केन्द्रीय बजट (Budget 2020) आने ही वाला है. ऐसी आशा की जा रही है कि सकारात्मक बजट प्रस्तावों से करोड़ों लोगों को रोजगार देने वाले रीयल एस्टेट सेक्टर के दिन सुधर सकते हैं. उम्मीद है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) अपने बजट प्रस्तावों में रीयल एस्टेट सेक्टर (Real Estate sector) के लिए कोई ठोस प्रस्ताव लेकर आएंगी. निश्चित रूप से कोई भी सरकार आज की मंद अर्थव्यवस्था में एस्टेट सेक्टर के मसलों को नजरअंदाज नहीं कर सकती है, क्योंकि कृषि (Agriculture) के बाद रीयल एस्टेट क्षेत्र ही सबसे बड़ा रोजगार देने वाला सेक्टर है. प्राय: प्रत्येक बजट के पहले अफोर्डेबल हाउसिंग सेक्टर (Affordable Housing) की बात होने ही लगती है. सबका अपना मकान हो, यह मोदी जी का वायदा भी तो है. उम्मीद है कि सरकार देश में हरेक हिन्दुस्तानी के छत के सपने को साकार करने के लिए निजी बिल्डरों के साथ मिलकर सस्ते घर भी उपलब्ध कराने की कोई योजना ला सकती है. इसके लिए यह भी जरूरी है कि सरकार प्रमुख शहरों में या उससे सटे शहरों में सस्ती जमीन की व्यवस्था करे. इससे अधिक से अधिक लोग अपना घर बनाने के संबंध में सोचने लगेंगे. फिलहाल तो स्थिति यह है कि देश के वे युवा, जो हर माह एक लाख रुपए तक कमा रहे हैं, घर लेने को लेकर गंभीर ही नहीं हैं. उन्हें लगता है कि घर लेने के बाद वे 15-20 साल तक ईएमआई के जाल में फंस जाएंगे. उन्हें हर माह लोन की किस्तें भरनी होंगी. इससे बेहतर है कि किराये पर ही रहो.
उनकी इस सोच के पीछे भी कई कारण जायज रहे हैं. सब जानते हैं कि रीयल एस्टेट कंपनियों ने अपने ग्राहकों को कितना कष्ट दिया है. उनसे जो भी वादे किए, उन्हें कभी पूरा नहीं किया. नतीजा यह है कि दिल्ली एनसीआर के ही दो...
केन्द्रीय बजट (Budget 2020) आने ही वाला है. ऐसी आशा की जा रही है कि सकारात्मक बजट प्रस्तावों से करोड़ों लोगों को रोजगार देने वाले रीयल एस्टेट सेक्टर के दिन सुधर सकते हैं. उम्मीद है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) अपने बजट प्रस्तावों में रीयल एस्टेट सेक्टर (Real Estate sector) के लिए कोई ठोस प्रस्ताव लेकर आएंगी. निश्चित रूप से कोई भी सरकार आज की मंद अर्थव्यवस्था में एस्टेट सेक्टर के मसलों को नजरअंदाज नहीं कर सकती है, क्योंकि कृषि (Agriculture) के बाद रीयल एस्टेट क्षेत्र ही सबसे बड़ा रोजगार देने वाला सेक्टर है. प्राय: प्रत्येक बजट के पहले अफोर्डेबल हाउसिंग सेक्टर (Affordable Housing) की बात होने ही लगती है. सबका अपना मकान हो, यह मोदी जी का वायदा भी तो है. उम्मीद है कि सरकार देश में हरेक हिन्दुस्तानी के छत के सपने को साकार करने के लिए निजी बिल्डरों के साथ मिलकर सस्ते घर भी उपलब्ध कराने की कोई योजना ला सकती है. इसके लिए यह भी जरूरी है कि सरकार प्रमुख शहरों में या उससे सटे शहरों में सस्ती जमीन की व्यवस्था करे. इससे अधिक से अधिक लोग अपना घर बनाने के संबंध में सोचने लगेंगे. फिलहाल तो स्थिति यह है कि देश के वे युवा, जो हर माह एक लाख रुपए तक कमा रहे हैं, घर लेने को लेकर गंभीर ही नहीं हैं. उन्हें लगता है कि घर लेने के बाद वे 15-20 साल तक ईएमआई के जाल में फंस जाएंगे. उन्हें हर माह लोन की किस्तें भरनी होंगी. इससे बेहतर है कि किराये पर ही रहो.
उनकी इस सोच के पीछे भी कई कारण जायज रहे हैं. सब जानते हैं कि रीयल एस्टेट कंपनियों ने अपने ग्राहकों को कितना कष्ट दिया है. उनसे जो भी वादे किए, उन्हें कभी पूरा नहीं किया. नतीजा यह है कि दिल्ली एनसीआर के ही दो बड़े बिल्डर फिलहाल जेल की हवा खा रहे हैं. इन और इन जैसे अनेक बिल्डरों ने जनता के विश्वास को तोड़ा है. मैं दिल्ली, बेंगलुरु, मुंबई और गुरुग्राम के लगभग दो दर्जन सफल नौजवानों से बात करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि अब युवा तो घर लेना ही नहीं चाहते. वह किसी एक शहर में दो-तीन दशकों तक रहना भी नहीं चाहते. वे तो उसी शहर का रुख कर लेते हैं, जहां पर उन्हें बेहतर सैलरी और काम और बेहतर सुख-सुविधा, शिक्षा-चिकित्सा के अवसर मिलते हैं. केन्द्रीय बजट में इन युवाओं को फिर से अपने घर लेने के संबंध में सोचने के लिए बाध्य करने योग्य लालच तो देना ही होगा. साथ ही बिल्डरों को भी सख्ती से सुधारना होगा ताकि उन पर जनता का भरोसा वापस लौटे.
