अक्षय कुमार की फैमिली की जितनी तारीफ़ की जाए कम है. अक्षय, भाजपा और प्रधानमंत्री से नरेंद्र मोदी से करीबी दिखाने में कभी संकोच नहीं करते. और उनकी पत्नी उनके ठीक उलट तंज कसने और आलोचना करने का कोई मौका नहीं गंवाती हैं. भारतीय परिवारों में इस तरह का संतुलन दुर्लभ माना जा सकता है जो आमतौर पर सार्वजनिक रूप से राजनीतिक घरानों में नजर आता है. अक्षय कुमार ने 'द कश्मीर फाइल्स' को सोशल मीडिया पर प्रमोट नहीं किया. बल्कि अनुपम खेर के एक ट्वीट को रीट्वीट करते हुए उनके काम की तारीफ़ की. विवेक अग्निहोत्री या किसी को भी ट्वीट में टैग नभी नहीं दिया. फिल्म को लेकर जब उनसे सवाल पूछे गए तो अपनी कश्मीर फाइल्स को अपनी फिल्म बच्चन पांडे के फ्लॉप होने की वजह का जोक सुना दिया.
स्वाभाविक है कि "भारत कुमार" अक्षय की छवि से प्रभावित कुछ लोगों के लिए यह धक्कादायक साबित हुआ होगा. अक्षय ने असल में द कश्मीर फाइल्स के लिए कुछ उसी तरह कूटनीतिक रास्ता अपनाया जैसे रूस-यूक्रेन संकट में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत का था. तो यह कहने में हर्ज नहीं होना चाहिए कि अक्षय ने द कश्मीर फाइल्स का ना तो सपोर्ट किया और ना ही विरोध किया. वैसे भी यह निजी मामला है. और जब दोनों लोग रचनात्मक क्षेत्र का हिस्सा हों तो विचार का बेमेल होना जरूरी है. जब महिलाएं चुनावों में पति और घरवालों से अलग विकल्प चुन सकती हैं तो अक्षय की पत्नी ट्विंकल को भी सहज अधिकार होना चाहिए.
द ग्रेट राजेश खन्ना की बेटी एक अलग भारत का प्रतिनिधित्व करती हैं
फिल्मों में बुरी तरह से फ्लॉप होने के बाद ट्विंकल खन्ना के जीवन में दो चीजें बेहतर हुईं. एक तो उन्होंने भविष्य के सुपरस्टार से शादी की और दूसरी लेखक बन गईं....
अक्षय कुमार की फैमिली की जितनी तारीफ़ की जाए कम है. अक्षय, भाजपा और प्रधानमंत्री से नरेंद्र मोदी से करीबी दिखाने में कभी संकोच नहीं करते. और उनकी पत्नी उनके ठीक उलट तंज कसने और आलोचना करने का कोई मौका नहीं गंवाती हैं. भारतीय परिवारों में इस तरह का संतुलन दुर्लभ माना जा सकता है जो आमतौर पर सार्वजनिक रूप से राजनीतिक घरानों में नजर आता है. अक्षय कुमार ने 'द कश्मीर फाइल्स' को सोशल मीडिया पर प्रमोट नहीं किया. बल्कि अनुपम खेर के एक ट्वीट को रीट्वीट करते हुए उनके काम की तारीफ़ की. विवेक अग्निहोत्री या किसी को भी ट्वीट में टैग नभी नहीं दिया. फिल्म को लेकर जब उनसे सवाल पूछे गए तो अपनी कश्मीर फाइल्स को अपनी फिल्म बच्चन पांडे के फ्लॉप होने की वजह का जोक सुना दिया.
स्वाभाविक है कि "भारत कुमार" अक्षय की छवि से प्रभावित कुछ लोगों के लिए यह धक्कादायक साबित हुआ होगा. अक्षय ने असल में द कश्मीर फाइल्स के लिए कुछ उसी तरह कूटनीतिक रास्ता अपनाया जैसे रूस-यूक्रेन संकट में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारत का था. तो यह कहने में हर्ज नहीं होना चाहिए कि अक्षय ने द कश्मीर फाइल्स का ना तो सपोर्ट किया और ना ही विरोध किया. वैसे भी यह निजी मामला है. और जब दोनों लोग रचनात्मक क्षेत्र का हिस्सा हों तो विचार का बेमेल होना जरूरी है. जब महिलाएं चुनावों में पति और घरवालों से अलग विकल्प चुन सकती हैं तो अक्षय की पत्नी ट्विंकल को भी सहज अधिकार होना चाहिए.
