2017 में 92 साल पुराना एक रिवाज टूट गया. रिवाज था रेल बजट को अलग से पेश करना. 1921 में ब्रिटिश राज में इकोनॉमिस्ट विलियम मिशैल ऑकवर्थ को भारतीय रेलवे कमेटी का चेयरमैन बनाया गया था. उसी साल पहला रेल बजट पेश किया गया था. पिछले साल अलग रेल बजट पेश करने के रिवाज को जेटली जी ने तोड़ तो दिया और इस साल भी यूनियन बजट के साथ ही रेलवे बजट आने वाला है.
सरकार ने ज्यादा बेहतर कैपिटल फ्लो के लिए रेल बजट और यूनियन बजट को एक तो कर दिया, लेकिन पिछली बार बजट कोई खास कमाल नहीं दिखा पाया. अब इस बार जीएसटी के बाद रेल बजट से कुछ खास तरह की उम्मीदें लगाई गई हैं.
भले ही रेलवे को अर्थव्यवस्था की बाकी इन्वेस्टमेंट के साथ जोड़ दिया गया हो, लेकिन फिर भी रेलवे एक अहम सेक्टर है. कारण? रेलवे में अभी तक उस हद का प्राइवेटाइजेशन नहीं हुआ जैसा कि बाकी सेक्टर में हुआ है. क्योंकि ये पूरी तरह से सरकार पर ही निर्भर करता है इसलिए सुरक्षा, आराम और गति में मामले में दुनिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क भारत काफी पीछे है.
इस बार बजट बनाते समय जेटली जी को ये भी ध्यान रखना होगा कि रेल हादसों के कारण रेलवे को काफी नुकसान भी हुआ है. एक आम हिंदुस्तानी की तरह इस रेलवे बजट से ये सारी उम्मीदें रखते हैं...
1. सुरक्षा...
भारतीय रेलवे नेटवर्क जितना विशाल है उतना ही असुरक्षित भी. हर रोज़ करोड़ों यात्री भारतीय रेल में सफर करते हैं और लोकल, पैसेंजर से लेकर सुपरफास्ट ट्रेन तक सभी सुरक्षा के लिहाज से काफी खतरनाक हैं. 2017 के पहले 8 महीनों में ही 49 ट्रेन हादसे हुए.
कलिंगा उत्कल एक्सप्रेस के पटरी से उतरने पर लगभग 23 लोगों की जान चली गई थी. इसके अलावा, एल्फिंस्टन रोड स्टेशन मुंबई में फुटओवर ब्रिज में मची भगदड़ से करीब 22 लोग मारे गए थे.
रेलवे को सुरक्षा के...
2017 में 92 साल पुराना एक रिवाज टूट गया. रिवाज था रेल बजट को अलग से पेश करना. 1921 में ब्रिटिश राज में इकोनॉमिस्ट विलियम मिशैल ऑकवर्थ को भारतीय रेलवे कमेटी का चेयरमैन बनाया गया था. उसी साल पहला रेल बजट पेश किया गया था. पिछले साल अलग रेल बजट पेश करने के रिवाज को जेटली जी ने तोड़ तो दिया और इस साल भी यूनियन बजट के साथ ही रेलवे बजट आने वाला है.
सरकार ने ज्यादा बेहतर कैपिटल फ्लो के लिए रेल बजट और यूनियन बजट को एक तो कर दिया, लेकिन पिछली बार बजट कोई खास कमाल नहीं दिखा पाया. अब इस बार जीएसटी के बाद रेल बजट से कुछ खास तरह की उम्मीदें लगाई गई हैं.
भले ही रेलवे को अर्थव्यवस्था की बाकी इन्वेस्टमेंट के साथ जोड़ दिया गया हो, लेकिन फिर भी रेलवे एक अहम सेक्टर है. कारण? रेलवे में अभी तक उस हद का प्राइवेटाइजेशन नहीं हुआ जैसा कि बाकी सेक्टर में हुआ है. क्योंकि ये पूरी तरह से सरकार पर ही निर्भर करता है इसलिए सुरक्षा, आराम और गति में मामले में दुनिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क भारत काफी पीछे है.
इस बार बजट बनाते समय जेटली जी को ये भी ध्यान रखना होगा कि रेल हादसों के कारण रेलवे को काफी नुकसान भी हुआ है. एक आम हिंदुस्तानी की तरह इस रेलवे बजट से ये सारी उम्मीदें रखते हैं...
1. सुरक्षा...
भारतीय रेलवे नेटवर्क जितना विशाल है उतना ही असुरक्षित भी. हर रोज़ करोड़ों यात्री भारतीय रेल में सफर करते हैं और लोकल, पैसेंजर से लेकर सुपरफास्ट ट्रेन तक सभी सुरक्षा के लिहाज से काफी खतरनाक हैं. 2017 के पहले 8 महीनों में ही 49 ट्रेन हादसे हुए.
