पठान के जातिवादी टाइटल पर भी समाज के तमाम धड़ों में बहुत गुस्सा नजर आया है. पठान को यशराज फिल्म्स के बैनर ने बनाया है. समाज के अलग-अलग धड़ों ने भी तमाम मुद्दों पर पठान और बेशरम रंग का विरोध किया था. लेकिन बुद्धिजीवी तबके के लिए दो मुद्दे अहम रहे. एक तो बेशरम रंग में जिस तरह कला के नाम भद्दा देह प्रदर्शन किया गया और फिल्म के गीत संगीत को भी लोगों ने पसंद नहीं किया. बुद्धिजीवी तबके के लिए पठान में दूसरा जो असल में सबसे बड़ा मुद्दा भी था वह फिल्म का टाइटल इसे सभी ने एक स्वर में जातिवादी करार दिया था.
टाइटल को लेकर बेहद नाराजगी थी और इसे हर हाल में बदलने की मांग की थी. पढ़े-लिखे लोगों के समूह ने कहा था कि पठान का टाइटल जातीय दंभ में बनाया गया है. भला संविधान पर चलने वाले देश में किसी की भी जाति को इस तरह कैसे महिमामंडित किया जा सकता है. कुछ ने तो यहां तक कहा था कि पठान के नाम पर जाति का कौन सा घमंड है. पठान दुनिया के जिन इलाकों में वह बेहद पिछड़े हुए हैं. अशिक्षा बेकारी के लिए मशहूर हैं. खासकर महिलाओं का उत्पीड़न भी करने के लिए मशहूर हैं. पठान जरूर कबीलाई समाज में कभी गर्व का विषय रही होंगी पर आधुनिक दुनिया में उस कबीलाई उपलब्धि का महिमामंडन नहीं किया जा सकता. कम से कम इस तरह सार्वजनिक रूप से नहीं. कई ने कहा- जातीयता और उसके वर्चस्व को ख़त्म करने की कोशिश के बीच पठान जैसे टाइटल निराश करते हैं.
10 जनवरी को फिल्म का ट्रेलर, तीन भाषाओं में आएगी फिल्म?
बुद्धिजीवियों ने यह भी सवाल किया था कि क्या पठान के अलावा दूसरी जातियां कमतर हैं? सेंसर बोर्ड से फिल्म का टाइटल बदलने की मांग हुई थी. लेकिन लग रहा है कि पठान के निर्माताओं और सेंसर बोर्ड ने लोगों की राय को तवज्जो देना ठीक नहीं समझा है. असल में फिल्म ट्रेड...
पठान के जातिवादी टाइटल पर भी समाज के तमाम धड़ों में बहुत गुस्सा नजर आया है. पठान को यशराज फिल्म्स के बैनर ने बनाया है. समाज के अलग-अलग धड़ों ने भी तमाम मुद्दों पर पठान और बेशरम रंग का विरोध किया था. लेकिन बुद्धिजीवी तबके के लिए दो मुद्दे अहम रहे. एक तो बेशरम रंग में जिस तरह कला के नाम भद्दा देह प्रदर्शन किया गया और फिल्म के गीत संगीत को भी लोगों ने पसंद नहीं किया. बुद्धिजीवी तबके के लिए पठान में दूसरा जो असल में सबसे बड़ा मुद्दा भी था वह फिल्म का टाइटल इसे सभी ने एक स्वर में जातिवादी करार दिया था.
टाइटल को लेकर बेहद नाराजगी थी और इसे हर हाल में बदलने की मांग की थी. पढ़े-लिखे लोगों के समूह ने कहा था कि पठान का टाइटल जातीय दंभ में बनाया गया है. भला संविधान पर चलने वाले देश में किसी की भी जाति को इस तरह कैसे महिमामंडित किया जा सकता है. कुछ ने तो यहां तक कहा था कि पठान के नाम पर जाति का कौन सा घमंड है. पठान दुनिया के जिन इलाकों में वह बेहद पिछड़े हुए हैं. अशिक्षा बेकारी के लिए मशहूर हैं. खासकर महिलाओं का उत्पीड़न भी करने के लिए मशहूर हैं. पठान जरूर कबीलाई समाज में कभी गर्व का विषय रही होंगी पर आधुनिक दुनिया में उस कबीलाई उपलब्धि का महिमामंडन नहीं किया जा सकता. कम से कम इस तरह सार्वजनिक रूप से नहीं. कई ने कहा- जातीयता और उसके वर्चस्व को ख़त्म करने की कोशिश के बीच पठान जैसे टाइटल निराश करते हैं.
10 जनवरी को फिल्म का ट्रेलर, तीन भाषाओं में आएगी फिल्म?
