'सपने वो नहीं होते हैं जो नींद में देखे जाते हैं, सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते हैं'. अपने देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का ये कथन बॉलीवुड के एक एक्टर पर सटीक बैठता है. मायानगरी में पैदा हुए एक बच्चे का पिता, जो खुद फिल्म इंडस्ट्री के लिए काम करता था, अपने बेटे को पढ़ा-लिखाकर नौकरी करना चाहता था. दो जून की रोटी के जुगाड़ के लिए संघर्ष कर रहे पिता को पता था कि फिल्म इंडस्ट्री में मौके पाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं. यहां पैसा कमाना कितना मुश्किल काम है. इसलिए बेटे को कहा कि इंजीनियरिंग करके जॉब करना शुरू कर दो. लेकिन बेटे के सपने तो कुछ और ही थे. उसने पिता की बात तो मानी, लेकिन अपने सपने को जीना नहीं छोड़ा. उसके लिए कठिन परिश्रम किया और आज सुपर स्टार बन चुका है.
जी हां, हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड के मशहूर एक्टर विक्की कौशल की, जिनका आज जन्मदिन है. 16 मई 1988 को मुंबई में पैदा हुए विक्की के पिता शाम कौशल फिल्म इंडस्ट्री में स्टंटमैन काम करते थे. उन्होंने एक भोजपुरी फिल्म 'जहां बहे गंगा की धार' का निर्देशन भी किया था, लेकिन आमदनी ऐसी नहीं थी कि परिवार का पेट पाल सके, क्योंकि नियमित काम पाने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती थी. ऐसे में वो चाहते थे कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर कोई ऐसी स्थाई नौकरी करें, जिसमें उनको समय से पैसे मिलते रहें. इसी सोच के साथ उन्होंने अपने छोटे बेटे विक्की कौशल को मेहनत से पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया. स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद उनका दाखिला मुंबई के राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में करा दिया, जहां वो इंजीनियरिंग करने लगे.
इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही...
'सपने वो नहीं होते हैं जो नींद में देखे जाते हैं, सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते हैं'. अपने देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का ये कथन बॉलीवुड के एक एक्टर पर सटीक बैठता है. मायानगरी में पैदा हुए एक बच्चे का पिता, जो खुद फिल्म इंडस्ट्री के लिए काम करता था, अपने बेटे को पढ़ा-लिखाकर नौकरी करना चाहता था. दो जून की रोटी के जुगाड़ के लिए संघर्ष कर रहे पिता को पता था कि फिल्म इंडस्ट्री में मौके पाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं. यहां पैसा कमाना कितना मुश्किल काम है. इसलिए बेटे को कहा कि इंजीनियरिंग करके जॉब करना शुरू कर दो. लेकिन बेटे के सपने तो कुछ और ही थे. उसने पिता की बात तो मानी, लेकिन अपने सपने को जीना नहीं छोड़ा. उसके लिए कठिन परिश्रम किया और आज सुपर स्टार बन चुका है.
जी हां, हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड के मशहूर एक्टर विक्की कौशल की, जिनका आज जन्मदिन है. 16 मई 1988 को मुंबई में पैदा हुए विक्की के पिता शाम कौशल फिल्म इंडस्ट्री में स्टंटमैन काम करते थे. उन्होंने एक भोजपुरी फिल्म 'जहां बहे गंगा की धार' का निर्देशन भी किया था, लेकिन आमदनी ऐसी नहीं थी कि परिवार का पेट पाल सके, क्योंकि नियमित काम पाने के लिए बहुत मशक्कत करनी पड़ती थी. ऐसे में वो चाहते थे कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर कोई ऐसी स्थाई नौकरी करें, जिसमें उनको समय से पैसे मिलते रहें. इसी सोच के साथ उन्होंने अपने छोटे बेटे विक्की कौशल को मेहनत से पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया. स्कूल की पढ़ाई पूरी होने के बाद उनका दाखिला मुंबई के राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में करा दिया, जहां वो इंजीनियरिंग करने लगे.
इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान ही विक्की कौशल मुंबई की एक आईटी कंपनी में इंटर्नशिप कर रहे थे. उस वक्त उनको लगा कि वो ऑफिस जॉब के लिए नहीं बने हैं. उनका सपना तो बचपन से ही एक्टर बनने का है. उन्होंने अपने पिता को बहुत मुश्किल से समझाया और 'किशोर नमित कपूर एक्टिंग एकेडमी' से एक्टिंग के गुर सीखने लगे. इसके बाद डायरेक्टर अनुराग कश्यप की फिल्म 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में बतौर असिस्टेंट काम किया. उनकी लगन और मेहनत देखकर अनुराग काफी प्रभावित हुए. उन्होंने अपने प्रोडक्शन में बनने वाली फिल्म लव शव ते चिकन खुराना (2012) और बॉम्बे वेलवेट (2015) में विक्की को छोटे रोल दिए. लेकिन अपनी एक्टिंग के जरिए उन्होंने लोगों का दिल जीत लिया. लंबी कदकाठी और छरहरे बदन के मालिक विक्की स्मार्ट भी बहुत हैं.
