सुप्रीम कोर्ट ने दो दो बार नकार दिया, ना केरल हाई कोर्ट ने एक सुनी और ना ही तमिलनाडु हाई कोर्ट ने ! और फिल्म स्क्रीनिंग हो रही है. चूंकि असमंजस की स्थिति निर्मित थी, कम रहते हुए भी फिल्म के एडवांस बुकिंग के आंकड़े उत्साहवर्धक रहे. ख़ास बात देखने को आई कि हर जगह थिएटर भरते नजर आये. लगे हाथों पीएम ने भी फिल्म का प्रमोशन कर दिया अपने कर्नाटक के चुनावी भाषणों के दौरान. सो डबल प्रोपेगेंडा हो गया. फिर केरल उच्च न्यायालय में विद्वान द्वय जजों ने फिल्म को एक धर्म विशेष के खिलाफ बताकर रोक लगाए जाने वालों को करारा जवाब देते हुए फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने से मना कर दिया और सिर्फ निर्माता की इस बात को रिकॉर्ड पर लिया कि केरल की 32,000 से अधिक महिलाओं के ISIS में भर्ती होने का दावा' करने वाले विवादास्पद टीजर को सोशल मीडिया पर से हटा लिया जाएगा.
विद्वान जस्टिस ने ट्रेलर देखने के बाद कहा कि फिल्म इस्लाम के खिलाफ कहां है ? धर्म विशेष पर तो कोई आरोप है ही नहीं. खिलाफ है तो ISIS नाम के आर्गेनाईजेशन के खिलाफ है. राज्य में विद्वेष फैलाने और शांति भंग होने के अंदेशे को भी ख़ारिज करते हुए माननीय जज ने फिल्म को घटनाओं को आधार बनाकर कलात्मक स्वतंत्रता के तहत कल्पना बताया ठीक वैसे ही जैसे भूत या वैम्पायर नहीं होता है, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसी ही फिल्में दिखाई जाती हैं.
माननीय न्यायमूर्ति ने विद्वान अधिवक्ताओं का ध्यान बहुत सी फिल्मों के तरफ भी दिलाया जिसमें हिंदू सन्यासियों को स्मगलर और रेपिस्ट दिखाया जाता है, लेकिन तब कोई बवाल नहीं हुआ. बातचीत के क्रम में ही केरल की धर्मनिरपेक्षता की प्रशंसा करते हुए माननीय जज साहब ने एक प्रसिद्ध अवार्ड विनिंग मलयालम फिल्म का जिक्र भी किया जिसमें एक...
सुप्रीम कोर्ट ने दो दो बार नकार दिया, ना केरल हाई कोर्ट ने एक सुनी और ना ही तमिलनाडु हाई कोर्ट ने ! और फिल्म स्क्रीनिंग हो रही है. चूंकि असमंजस की स्थिति निर्मित थी, कम रहते हुए भी फिल्म के एडवांस बुकिंग के आंकड़े उत्साहवर्धक रहे. ख़ास बात देखने को आई कि हर जगह थिएटर भरते नजर आये. लगे हाथों पीएम ने भी फिल्म का प्रमोशन कर दिया अपने कर्नाटक के चुनावी भाषणों के दौरान. सो डबल प्रोपेगेंडा हो गया. फिर केरल उच्च न्यायालय में विद्वान द्वय जजों ने फिल्म को एक धर्म विशेष के खिलाफ बताकर रोक लगाए जाने वालों को करारा जवाब देते हुए फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने से मना कर दिया और सिर्फ निर्माता की इस बात को रिकॉर्ड पर लिया कि केरल की 32,000 से अधिक महिलाओं के ISIS में भर्ती होने का दावा' करने वाले विवादास्पद टीजर को सोशल मीडिया पर से हटा लिया जाएगा.
