40 की उम्र हो जाना यानी महिलाओं का आत्मविश्वास हिल जाना. उम्र का वो दौर जिसे न तो यौवन कहा जाता है और न ही बुढ़ापा, वो दौर जो महिलाओं के लिए चुनौती भरा होता है. जब न तो चेहरे का निखार पहले जैसा रहता है और न शरीर, बालों की सफेदी उम्र हो जाने का इशारा करती है. ऐसे में खुद को खुद जैसा न पाकर महिलाओं का आत्मविश्वास हिलता तो जरूर है. और जो थोड़ी बहुत कसर रह जाती है वो जमाना पूरी कर देता है.
वो चाहे आम महिला हो या फिर हमेशा चमकती दमकती दिखाई देने वाली फिल्मी हीरोइन लेकिन एक उम्र के बाद वाकई सबका हाल एक ही जैसा होता है. आप इसे मायूसी भरा कह सकते हैं. लेकिन मेरे पास बहुत सी टेलेंटेड महिलाओं की लिस्ट है जो मेरी बात को साबित करती है.
बात करते हैं बॉलीवुड की. अभिनेत्री शेफाली शाह का नया प्रोजेक्ट यानी फिल्म 'वन्स अगेन' नेटफ्लिक्स पर दिखाई दे रही है. जवाब जानते हुए भी मन में यही सवाल आया कि ऐसी शानदार एक्ट्रेस हमें इतना कम देखने को क्यों मिलती हैं. जवाब इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर में खुद शेफाली ने दे दिया.
शेफाली कहती हैं- 'फिल्म इंडस्ट्री में पुरुषों को उम्र होने के बावजूद ज्यादा विकल्प दिए जाते हैं. बॉलीवुड को पता ही नहीं है कि 40 पार कर चुकी महिलाओं के साथ करना क्या है. हाल ही में आईं कुछ फिल्मों जैसे 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का (2016), तुम्हारी सुलू (2017) और शॉर्ट फिल्म 'जूस' में मेरे जैसी महिलाओं के लिए कुछ हिस्सों को लिखा गया है.'
शेफाली एक शानदार एक्ट्रेस हैं, टेलेंटेड हैं, खूबसूरत हैं, लेकिन अब 46 साल की हैं. टीवी से करियर की शुरुआत करके फिल्मों में भी समय-समय पर दिखाई देती रही हैं. लेकिन सच में मेनस्ट्रीम बॉलीवुड के पास शेफाली जैसी तमाम अदाकाराओं के लिए सिर्फ एक ही रोल होता है- 'मां' का. वो सिर्फ सपोर्टिंग एक्ट्रेस बनकर रह जाती हैं. हैरानी होती है कि 2005 में शेफाली की उम्र करीब 33 साल रही होगी, तब उन्होंने फिल्म 'वक्त' में अमिताभ बच्चन की पत्नी का किरदार निभाया था. और तो और उनके...
40 की उम्र हो जाना यानी महिलाओं का आत्मविश्वास हिल जाना. उम्र का वो दौर जिसे न तो यौवन कहा जाता है और न ही बुढ़ापा, वो दौर जो महिलाओं के लिए चुनौती भरा होता है. जब न तो चेहरे का निखार पहले जैसा रहता है और न शरीर, बालों की सफेदी उम्र हो जाने का इशारा करती है. ऐसे में खुद को खुद जैसा न पाकर महिलाओं का आत्मविश्वास हिलता तो जरूर है. और जो थोड़ी बहुत कसर रह जाती है वो जमाना पूरी कर देता है.
वो चाहे आम महिला हो या फिर हमेशा चमकती दमकती दिखाई देने वाली फिल्मी हीरोइन लेकिन एक उम्र के बाद वाकई सबका हाल एक ही जैसा होता है. आप इसे मायूसी भरा कह सकते हैं. लेकिन मेरे पास बहुत सी टेलेंटेड महिलाओं की लिस्ट है जो मेरी बात को साबित करती है.
