सलीम-जावेद हिंदी पॉपुलर सिनेमा में एक नाम भर नहीं बल्कि पूरा इतिहास हैं. सलीम-जावेद यानी सलीम खान और जावेद अख्तर. ये लेखकों की वो जोड़ी है जिसे बॉलीवुड का पहला और आख़िरी स्टार स्टेट्स लेखक माना जाता है. 70 और 80 के दशक तक बेहतरीन सफल फिल्मों को देखें तो पता चलता है कि इनकी जोड़ी ने सिनेमा को क्या कुछ नहीं दिया है. निर्माता-निर्देशक जोया अख्तर ने दोनों पर एक डॉक्युड्रामा बनाई है. नेटफ्लिक्स स्ट्रीमिंग राइट खरीदना चाहता है.
चर्चा तो यहां तक है कि डील लगभग फाइनल है और जल्द ही घोषणा हो सकती है. सलीम-जावेद का काम ही ऐसा है कि डॉक्युड्रामा में नेटफ्लिक्स दिलचस्पी दिखा रहा है. जाहिर तौर पर इसमें दोनों लेखकों की जर्नी, उनका काम, उसके असर और उससे जुड़े तमाम पहलुओं की जानकारी देखने-सुनने को मिलेगी.
इसमें कोई शक नहीं कि सलीम-जावेद ने फ़िल्मी कहानियों को उसके एक जमे जमाए खांचे से निकालकर व्यापक बनाया. नए विषयों को कहानियों में शामिल किया और बड़े पैमाने पर तत्कालीन शहरी मध्य और निम्न वर्ग को सिनेमाई आवाज दी. इस जोड़ी के बनने की स्वत:स्फूर्त कहानी बहुत ही दिलचस्प है. दोनों लेखक पहली बार एक-दूसरे से मिलने तक अंजान थे. हालांकि दोनों इंडस्ट्री में संघर्षरत थे. सलीम एक्टिंग फ्रंट पर किस्मत आजमा रहे थे जबकि जावेद लेखन के क्षेत्र में हाथ मार रहे थे. साथ आने तक आधे-अधूरे थे.
सलीम-जावेद की पहली मुलाक़ात और गहरी दोस्ती
जावेद अख्तर उन दिनों बेरोजगार थे और लिखने का काम तलाश रहे थे. ऐसे ही दिनों में भोपाल के मशहूर शायर ताज भोपाली जावेद को लेकर प्रोड्यूसर एसएन सागर के पास पहुंचे. एसएन सागर उस वक्त सरहदी लुटेरा बना रहे थे. सागर ने उन्हें 100 रुपये महीने की पगार पर बतौर असिस्टेंट अपने यहां रख लिया. जावेद फिल्मों के संवाद भी लिख दिया करते थे. इसी फिल्म में ख़ूबसूरत नौजवान सलीम खान रोमांटिक लीड कर रहे थे. दोनों में मुलाकातें होने लगी. बांद्रा में ही दोनों रहते थे तो ये मुलाक़ात घर तक पहुंच गई. एक दूसरे के यहां आने-जाने का सिलसिला कुछ ज्यादा ही बढ़...
सलीम-जावेद हिंदी पॉपुलर सिनेमा में एक नाम भर नहीं बल्कि पूरा इतिहास हैं. सलीम-जावेद यानी सलीम खान और जावेद अख्तर. ये लेखकों की वो जोड़ी है जिसे बॉलीवुड का पहला और आख़िरी स्टार स्टेट्स लेखक माना जाता है. 70 और 80 के दशक तक बेहतरीन सफल फिल्मों को देखें तो पता चलता है कि इनकी जोड़ी ने सिनेमा को क्या कुछ नहीं दिया है. निर्माता-निर्देशक जोया अख्तर ने दोनों पर एक डॉक्युड्रामा बनाई है. नेटफ्लिक्स स्ट्रीमिंग राइट खरीदना चाहता है.
चर्चा तो यहां तक है कि डील लगभग फाइनल है और जल्द ही घोषणा हो सकती है. सलीम-जावेद का काम ही ऐसा है कि डॉक्युड्रामा में नेटफ्लिक्स दिलचस्पी दिखा रहा है. जाहिर तौर पर इसमें दोनों लेखकों की जर्नी, उनका काम, उसके असर और उससे जुड़े तमाम पहलुओं की जानकारी देखने-सुनने को मिलेगी.
इसमें कोई शक नहीं कि सलीम-जावेद ने फ़िल्मी कहानियों को उसके एक जमे जमाए खांचे से निकालकर व्यापक बनाया. नए विषयों को कहानियों में शामिल किया और बड़े पैमाने पर तत्कालीन शहरी मध्य और निम्न वर्ग को सिनेमाई आवाज दी. इस जोड़ी के बनने की स्वत:स्फूर्त कहानी बहुत ही दिलचस्प है. दोनों लेखक पहली बार एक-दूसरे से मिलने तक अंजान थे. हालांकि दोनों इंडस्ट्री में संघर्षरत थे. सलीम एक्टिंग फ्रंट पर किस्मत आजमा रहे थे जबकि जावेद लेखन के क्षेत्र में हाथ मार रहे थे. साथ आने तक आधे-अधूरे थे.