द ग्रेट राजेश खन्ना की बेटी एक अलग भारत का प्रतिनिधित्व करती हैं
फिल्मों में बुरी तरह से फ्लॉप होने के बाद ट्विंकल खन्ना के जीवन में दो चीजें बेहतर हुईं. एक तो उन्होंने भविष्य के सुपरस्टार से शादी की और दूसरी लेखक बन गईं. वैसे ट्विंकल का जीवन हमेशा से ही ऐसा रहा है कि लोग उनसे जलन महसूस करें. उनका जन्म द ग्रेट सुपरस्टार राजेश खन्ना और पहली ही फिल्म से कहर बरपा देने वाली डिम्पल कपाड़िया के घर हुआ था. उन्हें बहुत वक्त नहीं लगा होगा कि भारत में ट्विंकल खन्ना होने के क्या मायने हैं. स्वाभाविक है कि उनके सवाल, उनका दर्शन शेष भारत से अलग ही होगा. इसे भी एक तरह की डायवर्सिटी समझें. लेकिन मैडम विशेषाधिकार और फ्रीडम ऑफ़ स्पीच का मतलब यह नहीं कि आप चीजों को एवे ही खारिज कर दीजिए और अपनी 'इलीट अप्रोच' के लिए किसी का भी मजाक उड़ा दीजिए- यूं नो, आई थिंक, वी ऑल और नाइस कहते हुए.
असल में पंक्तियों का लेखक कहना चाहता है कि ट्विंकल जी भी लेखिका हैं. लिखती हैं और कभी कभी बवाल लिखती हैं. उन्होंने कश्मीर फाइल्स के बहाने कुछ बवाल लिखा है जिस पर ध्यान देना चाहिए. और हमारे देश के होनहार रक्षा मंत्रियों के शब्दों को उधार लेकर कहें तो कड़ी निंदा भी करनी चाहिए. असल में अपने एक लेख में सुपरस्टार राजेश खन्ना की बेटी और महासुपर स्टार अक्षय कुमार की पत्नी ने इशारों इशारों में विवेक अग्निहोत्री की फिल्म को घोर "कम्युनल फिल्म" पाया है.
वे नेल फ़ाइल बनाए या ट्विंकल फ़ाइल मगर बिना वजह किसी का मजाक उड़ानाकितना जायज
उन्होंने बताया कि कश्मीर फाइल्स की सफलता के बाद कैसे शहरों के नाम टाइटल के रूप में रजिस्टर होने की वजह से गरीब लोग साउथ बॉम्बे फाइल्स, अंधेरी फाइल्स और खार-डंडा फाइल्स जैसे टाइटल रजिस्टर करवा रहे. ट्विंकल को लग रहा कि फिल्म के टाइटल में बस फ़ाइल का होना नया हिट फ़ॉर्मूला है. और उन्होंने इसी ख्याल से अपनी फिल्म का टाइटल 'नेल फ़ाइल' रखना तय किया है. यहां तक तो ठीक है कि लेखक फिल्म की अपने तरीके और विचार से पड़ताल कर रही हैं. लेकिन ये क्या बात है कि आप पड़ताल में बिना वजह पर निंदा कर रही हैं.
हो सकता है कि दुनिया के लिए एक जरूरी फिल्म बच्चन पांडे के फ्लॉप होने पर आप नाराज हैं, मगर कोसना है तो विवेक और अनुपम खेर को पकड़कर चार बात सुना दीजिए. प्रोजेक्ट से जुड़े बाकी लोगों से आप शायद ही मिली हों या नाम जानती हों, भले ही वो आप ही के शहर में रहते हैं. हो सकता है कि आपको यह लग रहा हो कि ऐसे छोटे लोगों का नाम ले लेंगी तो फ्री में वे मशहूर हो जाए, इसलिए बच रही हों- यह समझ में आता है. मगर कश्मीर फाइल्स और बेचारे गरीब बुजुर्ग मनोज कुमार का इससे क्या संबंध? आपने सिनेमा में उनके योगदान को "क्लर्की" बता दिया. उनको 'ओरिजिनल नैशनलिस्ट' कहने का मतलब तो उनका मजाक उड़ाना ही है ना.
