राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पिछले 9 साल से नरेंद्र मोदी की सरकार पर गौतम अडानी और मुकेश अंबानी को नाजायज फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते रही है. भारत जोड़ो यात्रा में भी राहुल के निशाने पर मुख्य रूप से अडानी और कथित मुस्लिम विरोधी राजनीति रही है. राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने अभिभाषण में आए मुद्दों पर बात करने की बजाए अडानी के मामले को फोकस किया और तथ्यहीन आरोप लगाते नजर आए. मसलन मोदी, अडानी को लेकर विदेश घूमते हैं. भारत की विदेश नीति अडानी को फायदा दिलाने वाली है. आदि आदि. कुल मिलाकर राहुल गांधी को भरोसा नहीं हो रहा कि आखिर अडानी दुनिया के सबसे अमीर कारोबारियों की लिस्ट में कैसे दूसरे नंबर पर आ गया.
शायद राहुल गांधी को लग रहा था कि जैसे यूपीए 1 और 2 की उनकी सरकार में अनिल अंबानी दुनिया के टॉप 6 कारोबारी बनकर डिफाल्ट हो गए और जैसे शराब कारोबारी विजय माल्या को सरकार ने पैसे के साथ ही तमाम ऐसे बिजनेस दिए जिनका उनके पास अनुभव नहीं था, डिफाल्ट होकर भाग गए वैसे ही अडानी का मामला उन्होंने समझ लिया. अडानी को लेकर कई सारे झूठे और तथ्यहीन आरोप संसद में लगाए. अब राहुल को कौन बताए कि विदेश दौरों में चाहे जो प्रधानमंत्री जाता हो- उसके प्रतिनिधिमंडल में देश के कारोबारियों का जत्था भी शामिल रहता है- जो कारोबारी संभावनाएं तलाशने के लिए जाता है.
राहुल का 51 मिनट का भाषण, 51 घंटे में ही टॉप 20 में घुसे अदानी
खैर, संसद राहुल गांधी के 51 मिनट के लंबे चौड़े भाषण (शायद इससे लंबा भाषण राहुल ने पहले नहीं दिया था, संसद में उनकी मौजूदगी का सबसे घटिया रिकॉर्ड है) में अडानी के बहाने नरेंद्र मोदी को जमकर कोसा और भारत की विदेश नीति की तीखी आलोचना की. यह सबकुछ बजट सत्र शुरू होने से ठीक...
राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पिछले 9 साल से नरेंद्र मोदी की सरकार पर गौतम अडानी और मुकेश अंबानी को नाजायज फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते रही है. भारत जोड़ो यात्रा में भी राहुल के निशाने पर मुख्य रूप से अडानी और कथित मुस्लिम विरोधी राजनीति रही है. राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने अभिभाषण में आए मुद्दों पर बात करने की बजाए अडानी के मामले को फोकस किया और तथ्यहीन आरोप लगाते नजर आए. मसलन मोदी, अडानी को लेकर विदेश घूमते हैं. भारत की विदेश नीति अडानी को फायदा दिलाने वाली है. आदि आदि. कुल मिलाकर राहुल गांधी को भरोसा नहीं हो रहा कि आखिर अडानी दुनिया के सबसे अमीर कारोबारियों की लिस्ट में कैसे दूसरे नंबर पर आ गया.
शायद राहुल गांधी को लग रहा था कि जैसे यूपीए 1 और 2 की उनकी सरकार में अनिल अंबानी दुनिया के टॉप 6 कारोबारी बनकर डिफाल्ट हो गए और जैसे शराब कारोबारी विजय माल्या को सरकार ने पैसे के साथ ही तमाम ऐसे बिजनेस दिए जिनका उनके पास अनुभव नहीं था, डिफाल्ट होकर भाग गए वैसे ही अडानी का मामला उन्होंने समझ लिया. अडानी को लेकर कई सारे झूठे और तथ्यहीन आरोप संसद में लगाए. अब राहुल को कौन बताए कि विदेश दौरों में चाहे जो प्रधानमंत्री जाता हो- उसके प्रतिनिधिमंडल में देश के कारोबारियों का जत्था भी शामिल रहता है- जो कारोबारी संभावनाएं तलाशने के लिए जाता है.
