सॉफ्ट ड्रिंक बनाने वाली कंपनी Coca Cola एक अलग ही योजना बना रही है. कंपनी का इरादा अब लोगों को देसी ड्रिंक्स पिलाने का है. देसी का मतलब नहीं समझे? भई जो देश के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रचलित हों. अब नारियल पानी ही ले लीजिए. कंपनी इस पर भी विचार कर रही है. तो वो दिन दूर नहीं कि नारियल पानी हरे नारियल में नहीं, बल्कि कांच की बोतलों में मिलना शुरू हो जाए. कोका कोला देसी तो हो रहा है, लेकिन मजबूरी में. आइए जानते हैं क्या है मजबूरी.
कंपनी को हो रहा नुकसान
कोका कोला और पेप्सी दोनों ही कंपनियों को पार्ले एग्रो के फ्रूटी और डाबर के रीयल जूस की वजह से नुकसान हो रहा है. मार्केट रिसर्च फर्म नील्सन के मुताबिक सितंबर 2016-17 के बीच इनकी वजह से कोका कोला के माजा और पेप्सी के स्लाइस की कमाई कम हो गई है. आपको बता दें कि जूस के मामले में डाबर का रीयल लोगों का सबसे पसंदीदा ब्रांड है. दरअसल, लोगों में स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरुकता भी इसका बड़ा कारण है कि लोग कार्बोनेटेड ड्रिंक के बजाय जूस को तरजीह दे रहे हैं. ऐसे में कंपनियां चाहें या ना चाहें, उन्हें क्षेत्रीय पेय पदार्थों के बाजार में उतरना ही होगा, वरना बिजनेस में मुनाफा नहीं हो पाएगा.
तो क्या है कंपनी का प्लान?
कंपनी अपने कुल उत्पादों में से दो-तिहाई ऐसे उत्पाद रखना चाहती है, जो स्थानीय हों. हर राज्य की अपनी एक विशेष ड्रिंक होती है. इसी के तहत कंपनी हर राज्य में एक या दो देसी उत्पादों की पहचान करेगी और फिर उसके हिसाब से ड्रिंक बनाएगी. अब उदाहरण के लिए नारियल पानी ही ले लीजिए. कंपनी नारियल पानी जैसे उत्पाद को भी अपनी ड्रिंक में शामिल करना चाहती है. इसके अलावा संतरे-मौसमी का जूस और आमरस भी इसमें शामिल होंगे.
कोका कोला ने पार्ले से ऐसे छीना था...
सॉफ्ट ड्रिंक बनाने वाली कंपनी Coca Cola एक अलग ही योजना बना रही है. कंपनी का इरादा अब लोगों को देसी ड्रिंक्स पिलाने का है. देसी का मतलब नहीं समझे? भई जो देश के अलग-अलग क्षेत्रों में प्रचलित हों. अब नारियल पानी ही ले लीजिए. कंपनी इस पर भी विचार कर रही है. तो वो दिन दूर नहीं कि नारियल पानी हरे नारियल में नहीं, बल्कि कांच की बोतलों में मिलना शुरू हो जाए. कोका कोला देसी तो हो रहा है, लेकिन मजबूरी में. आइए जानते हैं क्या है मजबूरी.
कंपनी को हो रहा नुकसान
कोका कोला और पेप्सी दोनों ही कंपनियों को पार्ले एग्रो के फ्रूटी और डाबर के रीयल जूस की वजह से नुकसान हो रहा है. मार्केट रिसर्च फर्म नील्सन के मुताबिक सितंबर 2016-17 के बीच इनकी वजह से कोका कोला के माजा और पेप्सी के स्लाइस की कमाई कम हो गई है. आपको बता दें कि जूस के मामले में डाबर का रीयल लोगों का सबसे पसंदीदा ब्रांड है. दरअसल, लोगों में स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरुकता भी इसका बड़ा कारण है कि लोग कार्बोनेटेड ड्रिंक के बजाय जूस को तरजीह दे रहे हैं. ऐसे में कंपनियां चाहें या ना चाहें, उन्हें क्षेत्रीय पेय पदार्थों के बाजार में उतरना ही होगा, वरना बिजनेस में मुनाफा नहीं हो पाएगा.
तो क्या है कंपनी का प्लान?
कंपनी अपने कुल उत्पादों में से दो-तिहाई ऐसे उत्पाद रखना चाहती है, जो स्थानीय हों. हर राज्य की अपनी एक विशेष ड्रिंक होती है. इसी के तहत कंपनी हर राज्य में एक या दो देसी उत्पादों की पहचान करेगी और फिर उसके हिसाब से ड्रिंक बनाएगी. अब उदाहरण के लिए नारियल पानी ही ले लीजिए. कंपनी नारियल पानी जैसे उत्पाद को भी अपनी ड्रिंक में शामिल करना चाहती है. इसके अलावा संतरे-मौसमी का जूस और आमरस भी इसमें शामिल होंगे.
कोका कोला ने पार्ले से ऐसे छीना था मार्केट
कोका कोला और पेप्सी ऐसे ब्रांड हैं, जो ड्रिंक्स की दुनिया में अधिक से अधिक हिस्सेदारी चाहते हैं. अगर थोड़ा पीछे जाया जाए तो आपको ये बात आसानी से समझ आ जाएगी. 1993 में कोका कोला ने पार्ले बिस्लेरी लिमिटेड से थम्स अप, माजा, लिम्का, सिट्रा और गोल्ड स्पॉट जैसे ब्रांड का अधिग्रहण कर लिया. देखा जाए तो जिस हिस्से पर पहले पार्ले का कब्जा था, अब वो सारा कोका कोला के हाथ में आ गया. कोका कोला ने सिट्रा और गोल्ड स्पॉट को बंद कर दिया और बाकी ड्रिंक्स से बाजार पर कब्जा किया. गोल्ड स्पॉट अपने जमाने की बहुत ही प्रसिद्ध ड्रिंक थी, जिसे कंपनी ने फैंटा को प्रमोट करने के लिए बंद किया. देखिए उस जमाने में कितना लोकप्रिय था गोल्ड स्पॉट.
देसी ड्रिंक्स की ओर फोकस करने से कोका कोला को रीयल जूस ब्रांड से लड़ने में मदद मिलेगी और साथ ही विदेशी प्रोडक्ट का जो ठप्पा अन्य कंपनियां कोका कोला के माथे मढ़ती रहती हैं, उनसे भी निपटना आसान हो सकेगा. कोका कोला का स्थानीय ड्रिंक्स में उतरने का ये फैसला उसकी छवि को स्वदेसी और देसी बना देगा. इस छवि के साथ कोका कोला को पतंजलि जैसी कंपनियों के प्रोडक्ट्स से भी लड़ने में आसानी होगी, जो पूर्ण स्वदेसी छवि के साथ बिजनेस कर रहा है.
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