विंग कमांडर अभिनंदन जब पाकिस्तान से लौटे, तब भारत में जितना जोश था उतना ही बॉलीवुड में भी था. अभिनंदन और बालाकोट नाम पर फिल्में बनाने के लिए टाइटल रजिस्टर्ड करवाने की होड़ लग गई थी. कैप्टन अभिनंदन तो 2019 के हीरो हैं और निश्चित ही इनपर फिल्म भी बननी चाहिए. लेकिन वो वीर जिन्हें भारत भूल गया है और जिनका जिक्र अब नहीं होता, बायोपिक पर पहला हक तो उनका है.
और इसीलिए अभिनंदन की बायोपिक से पहले आ रही है भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक की बायोपिक. T-series के भूषण कुमार और निर्देशक अभिषेक दुधैया 'भुज- The Pride of India' नाम से फिल्म बना रहे हैं. जिसपर काफी समय से काम चल रहा था. दिसंबर में खुद और इस फिल्म के हीरो होंगे अजय देवगन. 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भुज एयरबेस को चालू रखने की जिम्मेदारी स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक ने ही निभाई थी.
शायद ही लोग जानते हों कि ये विजय कार्णिक और उनकी टीम ही थी जिन्होंने स्थानीय महिलाओं की मदद से नष्ट किया हुआ भुज एयरबेस दोबारा खड़ा किया था.
क्यों महत्वपूर्ण है 'भुज'
विजय कार्णिक ने 1962 और 1965 के युद्धों में सक्रिय भूमिका निभाई थी, लेकिन 1971 का युद्ध बेहद अलग था. 1971 के भारत-पाक युद्ध में कार्णिक भुज एयर बेस में बेस कमांडर थे. जो एक महत्वपूर्ण और जिम्मेदार पद था. उनका मिशन कराची को नष्ट करना था. हवाई अड्डे, पेट्रोलियम डंप और नेवी डॉक उनके निशाने थे. 3 दिसंबर, 1971 को युद्ध शुरू हुआ और उसी रात से भारतीय वायु सेना ने कराची पर हमला करना शुरू कर दिया.
पाकिस्तानी वायु सेना भुज एयर बेस को नष्ट करना चाहती थी, इसलिए उन्होंने 4 दिसंबर के बाद हर रात भुज...
विंग कमांडर अभिनंदन जब पाकिस्तान से लौटे, तब भारत में जितना जोश था उतना ही बॉलीवुड में भी था. अभिनंदन और बालाकोट नाम पर फिल्में बनाने के लिए टाइटल रजिस्टर्ड करवाने की होड़ लग गई थी. कैप्टन अभिनंदन तो 2019 के हीरो हैं और निश्चित ही इनपर फिल्म भी बननी चाहिए. लेकिन वो वीर जिन्हें भारत भूल गया है और जिनका जिक्र अब नहीं होता, बायोपिक पर पहला हक तो उनका है.
और इसीलिए अभिनंदन की बायोपिक से पहले आ रही है भारतीय वायुसेना के स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक की बायोपिक. T-series के भूषण कुमार और निर्देशक अभिषेक दुधैया 'भुज- The Pride of India' नाम से फिल्म बना रहे हैं. जिसपर काफी समय से काम चल रहा था. दिसंबर में खुद और इस फिल्म के हीरो होंगे अजय देवगन. 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भुज एयरबेस को चालू रखने की जिम्मेदारी स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक ने ही निभाई थी.
शायद ही लोग जानते हों कि ये विजय कार्णिक और उनकी टीम ही थी जिन्होंने स्थानीय महिलाओं की मदद से नष्ट किया हुआ भुज एयरबेस दोबारा खड़ा किया था.
