सिर्फ हिन्दुस्तान (India) ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व इस कोविड महामारी (Coronavirus Pandemic) के चलते काफी संकट में है और पिछले छह महीने से लगभग हर देश की अर्थव्यवस्था (Economy) बेहद कठिन दौर से गुजर रही थी. बस एक आस बची थी लोगों की नजर में और वह थी कि जल्द से जल्द इसकी कोई वैक्सीन (Coronavirus Vaccine In India) निकल आये और लोग बेख़ौफ़ पहले की तरह सामान्य जीवन बिताने लगें. लेकिन पहले पूर्ण लॉकडाउन (Lockdown) लगा और फिर धीरे धीरे देश अनलॉक (Covid nlock) होने लगा. और आज अगर सचमुच देखा जाए तो देश के अधिकांश हिस्सों में लोगों ने यह मान लिया है कि अब इसी हाल में जीना है और पहले वाला डर अब लोगों के चेहरे से गायब हो गया है. अगर बात अर्थव्यवस्था की करें तो इसमें अब बेहतरी के तमाम लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं. धीरे धीरे सभी दुकानें (Shops), होटल, रेस्टोरेंट, माल, बाजार इत्यादि खुल गए हैं और लोगों की भीड़ आजकल बाजारों में देखी जा सकती है. सिर्फ सिनेमहाल, स्कूल, ट्रेन सेवा और कुछ अन्य संस्थान ही आगे चलकर खुलने वाले हैं. ये अलग बात है कि अधिकांश लोग बिना मास्क के ही अब घूमने लगे हैं जो कि बिलकुल गलत है और दूसरे लोगों को खतरे में डाल रही है. शेयर बाजार (Share Market) भी अब वापस 40000 के शिखर को पार कर गया है जो कि पिछले छह महीने में काफी गिर गया था. अगर सरकार के आय की बात करें तो जीएसटी का कलेक्शन फिर से बढ़ने लगा है और सितम्बर में यह 95000 करोड़ को पार कर गया है.
इसके पीछे एक वजह त्यौहारों का सीजन भी है जो अब शुरू हो गया है. पहले नवरात्री फिर दीवाली और उसके बाद क्रिसमस, ये तीन महीने व्यापार की दृष्टिकोण से काफी अच्छे होते हैं. दरअसल अगर सही मायने में देखा जाए तो अपने देश में व्यापार के...
सिर्फ हिन्दुस्तान (India) ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व इस कोविड महामारी (Coronavirus Pandemic) के चलते काफी संकट में है और पिछले छह महीने से लगभग हर देश की अर्थव्यवस्था (Economy) बेहद कठिन दौर से गुजर रही थी. बस एक आस बची थी लोगों की नजर में और वह थी कि जल्द से जल्द इसकी कोई वैक्सीन (Coronavirus Vaccine In India) निकल आये और लोग बेख़ौफ़ पहले की तरह सामान्य जीवन बिताने लगें. लेकिन पहले पूर्ण लॉकडाउन (Lockdown) लगा और फिर धीरे धीरे देश अनलॉक (Covid nlock) होने लगा. और आज अगर सचमुच देखा जाए तो देश के अधिकांश हिस्सों में लोगों ने यह मान लिया है कि अब इसी हाल में जीना है और पहले वाला डर अब लोगों के चेहरे से गायब हो गया है. अगर बात अर्थव्यवस्था की करें तो इसमें अब बेहतरी के तमाम लक्षण दिखाई पड़ रहे हैं. धीरे धीरे सभी दुकानें (Shops), होटल, रेस्टोरेंट, माल, बाजार इत्यादि खुल गए हैं और लोगों की भीड़ आजकल बाजारों में देखी जा सकती है. सिर्फ सिनेमहाल, स्कूल, ट्रेन सेवा और कुछ अन्य संस्थान ही आगे चलकर खुलने वाले हैं. ये अलग बात है कि अधिकांश लोग बिना मास्क के ही अब घूमने लगे हैं जो कि बिलकुल गलत है और दूसरे लोगों को खतरे में डाल रही है. शेयर बाजार (Share Market) भी अब वापस 40000 के शिखर को पार कर गया है जो कि पिछले छह महीने में काफी गिर गया था. अगर सरकार के आय की बात करें तो जीएसटी का कलेक्शन फिर से बढ़ने लगा है और सितम्बर में यह 95000 करोड़ को पार कर गया है.
इसके पीछे एक वजह त्यौहारों का सीजन भी है जो अब शुरू हो गया है. पहले नवरात्री फिर दीवाली और उसके बाद क्रिसमस, ये तीन महीने व्यापार की दृष्टिकोण से काफी अच्छे होते हैं. दरअसल अगर सही मायने में देखा जाए तो अपने देश में व्यापार के दो ही जबरदस्त सीजन होते हैं. एक तो शादियों का होता है जो इस कोविड के चलते लगभग ख़त्म ही हो गया और दूसरा यह त्याहारों का सीजन. मजदूर अब वापस काम पर लौट रहे हैं और रियल एस्टेट और वाहन बिक्री में भी काफी सकारात्मक सुधार देखने को मिल रहे हैं.