फिल्म 'मसान' से किया था बॉलीबुड में डेब्यू
साल 2015 में नीरज घायवान के निर्देशन में फिल्म 'मसान' बनाई जा रही थी. इस फिल्म में एक्टर राजकुमार राव को कास्ट किया जाना था, लेकिन किसी वजह से उन्होंने फिल्म में काम करने से इंकार कर दिया. उसी वक्त नीरज को विक्की का ख्याल आया, दोनों फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर में बतौर असिस्टेंट एक साथ काम कर चुके थे. नीरज ने विक्की कौशल को इस फिल्म में बतौर लीड एक्टर साइन कर लिया. फिल्म सुपरहिट हुई. क्रिटिक्स ने भी बहुत सराहा. उनके स्क्रीन अवॉर्ड्स में बेस्ट मेल डेब्यूट का सम्मान मिला. एशियन फिल्म अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट भी किए गए. इसके बाद विक्की सबकी नजरों में जम गए. इसके बाद साल 2016 में फिल्म 'जुबान' और 'रमन राघव 2.0' में नजर आए. नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसे एक्टर के सामने भी उनका अभिनय दमदार रहा.
फिल्म उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक से बने सुपरस्टार
अपनी मेहनत की बदौलत लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहे विक्की कौशल को अभी मुकाम हासिल नहीं हुआ था, जो वो खुद चाहते थे. उनको नोटिस तो किया जाने लगा, लेकिन उनको तो मशहूर होना था. इसलिए फिल्म-दर-फिल्म वो अपने अभिनय को निखारते गए और सही अवसर की तलाश में लगे रहे. साल 2018 में राजकुमार हिरानी की फिल्म 'संजू' में उनको संजय दत्त के दोस्त परेश घेलानी का किरदार ऑफर हुआ. इसमें संजय के रोल में रणबीर कपूर थे. उनके दोस्त कामिल की भूमिका के लिए विक्की ने बहुत मेहनत की. परेश घेलानी के घर पर रहकर उनका कैरेक्टर समझा. फिल्म जब रिलीज हुई तो रणबीर के साथ ही विक्की कौशल भी छा गए. यह फिल्म ब्लॉकबस्टर रही. इसके बाद साल 2019 में रिलीज हुई फिल्म उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक ने उनको सुपरस्टार बना दिया.
'बस ये यकीन जिंदा रखना है कि ये हो जाएगा'
एक इंटरव्यू में विक्की ने कहा था, 'यह सब किसी सपने की तरह है. मैं जब इंडस्ट्री में आया तो जानता था कि प्रोड्यूसर या डायरेक्टर मेरे आने का इंतजार नहीं कर रहे हैं. न ही कोई मेरा गॉड फादर है, जो मुझे लॉन्च करता. मेरा सफर 2009 में शुरू हुआ जब मैंने अपनी ग्रेजुएशन पूरी की. मैं उसके बाद एक्टिंग में कूद पड़ा. मुंबई में मैंने एक एक्टिंग कोर्स किया. इसके बाद गैंग्स ऑफ वासेपुर में मैं असिस्टेंट बन गया. मैं थिएटर भी कर रहा था. इसके बाद मैंने ऑडिशन देने शुरू कर दिए. एड फिल्म, शॉर्ट फिल्म हर तरह के काम के लिए. इसी बीच मुझे महसूस हुआ कि यार ये अभी बहुत दूर है. एक दिन मैं निराश बैठा था. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि सब कैसे होगा. तभी मेरी ने कहा कि ये होगा या नहीं होगा ये तुम्हारी जिम्मेदारी नहीं है. तुम्हें बस ये यकीन जिंदा रखना है कि ये हो जाएगा.'
यंग जनरेशन के लिए मिसाल हैं विक्की कौशल
ये 'यकीन जिंदा रखना' ही सबसे बड़ी बात है. वरना आज के दौर में लोग बहुत जल्दी निराश हो जाते हैं. छोटी-छोटी समस्याओं से परेशान हो जाते हैं. फिल्म इंडस्ट्री में ही आए दिन एक्टर-एक्ट्रेस के सुसाइड की खबरें आती रहती हैं. किसी के सपने पूरे नहीं होते, तो किसी को फिल्मों में काम नहीं मिलता, तो वे अपना सबकुछ खत्म समझ लेते हैं. इसके बाद मौत को गले लगाकर अपने पीछे परिवार को भी खत्म कर जाते हैं. ऐसे लोगों को विक्की कौशल की जिंदगी से सीखना चाहिए. उनकी उम्र भले ही 33 साल की है, लेकिन उन्होंने जिन परिस्थितियों से निकलकर ये मुकाम हासिल किया है, वो यंग जनरेशन के लिए मिसाल है. उनके पिता नहीं चाहते थे कि वो फिल्मों में जाएं, लेकिन विक्की ने विद्रोह करने की बजाए, सलीके से अपने सपने को पूरा किया. उसके लिए लगातार मेहनत करते रहे.
'सपने देखने वालों के सपने हमेशा पूरे होते हैं'
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने ही कहा था, 'सपने देखने वालों के महान सपने हमेशा पूरे होते हैं'. देखा जाए तो ख़्वाबों की दुनिया बड़ी हसीन होती है. सपनों की उड़ान बहुत लंबी होती है, लेकिन यदि हम अपने ख़्वाबों को हकीक़त में बदलना चाहते हैं, तो पूरी मेहनत, ताकत और जोश के साथ हमें उसे पूरा करने में जुटना होगा. यदि सही दिशा में सच्चा प्रयास किया जाए, यकीन मानिए सपना सच होते देर नहीं लगती. विप्रो कंपनी के कर्ताधर्ता अजीम प्रेमजी ने एक बार कहा था, 'सपने आपके सच्चे प्रेरक होते हैं. सपनों से आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती हैं. इसके साथ ही ये लक्ष्य प्राप्त करने के लिए ऊर्जा भी देते हैं. लेकिन ये भी सच है कि ख्वाली पुलाव पकाने या हवा में महल बनाने से जिंदगी में कुछ हासिल नहीं होता. सपने तभी सार्थक होते हैं, जब हकीकत के धरातल से जुड़े होते हैं'.
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