कश्मीर घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और पलायन त्रासदी की सच्ची घटनाओं से प्रेरित द कश्मीर फाइल्स क्यों बनाई गई थी? 11 मार्च को फिल्म रिलीज होने के बाद सवाल से जुड़े दर्जनों नैरेटिव इंटरनेट पर मौजूद हैं. निर्देशक विवेक अग्निहोत्री समेत फिल्म के मेकर्स ने कहा कि उनका मकसद फिल्म के जरिए पैसा कमाना नहीं था. बल्कि यह फिल्म उनके लिए दुनिया को कश्मीर की अनकही दास्तां दिखाने का बड़ा मिशन था. दूसरी तरफ फिल्म की आलोचना करने वालों का आरोप था कि निर्माताओं ने कारोबारी फायदे के लिए एक समुदाय के खिलाफ घृणा का वातावरण तैयार कर इसे भुनाया.
अब अगर फिल्म मेकर्स यह कहें कि उनका मकसद पैसा कमाना नहीं था और वो फिल्म की कलेक्शन आंकड़ों को जश्न के अंदाज में साझा करें तो सवाल बनता है. असल में विवेक ने पत्नी पल्लवी जोशी का फोटो और फिल्म की कमाई को ट्विटर पर साझा किया है सवाल हो रहे. ट्वीट पर आई प्रतिक्रियाओं में उसे पढ़ा जा सकता है. विवेक के ट्वीट का कैप्शन है- "भारत की सबसे ज्यादा सफल महिला प्रोड्यूसर को जन्मदिन की बधाई." कैप्शन के साथ जो तस्वीरें साझा की गई हैं- एक में विवेक और पल्लवी साथ हैं. और दूसरी में द कश्मीर फाइल्स के पोस्टर पर वर्ल्डवाइड फिल्म का आंकड़ा है.
पोस्टर में द कश्मीर फाइल्स को 'ग्लोबल सेंसेशन' बताया गया है और इसके मुताबिक़ वर्ल्ड वाइड बिजनेस 331 करोड़ हो चुका है. स्वाभाविक है कि फिल्म से असहमत लोग विवेक पर महज कारोबार के लिए घृणा फैलाने का आरोप लगा रहे हैं. अभी कुछ ही दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कुछ अन्य नेताओं ने भी कहा था कि अगर निर्माताओं का मकसद कमाई नहीं था तो अब तक जो आमदनी हुई है उसे कश्मीरी पीड़ितों के पुनर्वास और विस्थापन पर क्यों नहीं खर्च कर देते. हालांकि केजरीवाल...
कश्मीर घाटी में हिंदुओं के नरसंहार और पलायन त्रासदी की सच्ची घटनाओं से प्रेरित द कश्मीर फाइल्स क्यों बनाई गई थी? 11 मार्च को फिल्म रिलीज होने के बाद सवाल से जुड़े दर्जनों नैरेटिव इंटरनेट पर मौजूद हैं. निर्देशक विवेक अग्निहोत्री समेत फिल्म के मेकर्स ने कहा कि उनका मकसद फिल्म के जरिए पैसा कमाना नहीं था. बल्कि यह फिल्म उनके लिए दुनिया को कश्मीर की अनकही दास्तां दिखाने का बड़ा मिशन था. दूसरी तरफ फिल्म की आलोचना करने वालों का आरोप था कि निर्माताओं ने कारोबारी फायदे के लिए एक समुदाय के खिलाफ घृणा का वातावरण तैयार कर इसे भुनाया.
अब अगर फिल्म मेकर्स यह कहें कि उनका मकसद पैसा कमाना नहीं था और वो फिल्म की कलेक्शन आंकड़ों को जश्न के अंदाज में साझा करें तो सवाल बनता है. असल में विवेक ने पत्नी पल्लवी जोशी का फोटो और फिल्म की कमाई को ट्विटर पर साझा किया है सवाल हो रहे. ट्वीट पर आई प्रतिक्रियाओं में उसे पढ़ा जा सकता है. विवेक के ट्वीट का कैप्शन है- "भारत की सबसे ज्यादा सफल महिला प्रोड्यूसर को जन्मदिन की बधाई." कैप्शन के साथ जो तस्वीरें साझा की गई हैं- एक में विवेक और पल्लवी साथ हैं. और दूसरी में द कश्मीर फाइल्स के पोस्टर पर वर्ल्डवाइड फिल्म का आंकड़ा है.
