सीबीआई की विशेष अदालत के जज ओमप्रकाश सैनी ने 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले के सभी 19 आरोपी, जिनमें यूपीए सरकार में टेलिकॉम मंत्री रहे ए राजा, कनिमोझी समेत कई पूर्व ब्यूरोक्रेट्स, टेलिकॉम कंपनियों के अफसर शामिल हैं, बरी कर दिया है. इस फैसले के बाद कांग्रेस में खुशी का माहौल है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो इस फैसले के बाद यहां तक कह रहे हैं कि 'कोर्ट के फैसले से साबित हो गया कि इस घोटाले को यूपीए सरकार के खिलाफ प्रोपेगेंडा के तौर पर इस्तेमाल किया गया था.' लेकिन, इस फैसले के आने के बाद इस घोटाले से जुड़े कुछ दावे और दलीलें फिर चर्चा में आ गए हैं :
1. यूपीए सरकार के दौरान 2008 में करीब 1.76 लाख करोड़ रुपए का 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला हुआ था. उस समय स्पेक्ट्रम आवंटन से सरकार को सिर्फ 9,407 करोड़ रुपए की आमदनी हुई थी, जो कि सरकार के अनुमान (30,984 करोड़ रुपए) का भी एक तिहाई था.
2. लाइसेंस को पहले आओ-पहले पाओ की नीति पर बेचा गया. यह नीति 2001 में अमल में लाई गई थी. कैग ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में कहा था कि यूपीए सरकार ने स्पेक्ट्रम आवंटन के बजाए यदि नीलामी की नीति अपनाई होती तो सरकारी खजाने को करीब 1.76 लाख करोड़ रुपए की आय होती. इस तरह 2जी स्कैम को 1.76 लाख करोड़ रुपए का घोटाला माना गया.
3. फरवरी 2012 में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एके गांगुली की बेंच ने कैग की रिपोर्ट और सीबीआई की दलीलों को विश्वसनीय मानते हुए 2जी स्पेक्ट्रम के सभी 122 लाइसेंस निरस्त कर दिए थे.
लेकिन अब...
अब सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने इस घोटाले में ए राजा और कनिमोझी समेत सभी 19 आरोपियों को बरी कर दिया है. ऐसे समय में जबकि स्पेक्ट्रम की दोबारा नीलामी में मोदी सरकार अपने पास मौजूद रेडियो फ्रीक्वेंसी का 40 फीसदी स्पेक्ट्रम 2016-17 में 65,789 करोड़ रुपए में नीलाम कर चुकी है. बाकी 60 फीसदी...
सीबीआई की विशेष अदालत के जज ओमप्रकाश सैनी ने 2जी स्पैक्ट्रम घोटाले के सभी 19 आरोपी, जिनमें यूपीए सरकार में टेलिकॉम मंत्री रहे ए राजा, कनिमोझी समेत कई पूर्व ब्यूरोक्रेट्स, टेलिकॉम कंपनियों के अफसर शामिल हैं, बरी कर दिया है. इस फैसले के बाद कांग्रेस में खुशी का माहौल है. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो इस फैसले के बाद यहां तक कह रहे हैं कि 'कोर्ट के फैसले से साबित हो गया कि इस घोटाले को यूपीए सरकार के खिलाफ प्रोपेगेंडा के तौर पर इस्तेमाल किया गया था.' लेकिन, इस फैसले के आने के बाद इस घोटाले से जुड़े कुछ दावे और दलीलें फिर चर्चा में आ गए हैं :
1. यूपीए सरकार के दौरान 2008 में करीब 1.76 लाख करोड़ रुपए का 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला हुआ था. उस समय स्पेक्ट्रम आवंटन से सरकार को सिर्फ 9,407 करोड़ रुपए की आमदनी हुई थी, जो कि सरकार के अनुमान (30,984 करोड़ रुपए) का भी एक तिहाई था.