राहुल का 51 मिनट का भाषण, 51 घंटे में ही टॉप 20 में घुसे अदानी
खैर, संसद राहुल गांधी के 51 मिनट के लंबे चौड़े भाषण (शायद इससे लंबा भाषण राहुल ने पहले नहीं दिया था, संसद में उनकी मौजूदगी का सबसे घटिया रिकॉर्ड है) में अडानी के बहाने नरेंद्र मोदी को जमकर कोसा और भारत की विदेश नीति की तीखी आलोचना की. यह सबकुछ बजट सत्र शुरू होने से ठीक पहले हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने के बाद हुआ. अडानी को नुकसान हुआ. भारत के शेयर बाजार पर भी उसका आंशिक असर दिखा. भारत के कारोबारी जमात ने इसे देश पर आर्थिक हमले के रूप में ही लिया है. पहले हिंडनबर्ग की रिपोर्ट की वजह से अडानी को बेशक नुकसान हुआ. शेयर बाजार में उनके शेयर्स की कीमत बहुत तेजी से नीचे गिरी. वे जहां दुनिया के दूसरे सबसे अमीर कारोबारी थे- लेकिन रिपोर्ट के बाद दुनिया की टॉप 20 की लिस्ट से भी बाहर हो गए. वे शायद अमीरों की लिस्ट में 22वें नंबर या उससे नीचे जा चुके थे.
मगर संसद में राहुल के भाषण के साथ ही अडानी उछाल मारते दिखे. राहुल का 51 मिनट का भाषण ख़त्म हुए 51 घंटे भी नहीं बीते थे कि गौतम अडानी फ़ोर्ब्स की टॉप 20 लिस्ट में आ चुके हैं. कल यानी बुधवार शाम 5 बजे तक बाजार में साख पाने के बाद अडानी की दुनिया के अमीरों के लिस्ट में 17वें नंबर पर पहुंच गए. इतना ही नहीं बुधवार को एक दिन में एलन मस्क (2 बिलियन डॉलर) और क्लाज (1.9 बिलियन डॉलर) के मुकाबले अडानी ने 4.3 बिलियन डॉलर की कमाई की. उनकी नेटवर्थ में जबरदस्त इजाफा हुआ. इसी दिन मार्क जुकरबर्ग ने 1.9 बिलियन डॉलर और लैरी पेज ने 6.3 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा. अडानी या कोई कैसे टॉप लिस्ट में आगे पीछे जाता है- फ़ोर्ब्स की लाइव बिलिनियर लिस्ट में देखा जा सकता है.
विश्लेषण लिखे जाने तक यानी गुरुवार दोपहर तक अडानी 17वें स्थान पर काबिज थे. हालांकि गुरुवार को बाजार में उनके शेयर्स को नुकसान पहुंचा है. टॉप टेन लिस्ट में भारत के और कारोबारी मुकेश अंबानी पहले से ही 10वें नंबर पर काबिज हैं. माना जा रहा है कि राहुल के भाषण के बाद अडानी के पक्ष में जिस तरह भारतीय समाज एकजुट हुआ है वह वापस टॉप 10 लिस्ट में जल्द ही आ सकते हैं. हालांकि स्टॉक बाजार पूरी तरह अनिश्चित है. और यहां सेकेंडभर में कुछ भी हो सकता है.