निश्चित रूप से बजट प्रस्तावों में स्मार्ट शहरों के विकास और विस्तार के लिए अलग से भी पर्याप्त धन मुहैया कराना होगा. देश में 100 स्मार्ट सिटीज के निर्माण पर काम चल रहा है. शहरों में गरीबी को पचाने की ताकत होती है. देश में शहरों में रोजगार के अवसरों के कारण ही तो ग्रामीण जनता शहरों में पहुंच रही है. केन्द्र में मोदी सरकार ने शहरों का कायाकल्प करने के बारे में सोचा. इस लिहाज से 100 शहरों का चयन हुआ. इनमें वर्ल्ड क्लास ट्रांसपोर्ट सिस्टम, 24 घंटे बिजली-पानी की सप्लाई, सरकारी कामों के लिए सिंगल विंडो सिस्टम, एक जगह से दूसरी जगह तक 45 मिनट के अन्दर ही जाने की व्यवस्था, स्मार्ट एजुकेशन, एन्वायरन्मेंट फ्रेंडली, बेहतर सिक्युरिटी और एंटरटेनमेंट की फैसिलिटीज उपलब्ध रहेंगी. चुनौती बड़ी है, पर यह पूरी तो करनी ही होगी. आपको याद होगा कि स्मार्ट सिटी बनाने के लिए पिछली मोदी सरकार के पहले बजट में भी घोषणा की गई थी. बजट में 7060 करोड़ रुपए का फंड भी अलॉट किया गया था. उम्मीद है कि आगामी बजट प्रस्तावों में स्मार्ट सिटीज पर अलग से धन की व्यवस्था होगी, लेकिन पहले देश को अपने 100 शहरों को सिंगापुर जैसा बनाने के सपने को साकार करने के लिये सुधरना होगा. क्या अब हम अपनी नदियों में कूड़ा-करकट नहीं डालेंगे? सिंगापुर शहर से गुजरने वाली नदी में गंदगी फैलाने वाले पर 15 हजार डॉलर का जुर्माना लगता है. क्या हम भी इस तरह के कठोर दंड देने के लिये तैयार हैं?
इन स्मार्ट शहरों में उनके लिए भी तो जगह हो जो कम दामों में अपनी छत का सपना देख रहे हैं. कहने की जरूरत नहीं है कि देश के हाउसिंग सेक्टर में अभी सस्ते घर बनाने की तरफ ठोस पहल नहीं हो रही है. हां, बातें जरूर हो रही हैं. केन्द्र और राज्य सरकारों को सिंगापुर की तर्ज पर हाउसिंग क्षेत्र पर खास फोकस करना होगा. सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि स्मार्ट सिटीज में सस्ते घर भी बनें. अभी तो सारा फोकस लग्जरी घरों पर ही है.
माफ कीजिए पर यह सत्य है कि भारत में अर्फोडेबल हाउसिंग को गति देने के लिए जितनी गम्भीरता दिखाई जानी चाहिए थी, उसका अभाव ही दिखा है. सरकार को हाउसिंग सेक्टर में अर्फोडेबल हाउसिंग पर विशेष फोकस देना होगा. उस इंसान के लिए स्पेस सिकुड़ता जा रहा है, जिसकी आर्थिक हालत पतली है. स्मार्ट शहरों में आर्थिक रूप से एलआईजी घरों का निर्माण करने वाली रीयल एस्टेट कंपनियों को सस्ती दरों पर जमीन उपलब्ध कराई जानी चाहिए.
स्मार्ट शहरों की बात करते हुए इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की अनदेखी नहीं की जा सकती. अभी तो यही हो रहा है कि हरेक घर लेने वाला जाहिर तौर पर वहां पर घर लेने को उत्सुक रहता है, जहां पर इन्फास्ट्रक्टर बेहतर होता है. जहां पर सड़कें, स्कूल, यातायात व्यवस्था कॉलेज, अस्पताल पहले चुस्त और उत्तम होते हैं. स्मार्ट शहरों का निर्माण करते वक्त महान आर्किटेक्ट लॉरी बेकर को नहीं भूलना चाहिए. उन्होंने भारत में सस्ते घर बनाने की तकनीक दी. यूं तो वे मूलत: ब्रिटिश थे पर उन्होंने भारत को ही अपना कर्म क्षेत्र बना लिया था. वे करीब आधी शताब्दी से भी अधिक वक्त तक केरल में रहकर सस्ते घरों और दूसरी इमारतों की तकनीक को लोकप्रिय करने के अपने जीवन के मिशन पर जुझारू प्रतिबद्धता के साथ जुड़े रहे. बेकर ने हाउसिंग सेक्टर को नई व्याकरण दी. वे मानते थे कि स्थानीय पर्यावरण के मुताबिक ही घर बनें.
अब जबकि केन्द्रीय बजट आ रहा है, तब सरकार रीयल एस्टेट सेक्टर की हर संभव मदद करेगी ही, पर क्या रीयल एस्टेट कंपनियां भी अपने ग्राहकों के हितों के बारे में सोचेंगी? बहरहाल, अभी तो यही लग रहा है कि आगामी आम बजट में सस्ते घरों के निर्माण और स्मार्ट सिटीज के सपने को साकार करने की दिशा में कोई बड़ी पहल होगी.
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)
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