मौजूदा समय में भारत का बहुसंख्यक समाज अपनी धर्म और संस्कृति को लेकर जिस तरह की भूमिका में नजर आ रहा है- अगर यशराज फिल्म्स की शमशेरा को सिनेमाघरों में खूब दर्शक मिलते तो यह हैरानी का विषय ही होता. करीब 150 करोड़ का भारी भरकम बजट, 4300 से ज्यादा स्क्रीन, रणबीर कपूर-संजय दत्त जैसी तगड़ी स्टारकास्ट, टिकट खिड़की पर सोलो रिलीज और फिल्म निर्माण/वितरण में बॉलीवुड के सबसे बड़े बैनर यशराज फिल्म्स का नाम होने के बावजूद शमशेरा को दर्शकों ने खारिज कर दिया. बुरी तरह से. पहले दिन अपेक्षाओं से कम 10.25 करोड़ की कमाई हुई थी. दूसरे दिन खराब से खराब ओपनिंग हासिल करने वाली फिल्मों के कलेक्शन में भी ठीकठाक ग्रोथ दिखता रहा है, मगर यहां शमशेरा का बिजनेस पहले दिन से थोड़ा सा ही ज्यादा है.
रिलीज के दूसरे दिन फिल्म ने सिर्फ 10.50 करोड़ रुपये कमाए हैं. फिल्म को लेकर जिस तरह का तीखा विरोध सामने आया था, अगर शमशेरा का कलेक्शन बेहतर रहता तो निश्चित ही यह हैरानी की बात थी. साफ है कि दर्शकों को फिल्म पसंद नहीं आई और उन्होंने बॉक्स ऑफिस के जरिए यशराज के बैनर को "जनादेश" सुना दिया है. शमशेरा से दर्शकों की नाराजगी की दो सबसे बड़ी वजहें हैं. पहली मुख्य वजह तो फिल्म की कहानी में जबरदस्ती सनातन प्रतीकों को गलत अर्थों में दिखाना और दूसरी वजह- यशराज जैसे बड़े बैनर्स का भाई भतीजावाद को लगातार प्रोत्साहन देते रहने का आरोप.
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद निगेटिव कैम्पेन की मार झेल रहा यशराज का बैनर
शमशेरा में भी स्टारकास्ट बॉलीवुड के स्थापित फ़िल्मी परिवारों से है. एक दो अपवाद को छोड़ दिया जाए तो बैनर ने अपने करियर में जिन नए नवेले अभिनेताओं को मौका भे दिया वे बॉलीवुड के बड़े फ़िल्मी परिवारों से ही आते...
मौजूदा समय में भारत का बहुसंख्यक समाज अपनी धर्म और संस्कृति को लेकर जिस तरह की भूमिका में नजर आ रहा है- अगर यशराज फिल्म्स की शमशेरा को सिनेमाघरों में खूब दर्शक मिलते तो यह हैरानी का विषय ही होता. करीब 150 करोड़ का भारी भरकम बजट, 4300 से ज्यादा स्क्रीन, रणबीर कपूर-संजय दत्त जैसी तगड़ी स्टारकास्ट, टिकट खिड़की पर सोलो रिलीज और फिल्म निर्माण/वितरण में बॉलीवुड के सबसे बड़े बैनर यशराज फिल्म्स का नाम होने के बावजूद शमशेरा को दर्शकों ने खारिज कर दिया. बुरी तरह से. पहले दिन अपेक्षाओं से कम 10.25 करोड़ की कमाई हुई थी. दूसरे दिन खराब से खराब ओपनिंग हासिल करने वाली फिल्मों के कलेक्शन में भी ठीकठाक ग्रोथ दिखता रहा है, मगर यहां शमशेरा का बिजनेस पहले दिन से थोड़ा सा ही ज्यादा है.
रिलीज के दूसरे दिन फिल्म ने सिर्फ 10.50 करोड़ रुपये कमाए हैं. फिल्म को लेकर जिस तरह का तीखा विरोध सामने आया था, अगर शमशेरा का कलेक्शन बेहतर रहता तो निश्चित ही यह हैरानी की बात थी. साफ है कि दर्शकों को फिल्म पसंद नहीं आई और उन्होंने बॉक्स ऑफिस के जरिए यशराज के बैनर को "जनादेश" सुना दिया है. शमशेरा से दर्शकों की नाराजगी की दो सबसे बड़ी वजहें हैं. पहली मुख्य वजह तो फिल्म की कहानी में जबरदस्ती सनातन प्रतीकों को गलत अर्थों में दिखाना और दूसरी वजह- यशराज जैसे बड़े बैनर्स का भाई भतीजावाद को लगातार प्रोत्साहन देते रहने का आरोप.
