आमिर खान अपनी फिल्म लाल सिंह चड्ढा को पकिस्तान में दिखाना चाहते थे. लाल सिंह चड्ढा, असल में टॉम हैंक्स की फॉरेस्ट गंप का आधिकारिक रीमेक थी. फॉरेस्ट गंप के डिस्ट्रीब्यूटर्स ने ही लाल सिंह चड्ढा का विदेशी राइट्स लिया था. वे पाकिस्तान में रिलीज भी करना चाहते थे, पर आखिर तक बात बन नहीं पाई. पाकिस्तान में बॉलीवुड कॉन्टेंट का तगड़ा बाजार है. मगर उरी अटैक, घाटी में कुछ और आतंकी हमलों के बाद भारत की जवाबी एयरस्ट्राइक के साथ ही वहां भारतीय फ़िल्में बैन हो गईं. भारत में भी वैसा ही हुआ. बावजूद कि बॉलीवुड के तमाम फिल्ममेकर्स का पाकिस्तानी मेकर्स के साथ अच्छा संबंध बरकरार है. लेकिन बॉलीवुड मेकर्स को भी सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान के साथ दोस्ती को विराम देना पड़ा. इसका नतीजा यह रहा कि बॉलीवुड में पाकिस्तानी मेकर्स पर अघोषित बैन है अभी तक.
मगर अब पाकिस्तान की एक फिल्म द लीजेंड ऑफ मौला जट्ट को भारत में व्यापक रूप से रिलीज करने की तैयारी है. यह फवाद खान की एक्शन एंटरटेनर है. पकिस्तान के इतिहास की इकलौती फिल्म जिसने ग्लोबली 75, 100, 150 और 200 करोड़ की कमाई का बेंचमार्क बनाया है. फवाद भारत के लिए अपरिचित नाम नहीं है. भारत पाकिस्तान के रिश्ते खराब नहीं होते तो वे शायद आज की तारीख में बॉलीवुड के स्थापित सुपरस्टार होते. दर्शकों ने उन्हें ख़ूबसूरत (सोनम कपूर की फैमिली ने प्रोड्यूस किया था) और कपूर एंड संस में देखा होगा. कपूर एंड संस को करण जौहर ने प्रोड्यूस किया था. फवाद, करण की एक और फिल्म ए दिल है मुश्किल में भी मेहमान कलाकार की भूमिका में नजर आए थे.
बॉलीवुड में फवाद और करण के बीच की दोस्ती चर्चा में रही है. अभी हाल ही में कुछ खबरें आई जिनमें कहा गया कि करण जौहर ने अरब में दोस्त फवाद की फिल्म देख ली. लेकिन भारत में...
आमिर खान अपनी फिल्म लाल सिंह चड्ढा को पकिस्तान में दिखाना चाहते थे. लाल सिंह चड्ढा, असल में टॉम हैंक्स की फॉरेस्ट गंप का आधिकारिक रीमेक थी. फॉरेस्ट गंप के डिस्ट्रीब्यूटर्स ने ही लाल सिंह चड्ढा का विदेशी राइट्स लिया था. वे पाकिस्तान में रिलीज भी करना चाहते थे, पर आखिर तक बात बन नहीं पाई. पाकिस्तान में बॉलीवुड कॉन्टेंट का तगड़ा बाजार है. मगर उरी अटैक, घाटी में कुछ और आतंकी हमलों के बाद भारत की जवाबी एयरस्ट्राइक के साथ ही वहां भारतीय फ़िल्में बैन हो गईं. भारत में भी वैसा ही हुआ. बावजूद कि बॉलीवुड के तमाम फिल्ममेकर्स का पाकिस्तानी मेकर्स के साथ अच्छा संबंध बरकरार है. लेकिन बॉलीवुड मेकर्स को भी सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान के साथ दोस्ती को विराम देना पड़ा. इसका नतीजा यह रहा कि बॉलीवुड में पाकिस्तानी मेकर्स पर अघोषित बैन है अभी तक.
मगर अब पाकिस्तान की एक फिल्म द लीजेंड ऑफ मौला जट्ट को भारत में व्यापक रूप से रिलीज करने की तैयारी है. यह फवाद खान की एक्शन एंटरटेनर है. पकिस्तान के इतिहास की इकलौती फिल्म जिसने ग्लोबली 75, 100, 150 और 200 करोड़ की कमाई का बेंचमार्क बनाया है. फवाद भारत के लिए अपरिचित नाम नहीं है. भारत पाकिस्तान के रिश्ते खराब नहीं होते तो वे शायद आज की तारीख में बॉलीवुड के स्थापित सुपरस्टार होते. दर्शकों ने उन्हें ख़ूबसूरत (सोनम कपूर की फैमिली ने प्रोड्यूस किया था) और कपूर एंड संस में देखा होगा. कपूर एंड संस को करण जौहर ने प्रोड्यूस किया था. फवाद, करण की एक और फिल्म ए दिल है मुश्किल में भी मेहमान कलाकार की भूमिका में नजर आए थे.
