क्या विक्की कौशल स्टारर सरदार उधम को सिनेमा की किसी कैटेगरी में ऑस्कर मिल सकता है? सवाल भविष्य से जुड़ा है मगर इस बात में कोई शक नहीं कि शूजित सरकार के निर्देशन में बनी पीरियड ड्रामा कई लिहाज से ऑस्कर में भारत की ओर से एक बेजोड़ फिल्म साबित हो सकती है. सालों से जारी सूखा भी ख़त्म कर सकती है. सरदार उधम को लेकर ना सिर्फ दर्शक बेहतर प्रतिक्रिया दे रहे बल्कि दुनियाभर के समीक्षकों ने भी सराहना की है. यह सच भी है कि सरदार उधम भले ही बॉलीवुड से निकली फिल्म है मगर इस पर उसकी पारंपरिक छाप बिल्कुल नहीं है. विषय, बुनावट और प्रभाव के मामले में यह एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म के रूप में दिखती है. यह तय मां लेना चाहिए कि ऑस्कर समेत कई बड़े समारोहों में शूजित सरकार की फिल्म भारत की तरफ से आधिकारिक प्रविष्टि हो सकती है.
94वें ऑस्कर अवॉर्ड (एकेडमी अवॉर्ड) के लिए देश में भी हिंदी समेत दूसरी प्रादेशिक भाषाओं की कई फिल्मों को छांटा गया है. प्रक्रिया इसी हफ्ते सोमवार को शुरू हुई. 14 फिल्मों को शॉर्टलिस्ट किया गया है. इन्हीं में से किसी एक फिल्म को चुनकर ऑस्कर की बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज कैटेगरी के लिए भेजा जाएगा. यह काम फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया की 15 सदस्यीय ज्यूरी कर रही है. ऑस्कर के लिए शॉर्टलिस्ट की गई 14 फिल्मों में दो हिंदी फ़िल्में शेरनी और सरदार उधम भी हैं. दोनों फ़िल्में इसी साल रिलीज हुई थीं हालांकि महामारी की वजह से इन्हें सिनेमाघरों की बजाय ओटीटी प्लेटफॉर्म पर स्ट्रीम किया गया.
जहां तक बात 14 फिल्मों में सरदार उधम के होने की है तो निश्चित ही शूजित सरकार की फिल्म सबपर भारी पड़ सकती है. सरदार उधम है तो पीरियड ड्रामा जो ब्रिटिश राज के खिलाफ स्वतंत्रता...
क्या विक्की कौशल स्टारर सरदार उधम को सिनेमा की किसी कैटेगरी में ऑस्कर मिल सकता है? सवाल भविष्य से जुड़ा है मगर इस बात में कोई शक नहीं कि शूजित सरकार के निर्देशन में बनी पीरियड ड्रामा कई लिहाज से ऑस्कर में भारत की ओर से एक बेजोड़ फिल्म साबित हो सकती है. सालों से जारी सूखा भी ख़त्म कर सकती है. सरदार उधम को लेकर ना सिर्फ दर्शक बेहतर प्रतिक्रिया दे रहे बल्कि दुनियाभर के समीक्षकों ने भी सराहना की है. यह सच भी है कि सरदार उधम भले ही बॉलीवुड से निकली फिल्म है मगर इस पर उसकी पारंपरिक छाप बिल्कुल नहीं है. विषय, बुनावट और प्रभाव के मामले में यह एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म के रूप में दिखती है. यह तय मां लेना चाहिए कि ऑस्कर समेत कई बड़े समारोहों में शूजित सरकार की फिल्म भारत की तरफ से आधिकारिक प्रविष्टि हो सकती है.
94वें ऑस्कर अवॉर्ड (एकेडमी अवॉर्ड) के लिए देश में भी हिंदी समेत दूसरी प्रादेशिक भाषाओं की कई फिल्मों को छांटा गया है. प्रक्रिया इसी हफ्ते सोमवार को शुरू हुई. 14 फिल्मों को शॉर्टलिस्ट किया गया है. इन्हीं में से किसी एक फिल्म को चुनकर ऑस्कर की बेस्ट फॉरेन लैंग्वेज कैटेगरी के लिए भेजा जाएगा. यह काम फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया की 15 सदस्यीय ज्यूरी कर रही है. ऑस्कर के लिए शॉर्टलिस्ट की गई 14 फिल्मों में दो हिंदी फ़िल्में शेरनी और सरदार उधम भी हैं. दोनों फ़िल्में इसी साल रिलीज हुई थीं हालांकि महामारी की वजह से इन्हें सिनेमाघरों की बजाय ओटीटी प्लेटफॉर्म पर स्ट्रीम किया गया.