बात करते हैं बॉलीवुड की. अभिनेत्री शेफाली शाह का नया प्रोजेक्ट यानी फिल्म 'वन्स अगेन' नेटफ्लिक्स पर दिखाई दे रही है. जवाब जानते हुए भी मन में यही सवाल आया कि ऐसी शानदार एक्ट्रेस हमें इतना कम देखने को क्यों मिलती हैं. जवाब इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक खबर में खुद शेफाली ने दे दिया.
शेफाली कहती हैं- 'फिल्म इंडस्ट्री में पुरुषों को उम्र होने के बावजूद ज्यादा विकल्प दिए जाते हैं. बॉलीवुड को पता ही नहीं है कि 40 पार कर चुकी महिलाओं के साथ करना क्या है. हाल ही में आईं कुछ फिल्मों जैसे 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का (2016), तुम्हारी सुलू (2017) और शॉर्ट फिल्म 'जूस' में मेरे जैसी महिलाओं के लिए कुछ हिस्सों को लिखा गया है.'
शेफाली एक शानदार एक्ट्रेस हैं, टेलेंटेड हैं, खूबसूरत हैं, लेकिन अब 46 साल की हैं. टीवी से करियर की शुरुआत करके फिल्मों में भी समय-समय पर दिखाई देती रही हैं. लेकिन सच में मेनस्ट्रीम बॉलीवुड के पास शेफाली जैसी तमाम अदाकाराओं के लिए सिर्फ एक ही रोल होता है- 'मां' का. वो सिर्फ सपोर्टिंग एक्ट्रेस बनकर रह जाती हैं. हैरानी होती है कि 2005 में शेफाली की उम्र करीब 33 साल रही होगी, तब उन्होंने फिल्म 'वक्त' में अमिताभ बच्चन की पत्नी का किरदार निभाया था. और तो और उनके बेटे थे अक्षय कुमार जो उस वक्त 38 साल के रहे होंगे, यानी शेफाली से भी बड़े.
आप अंदाजा लगाएं इन टेलेंटेड एक्ट्रेस के दिलों पर क्या बीतती होगी जब ये इस तरह के रोल करने को मजबूर होती होंगी. क्योंकि बॉलीवुड के पास इनकी टक्कर के रोल ही नहीं थे. डायरेक्टर्स को पता ही नहीं था कि उन्हें उन महिलाओं के साथ किस तरह का काम करना है जिनकी उम्र 30 पार कर चुकी है. बॉलीवुड का कल्चर ही रहा है कि यहां जैसे ही अभिनेत्रियों की उम्र बढ़ी, वैसे ही वो रिजेक्ट कर दी जाती हैं. क्योंकि मिडिल एज न तो युवा दिखाई देते हैं और न बूढ़े. ऐसे में उन्हें सिर्फ मां, बहन या भाभी बना दिया जाता है, लीड करने के सारे मौके उनसे छिन जाते हैं.
मेनस्ट्रीम सिनेमा के अलावा इंडस्ट्री में बेहद शानदार और दमदार अभिनेत्रियां हैं, जिन्होंने अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया है, उनकी मेहनत उनके काम में दिखाई देती है.
आप दिव्य दत्ता को ले लीजिए, राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी हैं. जो भी किरदार निभाती हैं एक अलग छाप छोड़ती हैं, लेकिन उनके पास जो फिल्में रही हैं आप हाथों पर गिन सकते हैं. अश्विनी कल्सेकर अपने भावों से बात करती हैं. और जब बोलती हैं तो अच्छे-अच्छों की बोलती बंद हो जाती है. अश्विनी 48 साल की हैं और पिछले दो दशकों से टीवी और फिल्मों में दिखाई दे रही हैं, लेकिन कोई भी रोल उनके हिसाब का नजर नहीं आता.
सुरभी से रेणुका शाहणे घर-घर में पहचानी जाने लगी थीं. उनकी मुस्कान पर हर कोई फिदा था. आज अगर वो अपना करियर बनातीं तो शायद उनके लिए संभावनाओं की कमी नहीं होती. लेकिन उन्हें भी बॉलीवुड सलमान खान की भाभी बनाकर भूल गया.