2. लाइसेंस को पहले आओ-पहले पाओ की नीति पर बेचा गया. यह नीति 2001 में अमल में लाई गई थी. कैग ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में कहा था कि यूपीए सरकार ने स्पेक्ट्रम आवंटन के बजाए यदि नीलामी की नीति अपनाई होती तो सरकारी खजाने को करीब 1.76 लाख करोड़ रुपए की आय होती. इस तरह 2जी स्कैम को 1.76 लाख करोड़ रुपए का घोटाला माना गया.
3. फरवरी 2012 में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एके गांगुली की बेंच ने कैग की रिपोर्ट और सीबीआई की दलीलों को विश्वसनीय मानते हुए 2जी स्पेक्ट्रम के सभी 122 लाइसेंस निरस्त कर दिए थे.
लेकिन अब...
अब सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने इस घोटाले में ए राजा और कनिमोझी समेत सभी 19 आरोपियों को बरी कर दिया है. ऐसे समय में जबकि स्पेक्ट्रम की दोबारा नीलामी में मोदी सरकार अपने पास मौजूद रेडियो फ्रीक्वेंसी का 40 फीसदी स्पेक्ट्रम 2016-17 में 65,789 करोड़ रुपए में नीलाम कर चुकी है. बाकी 60 फीसदी स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए सरकार ने 2017-18 में 75 से एक लाख करोड़ रुपए की रेवेन्यू का लक्ष्य रखा है. यानी कुल स्पेक्ट्रम की नीलामी से सरकार को डेढ़ से पौने दो लाख करोड़ रुपए की आय होने की उम्मीद है.
सीबीआई और ईडी पर उठे सवाल
सीबीआई जैसी देश की बड़ी एजेंसी 6.5 सालों तक 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का ट्रायल करती रहीं, लेकिन बावजूद इसके 19 में से किसी भी आरोपी के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं दे सकी. सवाल ये उठता है कि जब सभी आरोपी बरी हो गए हैं, तो फिर घोटाला किया किसने? अगर वाकई में सभी 19 आरोपियों का 2जी घोटाले में कोई हाथ नहीं है तो क्या 6.5 साल तक सीबीआई यह भी पता नहीं लगा सकी कि वास्तव में इस घोटाले के आरोपी कौन हैं? खैर, माना जा रहा है कि अब सीबीआई ऊपरी अदालत का रुख कर सकती है, लेकिन सीबीआई और ईडी जैसी बड़ी एजेंसियों पर कोर्ट के इस फैसले ने एक सवालिया निशान खड़ा कर दिया है.
क्या-क्या हुआ कोर्ट में?
इस मामले में कुल तीन केस दर्ज हुए थे, जिनमें दो सीबीआई ने और एक ईडी ने दर्ज किया था. इस केस की सुनवाई शुरू होने से पहले ही कोर्ट परिसर में भारी भीड़ जमा हो गई थी. यहां तक कि इसकी वजह से आरोपियों को कोर्ट में ले जाने में भी थोड़ी दिक्कत हुई. सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने 6.5 साल से चल रहे इस मामले को सिर्फ एक लाइन में ही निपटा दिया. कोर्ट में कहा गया कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में सीबीआई आरोपियों के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं दे पाई और पैसों का कोई लेन-देन साबित नहीं कर पाई. सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया. फैसला आते ही कोर्ट में तालियां गूंज गईं और अदालत में ही समर्थकों ने ए राजा को कंधे पर उठा लिया. इस फैसले के बाद अदालत परिसर का माहौल कुछ ऐसा हो गया, जैसे कि ए राजा ने चुनाव में जीत हासिल कर ली हो. हालांकि, अदालत ने यह नहीं कहा कि घोटाला हुआ ही नहीं, लेकिन आरोपियों को पुख्ता सबूत न होने की वजह से बरी कर दिया. साथ ही इस मामले के असल दोषियों का पता लगाने के लिए मामले की दोबारा जांच के निर्देश दिए.