क्यों महत्वपूर्ण है 'भुज'
विजय कार्णिक ने 1962 और 1965 के युद्धों में सक्रिय भूमिका निभाई थी, लेकिन 1971 का युद्ध बेहद अलग था. 1971 के भारत-पाक युद्ध में कार्णिक भुज एयर बेस में बेस कमांडर थे. जो एक महत्वपूर्ण और जिम्मेदार पद था. उनका मिशन कराची को नष्ट करना था. हवाई अड्डे, पेट्रोलियम डंप और नेवी डॉक उनके निशाने थे. 3 दिसंबर, 1971 को युद्ध शुरू हुआ और उसी रात से भारतीय वायु सेना ने कराची पर हमला करना शुरू कर दिया.
पाकिस्तानी वायु सेना भुज एयर बेस को नष्ट करना चाहती थी, इसलिए उन्होंने 4 दिसंबर के बाद हर रात भुज पर बमबारी की. भारी बमबारी के बावजूद भी भुज क्षतिग्रस्त नहीं हुआ था. 6 दिसंबर की रात को भारतीय एयरफोर्स पाकिस्तानी B-57 बॉम्बर को उड़ाने में कामयाब रही. उसके बाद पाकिस्तान ने भुज पर हमले और बढ़ा दिए. 9 दिसंबर की रात उन्होंने आठ हमलावर भेजे और भुज रनवे को नष्ट कर दिया.
युद्ध के दौरान हर समय एयर बेस को चालू रखना बेहद जरूरी होता है. भुज एयर बेस बेकार हो चुका था और युद्ध के दौरान वो एक बड़ा झटका था. उस वक्त रनवे की मरम्मत करने वाला कोई नहीं था. लेकिन कार्णिक हार नहीं माने, उन्होंने गांव के लोगों की मदद लेने का निर्णय लिया. युद्ध की स्थिति में हर कोई देशभक्ति से ओतप्रोत था और देश के लिए कुछ करना चाहता था. और इसी भावना के साथ माधापुर गांव की 300 महिलाएं मदद के लिए सामने आईं. कार्णिक के निर्देश पर उन्होंने रिकॉर्ड समय में यानी दो दिन में रनवे की मरम्मत की और भुज एयर बेस को फिर से खड़ा किया. युद्ध के दौरान रनवे की मरम्मत होना बेहद बहादुरी का काम था. अपनी जान की परवाह न करते हुए भी ये महिलाएं डटी रहीं. इसके लिए न सिर्फ स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक को श्रेय जाता है बल्कि भुज की वे महिलाओं भी तालियों की सलाम की हकदार हैं जिनकी बदौलत इतनी महत्वपूर्ण जगह को चालू रखा जा सका.
झांसी की रानियों के लिए 'भुज' जरूरी है
जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इन महिलाओं की बहादुरी के बारे में सुना तो वो युद्ध के बाद इनसे मिलने भुज पहुंची. युद्ध के बाद भुज ही अकेला ऐसा एयरबेस था जहां प्रधानमंत्री इंदिरा गंधी गई थीं. और तब उन्होंने भुज की इन महिलाओं को सर्किट हाउस बुलाया और उन्हें 'झांसी की रानी' नाम दिया. इंदिरा गांधी ने कहा था- 'पहले हमारे पास एक झांसी की रानी थी, अब हमारे पास 300 झांसी की रानियां हैं.'
फिल्म के लिए अजय देवगन ही क्यों
हालांकि ये रोल तो कोई भी कर सकता था लेकिन स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक खुद चाहते हैं कि उनका किरदार कोई और नहीं सिर्फ अजय देवगन करें. अजय देवगन इससे पहले 1999 के कारगिल युद्ध पर बनी 'एलओसी कारगिल' में लेफ्टिनेंट मनोज पांडे की भूमिका निभाकर लोगों के दिल जीत चुके हैं. और फिल्म सिंघम में पुलिस वाले का किरदार निभाकर अजय देवगन ये साबित भी कर चुके हैं कि वर्दी उनपर खूब जंचती है. इसलिए अब अजय देवगन में लोग विजय कार्णिक को देखेंगे.
ये फिल्म जितनी स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक की है उतनी ही भुज की साहसी महिलाओं की भी. इसलिए इस फिल्म को बनाना बेहद जरूरी था.
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