बॉलीवुड में फवाद और करण के बीच की दोस्ती चर्चा में रही है. अभी हाल ही में कुछ खबरें आई जिनमें कहा गया कि करण जौहर ने अरब में दोस्त फवाद की फिल्म देख ली. लेकिन भारत में फवाद की फिल्म को करण जौहर डिस्ट्रीब्यूट नहीं कर रहे हैं. सूत्रों के हवाले से बॉलीवुड हंगामा ने बताया कि इसे जी स्टूडियोज डिस्ट्रीब्यूट करने जा रहा है. फिल्म 23 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज की जाएगी. इसी दिन रोहित शेट्टी की पीरियड कॉमेडी ड्रामा सर्कस को भी रिलीज किया जाएगा. याद नहीं आता कि भारत ने कब किसी पाकिस्तानी फिल्म को डिस्ट्रीब्यूट करने में इस तरह दिलचस्पी दिखाई हो. वह भी एक ऐसे राजनीतिक माहौल में जब भारतीय समाज, पाकिस्तान से किसी भी तरह का संबंध नहीं रखना चाहता. दोनों देशों के बीच तमाम तरह के रिश्ते ठप हैं. मजेदार है कि पहल भारत कर रहा है. क्या यह कोई कैम्पेन स्ट्रेटजी है? रोहित शेट्टी की सर्कस के लिए स्ट्रेटजी है या उसके आगे भी कुछ है? बिल्कुल है.
कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना
जहां तक बात रोहित शेट्टी की है उनका अपना ऑडियंस बेस है. उन्होंने मुश्किल से मुश्किल हालात में भी अपनी फिल्मों को कामयाब कराया है. यहां तक कि वे अपने कॉन्टेंट की वजह से लिबरल्स के निशाने पर भी रहते हैं. पिछले साल जब कोविड की वजह से सिनेमाघरों की हालत बहुत खराब थी और तमाम तरह के प्रतिबंध थे- सूर्यवंशी ने कमाई का कीर्तिमान बनाकर ट्रेड सर्किल को चौंका दिया था. लिबरल्स ने आरोप लगाए कि आतंकवाद के नाम पर मुस्लिमों को बहुत खराब तरीके से प्रेजेंट किया गया. उनकी सिंघम पर भी आरोप लगे कि पुलिसिया तंत्र को उकसाया जा रहा है. बावजूद कि सर्कस को लेकर माना जा रहा कि वह बेहतर परफॉर्म करेगी. उसे कामयाबी के लिए किसी कंट्रोवर्सी की जरूरत नहीं है. अब सवाल है कि सर्कस के सामने पाकिस्तानी फिल्म क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं कि यह संदेश दिया जाए कि रोहित अपनी फिल्म की कामयाबी के लिए चारे के तौर पर फवाद की फिल्म का इस्तेमाल कर रहे हैं.
रिलीज के बाद पाकिस्तानी फिल्म का विरोध होना तय है और सर्कस कामयाब होती है (लगभग निश्चित है) तो स्टेब्लिश हो जाएगा कि रोहित की बैकडोर कैम्पेन स्ट्रेटजी थी. जबकि इसका मकसद कुछ दूसरा हो. यानी बॉलीवुड की कुछ फिल्मों के लिए पाकिस्तान में एक तार्किक रास्ता बनाना हो. उनके ईगो को संतुष्ट कर देना हो. कि देखो भाई भारत ने पहले हमारी फिल्म दिखाई, तो अब हमें भी उनकी फिल्म दिखा देनी चाहिए. पाइरेसी की जरूरत नहीं है अब.