मनोज कुमार अगर क्लर्क हैं तो अभी सिनेमा में ऐसे ही क्लर्कों की जरूरत है
मैडम जिन्हें आप क्लर्क समझ रही हैं वो द ग्रेट मनोज कुमार हैं. उनके योगदान का मूल्यांकन आपके वश की बात नहीं. बीइंग डॉटर ऑफ़ राजेश एंड डिम्पल खन्ना आप समझ जी नहीं पाएंगी कि असल में मनोज कुमार ने सिनेमा के जरिए क्या किया था. उनके नाम देश की सबसे बेहतरीन थ्रिलर, पीरियड ड्रामा, रोमांटिक ड्रामा दर्ज है. मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों में शायद ही कोई मुद्दा है जिसपर बात ना किया हो. भुखमरी, गरीबी, अशिक्षा, जातिवाद, धार्मिक बंटवारा, भ्रष्ट राजनीतिक सिंडिकेट, खेती किसानी, बेकारी जैसे दर्जनों मुद्दे हैं. उन्होंने शायद ही कोई मुद्दा अपने वक्त में छोड़ा हो. और जिस समय वो अपनी बातें कह रहे थे वह वक्त बहुत महत्वपूर्ण था.
भूख था बेकारी थी और नाउम्मीदी थी. उन्होंने भरोसा दिया. भरोसा विद्रोह और विध्वंस का नहीं बल्कि निर्माण और प्रगति का भरोसा जताया. वक्त मिले तो एक एक कर उनकी फ़िल्में देखना आप कभी. और वैसे ही समझने की कोशिश करना जैसे आपने हाल ही में स्क्विड गेम के बहाने मौजूदा दुनिया को समझा था. पता नहीं, आप हिंदी समझ भी पाती हैं या नहीं. मुझे तो नहीं लगता. सब टाइटल से देख लेना क्योंकि उनकी फिल्मों में जो भारत है उसके बारे में आपको बिल्कुल भी पता नहीं होगा. इसमें आपकी गलती नहीं है. आपके माता-पिता के स्टारडम की दीवार ही इतनी मजबूत थी कि उस भारत को समझ पाना आपके वश की बात नहीं. और समझा होता तो शायद आपका भी करियर कुछ लंबा और सुफल होता.
खैर. उनकी एक फिल्म है पूरब और पश्चिम. 1970 में आई थी. इस फिल्म में एक जगह दृश्य है जहां वे हीरोइन की मां को बताते हैं कि अब उनकी पढाई ख़त्म हो गई है तो भारत लौट जाएंगे. और वहीं शादी करेंगे. लेकिन हीरोइन की मां कहती है कि शादी यही होगी और उस शर्त पर होगी कि वे भारत नहीं जाएंगे. लोग यहां आकर यही सेटल होना चाहते हैं और तुम वापस जाना चाहते हो. मनोज कहते हैं जो लोग यहां आकर बस जाते हैं वो ये क्यों नहीं सोचते कि उनपर सबसे पहला अधिकार उस देश का है जिसने पाल पोसकर बड़ा किया. जब एक आदमी यहां पढ़ लिखकर काम करने लगता है ना तो यहां दो हाथ और एक दिमाग बढ़ जाता है. और वहां घट जाता है.
माफी सहित कहना चाहूंगा कि अगर ऐसा सिनेमा बनाने वाला कोई क्लर्क है. तो भारत को अभी ऐसे क्लर्कों की बहुत जरूरत है. ये बात आप समझ नहीं पाएंगी. यह हम समझ सकते हैं. आप 'डोंट लुकअप' पीढ़ी से हैं. दुर्भाग्य से भारत अभी इससे 50 साल पीछे है. भारत की जरूरत और चिंताए दूसरी हैं.
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