विद्वान जस्टिस ने ट्रेलर देखने के बाद कहा कि फिल्म इस्लाम के खिलाफ कहां है ? धर्म विशेष पर तो कोई आरोप है ही नहीं. खिलाफ है तो ISIS नाम के आर्गेनाईजेशन के खिलाफ है. राज्य में विद्वेष फैलाने और शांति भंग होने के अंदेशे को भी ख़ारिज करते हुए माननीय जज ने फिल्म को घटनाओं को आधार बनाकर कलात्मक स्वतंत्रता के तहत कल्पना बताया ठीक वैसे ही जैसे भूत या वैम्पायर नहीं होता है, लेकिन बड़ी संख्या में ऐसी ही फिल्में दिखाई जाती हैं.
माननीय न्यायमूर्ति ने विद्वान अधिवक्ताओं का ध्यान बहुत सी फिल्मों के तरफ भी दिलाया जिसमें हिंदू सन्यासियों को स्मगलर और रेपिस्ट दिखाया जाता है, लेकिन तब कोई बवाल नहीं हुआ. बातचीत के क्रम में ही केरल की धर्मनिरपेक्षता की प्रशंसा करते हुए माननीय जज साहब ने एक प्रसिद्ध अवार्ड विनिंग मलयालम फिल्म का जिक्र भी किया जिसमें एक पुजारी ने एक मूर्ति पर थूक दिया और कोई समस्या पैदा नहीं हुई.
फिर भी दवे, शाह सरीखे दिग्गज वकीलों ने पुरजोर तर्क रखे, जब तब कुतर्क भी करते रहे लेकिन जज द्वय ने एक नहीं सुनी. चूंकि न्यायालय ने भी फिक्शन मानते हुए कलात्मक स्वतंत्रता को ऊपर रखा है, रिव्यू कलात्मकता का ही होना चाहिए; स्टफ का, कलाकारों के अभिनय का, सिनेमेटोग्राफी का, संवादों का और फ़िल्मी विधा के अन्य टेक्निकल पक्षों का होना चाहिए.
फिल्म बैन हो भी जाए, कालांतर में यही चीजें फिल्म को महानता की, अच्छे बुरे सिनेमा की कसौटी पर खरी या खोटी साबित करेगी.उपरोक्त बातों में जाएँ, इससे पहले एक और स्पष्टीकरण जरूरी है. हर किसी देश की सत्ता की एक विचारधारा होती है यानि सियासी विचारधारा होती है जिसके अनुरूप सिनेमा भी क्रिएटिव लिबर्टी ले ही लेता है.
और जब क्रिएशन अच्छा बन पाता है, फिल्म हिट का होना तय हो जाता है जिसको #Ban...... और अन्य विरोध के सुर कंट्रीब्यूट ही करते हैं, कभी कभी सक्सेस इस कदर मल्टीप्लाई हो जाती है कि "द कश्मीर फाइल्स" कहलाती है. शायद ऐसा ही कुछ "द केरला स्टोरी" के मेकर्स भी मना रहे होंगे लेकिन सवाल है कितना अच्छा क्रिएट कर पाए हैं वे फिक्शन को ?
कहानी केरल में नर्सिंग कॉलेज में पढ़ने वाली शालिनी उन्नीकृष्णन की है. किस तरह उसे और उसकी सहेली को मुस्लिम लड़के अपने प्यार के जाल में फंसाते हैं. फिर प्रेग्नेंट करते हैं और फिर उसे छोड़ देते हैं और फिर उसे कैसे सीरिया ले जाया जाता है. इसके बाद उसके परिवार पर क्या बीतती है. इसी कहानी को फिल्म में बड़े जबरदस्त तरीके से दिखाया गया है.
सिनेमा के लिहाज से फिल्म शानदार है, एक एक सीन असर छोड़ता है. जब फिल्म में लड़कियों का ब्रेनवाश करने के प्रसंग आते हैं, उस दौरान के संवाद झकझोर डालते हैं. फिल्म का हर फ्रेम इमोशनल है, दिल को छू जाता है, स्क्रीन पर से नजर हटती ही नहीं, आँखें नम हो उठती हैं. निश्चित ही फिल्म देखना एक ऐसा अनुभव है जिसे अनुभव कर यही अफ़सोस होता है क्यों अनुभव किया ?