इलेक्टॉनिक्स और मोबाइल बिक्री में भी काफी सुधार नजर आ रहा है, कंपनियों का उत्पादन भी बढ़ने लगा है और इससे व्यवसायियों में उम्मीद बढ़ी है कि अब कुछ भरपाई होने की सम्भावना है. लेकिन अगर इस अर्थव्यवस्था को बैंकिंग क्षेत्र के नजरिये से देखें तो अभी यहां काफी चुनौतियां हैं. अभी सुप्रीम कोर्ट, सरकार और रिज़र्व बैंक के बीच इस समय ब्याज माफ़ी को लेकर खींचतान चल रही है.
सुप्रीम कोर्ट की मंशा है कि पिछले छह महीने में जो विभिन्न ऋणों के लिए मोरेटोरियम दिया गया था, उस समय के ब्याज को भी माफ़ कर दिया जाए लेकिन फिलहाल उस समय के दौरान के ब्याज के ऊपर लगे ब्याज को माफ़ करने की बात चल रही है. अब कोर्ट का आदेश जो भी हो, बैंकों को तो उसे मानना ही पड़ेगा लेकिन इससे उनकी सेहत पर काफी बुरा असर भी पड़ेगा जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. मार्च 2020 में बैंकों की सेहत में थोड़ा सुधार दिखा था जो जून 2020 और बेहतर तरीके से नजर आ रहा था.
यही स्थिति सितम्बर 2020 के बैलेंस शीट में भी दिखेगा लेकिन इसके बाद बैंकों के लिए काफी मुश्किल समय आने वाला है जिससे बैंकिंग इंडस्ट्री थोड़ी चिंतित है. मार्च के महीने में मोरेटोरियम देने के चलते बैंकों ने अपने यहाँ खराब खातों को एनपीए घोषित नहीं किया (जो कि सामान्य स्थिति में एनपीए घोषित हो जाते और उनपे बैंकों को अपने मुनाफे से प्रोविजन करना पड़ता और उनका मुनाफा कम हो जाता) जिसके चलते बैंकों में प्रोविजन कम हुआ और उनका मुनाफा उतने से बढ़ गया.
यही स्थिति जून और सितम्बर में भी है और पिछले छह महीने से बैंकों ने कोई भी खाता एनपीए घोषित नहीं किया है और न ही उनको उतना प्रोविजन करना पड़ा है. अब अक्टूबर या ज्यादा से ज्यादा नवंबर से ये खाते एनपीए घोषित करना बैंकों की मज़बूरी हो जायेगी और फिर उनका न सिर्फ एनपीए बढ़ जाएगा बल्कि उनका मुनाफा भी काफी घट जाएगा. इसी बीच केंद्र सरकार ने उद्योग जगत को तीन लाख करोड़ की मदद भी बैंकों के जरिये ही करवाई है जिससे काफी ऐसे खाते जो खराब चल रहे थे, उनको अतिरिक्त पूंजी उपलब्ध हो गयी है और वे शायद अगले एक साल तक एनपीए होने से बचे रहेंगे (उनको एक साल का मोरेटोरियम दिया गया है जिनमें उनको दिए गए इस अतिरिक्त पूंजी की चुकौती नहीं करनी है).
लेकिन एक साल बाद न सिर्फ पुराना ऋण बल्कि यह अतिरिक्त ऋण भी चुकाने में तमाम उद्योग डिफाल्ट करेंगे और फिर बैंकों की हालत खराब होने लगेगी. ये अलग बात है कि सरकार ने इस अतिरिक्त पूंजी के लिए बैंकों को गारंटी भी दी है लेकिन जब बैंकों को सरकार से पैसे मांगने का समय आएगा तो वह पैसा मिलना इतना आसान भी नहीं रहेगा. बैंकों में तमाम एसएमई और अन्य ऋणों को रिस्ट्रक्चर भी किया जा रहा है और अगर ये रिस्ट्रक्चर ऋण जितना कम होंगे, बैंक की सेहत उतनी ही अच्छी मानी जाएगी (क्योंकि इनके डिफाल्ट की सम्भावना भी काफी रहती है).
इसी में अगर कोर्ट बैंकों को ब्याज नहीं लेने का निर्णय सुना देती है तो बैंकों की आमदनी और घट जायेगी और उनकी सेहत पर विपरीत असर पड़ेगा. अब अगर इन सारे पहलुओं को देखा जाए तो ये बात तो साफ़ नजर आ रही है कि बाजार उम्मीद से है, शेयर बाजार बूम पर है, सरकार की आय भी बढ़ रही है और त्यौहार के मौसम के चलते उद्योग जगत की स्थिति सुधरने की पूरी उम्मीद है.
लेकिन इन सब के साथ बैंकों के लिए भी सरकार को गंभीरता से सोचने की जरुरत है वर्ना अगर बैंकों की सेहत खराब हो गयी तो आखिर कौन इन उद्योगों और छोटे बड़े व्यापारियों को उनका व्यापार चलाने के लिए कर्ज देगा. सरकार को आगे आकर बैंकों को पूंजी के रूप में मदद करनी चाहिए और ऋण वसूली के लिए बैंकों को (खासकर राष्ट्रीयकृत बैंकों को) ज्यादा अधिकार देना चाहिए.
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