पोस्टर में द कश्मीर फाइल्स को 'ग्लोबल सेंसेशन' बताया गया है और इसके मुताबिक़ वर्ल्ड वाइड बिजनेस 331 करोड़ हो चुका है. स्वाभाविक है कि फिल्म से असहमत लोग विवेक पर महज कारोबार के लिए घृणा फैलाने का आरोप लगा रहे हैं. अभी कुछ ही दिन पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कुछ अन्य नेताओं ने भी कहा था कि अगर निर्माताओं का मकसद कमाई नहीं था तो अब तक जो आमदनी हुई है उसे कश्मीरी पीड़ितों के पुनर्वास और विस्थापन पर क्यों नहीं खर्च कर देते. हालांकि केजरीवाल के बयान पर चौतरफा काउंटर आए और लोगों ने कहा आखिर विवेक क्यों ऐसा करें. यानी सवाल फिल्म के मकसद में ही कहीं अटका हुआ है.
फिल्म की कमाई के मायने तो समझते जाइए
आगे बढ़ा जाए उससे पहले महत्वपूर्ण बात पता होनी चाहिए कि दुनिया का कोई भी फिल्म मेकर किसी व्यावसायिक फिल्म का निर्माण 'कारोबारी वजहों से भी' करता है. इसे कभी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. होलोकास्ट या दुनिया की तमाम मानवीय आपदाओं पर बनी महान फिल्मों का भी यही हाल रहा है. अगर कोई विवेक अग्निहोत्री से यह कल्पना करे कि वो फिल्म बनाए और वह कमाई भी ना करे- तो उस फिल्म का मतलब ही नहीं रह जाता. किसी फिल्म की बॉक्स ऑफिस कमाई का सीधा सपाट मतलब यही है कि उसे पसंद किया गया. और यही पसंद ककिया जाना ही फिल्म का असल मकसद होता है.
जितना ज्यादा कलेक्शन, यानी फिल्म को खूब देखा गया और बहुत सारी चर्चा हुई- यह सीधा सीधा मतलब है. सिनेमाघरों का कलेक्शन ही असल में ऑडियंस रीच समझने का एकमात्र टूल है. इस लिहाज से कहा जा सकता है कि द कश्मीर फाइल्स के मेकर्स का मकसद कामयाब रहा- "अगर उनका मकसद फिल्म की कहानी को दुनिया के सामने ही लाना था तो."
फिल्म की कमाई के साथ उसपर चर्चा और पब्लिक के बीच की डिबेट, नरसंहार से जुड़े घाटी के पुराने मामलों का खुलना मकसद की कामयाबी का सबूत माना जा सकता है. दुनिया के कई हिस्सों में मानवीय त्रासदियों पर ऐसे ही फ़िल्में बनी हैं. यहूदी नरसंहारों पर बनी फिल्मों को भला आप अलग कैसे कर सकते हैं और फिल्मों ने जबरदस्त कमाई की. अगर ये फ़िल्में नहीं होती तो शायद ही यहूदियों पर हुई क्रूरता के बारे में लोग जान पाते. प्रोपगेंडा अलग चीज है मगर यह कहा जाए कि यहूदी नरसंहारों पर फ़िल्में पैसे बनाने के लिए बनीं तो गलत होगा.
जहां तक बात चैरिटी की है तमाम निर्नाताओं ने मर्जी से कमाई के हिस्से को खर्च भी किया है. जय भीम की सफलता के बाद जब विक्टिम महिला की मौजूदा खस्ता आर्थिक हालत का पता लोगों को लगा, तो फिल्म के निर्माताओं ने उनकी मदद की. यह निर्माताओं का अपना पक्ष है. हो सकता है कि कश्मीर फाइल्स के निर्माता भी इस तरह के उपक्रम का विचार कर रहे हों या उन्होंने कुछ किया भी हो. खैर, यह उनका अपना फैसला होगा.
