पुष्कर-गायत्री के निर्देशन में आई 'विक्रम वेधा' का बिजनेस अपेक्षाओं के हिसाब से बेहतर नजर नहीं आ रहा. फिल्म का बजट 175 करोड़ रुपये बताया जा रहा है. इसे भारत में 4007 स्क्रीन्स पर रिलीज भी किया गया है. यानी फिल्म का हिंदी बेल्ट के सिनेमाघरों में पूरी तरह से दबदबा है. हालांकि दबदबे की पोल फिल्म के कमजोर बिजनेस ने खोल दिए हैं. विक्रम वेधा पहले दो दिन में मात्र 23 करोड़ रुपये कमा पाई है. दो दिन का बिजनेस बताता है कि रविवार को फिल्म अगर 40 करोड़ की कमाई पार कर जाए तो बहुत बड़ी बात है. साफ़ दिख रहा है कि फिल्म दो दिन में हाफ गई है. बड़े बजट की एक और फिल्म ने दर्शकों को निराश ही किया. सवाल है कि इसमें गलती किसकी है?
क्या विक्रम वेधा के सामने सिनेमाघरों में मौजूद दूसरी फिल्मों ने रितिक रोशन और सैफ अली खान के फिल्म की सफलता रोक ली या इसके पीछे सोशल मीडिया पर बॉलीवुड के कुछ फिल्म मेकर्स और स्टार्स के खिलाफ चल रहे निगेटिव कैम्पेन का हाथ है. सिनेमा बिजनेस को लेकर हो रही बहसों के बीच विक्रम वेधा की केस स्टडी से आसानी से समझा जा सकता है. आगे बढ़े उससे पहले एक जरूरी बात- किसी फिल्म का सकारात्मक या नकारात्मक कैम्पेन तब काम करता है, जब कैम्पेन को फिल्म का कंटेंट लॉजिक बनाए. जहां तक दूसरी फिल्मों के मौजूद रहने का सवाल है PS-1 और चुप ने जबरदस्त बिजनेस किया है.
11 करोड़ में बनी मूल फिल्म ने 52 करोड़ कमाए थे
विक्रम वेधा सेम टाइटल से साल 2017 में आई तमिल फिल्म का आधिकारिक रीमेक है. मूल फिल का निर्देशन भी पुष्कर गायत्री ने किया था. मूल फिल्म में रितिक वाली भूमिका विजय सेतुपति ने जबकि सैफ वाली भूमिका आर माधवन ने निभाई थी. हिंदी दर्शकों के लिहाज से कहानी में थोड़ा बहुत सुधार किया गया है. बाकी निर्देशक से लेकर...
पुष्कर-गायत्री के निर्देशन में आई 'विक्रम वेधा' का बिजनेस अपेक्षाओं के हिसाब से बेहतर नजर नहीं आ रहा. फिल्म का बजट 175 करोड़ रुपये बताया जा रहा है. इसे भारत में 4007 स्क्रीन्स पर रिलीज भी किया गया है. यानी फिल्म का हिंदी बेल्ट के सिनेमाघरों में पूरी तरह से दबदबा है. हालांकि दबदबे की पोल फिल्म के कमजोर बिजनेस ने खोल दिए हैं. विक्रम वेधा पहले दो दिन में मात्र 23 करोड़ रुपये कमा पाई है. दो दिन का बिजनेस बताता है कि रविवार को फिल्म अगर 40 करोड़ की कमाई पार कर जाए तो बहुत बड़ी बात है. साफ़ दिख रहा है कि फिल्म दो दिन में हाफ गई है. बड़े बजट की एक और फिल्म ने दर्शकों को निराश ही किया. सवाल है कि इसमें गलती किसकी है?
क्या विक्रम वेधा के सामने सिनेमाघरों में मौजूद दूसरी फिल्मों ने रितिक रोशन और सैफ अली खान के फिल्म की सफलता रोक ली या इसके पीछे सोशल मीडिया पर बॉलीवुड के कुछ फिल्म मेकर्स और स्टार्स के खिलाफ चल रहे निगेटिव कैम्पेन का हाथ है. सिनेमा बिजनेस को लेकर हो रही बहसों के बीच विक्रम वेधा की केस स्टडी से आसानी से समझा जा सकता है. आगे बढ़े उससे पहले एक जरूरी बात- किसी फिल्म का सकारात्मक या नकारात्मक कैम्पेन तब काम करता है, जब कैम्पेन को फिल्म का कंटेंट लॉजिक बनाए. जहां तक दूसरी फिल्मों के मौजूद रहने का सवाल है PS-1 और चुप ने जबरदस्त बिजनेस किया है.
11 करोड़ में बनी मूल फिल्म ने 52 करोड़ कमाए थे
विक्रम वेधा सेम टाइटल से साल 2017 में आई तमिल फिल्म का आधिकारिक रीमेक है. मूल फिल का निर्देशन भी पुष्कर गायत्री ने किया था. मूल फिल्म में रितिक वाली भूमिका विजय सेतुपति ने जबकि सैफ वाली भूमिका आर माधवन ने निभाई थी. हिंदी दर्शकों के लिहाज से कहानी में थोड़ा बहुत सुधार किया गया है. बाकी निर्देशक से लेकर फिल्म की जमीन एक जैसी है. लोगों को जानकार ताज्जुब होगा कि मूल फिल्म मात्र 11 करोड़ के बजट में बनाई गई थी. फिल्म ने लगभग अपने बजट से पांच गुना ज्यादा यानी 52 करोड़ की कमाई करने में कामयाब रही थी. वैसे 52 करोड़ की कमाई भी बहुत बड़ी नहीं है मगर जब उसका मामूली बजट देखते हैं तो समझ में आता है कि फिल्म की कमाई के मायने क्या हैं?
