ट्राई द्वारा फ्री बेसिक का प्रस्ताव ठुकरा दिए जाने से खफा फेसबुक बोर्ड के सदस्य और सिलिकन वैली में नामचीन मार्क आंद्रीसन ने तो 1947 में भारत को मिली आजादी को अभिशाप ही बता दिया और जोर दिया कि भारत के लिए गुलामी ही सही है. हालांकि, फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग के एतराज के बाद उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया, लेकिन फ्री बेसिक के कंसेप्ट के पीछे ईस्ट इंडिया कंपनी वाली सोच को झुठलाया नहीं जा सकता.
मार्क आंद्रीसन का विवादित ट्वीट |
गलती से ही सही, अांद्रीसन ने इस बात को जाहिर कर दिया कि 21वीं सदी में फेसबुक भी ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह भारत में काम करना चाहती थी. इसीलिए 19वीं सदी के ‘व्हाइट मैन्स बर्डन’ की तर्ज पर काम कर चुकी ईस्ट इंडिया कंपनी की तर्ज पर फेसबुक आज भारत में इंटरनेट पर कब्जा कर अपने यूजर्स को गुलाम बनाने का नजरिया रखती थी. इसके लिए उसने सहारा भी लिया तो सरकार के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का सपना दिखाया कि कैसे वह गांव-गांव तक मुफ्त में इंटरनेट पहुंचा देगा.
फेसबुक का यह नजरिए ज्यादा समझ आता है एक ब्रिटिश इतिहासकार और अहम फंडिग एजेंसी के प्रमुख निक रॉबिन्स की किताब दि कॉरपोरेशन दैट चेन्ज्ड दि वर्ल्ड से. हाल ही में अपनी किताब के प्रचार के लिए दिल्ली पहुंचे निक ने बताया कि कि कैसे मौजूदा मल्टीनैशनल कंपनियों में ईस्ट इंडिया कंपनी की छवि साफ-साफ देखी जा सकती है.
निक के मुताबिक अपने सैकड़ों साल के इतिहास में कंपनी ने इतनी बार अपना रूप बदला कि उसका स्वरूप पहले जैसा नहीं रह गया. ईस्ट इंडिया कंपनी को अपने देश से एशिया में व्यापार करने की सनद मिली थी. कंपनी के कामकाज में ब्रिटेन पूरी तरह शामिल था. ब्रिटिश...
ट्राई द्वारा फ्री बेसिक का प्रस्ताव ठुकरा दिए जाने से खफा फेसबुक बोर्ड के सदस्य और सिलिकन वैली में नामचीन मार्क आंद्रीसन ने तो 1947 में भारत को मिली आजादी को अभिशाप ही बता दिया और जोर दिया कि भारत के लिए गुलामी ही सही है. हालांकि, फेसबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग के एतराज के बाद उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया, लेकिन फ्री बेसिक के कंसेप्ट के पीछे ईस्ट इंडिया कंपनी वाली सोच को झुठलाया नहीं जा सकता.
मार्क आंद्रीसन का विवादित ट्वीट |
गलती से ही सही, अांद्रीसन ने इस बात को जाहिर कर दिया कि 21वीं सदी में फेसबुक भी ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह भारत में काम करना चाहती थी. इसीलिए 19वीं सदी के ‘व्हाइट मैन्स बर्डन’ की तर्ज पर काम कर चुकी ईस्ट इंडिया कंपनी की तर्ज पर फेसबुक आज भारत में इंटरनेट पर कब्जा कर अपने यूजर्स को गुलाम बनाने का नजरिया रखती थी. इसके लिए उसने सहारा भी लिया तो सरकार के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का सपना दिखाया कि कैसे वह गांव-गांव तक मुफ्त में इंटरनेट पहुंचा देगा.
फेसबुक का यह नजरिए ज्यादा समझ आता है एक ब्रिटिश इतिहासकार और अहम फंडिग एजेंसी के प्रमुख निक रॉबिन्स की किताब दि कॉरपोरेशन दैट चेन्ज्ड दि वर्ल्ड से. हाल ही में अपनी किताब के प्रचार के लिए दिल्ली पहुंचे निक ने बताया कि कि कैसे मौजूदा मल्टीनैशनल कंपनियों में ईस्ट इंडिया कंपनी की छवि साफ-साफ देखी जा सकती है.
निक के मुताबिक अपने सैकड़ों साल के इतिहास में कंपनी ने इतनी बार अपना रूप बदला कि उसका स्वरूप पहले जैसा नहीं रह गया. ईस्ट इंडिया कंपनी को अपने देश से एशिया में व्यापार करने की सनद मिली थी. कंपनी के कामकाज में ब्रिटेन पूरी तरह शामिल था. ब्रिटिश सेना के बड़े अधिकारी कंपनी की सनद पर पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप खड़ी कर रहे थे. शुरुआत में कंपनी को अपना हित साधने की पूरी छूट मिली थी. लेकिन 1773 से लेकर 1857 तक के सफर में धीरे-धीरे कंपनी की स्वायत्ता खत्म होने लगी और 1858 में वह सीधे राज्य के अधीन होकर साम्राज्यवादी शक्ति में परिवर्तित हो गई. निक का मानना है कि मौजूदा मल्टीनैशनल कंपनियों का भी काम करने का यही तरीका है.
ऐसे में अगर फेसबुक के बोर्ड सदस्य अांद्रीसन यह बात कह दें कि भारत को एक बार फिर गुलाम बनने से गुरेज नहीं करना चाहिए तो इतना तो तय है कि फेसबुक के साम्राज्यवाद का खुलासा हो चुका है. जाहिर है फेसबुक की इस कोशिश में उसे भी अपने देश से कोई सनद मिली होगी या या मिलने वाली होगी जो सवा सौ करोड़ नगरिकों को ई-गुलाम बनाने की फिराक में है.
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