दूसरी बात- यह भी है कि फिल्म की कमाई को सार्वजनिक रूप से साझा करना कई तरह का संदेश भी होता है. विक्ट्री संदेश- जो सीधे सीधे फिल्म उद्योगों को है. बॉलीवुड के खिलाफ एक सेंटिमेंट का मजाक उड़ाने, उसे डिप्रेस करने के आरोप लगते रहे हैं. एक विचारधारा तो कुछ विषयों पर सेलेक्टिव है और उसने फ़ॉर्मूला बना दिया कि अमुक विषय में फिल्म कहने लायक है क्या? अमुक विषय लोग देख लेंगे और हिट होगी क्या और अमुक विषय लोग देखना पसंद ही नहीं करेंगे. अब इस लिहाज से भी देखें तो द कश्मीर फाइल्स की कमाई 'जनादेश' ही है. मतलब यह कि जिस कहानी को आप फिल्म का विषय नहीं मानते थे वैसी कहानियां भी लोग देखना चाहते हैं और भर-भरकर देखना चाहते हैं. ऐसी फिल्म जो हिंदी सिनेमा इतिहास की सबसे ज्यादा 'कास्ट टू प्रॉफिट' फिल्म बनकर सामने आ रही है.
बॉलीवुड के इकोसिस्टम में ऐसा जश्न तो मनना ही था
फिल्म मेकर्स के एक तबके के लिए यह जश्न नहीं बल्कि जयघोष का विषय है. वह तबका आंकड़े साझा करके बता रहा कि जिसे आप फिल्म का विषय भी नहीं समझते थे- देखो उसने सभी स्थापित धारणाओं को एक झटके में तहस नहस कर दिया. हकीकत में एक तरह का आंदोलन ही है कि हमने कर दिया. अब आगे और भी लोग करेंगे. आप देखिए कि द कश्मीर फाइल्स की सफलता के बाद बॉलीवुड के मेकर्स और अभिनेताओं के बयान उसी चीज को इंगित कर रहे हैं. करण जौहर ने भी कहा- यह आंदोलन है और कहीं ना कहीं कुछ था जो छूट रहा था. द कश्मीर फाइल्स फिल्म मेकर्स के लिए सीखने की चीज है.
यह सच भी है. अब फिल्म उद्योग भारतीयता या उसकी आत्मा का मजाक उड़ाकर या उसे नजरअंदाज कर तो नहीं टिक सकता. कहानियां बनेंगी. सक्षम लोग नहीं बनाएंगे तो उसे कोई गुमनाम पल्लवी या विवेक बनाएंगे. हो सकता है कि वह इतिहास भी बने.
विवेक-पल्लवी ने धारणाएं तहस नहस कीं
आख़िरी बात यह भी है कि पल्लवी जोशी कौन हैं? एक अभिनेत्री. जिन्हें टीवी ने पहचान तो दिलाई लेकिन क्षमताओं के बावजूद वो उस तरह आइकन नहीं बन पाई जो एक एक्टर करियर में डिजर्व करता है. फिल्मों में बहन बेटी के मामूली किरदार से आगे तक निकल नहीं सकीं. हमारे यहां हीरो हीरोइन और उनका इको सिस्टम स्किल की बजाय फैन फॉलोइंग है. बल्कि सुपरस्टार में एक्टर कितना सफल यह दावे से नहीं कहा जा सकता.
तो एक तरह से पल्लवी ने लगभग करियर के उत्तरार्ध में उस धारणा को भी तहस नहस कर दिया कि फिल्म मेकर्स और प्रोफेशनल एक दौर के बाद ख़त्म हो जाते हैं. उनकी भूमिका फिल्म की जान है. बॉलीवुड में विशाल प्रोडक्शन हाउसेज भी भला 300 करोड़ कमाने के लिए ना जाने कितने पापड बेलते हैं और इक्का दुक्का फ़िल्में ही ऐसा कर पाती हैं. एक फिल्म के जरिए बॉलीवुड की सबसे सफल प्रोड्यूसर के रूप में पल्लवी जोशी का अचानक खड़े होना फिल्म इंडस्ट्री के अभिजात्य तंत्र पर भी तीखे तंज और निर्णायक प्रहार की तरह है. कि देखो तुम- 300 करोड़ की कमाई के जादू को हमने भी कर दिखाया. और बिना तामझाम के.
दक्षिण की फिल्मों की सफलता को ही ले लीजिए- अब लोग फिल्मों को राजनीतिक और सांस्कृतिक तौर पर भी ले रहे हैं. लोग खुश हैं. भले ही आप को लगे कि घृणा फैला रहें, पैसे के लिए बना रहे आदि-आदि. लेकिन उसमें उन्हें अपना वाजिब प्रतिनिधित्व दिखता है. विवेक की ट्वीट के मायने कई हैं. बस चयन अपनी सुविधा और वैचारिकता का है.
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