तो कई के लिए ये सिर्फ एक ऐसी फिल्म है जो राजनीतिक उल्लू सीधा कर रही है. एनडीटीवी ने इस फिल्म को 1.5 स्टार दिए हैं और लिखा है कि, 'एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर की टाइमिंग कोई एक्सिडेंट नहीं है.'
हफिंगटन पोस्ट के मुताबिक एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर ज्यादा संजय बारू के बारे में है न कि मनमोहन सिंह के बारे में. इंडियन एक्सप्रेस का कहना है कि ये फिल्म एक प्रोपागैंडा फिल्म है जिसका एकलौता मकसद है ये साबित करना कि डॉक्टर मनमोहन सिंह कितने कमजोर प्राइम मिनिस्टर थे.
अधिकतर वेबसाइट्स ने इस फिल्म को राजनीतिक ही बताया है. क्योंकि फिल्म में फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन का पूरा फायदा उठाया है और असल इंसानों की जिंदगी पर फिल्म बनाई है साथ ही नाम भी वैसे ही लिए हैं तो इस फिल्म की सत्यता पर सवाल उठाना मुश्किल हो जाता है, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं कि जो भी इसमें बताया गया है वो सही ही हो.
जहां तक जनता के रिव्यू का सवाल है तो Accidental Prime Minister का Review ट्विटर पर लोगों ने देना शुरू कर दिया है.
ट्विटर पर भी लोग इसे एकतरफा फिल्म ही बता रहे हैं.
लोग अनुपम खेर की एक्टिंग को लेकर भी चर्चा कर रहे हैं. एक बात तो ट्रेलर से ही समझ आती है कि अनुपम खेर ने एक्टिंग बेहद अच्छी की है.
जिन लोगों को ये फिल्म पसंद आ रही है उन्हें भी इन स्टार्स की एक्टिंग ज्यादा पसंद आ रही है.
कई लोग इसे भी कांग्रेस की गलती मान कर चल रहे हैं. पीएम मनमोहन सिंह के 10 साल के कार्यकाल में कांग्रेस के अंदरूनी झगड़े को ये फिल्म दिखाती है.
पर एक बात तो पक्की है कि फिल्म में संजय बारू के किरदार को बहुत तवज्जो दी गई है. उनके किरदार को मनमोहन सिंह के करीब ही आंका जा रहा है जो इस फिल्म की कमजोरी कही जा सकती है.
जहां भी फिल्म की तारीफ हो रही है वो सिर्फ एक्टिंग के लिए हो रही है.
फिल्म में मनमोहन सिंह को कमजोर प्राइम मिनिस्टर दिखाया गया है. मनमोहन सिंह के बारे में यही बात कही जाती थी कि वो बेहद कमजोर प्राइम मिनिस्टर हैं जो पार्टी के इशारे पर चलते हैं.
यहां भी बात कांग्रेस और भाजपा के बीच की लग रही है. लोग एक माइंड सेट के साथ ही फिल्म देखने जा रहे हैं.
कुल मिलाकर इस फिल्म को देखने जाने से पहले ये ध्यान रखिए कि कहीं आप एक माइंड सेट के साथ तो फिल्म देखने नहीं जा रहे? डॉक्टर मनमोहन सिंह, गांधी परिवार और भाजपा को दिमाग से निकाल कर फिल्म देखने जाएं तो शायद बेहतर रिजल्ट मिले. एक बात तो पक्की है कि लोकसभा चुनाव 2019 के पहले बॉलीवुड में आने वाली फिल्में कहीं न कहीं चुनावी चक्कर में फंस गई हैं और राजनीति के इतिहास में शायद ये पहली बार होगा जब बॉलीवुड भी चुनावी संग्राम में मदद करता सा दिख रहा है.
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