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद निगेटिव कैम्पेन की मार झेल रहा यशराज का बैनर
शमशेरा में भी स्टारकास्ट बॉलीवुड के स्थापित फ़िल्मी परिवारों से है. एक दो अपवाद को छोड़ दिया जाए तो बैनर ने अपने करियर में जिन नए नवेले अभिनेताओं को मौका भे दिया वे बॉलीवुड के बड़े फ़िल्मी परिवारों से ही आते हैं. सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या मामले के बाद दर्शकों के एक व्यापक धड़े ने बैनर पर भाई भतीजावाद का आरोप लगाया और कहा था कि बॉलीवुड के तमाम बड़े बैनर्स ने सुशांत का करियर तबाह करने की कोशिश की. उनकी फिल्मों को जानबूझकर लटकाया गया या फिर दूसरे सितारों को दे दी गई. सुशांत की फिल्म 'पानी' (शेखर कपूर बनाने वाले थे) मो लेकर खूब विवाद हुआ, बैनर ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था.
सुशांत से सिम्पैथी रखने वाले दर्शकों का धड़ा पिछले एक साल से यशराज की फिल्मों का तीखा विरोध कर रहा है. शमशेरा की रिलीज के पहले से ही फिल्म के बॉयकॉट की मांग की जा रही थी. सुशांत की मौत के बाद देखें तो बंटी और बबली 2, जयेशभाई जोरदार और सम्राट पृथ्वीराज बहुत बुरी तरह फ्लॉप हुईं. इनमने सम्राट पृथ्वीराज का फ्लॉप होना दर्शकों बैनर के प्रति दर्शकों के गुस्से को बताने के लिए पर्याप्त है. जबकि सम्राट पृथ्वीराज में मौजूदा दौर में अक्षय कुमार जैसा सबसे भरोसेमंद सितारा था और फिल्म की कहानी भी महान हिंदू राजाओं में शुमार पृथ्वीराज चौहान की कहानी थी. जहां तक शमशेरा के फ्लॉप होने की बात है- फिल्म का ट्रेलर आने के बाद ही यह लगने लगा था कि यशराज का नया प्रोजेक्ट भी शायद ही टिकट खिड़की पर खाड़ी हो पाए. आशंकाएं सही साबित हुई.
संजय दत्त का किरदार जानबूझकर ही गढ़ा गया था, वजह चाहे जो भी हो
सोशल मीडिया पर पिछले कुछ दिनों से शमशेरा का विरोध संजय दत्त के किरदार को लेकर किया जा रहा है. फिक्शनल पीरियड ड्रामा में संजय ने मुख्य विलेन शुद्ध सिंह की भूमिका निभाई है. यहां तक तो ठीक था. लेकिन संजय दत्त के किरदार को जिन प्रतीकों के सहारे गढ़ा गया उसे लोग पचा नहीं पाए. शुद्ध सिंह को देखकर लगता है कि वह बहुत धार्मिक किस्म का व्यक्ति है. वर्दी में होने के बावजूद माथे पर त्रिपुंड, गले में मालाएं और सिर पर शिखा- सनातन परंपरा में साधु-संन्यासियों या ऋषि मुनियों का बाना है. उन्हें मानवता में विश्वास रखने वाला माना जाता है. जबकि शुद्ध सिंह का कर्म और आचरण मानवताविरोधी पशु सामान नजर आता है. लोगों का आरोप है कि शुद्ध सिंह के किरदार के जरिए हिंदुओं की भावनाओं का मजाक उड़ाया गया और यह जानबूझकर किया गया. लोगों ने कहा भी कि क्या असल जिंदगी में ऐसे किरदार दिखते हैं.
लोगों के आरोपों को एक मिनट के लिए खारिज किया जा सकता है. मगर इसी फिल्म में जब दूसरी चीजें दिखती हैं तो बहुत हद तक लोगों के आरोप में दम नजर आता है. एक तो फिल्म की कहानी ब्रिटिश पीरियड की है. इसमें भारतीय संसाधनों की लूट और उत्पीड़न करने वाले अंग्रेजों के खिलाफ आदिवासियों का संघर्ष दिखाने की कोशिश है. मगर कहानी को कुछ इस तरह परोस दिया गया है जिससे यह अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कहानी से कहीं ज्यादा भारतीय समाज में जातियों के आपसी झगड़े के रूप में नजर आती है. शुद्ध सिंह के रूप में हिंदू धर्म में गहरी आस्था रखने वाले को भी अमानवीय और उत्पीड़क साबित कर दिया गया है.