गेंद विपक्ष के पाले में
एनडीए सरकार लगातार यूपीए पर यही आरोप लगाती रही कि उसने 2जी स्पेक्ट्रम का बड़ा घोटाला किया है. अब सीबीआई की स्पेशल कोर्ट की तरफ से सभी आरोपियों के बरी होने के बाद गेंद यूपीए के पाले में जाती दिख रही है. कपिल सिब्बल ने इस अपने नैतिक जीत बताते हुए कहा कि 2जी घोटाला हुआ ही नहीं था, लेकिन इसे घोटाले की तरह पेश किए जाने की वजह से देश को बहुत नुकसान हुआ है. सिब्बल के अनुसार इसकी वजह से बहुत सारी टेलिकॉम कंपनियों के लाइसेंस कैंसिल हुए और वे बैंकों को वह पैसा वापस नहीं दे सके, जो उन्होंने लोन के तौर पर लिया था. इसका नुकसान यह हुआ कि एनपीए लगातार बढ़ता गया. सिब्बल ने कहा कि इससे न सिर्फ बैंकों को नुकसान हुआ बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान हुआ.
राजा को भुगतना पड़ा
1 लाख 76 हजार करोड़ के इस घोटाले की वजह से पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा की कुर्सी भी चली गई थी. इसी के चलते उन्हें करीब 15 महीनों तक जेल में भी रहना पड़ा. कनिमोझी को भी इस मामले में जेल हुई थी, लेकिन बाद में वह जमानत पर बाहर आ गईं. कपिल सिब्बल ने इसे जीरो लॉस थ्योरी कहा था, जबकि सीएजी ने कहा था कि इसमें नुकसान हुआ था. तत्कालीन सीएजी विनोद राय ने अपनी किताब 'Not Just An Accountant' में इस घोटाले से जुड़े कई बड़े खुलासे भी किए थे. उन्होंने अपनी किताब में लिखा था कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भी इस घोटाले के बारे में पता था. उनका यह भी आरोप लगाया गया कि तीन कांग्रेसी नेताओं संजय निरूपम, अश्विनी कुमार और संदीप दीक्षित ने उन पर दबाव बनाया था, ताकि घोटाले की ऑडिट रिपोर्ट में मनमोहन सिंह को बाहर रखा जाए. उनका यह भी आरोप था कि यूपीए सरकार ने उनका फोन तक टैप किया था. सीबीआई के इस फैसले के बाद अब विनोद राय पर सवाल उठने लगे हैं.
क्या था घोटाला?
2जी स्पेक्ट्रम घोटाला 2010 में सामने आया था, जब कैग ने 2008 में स्पेक्ट्रम के आवंटन पर अपनी रिपोर्ट जारी की थी और सवाल खड़े किए थे. तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा ने पहले आओ, पहले पाओ की नीति पर स्पेक्ट्रम दिए, जिसमें करीब 7 टेलिकॉम कंपनियां जुड़ी थीं. इसकी वजह से सरकारी खजाने को करीब 1.76 लाख करोड़ का नुकसान हुआ था. सीबीआई के अनुसार इस 2008 में साल 2001 में तय की गई दरों पर स्पेक्ट्रम बेच दिया गया था, जिसकी वजह से नुकसान हुआ.
ये लोग थे इस घोटाले में शामिल
इस घोटाले में पूर्व केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए. राजा, द्रमुक सुप्रीमो एम. करुणानिधि की बेटी कनिमोझी, तत्कालीन दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा, ए. राजा के पूर्व निजी सचिव आर के चंदोलिया, स्वॉन टेलीकॉम के महाप्रबंधक शाहिद बलवा, यूनिटेक के प्रमोटर संजय चंद्रा, स्वॉन टेलीकॉम के निदेशक विनोद गोयनका के अलावा अनिल अंबानी समूह की कंपनियों के तीन शीर्ष अधिकारी गौतम दोषी, सुरेन्द्र पिपारा और हरी नायर आरोपी थे. इनके अलावा कुसगांव फ्रूट्स और वेजिटेबल प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक राजीव अग्रवाल, शाहिद बलवा के भाई आसिफ़ बलवा और सिनेयुग मीडिया एंड एंटरटेनमेंट के निदेशक करीम मोरानी भी शामिल थे.
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