रत्ना पाठक शाह के बारे में जो कहा जाए वो कम होगा. वो 60 साल की हो चुकी हैं. एक बेहतरीन अदाकारा हैं, अपने खास अंदाज से उन्होंने करोड़ों दिल जीते हैं. लेकिन हमेशा फिल्मों में मां ही बनती आई हैं. वो तो भला हो कुछ क्रिएटिव डायरेक्टर्स का जो 'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' जैसी फिल्मों में इनके अभिनय के लिए भी गुंजाइश रखी गई, और हमें रत्ना का एक और रूप देखने को मिला.
तबु को भी इस लिस्ट में शामिल करना चाहिए. उन्होंने भी प्रभावशाली अभिनय से दर्शकों का मनोरंजन किया है. लेकिन एक समय के बाद तबु के पास काम ही नहीं रहा. आज भी तो बहुत सीमित. टीवी से अपने करियर की शुरुआत करने वाली एकट्रेस साक्षी तंवर, संध्या मृदुल और नारायणी शास्त्री का काम देखने लायक है. लेकिन उनके लायक काम हमारी इंडस्ट्री में नहीं है.
टीवी की जब शुरुआत हुई थी, एक सीरियल घर-घर में देखा जाता था, वो था 'हम लोग'. उसमें बड़की का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री थीं सीमा पाहवा. शानदार अभिनय के बावजूद भी उनके हिस्से कुछ ही रोल थे. और अब उम्र लेकिन आजकल वो फिल्मों में मां बन रही हैं. 'बरेली की बर्फी' और 'शुभ मंगल सावधान' में आप उन्हें देख ही चुके हैं. एकइंटरव्यू में उन्होंने कहा था- 'कोई फोन नहीं आता था. काफी अच्छे एक्टर्स घर पर बैठे हैं क्योंकि मिडिल ऐज का कोई काम ही नहीं है. दुख भी होता है कि एक तो रोल्स नहीं मिलते और जो मिलते हैं उनको आप करना नहीं चाहते.'
पुरुषों की बात करें, तो ऐसा नहीं है कि उनके लिए किरदारों की कमी नहीं है, लेकिन महिलाओं की अपेक्षा वो फिर भी बेहतर स्थिति में हैं.
फिल्मी अभिनेत्रियों को भी यहां क्यों भुलाया जाए. एक वक्त तक ही वो काम करती हैं. शादी या बच्चा होने के बाद एक बार दोबारा आना चाहें तो उनके लिए जीवन काफी मुश्किलों भरा होता है. कुछ तो इसलिए भी काम नहीं करतीं क्योंकि उन्हें जरूरत नहीं है, और इसलिए भी कि वो अपना रुतबा खोना नहीं चाहतीं.
लेकिन ये कैरेक्टर आर्टिस्ट, जो अभिनय को पूजते हैं उनके लिए काम न होना हमारी इंडस्ट्री का दुर्भाग्य है. आज राधिका आपटे अगर हर तरफ दिखाई दे रही हैं, तो वो बहुत भाग्यशाली हैं, क्योंकि वो उस दौर में हैं जब मीडिया अपने विस्तार पर है. वेब सीरीज़, शॉर्ट फिल्म कर उन्होंने नेटफ्लिक्स पर राज कर लिया है. वो डिजर्व करती हैं. लेकिन हमें सिर्फ राधिका आप्टे को ही नहीं देखना, बल्कि इन सभी अभिनेत्रीयों को काम करते हुए देखना है. हम इन महिलाओं के टेलेंट को मां के किरदार में मरते हुए नहीं देखना चाहते. स्टोरी राइटर्स, निर्देशक उनके लिए संभावनाएं खोजें. वो भी अपना टेलेंट दिखाएं. और तब शायद मैं अपनी कही उस बात को गलत साबित कर सकूं कि '40 की उम्र हो जाना यानी महिलाओं का आत्मविश्वास हिल जाना'.
ये दौर बहुत लोगों के लिए उम्मीदों का दौर है. और आशा है कि आने वाला समय हमारी उम्मीदें नहीं तोड़ेगा.
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