अगर ऐसी ही फिल्म बनानी थी तो मेकर्स को चाहिए था कि इसी कहानी को भारतीय समाज की जातियों के संघर्ष के रूप में ही दिखा देते. उसमें स्वतंत्रता संग्राम या अंग्रेजों को ठूंसकर राष्ट्रवाद का पुट डालने की जरूरत नहीं थी. मेकर्स की बुद्धि पर तरस आता है कि उन्हें औपनिवेशिक संघर्ष और भारतीय समाज व्यवस्था के जातीय संघर्ष की संवेदनशीलता के बारे में कुछ भी नहीं पता. ऐसी कहानी ना तो औपनिवेशिक संघर्ष और ना ही जाति की व्यथा को कहने और लोगों को प्रभावित करने में सक्षम नहीं है. फिल्म मेकिंग का मतलब समाज और देश के प्रति एक जिम्मेदारी भी है. किसी भी तरीके से रुपये कमाने की कोशिश में लगा बॉलीवुड पता नहीं कब इस बात को समझेगा?
स्पॉइलर अलर्ट: अगर शमशेरा देखना चाहते हैं तो यहां से आगे ना पढ़ें
कई लोगों ने ट्विटर पर फिल्म के कुछ विजुअल भी साझा किए थे. इसमें से एक विजुअल पता नहीं फिल्म के किस हिस्से का है. मगर इसमें दिख रहा है कि रणबीर और संजय दत्त के किरदारों में खूब फाइट हुई. इस दौरान एक हथियार रणबीर की पीठ में धंसा हुआ नजर आता है. रणबीर की हालत बहुत खराब है. मगर वे शायद किसी मुस्लिम संत या फिल्म के किसी किरदार "पीर बाबा" का नाम लेते हैं और अपनी पीठ में धंसा हथियार निकाल देते हैं. पीर बाबा का नाम लेते ही रणबीर में एक अलग तरह का जोश भर जाता है. जबकि त्रिपुंड-चोटीधारी पीर बाबा की पुकार के साथ रणबीर के रौद्र रूप को देख खुद को बचाने के लिए बुरी तरह से डरकर पीछे हटते नजर आते हैं. चूंकि शमशेरा की कहानी काल्पनिक है तो लोग फिल्म में दिखी इस तरह की तमाम चीजों में स्वाभाविक रूप से साजिश तलाश रहे हैं.
शमशेरा में शुद्ध सिंह के बहाने धार्मिक हिंदुओं को उत्पीड़क दिखाया गया जबकि पीरबाबा के बहाने मुसलमान सेकुलर नजर आता है. जिस तरह की राजनीति है लोग हिंदुओं को बदनाम करने की साजिश के रूप में ही लेंगे. शमशेरा के जिस क्लिप की चर्चा हुई उसे Babu Saana नाम के हैंडल से साझा किया गया है. हालांकि कॉपीराइट आउनर्स की रिपोर्ट के बाद इस तरह के तमाम वीडियो डिसेबल कर दिए गए हैं.
हो सकता है कि निर्माताओं की इरादा वैसा ना रहा हो जैसे लोग कह रहे है. बल्कि मेकर्स ने चीजों को जानबूझकर रखा हो ताकि निंदा ही सही फिल्म को लेकर लोग बहस करें. यह भी बॉलीवुड की एक पीआर प्रैक्टिस है. होता यह है कि जिस फिल्म की खूब आलोचना हो जाती है दर्शक उसे देखने पहुंचते ही पहुंचते हैं भले वे समर्थन ना कर रहे हों. इससे फिल्म के प्रमोशन और कारोबार को बूस्ट मिलता है. अतीत में बॉलीवुड के कई फिल्म मेकर्स ने राजनीतिक हथकंडे चतुराई से कारोबारी इस्तेमाल किया है. शुद्ध सिंह का किरदार अगर यशराज की पीआर प्रैक्टिस का हिस्सा ही माना जाए तो भी शमशेरा का खस्ताहाल बिजनेस बता रहा कि मेकर्स को कोई फायदा नहीं मिला उलटा फ़ॉर्मूला नुकसान कर गया. शमशेरा टिकट खिड़की पर लगभग बैठ चुकी है और अब उसे शायद ही कोई चमत्कार भी बचा पाए.
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