विनोद खन्ना की त्रासद तस्वीर को बीते दो दिन से सोशल मीडिया पर डाल डाल कर पता नहीं क्या साबित करना चाहते हैं भाई लोग. सबसे पहले तो मैं उस शख्स की मानसिकता पर सवाल उठाना चाहता हूं जिसने विनोद खन्ना की तस्वीर को अस्पताल में खींचा और सार्वजनिक भी कर दिया.
पता नहीं उसने पैसे के लालच में किया या टीआरपी बटोरने के लिए. एक तो ये संकट से गुजर रहे खन्ना परिवार की निजता में दखल है. दूसरा मुझ जैसे विनोद खन्ना के डाई हार्ड फैन्स को कष्ट दिया गया है.
यहां मैं देव आनंद साहब की एक बात का ज़िक्र करना चाहता हूं. वो आखिरी दम तक अपने पैशन यानि फिल्म मेकिंग में एक्टिव रहे. उनकी हमेशा बने ठने ही तस्वीरें सामने आई. कैमरे के सामने वो हमेशा स्टाइलिश रहे. वो जीते जी परिवार को सुनिश्चित कर गए थे कि उनके मरने के बाद उनके चेहरे को सिवा घर वालों के और कोई ना देख पाए. देव साहब चाहते थे कि दुनिया वालों के जेहन में उनकी हमेशा एवरग्रीन इमेज ही बनी रहे. और उनके घर वालों ने उनकी बात को पूरा मान दिया.
मैं अपने जेहन में विनोद खन्ना की भी हमेशा डैशिंग, हैंडसम हंक वाली छवि रखना चाहता हूं. उसी विनोद खन्ना की जो 1980 में 'कुरबानी' की रिलीज के बाद अमिताभ बच्चन का नंबर 1 का खिताब छीनने ही वाले थे. फिर अचानक सब छोड़ छाड़ संन्यास लेकर ओशो की शरण में अमेरिका चले गए थे.
'मेरे अपने' का श्याम हो या 'मेरा गांव, मेरा देश' का जब्बर सिंह...
विनोद खन्ना की त्रासद तस्वीर को बीते दो दिन से सोशल मीडिया पर डाल डाल कर पता नहीं क्या साबित करना चाहते हैं भाई लोग. सबसे पहले तो मैं उस शख्स की मानसिकता पर सवाल उठाना चाहता हूं जिसने विनोद खन्ना की तस्वीर को अस्पताल में खींचा और सार्वजनिक भी कर दिया.
पता नहीं उसने पैसे के लालच में किया या टीआरपी बटोरने के लिए. एक तो ये संकट से गुजर रहे खन्ना परिवार की निजता में दखल है. दूसरा मुझ जैसे विनोद खन्ना के डाई हार्ड फैन्स को कष्ट दिया गया है.
यहां मैं देव आनंद साहब की एक बात का ज़िक्र करना चाहता हूं. वो आखिरी दम तक अपने पैशन यानि फिल्म मेकिंग में एक्टिव रहे. उनकी हमेशा बने ठने ही तस्वीरें सामने आई. कैमरे के सामने वो हमेशा स्टाइलिश रहे. वो जीते जी परिवार को सुनिश्चित कर गए थे कि उनके मरने के बाद उनके चेहरे को सिवा घर वालों के और कोई ना देख पाए. देव साहब चाहते थे कि दुनिया वालों के जेहन में उनकी हमेशा एवरग्रीन इमेज ही बनी रहे. और उनके घर वालों ने उनकी बात को पूरा मान दिया.
मैं अपने जेहन में विनोद खन्ना की भी हमेशा डैशिंग, हैंडसम हंक वाली छवि रखना चाहता हूं. उसी विनोद खन्ना की जो 1980 में 'कुरबानी' की रिलीज के बाद अमिताभ बच्चन का नंबर 1 का खिताब छीनने ही वाले थे. फिर अचानक सब छोड़ छाड़ संन्यास लेकर ओशो की शरण में अमेरिका चले गए थे.
'मेरे अपने' का श्याम हो या 'मेरा गांव, मेरा देश' का जब्बर सिंह या फिर 'कुरबानी' और 'अमर अकबर अंथनी' का अमर हो या दयावान का 'शक्ति', विनोद खन्ना हर किरदार में खूब फबे. विनोद खन्ना के बारे में कहा जाता है कि डाकू के रोल में सुनील दत्त के बाद बॉलिवुड की फिल्मों में वही सबसे ज्यादा जमे.
प्रभु से यही प्रार्थना है कि विनोद खन्ना शीघ्र पूरी तरह स्वस्थ हों. उसी डैशिंग लुक में दुनिया के सामने आएं जिसके लिए उन्हें हमेशा जाना जाता रहा है. विनोद खन्ना हैंडसम थे, हैंडसम हैं और हैंडसम ही रहेंगे.
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