आर माधवन या विजय सेतुपति की स्थिति रजनीकांत जैसी नहीं रही है. शाहरुख सलमान या आमिर खान जैसा भी उनका स्टारडम नहीं दिखता. 11 करोड़ में विक्रम वेधा बनाना सिर्फ इसलिए संभव हो पाया कि दोनों सितारों की फीस मामूली रही होगी चार साल पहले. फिल्म के बजट में एक बड़ा अमाउंट सितारों की फीस का ही रहता है. अगर इसी फिल्म की कास्ट में रजनीकांत, कमल हासन या विक्रम जैसे सितारे होते- इसका संगीत रहमान दे रहे होते तो हो सकता है कि मूल तमिल फिल्म का भी बजट 11 करोड़ से कहीं ज्यादा रहता. खैर. फिल्म बनी भी थी अच्छी. विजय और माधवन के काम ने दर्शकों को लाजवाब भी कर दिया था.
विक्रम वेधा हिंदी का बजट 175 करोड़, पैसा खर्च कहां होता है- सितारों की फीस पर
अब बात करें विक्रम वेधा के हिंदी वर्जन की तो फिल्म का बजट आसमान पर दिखता है. अगर वह वाकई 175 करोड़ है तो. बॉलीवुड में बड़े बड़े सितारों को 50-50 और 100-100 करोड़ की फीस देकर निर्माता साइन करते हैं. किसी फिल्म में बड़े सितारों के होने का मतलब है फिल्म के बजट का भारी भरकम हो जाना. बॉलीवुड में आमतौर पर तीन चार सितारों की कास्टिंग भर के लिए किसी फिल्म के बजट का एक बहुत बड़ा हिस्सा खर्च कर देना पड़ता है. मगर सितारों में अब इतनी क्षमता नहीं बची कि वह अपने चेहरे से दर्शकों को सिनेमाघर तक खींच लाए. सपोर्टिंग एक्टर की भूमिका में नजर आने वाले सैफ अली खान का कभी ऐसा स्टारडम नहीं दिखा कि माना जाए वो अपने कंधों पर फिल्म ढोने में सक्षम हैं. मगर तीन दशक से वे सबसे ज्यादा व्यस्त अभिनेता नजर आते हैं. मोटी फीस भी वसूलते हैं. सवाल है किस क्षमता पर? रितिक रोशन भी अपने चेहरे पर 300 करोड़ शर्तिया निकालने वाले एक्टर नजर नहीं आते.
रितिक-सैफ के होने से हिंदी वर्जन की ब्लॉकबस्टर कमाई कमतर नजर आ रही है
मजेदार बात यह है कि अगर 11 करोड़ की फिल्म का बजट, कास्टिंग भर की वजह से 175 करोड़ तक पहुंच गई तो इसमें ना तो दर्शकों का दोष है और ना ही फिल्म के कंटेंट का. सवाल यही है कि क्या बॉलीवुड के सितारे इतनी फीस डिजर्व भी करते हैं? अगर विक्रम वेधा के हिंदी वर्जन को 50-100 करोड़ के बजट में बनाया गया होता तो निश्चित ही फिल्म ने पहले दो दिन जो कमाया है वह ब्लॉकबस्टर ही माना जाता. यह ठीकरा फोड़ना कि फिल्म के खिलाफ अभियान चलाकर उसे तबाह किया जा रहा है या एक उद्योग को बर्बाद करने की साजिश हो रही है- ऐसे तमाम आरोप बेमतलब के हैं. निर्माताओं को तो देखना चाहिए कि वे जिन्हें साइन कर रहे हैं वह हकीकत में उतना फीस भी डिजर्व करते हैं क्या?
कोविड से पहले चीजें चल जाती थीं. तब हिंदी सिनेमा उद्योग को कोई टक्कर देने वाला नहीं था और सब अपने-अपने कुएं के मेंढक बने बैठे थे. अब चुनौती चौतरफा है. कुएं नहीं समुद्र में संघर्ष हो रहा है. तमाम भाषाओं के सिनेमा और स्टार्स सामने आ रहे हैं ओटीटी भी है. यहां तो हर एक्टर को हर फिल्म के साथ अपनी क्षमता साबित करके दिखानी होगी. बिना क्षमता साबित किए कोई टिक नहीं सकता. दोष दर्शकों का नहीं है. बॉलीवुड सितारों को चाहिए कि वे वाजिब फीस चार्ज करें. विक्रम वेधा तक फिल्मों का हश्र बता रहा कि वे 50 या 100 करोड़ चार्ज करने वाले अभिनेता बिल्कुल नहीं हैं. उनकी की ब्रांड वैल्यू नजर नहीं आ रही. ब्रांड वैल्यू होती तो आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा कम से कम 200 करोड़ तो कमा ही लेती.
समझा जा सकता है कि जो फिल्म 11 करोड़ में बनाई गई हो उसपर 175 करोड़ खर्च करना फिजूलखर्ची है. निर्माताओं को चाहिए था कम फीस में सस्ते लेकिन काबिल स्टार्स को लेकर फिल्म बनाते तो हिंदी वर्जन भी घाटे का सौदा नहीं होती. बात इतनी सी है सिर्फ बस.
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