सलीम-जावेद की पहली मुलाक़ात और गहरी दोस्ती
जावेद अख्तर उन दिनों बेरोजगार थे और लिखने का काम तलाश रहे थे. ऐसे ही दिनों में भोपाल के मशहूर शायर ताज भोपाली जावेद को लेकर प्रोड्यूसर एसएन सागर के पास पहुंचे. एसएन सागर उस वक्त सरहदी लुटेरा बना रहे थे. सागर ने उन्हें 100 रुपये महीने की पगार पर बतौर असिस्टेंट अपने यहां रख लिया. जावेद फिल्मों के संवाद भी लिख दिया करते थे. इसी फिल्म में ख़ूबसूरत नौजवान सलीम खान रोमांटिक लीड कर रहे थे. दोनों में मुलाकातें होने लगी. बांद्रा में ही दोनों रहते थे तो ये मुलाक़ात घर तक पहुंच गई. एक दूसरे के यहां आने-जाने का सिलसिला कुछ ज्यादा ही बढ़ गया. पिक्चर बनते बनते दोनों की दोस्ती गहरी हो गई.
सलीम जावेद के कहानी लिखने की शुरुआत कैसे हुई?
सरहदी लुटेरा के बाद सलीम-जावेद फिर से खाली हो गए. और एक-दूसरे के साथ खूब सारा वक्त बिताने लगे. एक दिन प्रोड्यूसर एसएन सागर दोनों से मिले. दरअसल, सागर ने एक छोटी कहानी खरीदी थी और उस पर उन्हें स्क्रीनप्ले लिखवाना था. दिक्कत ये थी कि स्क्रीनप्ले बन नहीं पा रहा था. सागर ने स्क्रीनप्ले लिखने के लिए पांच हजार का ऑफर दिया. चूंकि दोनों खाली थे तो तुरंत काम ले लिया और उसे पूरा करके दे भी दिया. बतौर राइटर ये दोनों की पहली स्क्रीनप्ले थी. पैसे आपस में बराबर बंटे थे. उस जमाने के हिसाब से इसे काफी बड़ी रकम कह सकते हैं. हालांकि स्क्रीनप्ले लिखने तक दोनों ने कायदे से लेखन को लेकर सोचा नहीं था.
सलीम-जावेद की जोड़ी कैसे प्रोफेशनल बनी?
अगर ये कहें कि एसएन सागर ही वो कड़ी है जिसने बॉलीवुड को उसका सबसे बेहतरीन लेखक जोड़ी दिया तो गलत नहीं है. बतौर लेखक सागर कनेक्शन से ही सलीम-जावेद को बॉलीवुड में घुसने को दरवाजे और जमने को कमरे मिले. सागर के असिस्टेंट सुधीर वाही ने पहली बार दोनों को बड़े स्तर पर प्रोफेशनल राइटिंग के लिए प्रेरित किया था. उस वक्त तक बॉलीवुड में लेखकों की पहचान बहुत बड़ी नहीं थी और फिल्मों में उनका स्टेक भी नहीं होता था. उस वक्त सिप्पी फिल्म्स, स्टोरी डिपार्टमेंट बनाने की तैयारी में था. वाही ने दोनों को "सिप्पी फिल्म्स" में संपर्क करने की सलाह दी.
शुरू-शुरू में दोनों झिझक रहे थे कि भला इतना बड़ा बैनर उन्हें क्यों भाव देगा. कुछ दिन तक टालमटोल किया लेकिन एक दिन जावेद वहां पहुंच ही गए. उनकी बातचीत से प्रभावित होकर मीटिंग फिक्स कर दिया गया. फिर सलीम भी साथ गए और दोनों ने अपनी कहानियां आइडियाज सुनाए. उन्हें काम मिला और सुपरस्टार राजेश खन्ना से वहीं मुलाक़ात भी हो गई.
उन दिनों एक फिल्म के बदले साउथ के एक प्रोड्यूसर ने राजेश खन्ना को ढाई लाख रुपये साइनिंग अमाउंट के रूप में दिए थे. राजेश खन्ना ने इन्हीं पैसों से तब चार लाख में कार्टर रोड पर एक मकान खरीदा था जहां सलीम जावेद की एक्टर के साथ मुलाक़ात होती थी. एक दिन प्रोड्यूसर ने राजेश खन्ना को स्क्रिप्ट भेजी. स्क्रिप्ट बहुत ही खराब थी. एक्टर की दुविधा ये थी कि इतना पैसा लेने के बाद वो फिल्म छोड़ नहीं सकते थे और मौजूदा स्क्रिप्ट पर काम नहीं करना चाहते थे. इसके बाद राजेश ने वो स्क्रिप्ट सलीम-जावेद को दी. दोनों ने स्क्रीनप्ले ठीक किया. वो फिल्म "हाथी मेरे साथी" ठगी जो बहुत कामयाब हुई.