कलिंगा उत्कल एक्सप्रेस के पटरी से उतरने पर लगभग 23 लोगों की जान चली गई थी. इसके अलावा, एल्फिंस्टन रोड स्टेशन मुंबई में फुटओवर ब्रिज में मची भगदड़ से करीब 22 लोग मारे गए थे.
रेलवे को सुरक्षा के लिए एक खास बजट की जरूरत है और साथ ही साथ पुराने ब्रिज, इंफ्रास्ट्रक्चर और ट्रैक ठीक करने की जरूरत है. पिछले साल रेलवे ने 15000 करोड़ का फंड ट्रैक रिनिवल के लिए खर्च किया था जिसमें 2 लाख नए वर्करों की हायरिंग होनी थी. इसके बाद भी 2017 में रेल हादसों की दरकार कम नहीं हो पाई. अब 2018-19 में जेटली जी को ये ध्यान देना होगा कि ये बजट सही तरह से लागू हो सके.
खबरों की मानें तो रेलवे ने इस साल 3400 करोड़ का खर्च 3000 एस्कलेटर्स (स्वचालित सीढ़ियां) और 1000 लिफ्ट्स बनवाने के लिए रखा है जो स्टेशनों पर रहेंगी. ये पैसेंजर्स की सुविधा के लिए होगा. उम्मीद है कि सुविधा के साथ-साथ सुरक्षा के लिए भी काफी कुछ किया जाएगा.
2. सहूलियत और आराम..
दूसरी सबसे बड़ी जरूरत जो भारती रेलवे के लिए है वो है आराम. रेल यात्रा भारत में काफी कष्टकारी हो सकती है. चाहें समय पर न आने की बात हो, चाहें हाइजीन की बात हो जो भारतीय रेलवे से कोसों दूर है. लंबे सफर वाली ट्रेनों में बायोटॉयलेट का जो हाल होता है उससे तो देखकर ही उल्टी आ जाती है. आराम की बात करें तो सिर्फ कम्पार्टमेंट ही नहीं बल्कि स्टेशन पर भी लोग अपने सामान पर ही बैठे रहते हैं, चाहें वेटिंग रूम हो, या फिर प्लेटफॉर्म जगह नहीं होती. जहां होती है वहां भी गंदगी फैली रहती है. अगर सफाई की बात करें तो भारतीय रेलवे उससे कोसों दूर है. अगर सहूलियत की बात करें तो 12 घंटे लेट ट्रेन में क्या ही सहूलियत देखी जाएगी.
इसी के साथ, IRCTC में तत्काल टिकट बुक करना हो या फिर जनरल टिकट लेना हो ये सभी काम काफी मुश्किल साबित होते हैं. सहूलियत की बात करें तो पेंट्री कार का खाना भी इसी कैटेगरी में आता है और ये एक बड़ी मुसीबत बन जाता है. सहूलियत में सुरक्षा भी आती है जिसमें भारतीय रेलवे पास हो जाए ऐसा नहीं हो सकता. न जाने कितनी महिलाओं के साथ ट्रेनों में छेड़छाड़ होती है, न जाने कितने लोगों को ट्रेन से नीचे फेंक दिया जाता है. अगर भारतीय रेलवे में सुरक्षा, सफाई, समय पर आना-जाना, बैठने की सुविधा नहीं है तो फिर आखिर कैसे रेलवे बजट सहूलियत भरा रहेगा.
3. स्पीड...
सुरक्षा और सहूलियत को छोड़ भी दिया जाए तो भी एक और अहम बात है जिसमें भारतीय रेलवे पीछे है. वो है स्पीड. अभी भी ट्रेनों में वही पुरानी तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है. भले ही बुलेट ट्रेन की बात हो रही हो, लेकिन क्या ये पूरे भारत की ट्रेनों पर असर डाल सकेगी? कई ऐसी ट्रेनें हैं जिनका समय कम किया जा सकता है. सफर और जल्दी और बेहतर किया जा सकता है और ये सिर्फ ट्रेन के मॉर्डनाइजेशन से होगा.
पिछले बजट में दो हाई-स्पीड कॉरिडोर की बात की गई थी जो दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा को जोड़ेगा ये 11,189 करोड़ और 6,875 रुपए की लागत से बनने वाला है. एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 40 हज़़ार करोड़ का बजट और चाहिए जो बाकी बचे हुए चार कॉरिडोर बनवा सके जो 160 से लेकर 200 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चलने वाली ट्रेनों को रास्ता दे सके.
आने वाले साल में रेलवे 13000 बोगियां, 600 इंजन और 5000 पैसेंजर कोच बढ़ा सकती है. इस बार बजट में बुलेट ट्रेन सपोर्ट भी शामिल हो सकता है जो 2017 से 22 के बीच 1.1 लाख करोड़ का इन्वेस्टमेंट चाहता है.
नए रेल मंत्री पियुष गोयल और वित्त मंत्री जेटली जी कैसे भारतीय रेल यात्रियों की इन अहम जरूरतों को पूरा करते हैं ये सोचने वाली बात है.
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