पृथ्वीराज चौहान की गिनती आख़िरी हिंदू सम्राट के रूप में की जाती है. उनके जीवन पर फिल्म आ रही है- पृथ्वीराज. अक्षय कुमार ने पृथ्वीराज की भूमिका निभाई है. 3 जून को रिलीज हो रही फिल्म का ट्रेलर आ चुका है. इसमें जयचंद, संयोगिता, जयचंद, चंद्रवरदायी, गोरी दिख रहे हैं. एक किरदार काका कन्ह का भी है. वह आंख पर पट्टी बांधे नजर आ रहे हैं. उनकी आंखों पर पट्टी क्यों है, इस बारे में शायद ज्यादा लोगों को ना पता हो. असल में काका कन्ह के आंखों पर पट्टी होने की वजह है. पृथ्वीराज रासो में इसका वर्णन है. कहते हैं रासो चंद्रवरदायी काका कन्ह पृथ्वीराज की तरह ही वीर और वचन के पक्के थे.
उन्होंने प्रण लिया था कि जो भी उनके सामने मूछों पर ताव देने वाले को मार डालेंगे या खुद अपनी जान ले लेंगे. कुछ प्रचलित कथाओं में कहा जाता है ताव देने वाले का सिर काटने का प्रण कन्ह ने लिया था. इस बारे में एक कहानी बहुत प्रसिद्ध है. राजस्थान के राजा भीमसेन से जान बचाकर सामंत सारंग देव के बेटे- प्रताप, अमर, गोकुल, गोबिंद, हरि, श्याम और भगवान पृथ्वीराज के पिता अजमेर महाराज सोमेश्वर चौहान की शरण में पहुंचे थे. महाराज ने शरण में आने वालों का यथोचित सम्मान किया. लेकिन एक अनहोनी घटना घाट गई.
पृथ्वीराज चौहान की गिनती आख़िरी हिंदू सम्राट के रूप में की जाती है. उनके जीवन पर फिल्म आ रही है- पृथ्वीराज. अक्षय कुमार ने पृथ्वीराज की भूमिका निभाई है. 3 जून को रिलीज हो रही फिल्म का ट्रेलर आ चुका है. इसमें जयचंद, संयोगिता, जयचंद, चंद्रवरदायी, गोरी दिख रहे हैं. एक किरदार काका कन्ह का भी है. वह आंख पर पट्टी बांधे नजर आ रहे हैं. उनकी आंखों पर पट्टी क्यों है, इस बारे में शायद ज्यादा लोगों को ना पता हो. असल में काका कन्ह के आंखों पर पट्टी होने की वजह है. पृथ्वीराज रासो में इसका वर्णन है. कहते हैं रासो चंद्रवरदायी काका कन्ह पृथ्वीराज की तरह ही वीर और वचन के पक्के थे.
उन्होंने प्रण लिया था कि जो भी उनके सामने मूछों पर ताव देने वाले को मार डालेंगे या खुद अपनी जान ले लेंगे. कुछ प्रचलित कथाओं में कहा जाता है ताव देने वाले का सिर काटने का प्रण कन्ह ने लिया था. इस बारे में एक कहानी बहुत प्रसिद्ध है. राजस्थान के राजा भीमसेन से जान बचाकर सामंत सारंग देव के बेटे- प्रताप, अमर, गोकुल, गोबिंद, हरि, श्याम और भगवान पृथ्वीराज के पिता अजमेर महाराज सोमेश्वर चौहान की शरण में पहुंचे थे. महाराज ने शरण में आने वालों का यथोचित सम्मान किया. लेकिन एक अनहोनी घटना घाट गई.
पृथ्वीराज के काका कन्ह किस स्तर के महावीर थे चंद्रवरदायी ने रासो के घघ्घर युद्ध प्रसंग में जिक्र किया है. चंद्रवरदायी ने लिखा है-
कालंजर इक लख्ख, सार सिंधुरह गुडावें,मार मार मुख चवै, सिंघ सिंघा मुख धावैं.
