याद है कॉलोनी की आंटी की वो बातें कि लड़की अगर इतना फैशन करेगी तो पढ़ेगी क्या. सारा ध्यान तो इसी में चला जाता होगा. जो लड़की मेकअप करती है वो पढ़ने में कमजोर होती है, ऐसा कुछ सालों पहले तक माना जाता था. पढ़ाकू लड़कियों की यह निशानी होती थी कि वो एकदम सिंपल होंगी.
बालों में तेल और आखों पर चश्मा और सूट-सलवार पहनकर हर पल दुपट्टा संभालने वाली एक लड़की. जबकि ऐसा कभी था ही नहीं कि पहवाने से पढ़ाई का कोई लेना-देना हो. मैं कई ऐसी लड़कियों से मिली जो जींस पहनती थीं, काजल लगाती थीं, फुल मैंचिग में फैशन करती थीं और पढ़ने में काफी स्मार्ट थीं. वहीं कई ऐसी लड़कियां ऐसी भी थीं जो सूट पहनती थीं लेकिन पढ़ाई में एवरेज थीं.
इसी तरह अपनी रील और रियल लाइफ में बिंदास रहने वाली एक्ट्रेस को अक्सर उनके पहनावे के लिए ट्रोल किया जाता है, उनके कपड़ों को लेकर उन पर उंगली उठाई जाती है. नीना गुप्ता तो खुद एक खुली किताब हैं. क्यों आज भी किसी उम्रदराज महिला को उसके कपड़ों को लेकर जज किया जाता है. जब किसी एक्ट्रेस का ये हाल है तो आम महिलाओं को तो छोड़ ही दीजिए. समाज ने उम्रदराज महिलाओं के लिए एक ड्रेस कोड तय कर दिया है.
अगर कोई उम्र दराज महिला अपने पसंद के कपड़े पहनती हैं तो लोगों को प्रॉब्लम क्या है. 60 साल की उम्र की महिलाओं की भी लोग इज्जत नहीं करते, ऐसा क्यों... अगर फैशन के हिसाब से आप किसी लड़की को जज करते हैं तब तो फिर आपका जजमेंट की गलत है. कम से कम महिलाओं को कपड़ों के हिसाब से तो जज करना छोड़ ही दीजिए. साड़ी पहनने वाली महिला हो या जींस पहनने वाली लड़की उनको कैरेक्टर सर्टिफिकेट देना बंद कीजिए.
एक बात दिमाग में बिठा लीजिए कि संस्कार का और कपड़ों का कुछ लेना-देना नहीं होता है....
याद है कॉलोनी की आंटी की वो बातें कि लड़की अगर इतना फैशन करेगी तो पढ़ेगी क्या. सारा ध्यान तो इसी में चला जाता होगा. जो लड़की मेकअप करती है वो पढ़ने में कमजोर होती है, ऐसा कुछ सालों पहले तक माना जाता था. पढ़ाकू लड़कियों की यह निशानी होती थी कि वो एकदम सिंपल होंगी.
बालों में तेल और आखों पर चश्मा और सूट-सलवार पहनकर हर पल दुपट्टा संभालने वाली एक लड़की. जबकि ऐसा कभी था ही नहीं कि पहवाने से पढ़ाई का कोई लेना-देना हो. मैं कई ऐसी लड़कियों से मिली जो जींस पहनती थीं, काजल लगाती थीं, फुल मैंचिग में फैशन करती थीं और पढ़ने में काफी स्मार्ट थीं. वहीं कई ऐसी लड़कियां ऐसी भी थीं जो सूट पहनती थीं लेकिन पढ़ाई में एवरेज थीं.
इसी तरह अपनी रील और रियल लाइफ में बिंदास रहने वाली एक्ट्रेस को अक्सर उनके पहनावे के लिए ट्रोल किया जाता है, उनके कपड़ों को लेकर उन पर उंगली उठाई जाती है. नीना गुप्ता तो खुद एक खुली किताब हैं. क्यों आज भी किसी उम्रदराज महिला को उसके कपड़ों को लेकर जज किया जाता है. जब किसी एक्ट्रेस का ये हाल है तो आम महिलाओं को तो छोड़ ही दीजिए. समाज ने उम्रदराज महिलाओं के लिए एक ड्रेस कोड तय कर दिया है.
अगर कोई उम्र दराज महिला अपने पसंद के कपड़े पहनती हैं तो लोगों को प्रॉब्लम क्या है. 60 साल की उम्र की महिलाओं की भी लोग इज्जत नहीं करते, ऐसा क्यों... अगर फैशन के हिसाब से आप किसी लड़की को जज करते हैं तब तो फिर आपका जजमेंट की गलत है. कम से कम महिलाओं को कपड़ों के हिसाब से तो जज करना छोड़ ही दीजिए. साड़ी पहनने वाली महिला हो या जींस पहनने वाली लड़की उनको कैरेक्टर सर्टिफिकेट देना बंद कीजिए.
एक बात दिमाग में बिठा लीजिए कि संस्कार का और कपड़ों का कुछ लेना-देना नहीं होता है. साड़ी पहनने वाली महिला भी असंस्कारी हो सकती है और फैशनेबल कपड़े वाली महिला संस्कारी हो सकती है. महिलाएं फैशलनेबल कपड़े और मेकअप करती हैं इसका मतलब ये नहीं है कि वे बुरी औरत हैं. आज के जमाने में ऐसी बातें कौन करता है यार, क्योंकि आज के समय में जो जितने में है खुद को अच्छे से रखना चाहता है, चाहें वह एक आम लड़की हो या फिर बॉलीवुड अभिनेत्री.
61 साल की नीना इन दिनों अपने फैशन स्टेटमेंट और फिटनेस को लेकर चर्चा में रहती हैं. मेरे हिसाब से तो महिलाओं को इनसे काफी कुछ सीखना चाहिए. महिलाओं को खुद को बेचारा समझने की गलती से बचना चाहिए. आप पेंटिंग करें, म्यूजिक सुने लेकिन खुद को बेचारा समझने की गलती ना करें.
जो लोग नीना की ड्रेस को लेकर चर्चा करते हैं उन्हें इनकी लाइफ का संघर्ष क्यों नहीं दिखता. क्यों आज भी महिलाओं को एक उम्र के बाद फैशनेबल और स्टाइलिश कपड़े पहनना हमारे समाज को स्वीकार नहीं हो पाता? यह आदत कब बदलेगी...कौस सी सदी में जी रहे हैं ये लोग?
क्या ऐसी उम्रदराज महिलाएं असंस्कारी हो जाती हैं... क्यों इन्हें असभ्य का टैग दे दिया जाता है. ऐसा क्यों सोचते हैं कि उम्र बढ़ने पर महिलाओं को सादे कपड़े पहनने चाहिए. मुझे तो फैशनेबल ड्रेसिंग महिलाओं पर बहुत अच्छी लगती है…
तो जज करने वाले लोगों को अपना दिमाग की गंदगी दूर रखिए. सबको अपनी लाइफ जीने के हक है. दूसरों की जिंदगी में अपने विचार थोपना बंद कीजिए. अपने दिमाग का कूड़ा किसी और को जज करने में व्यर्थ मत कीजिए...वैसे भी मत भूलिए कि वो नीना गुप्ता है. उसकी जिंदगी खुद की एक किताब है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.