राहुल गांधी के काम क्यों नहीं आई हिंडनबर्ग की रिपोर्ट
वैसे एक जमाने तक भारत का स्टॉक मार्केट और कुछ अमीर लोगों की दिलचस्पी का विषय होता था. कारोबार में भी परंपरागत उद्योगपतियों का दबदबा नजर आता था. लेकिन पिछले कुछ सालों में बाजार का स्वरूप बदला है. नई पीढ़ी के नए-नए कारोबारियों ने सफलता के नए मुकाम गढ़े हैं. अडानी उनमें सबसे बड़ा नाम हैं. संपन्नता भी भारतीय समाज की निचली इकाइयों तक पहुंच रही है. यह देश में बदलाव की एक बड़ी वजह है. स्टॉक से आम भारतीयों ने भी पैसे बनाए हैं. इसका सबसे ताजा साक्ष्य यह भी है कि देश में डीमैट खाताधारकों की संख्या 10 करोड़ के पार जा चुकी है. आंकड़े साल 2022 में सितंबर तक के हैं. डीमैट खातों के जरिए ही कोई स्टॉक मार्केट में निवेश करता है. यानी अब देश में 10 करोड़ से ज्यादा आम लोग भी बाजार के जरिए पैसे लगा सकते हैं. ये 10 करोड़ खाताधारक देश की कम से कम 40-50 करोड़ आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं. जाहिर सी बात है कि यह मध्यवर्ग है. इसमें कम से कम 50 प्रतिशत खाताधारकों ने निवेश तो किया ही होगा. अडानी या दूसरों के पक्ष में.
राहुल गांधी, कांग्रेस और विपक्ष यहीं पर मात खा गया. हिंडनबर्ग, कांग्रेस और विपक्ष के हमलों से सिर्फ अडानी, भारतीय स्टॉक मार्केट को ही नुकसान नहीं पहुंचा बल्कि सीधे-सीधे उन आम लोगों पर भी असर डालते दिखा जिनका बाजार में निवेश है. यह भी कि आज की तारीख में अडानी करीब-करीब 4 लाख से ज्यादा कर्मचारियों को नौकरी देने वाले कारोबारी हैं. कहने की बात नहीं कि उनपर हमले को किस तरह लिया गया होगा. असल में यहीं से पता चलता है कि कांग्रेस और भारतीय विपक्ष राजनीतिक रूप से जनता से संवाद करने में बुरी तरह फेल हो रहा है. जनता का मन टटोलने में भी नाकाम साबित हुआ. कांग्रेस-हिंडनबर्ग और अडानी प्रकरण में यह साफ़-साफ़ दिख रहा है.
यह इंटरनेट युग है. पता चलता है कि विपक्ष ने अतीत से कोई सीख नहीं ली और उसकी सोच 50 साल पीछे वाली है. उसे लग रहा है कि अभी भी देश की जनता के सामने दो वक्त की रोटी का ही बड़ा सवाल है. जनता की जेबें पूरी तरह से खाली है. कभी ऐसा था और तब देश में कारोबारियों को लेकर आम जनता में उनकी बेहतर छवि नहीं थी. भारतीय राजनीति ने इसका जमकर फायदा उठाया. बेईमान कारोबारियों की कहानियों ने उनकी तमाम धारणाओं को पुख्ता कर दिया. मगर पिछले डेढ़ से दो दशक के बीच में संपन्नता रिसकर समाज की निचली इकाई तक पहुंच चुकी है. अब देश में एक व्यापक आबादी है जो दो वक्त की रोटी से कहीं बहुत आगे की चीजों को देखना चाहता है. राजनीतिक रूप से पूरा एपिसोड राहुल गांधी को निश्चित ही नुकसान पहुंचाने जा रहा है. शायद भाजपा सरकार को इसका अंदाजा था. यही वजह है कि भाजपा के किसी भी बड़े नेता ने अडानी के बचाव की कोशिश नहीं की और पूरे मामले पर चुप्पी बनाए रखी.
मध्यवर्ग पर टिके ताकतवर भारतीय बाजार ने जनादेश दे दिया है. इसमें 2024 की झलक देख सकते हैं.
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