चार दिनों की स्क्रीनिंग के बाद कानून व्यवस्था का हवाला देकर ऑफिसियल या अनऑफिसियल बैन का क्या तुक? जब शुरुआती चार दिनों मय सप्ताहांत में लॉ एंड आर्डर ठीक रहा तो अब स्टेट या स्टेट के दबाव में कोई भी लॉ एंड आर्डर सिचुएशन के हवाले से कानून व्यवस्था के बिगड़ने का अंदेशा बताए, समझ जाइये रक्षक ही भक्षक है. और वजह सिर्फ और सिर्फ स्वार्थपरक राजनीति है. और ममता दीदी ने तो बिना किसी लागलपेट के अपनी राजनीति स्पष्ट भी कर दी जब उन्होंने कहा कि कल द कश्मीर फ़ाइल्स आई थी, आज द केरला फ़ाइल्स आ गई है ( उन्होंने द केरला स्टोरी को द केरला फ़ाइल्स ही कहा) और अब नहीं रोका तो कल द बंगाल फ़ाइल्स भी आएगी. परंतु सवाल है पब्लिक को निर्णय लेने दीजिए ना देखनी है या नहीं देखनी है.
फ़िल्म यदि ख़राब है, तथ्यहीन है या तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा गया है, पब्लिक नकार देगी एकबारगी मान भी लें लॉ एंड ऑर्डर सिचुएशन होती भी है तो सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फ़िल्म सर्टिफ़िकेशन प्राप्त किसी भी फ़िल्म की स्क्रीनिंग सुनिश्चित कराना स्टेट का काम है. फिर इस द केरला स्टोरी को बैन किए जाने की माँग देश के दो दो उच्च न्यायालय और शीर्ष न्यायालय ने भी ख़ारिज कर दी है.
क्या बंगाल सरकार द्वारा बैन न्यायालय में स्टैंड करेगा ? जवाब है नहीं क्योंकि साल 2011 में प्रकाश झा की फ़िल्म ‘आरक्षण’ पर यूपी सरकार द्वारा लगाये बैन पर राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया था कि अगर सेंसर बोर्ड ने किसी फ़िल्म को सर्टिफ़ाई कर दिया है तो राज्य सरकार उस फ़िल्म पर बैन नहीं लगा सकती.
ख़ैर.ममता दीदी सरकार को तो न्यायालयों की फटकार जब देखो लगती रहती है, एक और लग जाएगी जब मेकर विपुल शाह न्यायालय...
चार दिनों की स्क्रीनिंग के बाद कानून व्यवस्था का हवाला देकर ऑफिसियल या अनऑफिसियल बैन का क्या तुक? जब शुरुआती चार दिनों मय सप्ताहांत में लॉ एंड आर्डर ठीक रहा तो अब स्टेट या स्टेट के दबाव में कोई भी लॉ एंड आर्डर सिचुएशन के हवाले से कानून व्यवस्था के बिगड़ने का अंदेशा बताए, समझ जाइये रक्षक ही भक्षक है. और वजह सिर्फ और सिर्फ स्वार्थपरक राजनीति है. और ममता दीदी ने तो बिना किसी लागलपेट के अपनी राजनीति स्पष्ट भी कर दी जब उन्होंने कहा कि कल द कश्मीर फ़ाइल्स आई थी, आज द केरला फ़ाइल्स आ गई है ( उन्होंने द केरला स्टोरी को द केरला फ़ाइल्स ही कहा) और अब नहीं रोका तो कल द बंगाल फ़ाइल्स भी आएगी. परंतु सवाल है पब्लिक को निर्णय लेने दीजिए ना देखनी है या नहीं देखनी है.
फ़िल्म यदि ख़राब है, तथ्यहीन है या तथ्यों को तोड़ा मरोड़ा गया है, पब्लिक नकार देगी एकबारगी मान भी लें लॉ एंड ऑर्डर सिचुएशन होती भी है तो सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फ़िल्म सर्टिफ़िकेशन प्राप्त किसी भी फ़िल्म की स्क्रीनिंग सुनिश्चित कराना स्टेट का काम है. फिर इस द केरला स्टोरी को बैन किए जाने की माँग देश के दो दो उच्च न्यायालय और शीर्ष न्यायालय ने भी ख़ारिज कर दी है.
क्या बंगाल सरकार द्वारा बैन न्यायालय में स्टैंड करेगा ? जवाब है नहीं क्योंकि साल 2011 में प्रकाश झा की फ़िल्म ‘आरक्षण’ पर यूपी सरकार द्वारा लगाये बैन पर राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया था कि अगर सेंसर बोर्ड ने किसी फ़िल्म को सर्टिफ़ाई कर दिया है तो राज्य सरकार उस फ़िल्म पर बैन नहीं लगा सकती.
ख़ैर.ममता दीदी सरकार को तो न्यायालयों की फटकार जब देखो लगती रहती है, एक और लग जाएगी जब मेकर विपुल शाह न्यायालय का रुख़ करेंगे बैन हटवाने के लिए. निःसंदेह बैन हटेगा और एडवांटेज मेकर्स इस मायने में होगा कि फ़िल्म की एक्स्ट्रा पब्लिसिटी भी हो जाएगी! वैसे बता दें फ़िल्म ने सिर्फ़ चार दिनों में ही 45 करोड़ कमा लिए हैं जबकि लागत 37 करोड़ मात्र की ही है.
हां, तमिलनाड की स्टैलिन सरकार को दाद देनी पड़ेगी, बैन करने का दंश भी नहीं झेलना पड़ा और फ़िल्म की स्क्रीनिंग भी रुकवा दी. किसी शख़्स की धमकी मात्र ने ही काम कर दिया थियेट्र्स और मल्टीप्लेक्स एसोसिएशन ने स्क्रीनिंग जो रोक दी. पता नहीं क्यों ममता दीदी कूटनीति के खेल में मात खा गई ?
वैसे मेकर विपुल शाह ने कहा है कि वे DMK और कांग्रेस की सरकार से निवेदन करूंगा कि वे जल्द से जल्द इस पर एक्शन लें और इस फिल्म को रिलीज करें. अब देखिये नामीगिरामी अभिनेत्री शबाना आज़मी ने भी बंगाल सरकार के कदम की आलोचना करते हुए कह दिया कि ममता सरकार को एक्स्ट्रा कंस्टीट्यूशनल अथॉरिटी बनने का अधिकार नहीं है.
इतना ही नहीं, शबाना ने ट्वीट भी किया कि जो लोग ‘द केरला स्टोरी’ बैन करने की बात करते हैं वे लोग उतने ही गलत हैं, जितने वो लोग जो आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा को बैन करना चाहते थे.
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