जहां तक बात 14 फिल्मों में सरदार उधम के होने की है तो निश्चित ही शूजित सरकार की फिल्म सबपर भारी पड़ सकती है. सरदार उधम है तो पीरियड ड्रामा जो ब्रिटिश राज के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम लड़ने वाले एक अमर शहीद की कहानी है. बावजूद अपनी बुनावट में यह स्थानीय कहानी बिल्कुल नहीं है. बल्कि क्राफ्ट, कहानी और संदेश देने के लिहाज से एक "ग्लोबल इशू" पर बात करती है और शूजित ने उसे खूबसूरती से स्टेब्लिश भी कर दिया. सरदार उधम क्रूर उपनिवेशवाद, रंगभेद, सामंतवाद से उपजी पीड़ाओं में दुनियाभर के गरीबों-मजलूमों की बात करती है. हकीकत में नस्लभेदी अवधारणा पर टिकी ब्रिटिश राज की क्रूरताओं को तार-तार करके रख देती है और हर उस देश की फिल्म बन जाती है अंग्रेजों की दासता में जिन्हें महान मानवीय उत्पीड़न झेलने को विवश होना पड़ा.
सरदार उधम के जरिए स्वतंत्रता संग्राम को लेकर पहली बार भारतीय सिनेमा का अलग नजरिया दिखा है और यह धुर स्थानीयता के मकड़जाल से भी निकलकर वैश्विक बना गया है. सरदार उधम वो फिल्म है जहां आजादी के लिए भारत का स्वतंत्रता संग्राम तत्कालीन दुनिया के दूसरे औपनिवेशिक देशों के साथ खड़ा नजर आता है. राजशाही के खिलाफ रूस का कम्युनिस्ट आंदोलन, आयरिश क्रांति और उस वक्त दुनिया के दूसरे हिस्सों में औपनिवेशिक व्यवस्था के खिलाफ भारत का क्रांतिकारी संघर्ष कंधे से कंधा मिलाए बराबर खड़ा दिखता है. यह वो चीज है जो शूजित की सरदार उधम के मायने बदलते हुए एक अंतरराष्ट्रीय विषय पर बनी फिल्म बना देती है. कहानी संवाद, अभिनय, कैमरा, कॉस्टयूम, सेट और कई दूसरे लिहाज से भी शूजित सरकार ने सरदार उधम को बेहतरीन बनाने के लिए अपना 100 प्रतिशत दिया है.
सरदार उधम- आयरिश पीड़ाओं-अफ्रीकन पीड़ाओं और एशियन पीड़ाओं की एक संयुक्त कहानी भी है. आधुनिक विश्व की सामंती उत्पीडन में दबे समाज गैर बराबरी वाले समाज की भी कहानी है. सरदार उधम राजनीतिक तौर पर मनुष्य होने और समान अधिकारों की बात करती है. अगले साल ऑस्कर अवॉर्ड में सरदार उधम की यही "ग्लोबल अपील" निर्णायक साबित हो सकती है. खासकर जलियावाला बाग़ नरसंहार. फिल्म में नरसंहार का करीब 20 मिनट का सीक्वेंस है. घटना के लिए आजतक ब्रिटेन की सरकार ने आधिकारिक तौर पर खेद भी नहीं जताया है.
अमित मासुरकर ने विद्या बालन को लेकर शेरनी के रूप में एक बेहतरीन फिल्म बनाई है. प्रादेशिक भाषाओं में कई अन्य बेहतरीन फ़िल्में भी बनी हैं जो शॉर्टलिस्ट भी की गई हैं, लेकिन ग्लोबल अपील के मामले में बाकी फ़िल्में शूजित सरकार और विक्की कौशल से बहुत पीछे नजर आती हैं. ऑस्कर में भारत लंबे समय से निराश होता रहा है. आख़िरी बार आमिर खान की लगान और प्रियंका चोपड़ा की व्हाइट टाइगर ने बहुत उम्मीदें जगाई थीं. हो सकता है कि इस बार मार्च 2022 में विक्की कौशल स्टारर सरदार उधम उम्मीदों को नतीजों में बदलकर रख दे. वैसे भी सरदार उधम ऑस्कर की फॉरेन लैंग्वेज कैटेगरी में हर लिहाज से सम्मान डिजर्व करती है. ऑस्कर में फिल्म का जाना भी इस लिहाज से एक उपलब्धि होगी कि बड़े पैमाने पर दुनिया नरसंहार को देखे और आधुनिक ब्रिटेन से उसकी पुरानी गलतियों और उसे लेकर दृष्टिकोण से जुड़ा सवाल पूछे.
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