जीएसटी के तहत ई-वे बिल प्रणाली व्यापारियों और अर्थव्यवस्था की मदद करने के मकसद से लाई गई थी. इसमें व्यापारियों और लोगों का टोल बूथ पर इंतजार खत्म करने, भ्रष्ट अधिकारियों के उत्पीड़न से मुक्ति और माल पर करों का भुगतान करने का वादा किया गया था. इस पूरी व्यवस्था का मकसद भारतीय अर्थव्यवस्था को कर चोरी पर लगाने के साथ-साथ सामानों के धीमे परिवहन से होने वाली हानि को खत्म करना था. लेकिन हमारे व्यापारियों ने इस प्रणाली को चकमा देने का भी तरीका निकाल लिया है.
फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि माल को एक जगह से दूसरे जगह भेजने के लिए व्यापारी अब मोटरगाड़ियों के बजाए घोड़ा गाड़ी या फिर बैल गाड़ी का उपयोग कर रहे हैं. क्योंकि जिन सामानों के परिवहन में मोटर गाड़ी का प्रयोग नहीं हो रहा है उसपर ई-वे बिल नहीं लिया जाता है. जीएसटी के तहत प्रावधानों के मुताबिक, व्यापारियों को 50,000 रुपये या उससे अधिक के वाहन में माल के आवागमन पर जारी ई-वे बिल प्राप्त करना होगा. लेकिन यह नियम गैर मोटर चालित वाहनों, फलों, सब्जियों, मछली और पानी जैसे कुछ सामानों पर लागू नहीं होता है.
पंजाब में ये तरीका धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है. लुधियाना के व्यापारी अब अपने सामान को मिनी ट्रक से माल भेजने के बजाए, अब घोड़े गाड़ियां या फिर हाथ गाड़ियों का उपयोग करते हैं. हालांकि ई-वे बिल 50,000 रुपये से कम मूल्य के सामान के लिए वैकल्पिक व्यवस्था है. लेकिन बेईमान व्यापारी छूट सीमा से ज्यादा का माल एक जगह से दूसरी जगह भेजने के लिए गैर मोटर चालित वाहन का उपयोग करते हैं.
पंजाब के वित्तीय-कराधान आयुक्त एमपी सिंह ने कहा- ई-वे बिलिंग प्रणाली और नियम, केंद्र सरकार द्वारा डिजाइन किए गए हैं. उन्होंने कहा, "भारत सरकार के साथ नियमित बैठकें आयोजित की जाती हैं और अब यह बात मेरे संज्ञान में लाई गई है. हम इस मुद्दे को उठाएंगे."
हालांकि ई-वे बिल 50,000 रुपये से कम मूल्य के सामान के लिए वैकल्पिक व्यवस्था है. लेकिन बेईमान व्यापारी छूट सीमा से ज्यादा का माल एक जगह से दूसरी जगह भेजने के लिए गैर मोटर चालित वाहन का उपयोग करते हैं. पंजाब के वित्तीय- कराधान आयुक्त एमपी सिंह ने कहा- ई-वे बिलिंग प्रणाली और नियम, केंद्र सरकार द्वारा डिजाइन किए गए हैं. उन्होंने कहा, "भारत सरकार के साथ नियमित बैठकें आयोजित की जाती हैं और अब यह बात मेरे संज्ञान में लाई गई है. हम इस मुद्दे को उठाएंगे."
1 जून से इंट्रा-स्टेट यानी एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर ई-वे बिल सिस्टम की शुरूआत के बाद लुधियाना में डीलर अपने कंस्ट्रक्शन का सामान और फर्नीचर (सोफा सेट) इत्यादि भेजने के लिए घोड़े गाड़ी का प्रयोग कर रहे हैं.
सरकार डाल डाल तो व्यापारी पात पात
पंजाब स्मॉल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष बदीश जिंदल कहते हैं- "पंजाब झूठे बिल बनाने के लिए वैट के जमाने से ही कुख्यात रहा है. अप्रत्यक्ष कर संरचना तो बदल गई है, लेकिन चालान कम करके दिखाने की बेईमानी वाली गतिविधियां अभी भी चालू हैं. कई व्यापारी जीएसटी बचाने के लिए अपनी सामग्री को "नंबर दो" में खरीदते और बेचते हैं."
ई-वे बिल के आने से पहले, बेईमान व्यापारी इनवॉइस के साथ माल को भेजा करते थे. जब सामान अपने गंतव्य पर टैक्स इंस्पेक्टरों की नजर से बचकर पहुंच जाता तो खरीददार और विक्रेता दोनों ही जीएसटी से बचने के लिए इनवॉइस को फाड़ देते. जीएसटी में कर चोरी की जांच के लिए ही ई-वे बिल पेश किया गया है.
एमपी सिंह ने कहा- "जहां तक इस तरह के करों को बचाने की बात है. यह लोगों की मानसिकता को दर्शाता है. जिसे हम नहीं बदल सकते हैं. हो सकता है कि इसका परिणाम वो बाद में भुगतेंगे जिसे वो अभी महसूस नहीं कर पा रहे हैं."
ई-वे बिल एक ऑनलाइन जेनरेटेड दस्तावेज है जो जीएसटी के तहत राज्य सीमाओं के सामानों के आवागमन के लिए अनिवार्य है. इसने कई चालान, ट्रांजिट पास और रोड परमिट को बदल दिया है. और इसकी आधिकारिक वेबसाइट या मोबाइल एप के जरिए इसे आसानी से जेनरेट या रद्द किया जा सकता है. 50,000 रुपये से अधिक मूल्य वाले किसी भी सामान को परिवहन के प्रभारी व्यक्ति या तो विक्रेता या खरीदार द्वारा पूर्व-पंजीकृत होना चाहिए. इससे टैक्स चोरी के उद्देश्य से माल के लाने, ले जाने पर नजर रखी जा सकेगी.
1 अप्रैल को ई-वे बिल लागू होने के बाद इससे जीएसटी में सुधार का श्रेय दिया गया था. अप्रैल महीने में 94,016 करोड़ का जीएसटी संग्रह हुआ था जो 2017-18 में इसी महीने के 89,885 करोड़ रुपये से ज्यादा है.
ये भी पढ़ें-
पेट्रोल-डीजल के बाद क्या सरकार किराने की कीमत बढ़ने का इंतेजार कर रही है
GST और E-way बिल को लेकर व्यापारियों ने 'जुगाड़' जमा ली है
ये रहा मोदी सरकार के चार साल का लेखा जोखा
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.