बुद्धिजीवियों ने यह भी सवाल किया था कि क्या पठान के अलावा दूसरी जातियां कमतर हैं? सेंसर बोर्ड से फिल्म का टाइटल बदलने की मांग हुई थी. लेकिन लग रहा है कि पठान के निर्माताओं और सेंसर बोर्ड ने लोगों की राय को तवज्जो देना ठीक नहीं समझा है. असल में फिल्म ट्रेड एनालिस्ट और समीक्षक तरण आदर्श ने आज पठान को लेकर बड़ी जानकारी दी. एक ट्वीट में उन्होंने बताया कि फिल्म का ट्रेलर इसी महीने 10 जनवरी के दिन रिलीज किया जाएगा. पठान का टाइटल नहीं बदला जाएगा. यह फिल्म रिपब्लिक दे वीक पर 25 जनवरी के दिन रिलीज होगी. इसे हिंदी के अलावा तमिल और तेलुगु में भी रिलीज किया जाएगा. तरण ने पठान के जरूरी अपडेट के साथ फिल्म का एक पोस्टर जो हिंदी में है, उसे भी साझा किया. यानी अब यह पूरी तरह साफ़ है कि बुद्धिजीवियों के विपरीत मेकर्स और सेंसर ने टाइटल को सही पाया है. जातीय आधार पर पठान के टाइटल का विरोध करने वाले ज्यादातर ओबीसी और दलित बुद्धिजीवी थे.
वैसे अभी एडवांस बुकिंग को लेकर खबरें सामने नहीं आई हैं. हो सकता है कि ट्रेलर के आसपास पठान की एडवांस बुकिंग भी शुरू की जाए. वैसे पठान के पक्ष में आई तमाम रिपोर्ट्स की मानें तो जर्मनी पठानमय हो चुका है. इससे पहले जर्मनी से किसी बॉलीवुड या दक्षिण की फिल्म के बारे में ऐसी रिपोर्ट देखने को नहीं मिली थी. कम से कम आइचौक की नजर में नहीं है. लगभग एक्टिंग करियर के उतार में खड़े शाहरुख ने वहां क्या जादू किया है लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं. खैर यह उनके लिए अच्छी बात है.
फिल्म का ट्रेलर आने से पहले शुरू हो गई ब्लॉकबस्टर की रट
आमतौर बड़ी फिल्मों की रिलीज से एक महीना पहले ही फिल्मों का ट्रेलर रिलीज कर दिया जाता था. लेकिन पठान का ट्रेलर दूर-दूर तक नजर नहीं आया. इसे लेकर तमाम चर्चाएं रहीं. एक चर्चा तो यह भी थी कि बेशरम रंग को लेकर जिस तरह से व्यापक नकारात्मक प्रतिक्रिया आई- कारोबारी नुकसान की आशंका में मेकर्स डर गए. कुछ गॉसिप में कहा गया कि बेशरम रंग पर पब्लिक फीडबैक के बाद ट्रेलर में तमाम बदलाव किए गए हैं. हालांकि वे बदलाव किस तरह से हैं उसकी जानकारी नहीं. ट्रेलर के देर से आने की यह बड़ी वजह है. एक और वजह यह थी कि बेशरम रंग को लेकर लोगों में जो गुस्सा बना हुआ है वह भी कम हो जाए ताकि ट्रेलर को हेट कैम्पेन से बचाया जा सके. अब यह तो ट्रेलर आने के बाद ही पता चलेगा कि ट्रेलर कैसा है. लेकिन अंग्रेजी की तमाम बड़ी और स्थापित वेबसाइट्स ने ट्रेलर रिलीज से पहले ही पठान के ट्रेलर को ब्लॉकबस्टर करार दे दिया है. कैसे, यह वही जानें.
अंग्रेजी वेबसाइट्स पठान के पक्ष में नैरेटिव बनाने का काम करते दिख रहे हैं. उनकी हेडलाइन हंटिंग का इशारा तो कम से कम यही है. दिलचस्प यह है कि अंग्रेजी वेबसाइट्स का अंधानुकरण कर वैसाखी के सहारे कचरे से दुकान चलाने वाले हिंदी के तमाम दिव्यांग पोर्टल और एक कदम आगे नजर आ रहे हैं. अंग्रेजी के फ़ॉलोअप का असर दिव्यांग पोर्टल्स पर भी नजर आ रहा है. शाहरुख की फिल्म के पक्ष में मीडिया का वही रवैया है जैसा दिलवाले से लेकर जीरो तक उनकी तमाम बिग कमबैक फिल्मों के लिए दिखा था. ये दूसरी बात है कि उन फिल्मों का अंजाम बहुत खराब रहा. अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या किंग खान की एक और कमबैक फिल्म पठान का भी वही हश्र होगा- जो दिलवाले से लेकर जीरो तक नजर आया. मीडिया तो ब्लॉकबस्टर कह रहा, लेकिन सोशल मीडिया पर पठान का माहौल फिलहाल बहुत खराब नजर आ रहा है.
पठान का निर्देशन सिद्धार्थ आनंद ने किया है. फिल्म में शाहरुख खान के साथ दीपिका पादुकोण और जॉन अब्राहम अहम भूमिकाओं में हैं. जॉन फिल्म में एक निगेटिव किरदार में नजर आएंगे.
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