दौरी "कन्ह" नर नाह, पटी छुट्टी अंखिन पर, हथ्थ लाई किरवार, रूण्डमाला निन्नीय हर.
विहू बाह लख्ख लौहे परिय, छानी करीब्बर दाह किए,उच्छारि पारि धरि उप्परें, कलह कीयौ कि उघान किय.
काका कन्ह ने गोरी के सेनापति को चीर डाला था
पृथ्वीराज रासो के मुताबिक़ घग्घर में जब पृथ्वीराज और गोरी में मुठभेड़ हुई सम्राट के अनुरोध पर काका कन्ह के आंख की पट्टी उतारी गई. गौरी का सेनापति ने कन्ह के सामने मूंछ पर हाथ रखा. जिसके बाद कन्ह ने उसे हाथी पर सवार होने का मौका ही नहीं दिया और तलवार से ऐसा करार वार किया कि दो टुकड़ों में कटकर मर गया. फिल्म में कन्ह की कहानी प्रमुखता से नजर आएगी ट्रेलर से यह बात साफ़ हो गया.
चौहान वंश वीरों से भरा पड़ा है. स्वयं पृथ्वीराज को लेकर एक बात मशहूर है कि वह शब्दभेदी तीर चलाने का हुनर जानते थे और ऐसा करने वाले भारत के आख़िरी तीरंदाज थे. उनसे पहले भगवान् राम के पिता दशरथ और कृष्ण को तीर मारकर उनकी हत्या करने वाले एक भील में यह क्षमता थी. अर्जुन और एकलव्य में भी इस तरह की तीरंदाजी क्षमता का दावा ककिया जाता है. शब्दभेदी तीर चलाने का मतलब लक्ष्य को बिना देखे सिर्फ अंदाजे के आधार पर उसे भेदने की अचूक क्षमता है.
क्या शब्दभेदी तीर चलाते थे पृथ्वीराज चौहान
पृथ्वीराज रासो में चंद्रवरदायी ने लिखा है कि गोरी, पृथ्वीराज को बंदी बनाकर अपने साथ ले गया था. उसने उनकी आंखें निकलवा दी थीं. जब गोरी को शब्दभेदी तीर चलाने के हुनर का पता चला तो वह परीक्षण करना चाहता था. बंदी पृथ्वीराज ने इसे प्रतिशोध के मौके के रूप में लिया. परीक्षण के लिए दरबार सजा. दोनों पृथ्वीराज और चंद्र बरदाई को लाया गया. पृथ्वीराज धनुष पर तीर चढ़ाकर उसे साधने की कोशिश करने लगे. चंद्रवरदायी ने उनसे कहा- चार बांस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान. रासो के मुताबिक़ निशाना अचूक था और गोरी मारा गया. जिसके बाद पृथ्वीराज और चंद्र बरदाई ने एक दूसरे को चाकू मारकर हत्या कर दी. हालांकि ऐतिहासिक रूप से तथ्य यह हैं कि पृथ्वीराज की मौत के कई साल बाद गोरी का निधन हुआ था.
खैर पृथ्वीराज के पराक्रम के इतने किस्से हैं कि आज भी सैकड़ों साल बीत जाने के बावजूद पीढ़ी दर पीढ़ी लोक की चेतना में जीवित हैं और गाए जाते हैं. चूंकी इतिहास लेखन के परंपरा बहुत बाद में शुरू हुई तो दस्तावेजीकरण नहीं हो सका. लेकिन राजा से अनुदान पाने वाले कवियों ने इस दर्ज किया है. लोक में भी यह मिलता है. ये दूसरी बात है कि रासो को ऐतिहासिक रूप से प्रमाणिक नहीं माना जाता. फिल्म में बहुत सारी चीजें दर्शकों को देखने को मिलेंगी. देश का इतिहास एक बार फिर लोगों के जेहन में ताजा हो रहा है.
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