फिल्मों में ऐसे क्रेडिट पाने लगे सलीम-जावेद
सलीम और जावेद दोनों कई बार यह बता चुके हैं कि उनकी जोड़ी हालातों की वजह से बनते-बनते बन गई. और एक समय बॉलीवुड में उनके लेखन की धाक इतनी ज्यादा थी कि फिल्मों के लीड एक्टर से ज्यादा पेमेंट लेने लगे थे. काफी समय तक दोनों ने बेहतरीन फ़िल्में लिखी. मगर किसी प्रोड्यूसर ने उन्हें क्रेडिट नहीं दिया. जब अमिताभ बच्चन की जंजीर आई दोनों ने खुद के पैसे से पेंटर को हायर कर फिल्म के पोस्टरों पर लेखक के रूप में अपनी जोड़ी का नाम लिखवाया.
कहानियां लिखना कहां से सीखा?
खुद जावेद अख्तर ने बताया है कि स्क्रीनप्ले के मामले में सलीम खान बेजोड़ थे. उन्होंने खुद उनसे कहानियां लिखना सीखा. जावेद ने एक बार कहा था कि शुरू शुरू में उन्हें स्क्रीनप्ले लिखना नहीं आता था. एक बार वो मधुसूदन के साथ काम कर रहे थे और उनसे स्क्रीनप्ले सीखने के लिए किसी किताब की सलाह मांगी. इस पर मधुसूदन ने उन्हें बेहतर स्क्रीनप्ले पढ़ने की सलाह दी. बाद में करीब जावेद ने बेहतरीन हॉलीवुड फिल्मों की करीब 20 स्क्रिप्ट पढ़ी. दोनों ने कभी प्लान या कल्पना करके कुछ नहीं लिखा. जो सोचते थे उसे लिख दिया करते थे. और शायद यही उनके लेखन की सफलता का राज भी था. क्योंकि तत्कालीन समाज भी वही सब सोच रहा था जो सलीम-जावेद की फिल्मों में दिखता था. बड़े पैमाने पर फ़िल्में देखी गईं.
क्यों अलग हो गए थे सलीम-जावेद
दोनों के लिखने का सिलसिला साल 1981 तक चला. दोनों आपसी समझ के साथ अलग हो गए. सलीम खान ने एक इंटरव्यू में कोमल नाहटा से बताया था कि अलग होने की पहल जावेद अख्तर ने की थी. जबकि जावेद ने कहा था कि सलीम के साथ रिश्ता तोड़ने में उन्होंने जल्दबाजी कर दी थी. उन्हें कुछ और समय देना चाहिए था. अलगाव की वजहों को लेकर जावेद का मानना है कि राइटिंग का काम एक मेंटल कनेक्शन की वजह से होता है. जो उस दौरान दूसरे लोगों के असर की वजह से दोनों के बीच नहीं था.
हालांकि सलीम खान कहते हैं कि जावेद चाहते थे कि हम गाने लिखे. मुझे गाने लिखने का अनुभव नहीं था और इस काम में मैं अपनी ओर से कुछ कंट्रीब्यूट नहीं कर पाता. अलगाव को लेकर हमारी उनकी पहली बार बात हुई. लेकिन बाद में खबरें मीडिया में आ गईं. हम अलग हो गए.
सलीम-जावेद की जोड़ी का रिप्लेसमेंट ही नहीं मिला
हालांकि अलग होने के बावजूद दोनों लेखकों ने अपने-अपने फ्रंट पर कुछ बेहतरीन फ़िल्में लिखीं. जावेद अख्तर सक्रिय हैं लेकिन सलीम खान अब लिखना छोड़ चुके हैं. पिछले दिनों एक इंटरव्यू में उन्होंने आज के दौर के स्क्रीनप्ले को लेकर पीड़ा भी जाहिर की. सलीम खान ने यह भी कहा था कि बॉलीवुड में अब अच्छे लेखक ही नहीं हैं. बॉलीवुड को सलीम-जावेद की जोड़ी का रिप्लेसमेंट ही नहीं मिल पाया.
सलीम-जावेद की कुछ बेहतरीन फ़िल्में
सलीम-जावेद की लिखी शायद ही कोई फिल्म फ्लॉप हुई हो. कई तो ब्लॉकबस्टर रहीं. दोनों ने अधिकार, अंदाज, हाथी मेरे साथी, सीता और गीता, जंजीर, यादों की बरात, मजबूर, हाथ की सफाई, दीवार, शोले, आख़िरी दांव, चाचा भतीजा, त्रिशूल, डॉन, काला पत्थर, दोस्ताना, शान, क्रांति, शक्ति, ज़माना और मिस्टर इंडिया जैसी फ़िल्में लिखीं. ये वो फ़िल्में हैउन जिन्होंने हिंदी सिनेमा में कई नए ट्रेंड की शुरुआत की और बॉलीवुड को अमिताभ बच्चन के रूप में उसका पहला महानायक दिया.
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