काश ! नहीं किया होता ! कहने का मतलब उन लड़कियों की, उनके परिवारों के ऊपर टूटे कष्टों के पहाड़ की कहानी को हम आप थिएटर में बैठकर एक प्रकार से जीते हैं और महसूस करते हैं. फिल्म के अंत में उन लोगों के डॉक्यूमेंट्री नुमा इंटरव्यू भी हैं जो विक्टिम है. किसी एक लड़की का चेहरा छिपकर उसका वीडियो भी दिखाया जाता है.
अदा शर्मा फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ में लीड रोल में है. पहले शालिनी और फिर फातिमा के किरदार में कमाल ही कर दिया है उसने. अदा ने साउथ इंडियन एक्सेंट को भी बहुत जबरदस्त तरीके से पकड़ा है. पकड़े भी क्यों नहीं, आखिर केरल से उसका मैटरनल कनेक्ट जो है. इसके अलावा बाकी सभी किरदारों ने भी मसलन शालिनी की सहेलियों के किरदार में योगिता बिहानी और सिद्धि इदनानी ने भी बहुत ही असरदार अभिनय किया है.
इसके अलावा उस युवती के किरदार में, जिसके पास साधारण घर की युवतियों को बहला फुसला कर उन युवकों के आगोश में पहुंचाने की जिम्मेदारी है जो इनका शीलभंग करके इन्हें अपने कहे रास्ते पर चलने को मजबूर कर देते हैं, टीवी की डिटेक्टिव दीदी सोनिया बलानी भी खासा प्रभावित करती है.
फिल्म का संगीत वीरेश श्री वैसा और बिशाख ज्योति ने खूब दिया है तभी तो फिल्म के गाने और बैकग्राउंड स्कोर शानदार तरीके से कहानी को आगे बढ़ाते हैं और मलयालम होते हुए भी गाने के बोल दिल को छू जाते हैं. सुदीप्तो सेन का डायरेक्शन भी परफेक्ट है. उन्होंने केरल के कॉलेज और ISIS की दुनिया को इस तरह से क्रिएट किया है कि यकीन हो जाता है कि ये वो ही दुनिया है. हर चीज असली लगती है.
बेशक उन्होंने तथ्यों पर एक संतुलित फिल्म बनाई है. सुदीप्तो की चर्चा कर रहे हैं तो एक तथ्य काबिलेगौर है विरोध करने वालों के पाखंड का पर्दाफाश करने के लिए. इसी धर्मांतरण और महिलाओं को सीरिया, अफगानिस्तान ले जाकर ISIS के चंगुल में फंसाने के कुचक्र पर सुदीप्तो ने एक बावन मिनट की फिल्म 2021 में बनाई थी जिस पर कोई प्रश्न नहीं उठा, विवाद नहीं हुआ क्योंकि एक तो फिल्म डॉक्यूमेंट्री प्रारूप में थी, दूजे इंग्लिश और मलयालम भाषा में थी.
नाम भी अंग्रेज़ी था ‘In the name of love’. हिंदी पट्टी के संज्ञान में आई ही नहीं और इसलिए तथाकथित सेक्यूलरों ने भी कोई संज्ञान नहीं लिया था. तो अब क्यों बवाल है ? जवाब है डर है इस चुनावी माहौल में कहीं अब तक बंटे हुए सारे हिंदू समूहों के वोटों का ध्रुवीकरण न हो जाए!
और अंत में निर्माता विपुल अमृतलाल शाह को इस बात के लिए दाद देनी चाहिए कि उन्होंने एक कठिन विषय पर फिल्म बनाने की हिम्मत की और खूब बनाई. तय हुआ किसी फिल्म का विवादास्पद होना सक्सेस की गारंटी है तभी तो 'द केरला स्टोरी' ने भारत में बॉक्स ऑफिस पर बंपर शुरुआत करते हुए तमाम अपेक्षाओं को पार कर साढ़े आठ करोड़ की कमाई दर्ज करा दी है.
मेकर्स की तो बल्ले बल्ले हुई ही चूंकि लागत का बीस फीसदी पहले ही दिन जो निकाल लिया, लीड अभिनेत्री अदा शर्मा, जिसका बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन करने का कोई ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है, की भी मानों लाटरी लग गई है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.