शाहरुख सलमान की बड़ी फ़िल्में रिलीज के लिए तैयार हैं
खान सितारों की चार बड़ी फ़िल्में अगले साल की शुरुआत से रिलीज होनी हैं. शाहरुख-सलमान तो पाकिस्तान में बहुत बड़े स्टार हैं. दोनों की टाइगर 3 और पठान बनकर तैयार भी हैं. इसे करण जौहर के ही रिश्तेदार आदित्य चोपड़ा की यशराज फिल्म्स ने बनाया है. करण जौहर, आदित्य की सगी बुआ हीरू जौहर के बेटे हैं. और पंजाबी हैं. फवाद भी पंजाबी हैं और मौला जट्ट असल में पंजाबी फिल्म ही है. अब चूंकि यह पाकिस्तान की पहली फिल्म है जिसने बेशुमार कामयाबी हासिल की है तो एक अच्छे कॉन्टेंट के नाम पर इसे रिलीज करने का तर्क भी है.
मौला जट्ट अगर भारत में रिलीज होती है तो आगे टाइगर और पठान को पाकिस्तान में रिलीज करने की जमीन तैयार हो जाएगी. पठान जनवरी में आएगी और उसके बाद सलमान की टाइगर. शाहरुख की कुछ और फ़िल्में भी आगे रिलीज होंगी. सलमान और शाहरुख का पाकिस्तान में जबरदस्त क्रेज है. उन्हें खूब पसंद किया जाता है. पाकिस्तानी दर्शकों को लुभाने के लिए बॉलीवुड की फिल्मों में क्या होता है
पाकिस्तानी दर्शकों के लिहाज से ही उनकी फिल्मों में ऐसे काल्पनिक और अविश्वसनीय प्लाट रखे जाते हैं जो भारत और पाकिस्तान को जोड़ते हैं. उदाहरण के लिए सलमान खान की ब्लॉकबस्टर बजरंगी भाईजान को ले लीजिए. इसमें पाकिस्तान का समूचा अमला एक हनुमान भक्त भारतीय की मदद के लिए उमड़ पड़ता है. क्या मदरसे के मौलाना और क्या वहां की ख़ुफ़िया एजेंसी के एजेंट. यहां तक कि पाकिस्तानी सेना भी दुश्मनी भुलाकर बजरंगी भाई की मदद करते दिखती है. जबकि हकीकत में पाकिस्तान अपने ही गैरमुस्लिम नागरिकों के साथ क्या करता है- उदाहरण गिनाने का थकाऊ काम करने की जरूरत भी नहीं है.
शाहरुख की वीर जारा तो तो भारत पाकिस्तान के प्रेम की एक रूमानी कहानी है. शाहरुख की ही 'मैं हूं ना' तो और एक कदम आगे दिखती है, जिसमें दिखाया गया है कि पाकिस्तान तो सुधर चुका है, भारत की सेना भी चीजों को भूल गई है. लेकिन भारत में ही कुछ अतिवादी लोग हैं जो नहीं चाहते कि दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य बन जाए. या फिर आमिर की फिल्म पीके को ही ले लीजिए, जिसमें भारत के हिंदू धर्मगुरुओं पर पाकिस्तान के खिलाफ नफ़रत फैलाने का ठीकरा फोड़ दिया गया है. जबकि टीवी रिपोर्टर को उसका पाकिस्तानी प्रेमी दिलोजान से चाहता है. इतना चाहता है कि वहां हर किसी को मालूम है कि एक ना एक दिन भारत की टीवी रिपोर्टर अपने प्रेमी की खोज में पाकिस्तान फोन कॉल करेगी. और पाकिस्तान एम्बेसी में फोन पहुंचने का दृश्य बहुत ही भावुक कर देने वाला है.
आमिर की फिल्म को दिखाने में पाकिस्तान का ईगो आड़े आ गया था. वे कामयाब नहीं हो पाए. लेकिन शाहरुख-सलमान के लिए रास्ते बेहतर दिख रहे हैं. दोनों स्पाई फ़िल्में हैं और तय मान लीजिए कि उसमें आतंक का ठीकरा पाकिस्तान की बजाए अफगानिस्तान या किसी आतंकी संगठन पर फोड़ा जाएगा. पाकिस्तान पर जवाबदारी नहीं डाली जाएगी. अगर फ़िल्में वहां रिलीज हुई तो उसे देखा भी खूब जाएगा और उसके पीछे जो प्रचार होगा वह भारत में भी टाइगर और पठान के लिए अलग माहौल बनाने का काम करेगी. बाकी फवाद की फिल्म तो हिट हो ही चुकी है. भारत में उनका कीवर्ड चल निकलेगा. भूत भविष्य में सरकार बदली तो यहां उनके जानने वाले हैं ही. भारत में सुपरस्टार बनने का उनका अधूरा सपना पूरा हो सकता है.
बॉलीवुड मामूली चीज नहीं है. उस्तादों की भरमार है यहां.
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